Saturday, April 30, 2011

'टेढ़ा है पर मेरा है' की भावना से ओत-प्रोत होते हैं बड़े ब्लॉगर

(पिछले सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए , गतांक से आगे )
(कृपया पिछले अंक  भी देखिये नीचे)

1- अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging
2- कैसा होता है एक बड़े ब्लॉगर का वैवाहिक जीवन ? Family Life

3- हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि ‘उसका सम्मान उसके गन्ने से है।‘ Ganna

4- एक बड़ा ब्लॉगर शौच कैसे करता है ? Charity begins from toilet.


'टेढ़ा है पर मेरा है' यह रहस्य भी हम पर शौचासन में ही प्रकट हुआ। हमने तो इसका मात्र सत्यापन ही किया है लेकिन जिस पर यह रहस्य पहली बार प्रकट हुआ होगा तो उस पर भी यह शौचासन में ही प्रकट हुआ होगा। यह सिद्धांत एक ब्लॉगर के दिल को पूरी तरह बदल कर रख देता है। हमारे दिल में तुरंत खयाल आया कि जब हम अपने टेढ़े वुजूद से प्यार करते हैं और इसकी भावनाओं का भी खयाल रखते हैं तो फिर अगर किसी ब्लॉगर में कोई कमी या कोई टेढ़ापन मौजूद है तो हम उससे प्यार क्यों नहीं कर सकते ?
इस खयाल के आते ही हमने दो नामी ब्लॉगर्स को लोहे के चने नाकों चबाने का ख़याल तुरंत ही छोड़ दिया ।
हमारा मन भी तुरंत हल्का हो गया ।
इट मीन्स हम शौचासन को उसके उच्चतम सोपान तक सिद्ध करने में सफल हो चुके थे ।
हक़ीक़त यह है कि धड़ेबंदियों के पीछे भी यही भावना काम करती है और इसका इलाज भी इसी तरीक़े से होगा, बिल्कुल होम्योपैथी के उसूल पर ।
भावना दूषित हो और मक़सद नाजायज़ हो तो समस्या जन्म लेती है और अगर भाव शुद्ध हो और लोक मंगल की भावना हो तो फिर समस्याओं का अंत हो जाता है । बड़ा ब्लॉगर वह होता है जो कि समस्याओं को हल करता है न कि वह जो कि नित नई समस्याएँ खड़ी करता है । आप क्या कर रहे हैं ?
यह देखना आपका काम है और अपना तो मैं देख ही रहा हूँ और आपको बता भी रहा हूँ कि टेढ़ा है पर मेरा है हरेक ब्लॉगर ।
और समाधान इसके सिवा कुछ और है भी तो नहीं और अगर हो तो आप बताएं ।
                                                                       (...जारी, आप पढ़ते रहिये जनाब)

Wednesday, April 27, 2011

‘शौचासन‘ के लाभ कैसे उठायें बड़े ब्लॉगर्स ? Self realization in the toilet

अगर हम ढंग से शौच करना ही सीख लें तो हमारी मां और बहनों की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी, मां अपने घर में और बहनें अपनी ससुराल में खुश ही रहेंगी। हमें शौच करना भी आज तक ढंग से नहीं आया इसीलिए आज मां अपने घर में ही उपेक्षित है और बहनें अपनी ससुराल में भाई की राह तक रही हैं और कभी वे मायके आ भी जाती हैं तो उन्हें यही अहसास बार बार दिलाया जाता है कि ब्याह के बाद अब तेरा यहां कुछ नहीं है। यह एक बुराई है जो हर घर में आम है। कमज़ोर का हक़ मारकर कोई समाज कभी खुशहाल नहीं हो सकता। लिहाज़ा हम भी आज तक खुशहाल न हो पाए। आज हमारे समाज में कन्या को गर्भ में ही मार दिया जाता है और जिन्हें मार नहीं पाते तो उनकी ज़िंदगी मरने से बदतर कर दी जाती है।
बदन की पाकी के साथ दिल को भी पाक करना चाहिए। जितनी देर में हमने किचन गार्डन पार किया उतनी ही देर में यह सब ख़याल तेज़ी से आकर चले गए। हम शौचालय में दाखि़ल होकर ‘शौचासन‘ में बैठ गए। यह आसन मन को बड़ा प्रफुल्लित करता है। इसे बच्चे से लेकर बूढ़ा तक हरेक कर सकता है, यहां तक कि किसी भी रोग का रोगी और गर्भवती स्त्रियां भी निःशंक होकर इस आसन को कर सकती हैं।
इस आसन के प्रमुख लाभ यह हैं कि इससे शरीर का मल निष्कासित होता है। एकाग्रता सहज उपलब्ध हो जाती है। एकाग्रता की सिद्धि होते ही प्राचीन स्मृतियां प्रकट हो जाती हैं या फिर अगर आप किसी समस्या का समाधान ढूंढ रहे हैं तो आपको उस समस्या का समाधान या तो इसी आसन में मिल जाएगा वर्ना तो इससे फ़ारिग़ होते ही मिल जाएगा।
आर्किमिडीज़ के बारे में मशहूर है कि जैसे ही वह नहाने के लिए टब में बैठा तो उसे ‘उत्प्लावन का सिद्धांत‘ सुझाई दिया। यह भी शौचासन का ही कमाल है क्योंकि वह टब में बैठने से पहले शौच करके ही फ़ारिग़ हुआ था। बहरहाल जो जिस मैदान का माहिर है, उसी मैदान की बातें उस पर खुलती हैं। हम भी इस आसन में बैठे तो हम अचानक ही ‘हो हो‘ करके हंसने लगे और हम जितना हंसते थे, उसकी वजह से हमारे पेट पर उतना ही ज़्यादा दबाव पड़ता था। जिससे समय की बचत हो रही थी और काम फ़ास्ट हो रहा था। हम जानबूझकर नहीं हंस रहे थे बल्कि हंसी हमें खुद ही आकर चिपट गई थी।
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Tuesday, April 26, 2011

एक बड़ा ब्लॉगर शौच कैसे करता है ? Charity begins from toilet.


(पिछले सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए , गतांक से आगे )
1- अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging
2- कैसा होता है एक बड़े ब्लॉगर का वैवाहिक जीवन ? Family Life

3- हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि ‘उसका सम्मान उसके गन्ने से है।‘ Ganna
‘मेरा सम्मान मेरे गन्ने से है‘
यह क्यों कहा गया है ?
क्या इसलिए कि गन्ना बड़ा है और कद्दू-केला और बैंगन-खीरा छोटे हैं ?
क्या फ़सलों में भी ब्लॉगर्स की तरह छोटे-बड़े का भेदभाव चलता है ?
हम पर्चा पढ़ते हुए अलग अलग कोण से सोच ही रहे थे कि बात साफ़ हो गई। दरअस्ल शुगर मिल का मक़सद गन्ने की उम्दा नस्ल को ज़्यादा से ज़्यादा पैदा करने के लिए किसानों को प्रेरणा देना था। पर्चा शुगर मिल की तरफ़ से छपा था तो लिख दिया कि किसान का सम्मान उसके गन्ने से है। आलू-टमाटर ख़रीदने वाला लिखवाता कि किसान का सम्मान आलू-टमाटर से है। दूध की डेयरी वाला लिखवाता कि किसान का सम्मान उसके दूध से है और पौल्ट्री फ़ार्म वाला लिखवाता कि आपका सम्मान आपके अंडों से है। गन्ने से लेकर अंडों तक जो भी उत्पादन है वह अपने उत्पादनकर्ता का सम्मान बढ़ाता है। इस पर्चे का सार यही है। एक किसान के लिए जो हैसियत गन्ने की है , एक ब्लॉगर के लिए वही हैसियत उसकी पोस्ट्स की है। किसान बीज बोकर गन्ना उगाता है जबकि ब्लॉगर शब्दों के बीज बोकर पोस्ट की खेती करता है। किसान ओल्ड मॉडल का ब्लॉगर है जबकि ब्लॉगर नये स्टाइल का किसान है। अच्छा गन्ना किसान को सम्मान दिलाता है तो अच्छी पोस्ट ब्लॉगर को सम्मान दिलाती है।
बात अब बिल्कुल आईने की तरह साफ़ हो चुकी थी।
हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि हरेक ब्लॉगर का सम्मान उसके गन्ने अर्थात उसकी पोस्ट्स की गुणवत्ता के समानुपाती होता है। सम्मान पाने का जज़्बा ही उसे अच्छी से अच्छी पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे में अगर कम अच्छी पोस्ट लिखने वाले को सम्मानित कर दिया जाए तो उन ब्लॉगर्स का हौसला पस्त हो जाएगा जो तरह तरह के कष्ट झेलकर हिंदी ब्लॉग जगत को बेहतरीन पोस्ट दे रहे हैं। उन्हें इसलिए नज़रअंदाज़ कर देना ठीक नहीं है कि वे गुटबाज़ नहीं हैं या वे ईनामदान देने वालों को वाहवाही भरी टिप्पणियां नहीं दे पाते। यह कोई जुर्म नहीं है कि इसके लिए उन्हें ईनाम से ही वंचित कर दिया जाए।

चलिए एक पहेली तो हल हुई। दिमाग़ हल्का हुआ तो पेट ने भी हल्का होने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। लिहाज़ा हम अपने किचन गार्डन की तरफ़ चल दिए। एक शौचालय यहां भी बना हुआ है। यहां पूरी तरह प्राइवेसी है। दरअस्ल हम बचपन से ही योगी स्वभाव के आदमी हैं।
योग की सबसे अच्छी शिक्षक ‘मां‘ होती है। योग में सबसे पहले शौच और आसन की सिद्धि करनी अनिवार्य है। अगर मनुष्य यम-नियम का पाबंद नहीं है, उसका अंतःकरण पवित्र नहीं है, वह धैर्यपूर्वक एक आसन में स्थिर नहीं हो सकता तो उसे योग की सिद्धि कभी हो ही नहीं सकती। वह मां ही तो है जो बच्चे को सबसे पहले पॉटी करना सिखाती है, उसे पॉटी के लिए बैठना सिखाती है, उसे पवित्र रहना सिखाती है। योग की प्राथमिक शिक्षा यहीं से शुरू हो जाती है। हरेक इंसान का पहला गुरू उसकी मां होती है। इंसान बड़ा होता है तो उसे अपना अभ्यास भी बढ़ा देना चाहिए। अब उसे कोशिश करनी चाहिए कि शरीर की तरह उसके मन में भी गंदे विचार जमा न होने पाएं। लेकिन इंसान अपने मन को निर्मल बनाने पर ध्यान ही नहीं देता। हम जब भी शौच के लिए जाएं तभी हम अपने मन को भी बुरे विचारों से पाक करने की कोशिश करें। इस तरह एक ही समय में हमें दो लाभ हो सकते हैं। इस समय शरीर खुद को साफ़ करने में जितना समय लेता है, उतने समय में हम कोई और काम तो कर ही नहीं सकते। लिहाज़ा उतने समय में हमें अपने मन को ही टटोल लेना चाहिए कि हमारे मन में कोई बुरा विचार तो नहीं आ गया है। हम नाहक़ किसी को सता तो नहीं रहे हैं ?
किसी का कोई हक़ तो हमने नहीं मार लिया है ?    
अगर हम ढंग से शौच करना ही सीख लें तो हमारी मां और बहनों की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी, मां अपने घर में और बहनें अपनी ससुराल में खुश ही रहेंगी। हमें शौच करना भी आज तक ढंग से नहीं आया इसीलिए आज मां अपने घर में ही उपेक्षित है और बहनें अपनी ससुराल में भाई की राह तक रही हैं और कभी वे मायके आ भी जाती हैं तो उन्हें यही अहसास बार बार दिलाया जाता है कि ब्याह के बाद अब तेरा यहां कुछ नहीं है। यह एक बुराई है जो हर घर में आम है। कमज़ोर का हक़ मारकर कोई समाज कभी खुशहाल नहीं हो सकता। लिहाज़ा हम भी आज तक खुशहाल न हो पाए। आज हमारे समाज में कन्या को गर्भ में ही मार दिया जाता है और जिन्हें मार नहीं पाते तो उनकी ज़िंदगी मरने से बदतर कर दी जाती है।
बदन की पाकी के साथ दिल को भी पाक करना चाहिए। जितनी देर में हमने किचन गार्डन पार किया उतनी ही देर में यह सब ख़याल तेज़ी से आकर चले गए। हम शौचालय में दाखि़ल होकर ‘शौचासन‘ में बैठ गए। यह आसन मन को बड़ा प्रफुल्लित करता है। इसे बच्चे से लेकर बूढ़ा तक हरेक कर सकता है, यहां तक कि किसी भी रोग का रोगी और गर्भवती स्त्रियां भी निःशंक होकर इस आसन को कर सकती हैं।
इस आसन के प्रमुख लाभ यह हैं कि इससे शरीर का मल निष्कासित होता है। एकाग्रता सहज उपलब्ध हो जाती है। एकाग्रता की सिद्धि होते ही प्राचीन स्मृतियां प्रकट हो जाती हैं या फिर अगर आप किसी समस्या का समाधान ढूंढ रहे हैं तो आपको उस समस्या का समाधान या तो इसी आसन में मिल जाएगा वर्ना तो इससे फ़ारिग़ होते ही मिल जाएगा।
आर्किमिडीज़ के बारे में मशहूर है कि जैसे ही वह नहाने के लिए टब में बैठा तो उसे ‘उत्प्लावन का सिद्धांत‘ सुझाई दिया। यह भी शौचासन का ही कमाल है क्योंकि वह टब में बैठने से पहले शौच करके ही फ़ारिग़ हुआ था। बहरहाल जो जिस मैदान का माहिर है, उसी मैदान की बातें उस पर खुलती हैं। हम भी इस आसन में बैठे तो हम अचानक ही ‘हो हो‘ करके हंसने लगे और हम जितना हंसते थे, उसकी वजह से हमारे पेट पर उतना ही ज़्यादा दबाव पड़ता था। जिससे समय की बचत हो रही थी और काम फ़ास्ट हो रहा था। हम जानबूझकर नहीं हंस रहे थे बल्कि हंसी हमें खुद ही आकर चिपट गई थी।
एक बड़ा ब्लॉगर हर समय ब्लॉग और ब्लॉगर्स के बारे में ही सोचता रहता है। जाने कैसे हमें डा. डंडा लखनवी का ख़याल आ गया। जब उन्होंने पहली बार मेरे ब्लॉग ‘इस्लाम धर्म‘ पर बेमेल टिप्पणी तो मुझे एक चिढ़ सी पैदा हुई। वह हमारी पोस्ट पर अपनी पोस्ट का बड़ा प्रचार कर गए थे। उनकी यह टिप्पणी बिल्कुल बेजा थी। फिर हमने देखा कि उनका नाम तो और भी ज़्यादा बेमेल है। हम बचपन से ही अपने वालिद साहब और अपने उस्तादों के डंडे खाते आए हैं। अब जाकर उनसे मुक्ति मिली थी कि ये साहब फिर से डंडे की याद दिलाने चले आए।
क्या इन साहब को कोई और नाम नहीं मिला था रखने के लिए ?
बहरहाल हमारे पल्ले नहीं पड़ा कि उन्होंने क्या सोचकर यह नाम रखा ?
बस आज मन में दबे हुए इसी सवाल को हल होना था। अचानक हमारे दिल पर यह इन्कशाफ़ हुआ कि उन्होंने अपना नाम डंडा क्या सोचकर रखा ?
और यह भी संभव है कि उन्हें अपना नाम ‘डंडा‘ रखने का विचार भी शौचालय में ही आया हो।
हम बेफ़िक्री से हंसते रहे, हमें पता था कि अंदर की आवाज़ को सुनने वाला यहां कोई भी नहीं है। आदमी जब तन्हा होता है तो वह खुद से मिलता है। जब वह खुद से मिलता है तभी वह जान पाता है कि वास्तव में वह क्या है ?
शौचालय में शौचासन के ज़रिये आदमी को आत्मसाक्षात्कार होता है लेकिन दुख की बात है कि वह उस समय जागरूक नहीं होता।
जो आदमी जागरूक होकर शौच तक नहीं कर सकते वे ब्लॉग पर भी अपना शौच साथ ही ले आते हैं। यहां वे अपने मन की गंदगी के ढेर लगा देते हैं। जिन्होंने अपनी सगी बहनों को अपने बाप की जायदाद में हिस्सा नहीं दिया, वे पराये पेट से पैदा हिंदी ब्लॉगर्स को उनका जायज़ हक़ भला कैसे दे पाएंगे ?
अपने दिलो-दिमाग़ में जो गंदगी के ढेर उठाए फिर रहे हैं, वे चाहते हैं कि उन्हें सम्मानित हिंदी ब्लॉगर्स अपने सिरों पर उठा लें।
उन्हें उठाएंगे उन्हीं जैसे ब्लॉगर्स, हम भला बेईमानों को अपने सिरों पर क्यों बिठाएंगे।
ज़्यादा हुआ तो हम इन्हें शौचालय में तो बिठा सकते हैं कि पहले ढंग से ‘पॉटी‘ करना सीख लीजिए, ढंग के ब्लॉगर्स से सम्मान पाने की बात बाद में सोचना और तब ही तुम किसी का सम्मान करना सीख पाओगे। फ़िलहाल तो तुम सम्मान के बजाय राजनीति कर रहे हो और राजनीति भी गंदी कर रहे हो।
बहरहाल जब हम फ़ारिग़ होकर बाहर निकले तो एक पोस्ट का मसाला तैयार हो चुका था। हमारी यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के सामने अब यह हक़ीक़त पूरी तरह आ चुकी है कि एक बड़ा ब्लॉगर शौच कैसे करता है ?
क्या शौच करने का इससे बेहतर कोई और तरीक़ा मुमकिन है ?

Monday, April 25, 2011

हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि ‘उसका सम्मान उसके गन्ने से है।‘ Ganna

(पिछले सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए , गतांक से आगे )
1- अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging
2- कैसा होता है एक बड़े ब्लॉगर का वैवाहिक जीवन ? Family Life

आदमी की हक़ीक़त उसकी औरत ही जानती है और आदमी को भी अपनी हक़ीक़त तभी पता चलती है जबकि वह अपनी औरत का सामना करता है। औरत की ज़बान ही नहीं बल्कि उसकी अक्ल भी तेज़ चलती है। वह बदन से ज़रूर कमज़ोर होती है लेकिन फिर भी अपने मर्द पर वह भारी पड़ती है। बदन से भी उसे कमज़ोर रखा है उस बनाने वाले ने तो यह मर्दों पर उस मालिक का एक बड़ा अहसान है। अगर वह बदन से कमज़ोर न होती तो आज हरेक घर में कुश्ती चल रही होती और मर्द अपने हाथ-पैर और मुंह तुड़ाए बैठा होता। मालिक ने औरत को एक चीज़ में कम रखा तो उसे दूसरी चीज़ में बढ़ा दिया, उसे मां बना दिया, उसके दिल में प्यार का सागर रख दिया और यह सच है कि प्यार की दौलत के सामने बदन की ताक़त का दर्जा कम है। मालिक कम चीज़ लेता है तो ज़्यादा चीज़ देता है, हमेशा उसका उसूल यही है। मर्द इस राज़ को समझता तो अपनी ताक़त से वह औरत को फ़ायदा पहुंचाता और प्यार का जो ख़ज़ाना उसके पास है, उससे वह फ़ायदा उठाता। बहुत सी किताबें पढ़कर और नेक वलियों की सोहबत में बैठकर हमने यही जाना है। आदमी के लिए उसकी शरीके-हयात से अच्छा दोस्त, हमदर्द, मददगार और राज़दार दूसरा कोई होता ही नहीं। जब हम उलझन में होते हैं तो हम अपनी ख़ानम से ही काउंसिलिंग करते हैं और अल्लाह का शुक्र है कि उनकी सलाह सही होती है और काम करती है।
‘हिंदी ब्लॉगर्स सम्मेलन‘ के लिए आए निंमत्रण के बारे में भी उन्होंने जो कुछ कहा, सही कहा। हमने जान लिया कि जो भी हिंदी ब्लॉगर ख़ानदानी शरीफ़ होगा और गुटबाज़ी से दूर होगा वह तो इस सम्मेलन में जाएगा ही नहीं। हां, जिन्हें कुछ बेचना है या जिन्हें कुछ ख़रीदना है या अपने अच्छे ख़ासे-कुंवारेपन में चेंज दरकार है, वे ज़रूर इस हाट में ठाठ-बाट से पहुंचेगे और नहीं भी पहुंच पाएंगे तो इंटरनेट से ही ‘जलवों‘ का नज़ारा कर लेंगे। अभी तो शुरूआत है लेकिन आने वाले ‘सम्मान समारोहों‘ में हिंदी ब्लॉगर्स के लिए ‘चीयर लीडर्स‘ की तर्ज़ पर कुछ ‘चीयर ब्लॉगर्स‘ का भी इंतज़ाम कर लिया जाए तो हिंदी ब्लॉगिंग समय के साथ क़दम मिलाकर चलने लगेगी।
हम यह सब सोच ही रहे थे कि तभी कॉल बेल बजी। किसान और मज़दूर का दरवाज़ा आज भी हातिम ताई के दिल की तरह हमेशा खुला ही रहता है। हमने खुले-खुलाए दरवाज़े के पार ‘शुगर मिल‘ की तरफ़ से गन्ने की पर्ची लाने वाले हरकारे को देखा। पास जाकर उससे पर्ची ली तो उसने एक पम्फ़लैट भी हमारे हाथ में थमा दिया। जिसमें गन्ने की अच्छी नस्लों के बीज के बारे में जानकारी दे रखी थी और सबसे ऊपर मोटे मोटे हरफ़ों में लिखा हुआ था कि
‘मेरा सम्मान मेरे गन्ने से है‘
हम ताज्जुब में पड़ गए कि हमारे खेत में तो केला, लौकी और कद्दू भी होता है, बैंगन और खीरा भी होता है और जब हम इन्हें आढ़त में लेकर जाते हैं तो हरेक आढ़ती हमें सम्मान देता है और जब उससे रक़म लेकर वापस आते हैं तो जो भी मिलता है, वह भी हमें सम्मान देता है। इसके बावजूद आज तक किसी ने न कहा कि मेरा सम्मान मेरे खीरे-बैंगन से है या मेरा सम्मान मेरे केले से है।
हरकारा तो हमारे हाथ में पर्ची और पर्चा थमाकर चला गया और हम अपनी चैखट पर खड़े यही सोचते रहे कि आखि़र यह क्यों कहा गया कि ‘मेरा सम्मान मेरे गन्ने से है।‘
सोचते-सोचते अचानक हम पर राज़ खुला कि ऐसा क्यों कहा गया है ?
हक़ीक़त यह है कि हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि ‘उसका सम्मान उसके गन्ने से है।‘ (...जारी)

Saturday, April 23, 2011

कैसा होता है एक बड़े ब्लॉगर का वैवाहिक जीवन ? Family Life


हमने अपनी शरीके-हयात को बताया-‘ख़ानम ! महीने की आखि़री तारीख़ को हिंदी ब्लॉगर्स का एक सम्मेलन हो रहा है।‘
‘तो‘-उन्होंने अपनी रसोई से ही दरयाफ़्त दिया।
अब हमें अपनी स्टडी से निकलकर उनकी रियासत के मरकज़ में यानि कि किचन में जाना पड़ा।
‘भई, तो से क्या मतलब ?, सम्मेलन हो रहा है ब्लॉगर्स का।‘-हमने जैसे ही कहा तो उन्होंने अपने हाथ के मसाले मिक्सी में डालकर मिक्सी फ़ुल स्पीड पर ऐसी चलाई कि तमाम टमाटर लहू-लुहान होकर रह गए। हमने शुक्र मनाया कि हम टमाटर की योनि में नहीं जन्मे वर्ना आज पीसकर रख दिए गए होते। तमाम मर्दों की तरह हम भी अपने दिल ही दिल में अपनी ख़ानम से डरे हुए से रहते हैं लेकिन बाहर से उन पर दूसरों की तरह हम भी कभी अपने दिल की हक़ीक़त ज़ाहिर नहीं होने देते। आज मर्दों के पास बस एक यह भ्रम ही तो बचा हुआ है मर्दानगी का कि हम तोप हैं वर्ना तो आज कौन सा काम ऐसा है जिसे औरत नहीं कर रही है या कर नहीं सकती और वह भी मर्द से बेहतर। यहां तक कि हिंदी ब्लॉगिंग भी औरतें ही कर रही हैं मर्दों से बेहतर। मर्द क्या कर रहा है ?
औरत की आबरू तार-तार कर रहा है, उसे नंगा कर रहा है।
छिनाल छिपकली डॉट कॉम वाले भाई विशाल ‘वनस्पति‘ जी के नाम से तो ऐसा लगता है मानों वे पुरातन भारतीय संस्कृति के कोई बहुत बड़े प्रहरी हों लेकिन जब हमने उनकी ‘छिनाल छिपकली‘ वाली पोस्ट देखी तो हम शर्म के मारे भाग आए वहां से बिना टिप्पणी किए ही। भाई विशाल ने वहां एक औरत की बिल्कुल नंगी फ़ोटो लगा रखी थी जो कि उन्होंने अपनी पत्नी या बहन की तो बिल्कुल भी नहीं लगाई होगी। जब वे अपनी पत्नी और बहन की मादरज़ाद नंगी फ़ोटो नहीं लगा सकते तो फिर उन्होंने किसी और की बीवी और बहन की फ़ोटो ही क्यों लगाई अपनी पोस्ट पर ?
हया-ग़ैरत का कुछ पता नहीं और दावा यह है कि ‘अभिव्यक्ति की नई क्रांति‘ पर होल्ड हमारा होना चाहिए।
उनसे भी ज़्यादा बेग़ैरत वे औरतें हैं जो उस पोस्ट पर विराजी हुई वाह-वाह कर रही हैं। बाद में एक बूढ़ी तजर्बेकारा ने उनके कान खींचे तो उन्होंने किसी की बहन की वह नंगी फ़ोटो वहां से हटाई। इसीलिए कहते हैं कि पुराना चावल पुराना ही होता है।
ख़ैर, टमाटर पर अपना गुस्सा निकालने के बाद हमारी ख़ानम चावल धोने लगीं और जब वे पानी के संपर्क में आईं तो उनका टेम्प्रेचर कुछ कम हुआ। हमने फिर कहा-‘हमें हिंदी ब्लॉगर्स के इस भव्य सम्मेलन में बुलाया जा रहा है विद फ़ैमिली। सो आप चिंटू-पिंटू, नन्हीं और मुन्नी को तैयार कर देना और खुद भी तैयार रहना।‘
उन्होंने पूछा-’क्या मतलब ?‘
‘अरे भई, क्या हर बात खोलकर ही कहनी पड़ेगी ? आप एक गृहस्थन हैं, थोड़ा समझा कीजिए। दावत वाले दिन बच्चों को सुबह नाश्ता मत दीजिएगा, बस चाय पिला दीजिएगा और दोपहर को हल्का फुल्का सा ही दीजिएगा ताकि रात को हमारे मेज़बान को कोई शिकायत न हो कि उनका खाना बचकर बेकार गया।‘-हमने अपनी हिकमत बयान की तो वे भड़क पडीं-‘आपने इतनी बेहूदा बात सोची भी कैसे ?, क्या हम मुफ़्तख़ोर हैं ?‘
‘अरे भई, हमने नहीं सोची बल्कि यह ब्लॉगर सम्मेलन का आम रिवाज है, वहां सभी ऐसे ही तैयारी से आते हैं।‘-हमने बताया।
‘आपकी ख़ानदानी शराफ़त और ग़ैरत को दिन-ब-दिन आखि़र होता क्या जा रहा है ?‘-उन्होंने अपनी हैरत का इज़्हार किया।
‘क्यों क्या हुआ हमारी शराफ़त को ?‘-अब हम सचमुच ही भन्ना गए थे।
‘जबसे ब्लॉगिंग शुरू की है तब से आपकी कोई चूड़ी टूटी हमसे ?‘-हमने भी अपनी शराफ़त का सुबूत पेश कर दिया।
‘हमने चूड़ियां ही पहननी छोड़ दीं जबसे आपने यह निगोड़ी ब्लॉगिंग शुरू की है। इसने तो सुहागन और बेवा का ही फ़र्क़ मिटाकर रख दिया है। जब कोई देखने वाला ही नहीं तो क्या करें हम बन-संवर कर ?‘-उनके तो आंसू निकल पड़े। आप रोने वाले से नहीं लड़ सकते। औरत की सारी ताक़त उसकी आंखों में है। यहां शोला भी है और शबनम भी। उन्हें रोते हुए अगर हमारे बच्चों ने देख लिया तो बच्चे भी हमसे नफ़रत करने लगेंगे, सोचेंगे कि ज़रूर हमारी अम्मी जान को मारा होगा। हम उनकी मिन्नत समाजत करने लगे और अब जो हमने उनके चेहरे को ग़ौर से देखा तो वाक़ई दुख सा हुआ। उनका चेहरा विधवा का सा ही लग रहा था। तभी हमें ख़याल आया कि अगर सरकार देश की जनसंख्या पर सचमुच क़ाबू पाना चाहती है तो उसे ब्लॉगिंग को बढ़ावा देना चाहिए। क्या मजाल अगर कोई शौहर अपनी बीवी के पास फटक भी जाए।
‘देखिए, आप हमारी शराफ़त पर सवाल उठा रही थीं लेकिन क्या यह आपकी शराफ़त की बात है कि दिन में ही रो रही हैं ? क्या आप हमारे बच्चों को हमसे बदगुमान करना चाहती हैं ?‘-उन्हें चुप करने का हथकंडा हमें पता था और सचमुच वह चुप हो भी गईं। औरतों को अपनी परेशानी का इतना ख़याल नहीं होता जितना ख़याल वे अपने नालायक़ से शौहरों की इज़्ज़त का रखती हैं।
‘शरीफ़ हूं तभी आपके घर में दिन काट रही हूं और आपके बच्चे पाल रही हूं। ख़ैर आप बताएं कि आपका मसअला अस्ल में है क्या ?‘-अब वह बात करने के मूड में आ गई थीं।
‘भई, खाने की दावत है, बुलावा आया है, मुख़तसर कहानी तो यह है।‘-हमने शॉर्टकट मारना ही मुनासिब समझा।
‘आपके पास कोई कॉल आई है क्या ?‘-उन्होंने पूछा।
‘नहीं तो, सपना समूह वालों की तरफ़ से हमें एक दावतनामा मिला है ईमेल के ज़रिये।‘-हमने कहा।
‘बस ?‘-उन्होंने बस पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया तो हम खटक गए।
‘तो क्या किसी कबूतर को संदेसा लाना चाहिए था?‘-हम झुंझला से गए।
‘क्या उन लोगों के पास आपका मोबाइल नंबर नहीं है ?‘-उन्होंने पूछा।
‘है क्यों नहीं, बिल्कुल है। अभी तो हमने विशाल ‘वनस्पति‘ जी को खुद दिया था चैट पर‘-हमने कहा।
‘इसके बावजूद भी उन्होंने आपको कॉल नहीं की। इसका मतलब समझे आप ?‘-उन्होंने हमसे पूछा।
‘नहीं तो।‘-हमें अपनी अक्ल पर रोने को जी चाह रहा था।
‘वे चाहते ही नहीं हैं कि आप उनके प्रोग्राम में आएं। अगर वे आपको दिल से बुलाने के ख्वाहिशमंद होते तो वे आपको कॉल ज़रूर करते।‘-उनकी बात में दम था।
‘अगर उन्हें हमें बुलाना ही नहीं है तो फिर उन्होंने हमें इन्विटेशन कार्ड क्यों भेजा ?‘-हमने मासूमियत से पूछा।
‘ताकि वे आपको अपनी शान दिखा सकें कि देखो हम कित्ता बड़ा प्रोग्राम कर रहे हैं। आपमें दम है तो आप इससे बड़ा प्रोग्राम करके दिखाएं।‘-उन्होंने कहा और हमारे दिल को भी लगा।
‘जब आप हमें ब्याहने आए थे तो जिन लोगों को आप अपने निकाह में मौजूद देखना चाहते थे, उन्हें आपने कार्ड भी भेजा, कॉल भी किया और उन्हें कार भी करके दी ताकि वे आने से रह न जाएं।‘
‘हां, यह तो है।‘-हमने कहा।
‘इस प्रोग्राम में भी मुन्तज़िमीन जिन्हें बुलाना चाहते हैं उन्हें कार्ड के साथ कॉल भी ज़रूर की होगी और उनके लिए कन्वेंस का इंतज़ाम भी किया होगा।‘-उन्होंने केस पूरी तरह सॉल्व कर दिया था।
‘इसका मतलब तो यह है कि इस प्रोग्राम में सिर्फ़ ईनाम ही नहीं बल्कि मेहमान भी फ़िक्स हैं। घोटाला दर घोटाला‘-हम कुछ सोचते हुए से बुदबुदाए।
‘और नहीं तो क्या ?‘-अपनी दानिश्वरी साबित होते देखकर अब उनके होंठों पर मुस्कुराहट तैरने लगी थी।
‘तो निमंत्रण भेजने का मक़सद आजकल बुलाना नहीं होता बल्कि अपनी शेख़ी बघारना होता है।‘
‘जी हां।‘-उन्होंने बड़े फ़ख्र से कहा। अपने हाथ से एक उम्दा सी दावत निकलते देखकर हमारा दिल बहुत फड़फड़ा रहा था।
‘लेकिन कुछ ब्लॉगर्स तो मात्र इन्वीटेशन कार्ड पाकर ही पहुंच जाएंगे सम्मेलन में।‘-हमने अपना अंदेशा ज़ाहिर किया।
‘सिर्फ़ वे ब्लॉगर्स जाएंगे जिनके बीवी नहीं होगी या होगी तो उससे वे पूछेंगे नहीं।‘-उन्होंने कहा।
‘वे वहां क्यों जाएंगे ?‘
‘जिस मक़सद से वहां लड़कियां आएंगी। जानते हो आजकल रिश्ते मिलना कितना मुश्किल हो रहा है ?‘-उन्होंने एक और क्ल्यू दिया।
‘तो जो लोग आएंगे, उन्हें भी ‘हिंदी ब्लॉगिंग का आगा-पीछा‘ जानने में कोई दिलचस्पी न होगी।‘-हमारी हैरत बढ़ती ही जा रही थी।
‘हर आदमी आज तरह-तरह के मसाएल से घिरा हुआ है, उसे सिर्फ़ अपने मसाएल का हल चाहिए। वह जहां भी जाता है अपने मसाएल के हल के लिए जाता है या फिर ...।‘-उन्होंने मुस्कुराकर बात अधूरी छोड़ दी। उनका विधवापन हल्के-हल्के दूर होता जा रहा था। लग रहा था कि आज ज़रूर कुछ होकर रहेगा, बहुत दिनों बाद।
‘या फिर...।‘-लेकिन हम भी हातिम ताई की तरह पहले सवाल हल कर लेना चाहते थे।
‘या फिर अपने मसाएल से फ़रार इख्तियार करने के लिए, थोड़ा सा दिल बहलाने के लिए।‘
‘हां, शायद इसीलिए वहां नाच-गाने और नाटक वग़ैरह का प्रोग्राम भी रखा गया है। इसका मतलब आयोजक भी जानते हैं कि हमारी किताब और हमारी परिचर्चा से लोगों को बोरियत होगी ?‘-हमें हैरत का एक और झटका लगा।
‘लेकिन लोग बोर होंगे नहीं।‘-उन्होंने फिर एक और चोट कर डाली।
‘क्यों भला ?‘
‘कुछ अपनी अक्ल पर भी तो ज़ोर डालिए न। बस बहुत हो गई बातें। हमें खाना तैयार करने दीजिए। बच्चे अब स्कूल से आते ही होंगे। आप खुद तो किसी काम के अब बचे नहीं हैं। हमें तो अपने बच्चे देखने दीजिए।
हम समझ रहे थे कि वह क्या कह रही हैं और क्या चाह रही हैं लेकिन हम सचमुच ही कुछ कर पाने की हालत में नहीं रह गए थे। यह ब्लॉगिंग अंदर तक से खोखला कर देती है। ग़ैरत के साथ-साथ यह ताक़त को भी चाट जाती है।
‘अंदर से खोखले लोगों का सम्मेलन बाहर से कितना भव्य लगेगा ?‘-हम मन ही मन में सोच रहे थे। काश हमें उन दोनों में से कोई फ़ोन ही कर लेता तो कम से कम अपने परिजनों को साथ ले जाने का हमारा मुंह तो हो जाता।  (...जारी)

Friday, April 22, 2011

अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging

हमारी क्लास के प्यारे छात्रों और छत्र-धारिकाओं ! आज हम आपको बताएंगे कि जो लोग यह रोना रोते हैं कि हिंदी ब्लॉगिंग में पैसा नहीं है, वे ग़लत हैं। अगर आदमी अपना ज़मीर बेच डाले तो फिर उसे किसी फ़ील्ड में भी पैसे की तंगी कभी नहीं सताती। आदमी को जो चीज़ दुखी और परेशान करती है, वह उसकी उसूलपसंदी है। संतों ने भी कहा है कि अपने दुख का कारण मनुष्य स्वयं ही है। सभी संत किसी न किसी उसूल के पाबंद थे सो वे सदा दुखी ही रहे।
एक सत्य घटना के माध्यम से आप यह बात अच्छी तरह जान लेंगे। यह घटना एक ऐसी जगह की है, जिसका नाम बताने से कोई नफ़ा नहीं है और यह उस समय घटी जबकि हिंदी-ब्लॉगिंग में खिलाड़ी और अनाड़ी, सभी अपने-अपने खेल खेल रहे थे। ऐसे समय में हमें एक रोज़ ईमेल से एक ‘निमंत्रण पत्र‘ मिला कि देश की राजधानी में 70 ब्लॉगर्स को सम्मानित किया जाएगा।
मैं उसे भी पढ़ता रहा और अपने मन में भी सोचता रहा तो तथ्य कुछ इस प्रकार उद्घाटित हुए कि ब्लॉगर्स को सम्मान के नाम पर शॉल और मोमेंटो दिया जाएगा, शॉल पत्नी के उलाहनों से बचने के लिए कि इस मुई ब्लॉगिंग ने तुम्हें दिया ही क्या ?
और मोमेंटो दोस्तों पर रौब ग़ालिब करने के लिए। उनका नाम  एक ऐसी किताब में भी छापा जाएगा, जिसे वे अपने नाम की ख़ातिर भारी क़ीमत पर ख़रीदने के लिए मजबूर किए जाएंगे। उनकी तंगहाली का ख़याल रखते हुए उन्हें एक लिफ़ाफ़े में इतनी रक़म भी दी जाएगी जिससे उनके आने-जाने का ख़र्चा उन पर न पड़कर ‘हास्य निवेदन‘ नामक संस्था पर पड़े, जिसकी प्लैटिनम जुबली के अवसर को यादगार बनाने के लिए यह सब गोरखधंधा फैलाया जा रहा है। इस संस्था से पूरी सौदेबाज़ी हमारे दो महान ब्लॉगर्स ने की है। जिनमें से एक हैं ‘सपना समूह‘ वाले कमल ‘सवेरा‘ जी और दूसरे हैं ‘छिनाल छिपकली डॉट कॉम‘ वाले विशाल ‘वनस्पति‘ जी।
ये सभी ब्लॉगर्स ऐसे बुद्धिजीवी हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हज़ारे जी के समर्थन में पोस्टें लिखीं हैं और अब इन्हें उसी नेता बिरादरी का एक आदमी सम्मानित करेगा जिसे ये सभी लोग भ्रष्ट और आतंकवादियों से भी बदतर मानते हैं। नेताओं का आज पब्लिक के दिल में कितना सम्मान है, यह कोई ढकी-छिपी बात नहीं है। जिसका आज खुद कोई सम्मान नहीं है, वह क्या उन्हें सम्मान देगा जो कि पैदाइशी तौर पर ही सम्मानित हैं। एक ऐसा आदमी, जिसकी पूरी बिरादरी के खि़लाफ़ ही अन्ना जैसे हज़ारों सैकड़ों साल से लड़ते आ रहे हैं, वह आदमी वहां आएगा और ब्लॉगर्स को गिफ़्ट आदि देने से पहले एक ऐसी तक़रीर सुनाएगा जिसमें शुरू से आखि़र तक शब्द-छल के सिवा कुछ भी न होगा और तमाम ब्लॉगर्स बिना चूं-चपड़ उसे सुनेंगे केवल एक ईनामदार बन्ने के लालच में .  वह कहेगा कि उसकी पार्टी के राज में सब ओर रामराज्य जैसे हालात हैं। जबसे उनकी सरकार बनी है तबसे उनके प्रदेश में तो क्या, उनके आस-पास तक के प्रदेशों से भी बेईमानी और भ्रष्टाचार का जड़ सहित ख़ात्मा हो चुका है। अब कोई ऐसा मुद्दा शेष नहीं है, जिसके लिए देश की जनता को परेशान होना पड़े। सभी बड़े ठेके इस तरह दिये जा रहे हैं कि किसी को भी कोई ‘शिकायत‘ न हो। पत्रकारों का भी ‘ध्यान‘ रखा जा रहा है और अब पता चला है ‘ब्लॉगर्स‘ नाम की भी एक पूरी जमात वुजूद में आ गई है, सो लिहाज़ा अब इसका भी ‘ध्यान‘ रखा जाएगा। अभी यह पता चलाया जा रहा है कि आप लोगों का ध्यान ‘किन लोगों‘ के माध्यम से रखा जाए ?
और कैसे रखा जाए ?
मैं आभारी हूं ‘हास्य निवेदन‘ के स्वामी का, कि उन्होंने अपने ब्याज की राशि में से एक अंश आपको बुलाने और खिलाने-पिलाने पर ख़र्च करना गवारा किया। इसके एवज़ में मैं ये दो भारी-भरकम किताबें सरकारी लायब्रेरियों की अलमारी में सड़ने के लिए सैंक्शन कर दूंगा क्योंकि इन्हें जब मैं ही नहीं पढ़ूंगा तो फिर कोई और ही क्यों पढ़ेगा ?
छात्रों और छात्राओं को तो आपस में मोबाईल पर बात करने से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती। वे अपना कोर्स तक तो पढ़ते नहीं ‘हिंदी-ब्लॉगिंग का आगा-पीछा‘ क्या पढ़ेंगे ?
और न ही लेखक यह किताब आम लोगों को पढ़वाना चाहते हैं। अगर वे इसे सभी को पढ़वाना चाहते तो वे इसे कम पृष्ठों में छापते, चाहे धारावाहिक के रूप में छापते। 20-30 रूपये की किताब हरेक ब्लॉगर ख़रीद भी लेता और अपना ‘आगा-पीछा‘ भी जान लेता। लेकिन उन्होंने यह किताब जनता के लिए थोड़े ही लिखी है, उन्होंने तो यह किताब अपना नाम ऊंचा करने के लिए और रिकॉर्ड के लिए लिखी है। या कहें कि हमारे साथ सरकारी माल पर हाथ साफ़ करने के लिए लिखी है। बहरहाल जैसी भी लिखी है, बड़ी अच्छी लिखी है। मैं इनका विमोचन करता हूं। सभी फ़ोटोग्राफ़र्स अच्छे एंगल से फ़ोटो बनाएं और खूब सजाकर अपने अख़बारों में लगाएं और ऐसे शीर्षक लगाएं जैसे कि आज हिंदी-ब्लॉगिंग को कोई बहुत बड़ा उद्धार हो रहा हो।
इसी तरह की ऐसी बहुत सी बातें, जो कि ‘लोकपाल बिल‘ से डरा हुआ नेता कभी नहीं कहेगा, मैं अपने दिल में सोचता रहा। ‘हास्य निवेदन‘ के मोटे पूंजीपति को फांसने में जिन दो लोगों ने सफलता पाई है, वे दोनों ही राजधानी में रहते हैं। एक देश की और दूसरा प्रदेश की। एक हैं कमल ‘सवेरा‘ जी और दूसरे हैं विशाल ‘वनस्पति‘ जी।
दोनों शाकाहारी हैं लेकिन मोटी आसामी हलाल करने में इन दोनों ने सारे मांसाहारियों को ही पीछे छोड़ दिया। आदमी अगर मिल-जुलकर काम करे और युक्ति से काम ले तो वह सूखे तिलों में से भी तेल निकाल सकता है। हम तो दोनों के कौशल के क़ायल होकर रह गए।
हमारा नाम ईनामख़ोरों की लिस्ट में नहीं था। उसके बावजूद एक तसल्ली थी कि इस महंगाई के ज़माने में ‘हास्य निवेदन‘ वाला सभी आगंतुकों को खाना खिलाने के लिए तैयार था ताकि एक तो वे खाने के शौक़ में अंत तक जमे रहें और दूसरे ज़ोर-ज़ोर से तालियां बजाने का उत्साह भी उनमें बना रहे, और तीसरे उन्हें अपने अपमान का अहसास कुछ कम हो जाए कि उन्हें सम्मानित क्यों नहीं किया गया ?
हमने हर चीज़ को बेक़ायदा तरीक़े से सोचा और गांधी जी को याद किया कि गांधी जी को लोग गालियों के ख़त लिखते थे तो गांधी जी ख़त को रद्दी में फेंकने से पहले टटोल लिया करते थे और अगर उसमें कोई आलपिन होती थी तो वे उसे निकाल लिया करते थे।
मुझे इस पूरे आयोजन में काम की चीज़ सिर्फ़ ‘रोटी-पानी‘ नज़र आ रही थी। इसके लिए तो बाज़ दफ़ा औरत को अपनी आबरू तक बेचनी पड़ जाती है, जबकि मुझे तो केवल अपने ज़मीर का ही सौदा करना था। लिहाज़ा मैं मन ही मन तैयार हो गया कि चलो इस आयोजन में ज़रूर चलेंगे जो कि हिंदी-ब्लॉगिंग में इन्कम के द्वार खोलने के लिए आयोजित किया जा रहा है। बुलाने वाला खाने के लिए और ताली बजाने के लिए परिजनों तक को साथ बुला रहा है।
कितनी अच्छी आसामी है ?
चलो इससे मुलाक़ात ही हो जाएगी और हो सकता है कि किसी समय यह अपना भी कबाड़ छाप डाले। हमारे पास भी सवेरा जी जैसी कई ऐसी पोस्ट हैं जिन पर ब्लॉग-जगत ने कभी दो टिप्पणी तक करना गवारा न किया। जब सवेरा जी अपनी ऐसी पोस्ट बेच भागे तो हो सकता है कि हमारे भी नसीब जाग जाएं। जिन फिल्मों को दर्शक नहीं मिलते, पता चलता है कि वे कला फ़िल्म मान ली गईं और कई अवॉर्ड ले भागी। हो सकता है कि कल ‘हास्य निवेदन‘ वाला अपनी ऊंची पहुंच के बल पर इस ‘आगा-पीछा‘ को भी कोई बड़ा पुरस्कार दिलवा डाले। क्रिकेट की तरह आज सभी कामों में फ़िक्सिंग चल रही है। ब्लॉगिंग अभी तक फ़िक्सिंग से दूर थी लेकिन भाई लोगों ने इसमें भी फ़िक्सिंग शुरू कर दी। जिससे खुश हो गए, उसे ईनामदार बना दिया और जिससे नाराज़ हो गए, उसका नाम सार्वजनिक घोषणा के बावजूद निकाल दिया। इस अन्याय और चौपट नीति के खि़लाफ़ जो भी मुंह खोलेगा, उसका भी ईनाम कैंसिल कर दिया जाएगा। ईनाम का लालच ब्लॉगर्स के ज़मीर को मारे डाल रहा है। यह भी आत्मा का हनन है और आत्महत्या का एक भयानक प्रकार है, जिसे केवल ज्ञानचक्षु संपन्न व्यक्ति ही देख सकता है।
ख़ैर हमें क्या हमें तो अपने लिए ‘रोटी-पानी‘ का जुगाड़ करना है। बच्चे भी बहुत दिनों से कहीं बाहर नहीं गए हैं, सो इस बहाने वे भी घूम आएंगे और बड़ा जामवड़ा देखकर सोचेंगे कि हमारे पापा ज़रूर बहुत बड़ा काम कर रहे होंगे। बड़े काम का पता बड़े जमावड़े से ही तो चलता है, चाहे उनमें से ज़्यादातर के ज़मीर मुर्दा ही क्यों न हों।
दृढ़ निश्चय करके अपनी आवाज़ को खुशगवार सा बनाकर हमने अपनी पत्नी को आवाज़ आवाज़ दी-‘ अजी, सुनती हो ?, कहां हो ?‘
उधर से बिना देर किए तुरंत ही आवाज़ आई-‘क्या आप मेरी कभी सुनते हो इस ब्लॉगिंग के चक्कर में ? और मैं होऊंगी कहां ? तुमने कौन सी हवेली बनाकर दे रखी है मुझे ? यहीं रसोई में अपने दीदे फोड़ रही हूं और अपनी तक़दीर को रो रही हूं।‘
उनके इस अचानक हमले से मैं अचकचाकर रह गया और उसके बाद जो वार्तालाप हुआ उसने तो वाक़ई मेरी तीसरी आंख भी खोल दी और मुझे यक़ीन हो गया कि अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो उसे औरत की अक्ल  से सोचना चाहिए, क्योंकि औरतों की छठी इंद्रिय बहुत तेज़ होती है।   (...जारी)  

Wednesday, April 13, 2011

आप ब्लॉगिंग को कितनी गहराई से जानते हैं ? The Lesson

दुनिया में जब से दोस्ती है तभी दुश्मनी भी है और जब दुश्मनी है तो दुश्मनों से इंतक़ाम भी है । लोगों ने तरह तरह से अपने दुश्मनों से इंतक़ाम लिया है । किसी ने अपने दुश्मनों को एक झटके में मार डाला और किसी ने उन्हें तड़पा तड़पाकर मारा । किसी ने उनसे युद्ध किया और उन्हें खुलेआम मारा और किसी ने उन्हें साज़िशन मारने के लिए लाख का महल बनाया। किसी ने बाप को मारकर उसकी औलाद को तबाह कर दिया और किसी ने अपने दुश्मन को तो ज़िंदा रखा और उसकी औलाद को मार डाला ताकि वह तड़पता रहे। किसी ने इससे भी बदतर किया और यह किया कि अपने दुश्मन के बच्चों को बड़ा प्यार दिया , उन्हें दिल खोलकर रक़में दीं और ऐसे साथी उसके दोस्त बना दिए जिनके साथ रहकर वह जुआरी और शराबी बन गया और सारी जायदाद गंवाकर अपने साथ बाप को भी कंगाल कर दिया। चरित्र की दौलत भी गई और मालो-ज़र भी गया।
ये सभी तरीक़े पुराने हो चुके हैं । अब सहशिक्षा, कंप्यूटर और मोबाईल का युग है।
सहशिक्षा तो आजकल माँ-बाप ख़ुद ही अपने ख़र्चे पर दिला रहे हैं । इसके बावजूद भी किसी-किसी का चरित्र नष्ट नहीं हो पाता। अगर आपका दुश्मन भी एक ऐसा ही आदमी है तो आप उसे आराम से बर्बाद कर सकते हैं और उसे कभी पता भी नहीं चलेगा और किसी भी देश का क़ानून आपको इल्ज़ाम तक न दे पाएगा।
इसके लिए आपको करना यह होगा कि पहले आप अपने दुश्मन को दोस्त बनाईये, फिर उसे राष्ट्रवाद की डोज़ दीजिए या जो भी आयडियोलॉजी उसे पसंद हो, उसी लाइन पर उसे आगे बढ़ाएं और जब आप ये सब काम करें तो उस समय आप अपने कंप्यूटर के सामने बैठे होने चाहिएं और उसकी स्क्रीन पर फ़ेसबुक, ट्विटर या ऑरकुट खुला हुआ होना चाहिए।
जिज्ञासा और उत्सुकता आदमी का स्वभाव है । किसी न किसी दिन वह आपसे ख़ुद ही पूछेगा कि आख़िर यह है क्या ?
तब आप बताएं कि ये पूरी दुनिया में बिना कुछ किए ही मशहूर होने का ज़रिया है ।
कौन ऐसा है जो शोहरत न चाहता हो ?
बस उसके पूछते ही आप तुरंत उसका अकाउंट बना डालिए और अगर आप उसे कुछ ज़्यादा ही बर्बाद देखना चाहते हैं तो फिर इन सभी साइट्स के बजाय आप उसके लिए केवल blogger.com पर एक हिंदी ब्लॉग बना दीजिए , बस ।
अब आपको कुछ और करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, धीरे-धीरे वह खुद ही बर्बाद हो जाएगा। जीवन इंसान के पास समय के रूप में होता है । वह अपना समय हिंदी ब्लॉगिंग में लगाएगा और हिंदी ब्लॉगिंग में समय लगाने के बदले में ब्लॉगर को फ़ायदा कुछ मिलता नहीं है । इस तरह आपने उसका जीवन एक ऐसी जगह झोंक दिया जहाँ से उसे कुछ ठोस कभी नहीं मिलेगा लेकिन उसे हमेशा यही आभास होता रहेगा जैसे कि उसे कुछ मिल रहा है ।
अव्वल तो यहाँ कोई टिप्पणी तक भी कम ही देता है और अगर कोई दे भी दे तो उसका ऐतबार ही नहीं है कि यह टिप्पणी देने से पहले उसने लेख पढ़ भी लिया था या नहीं ?
'टिप्पणी में टिप्पणीकार के वास्तविक विचार हमेशा नहीं होते' यह एक सर्वमान्य तथ्य है। वह टिप्पणियाँ पाकर खुश होता रहेगा और जब तक उसे सच्चाई का पता चलेगा तब तक वह ब्लॉगिंग के नशे का आदी हो चुका होगा।
वह बर्बादी के इस चंगुल से कभी निकल ही न सके। इसके लिए आप उसे ब्लॉगर मीट का चस्का भी लगा दीजिए । ब्लॉगर मीट के बाद पीने पिलाने का दौर चलता ही है और सौ ख़राबियों की एक जड़ यह शराब है ही। इस ब्लॉगर मीट ने ही हिंदी ब्लॉगिंग के चरित्र को गिराया है और आपके दुश्मन के चरित्र को भी यह निश्चित ही नष्ट कर देगी। नशे का आदी होने के बाद किसी दिन ड्राइविंग करते हुए वह खुद ही किसी ट्रक के नीचे जा घुसेगा और या तो वह मर ही जाएगा या फिर अपाहिज होकर वह मरने से भी बदतर जिंदगी जिएगा और तब भी वह ब्लॉगिंग न छोड़ पाएगा।
आपके लिए खुशी की बात यह है कि अभी तक इसे सायबर क्राइम में शामिल नहीं किया गया है और न ही कभी किया जाएगा।
अपने दुश्मनों को आधुनिक तरीक़े से ज़्यादा बड़ी तबाही दीजिए और अपना बड़प्पन साबित कर दीजिए।
आप ब्लॉगिंग को कितनी गहराई से जानते हैं, यही बात तय करती है कि आप कितने बड़े ब्लॉगर हैं ?

Monday, April 4, 2011

क्या बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए नास्तिक होना ज़रूरी है ? A Nice Question

आपमें भी बड़ा ब्लॉगर बनने की उतनी ही संभावना मौजूद है जितनी कि उन ब्लॉगर्स में थी जो पहले छोटे थे और आज बड़े बन चुके हैं। अगर आप ग़ौर करेंगे तो आप पाएंगे कि उन्होंने कुछ नियमों का पालन किया है और उसी का नतीजा यह है कि आज वे बड़े ब्लॉगर कहलाते हैं।
आप देखेंगे कि एक बड़ा ब्लॉगर किसी न किसी आदर्श और सिद्धांत का पालन ज़रूर करता है। इन सिद्धांतों में से उनका एक सिद्धांत है बहुमत के साथ रहना। आज के बहुमत का विश्वास ईश्वर, धर्म और गुरूओं से डिगा हुआ है। ऐसी हालत में ये खुद को नास्तिक शो करते हैं या बन ही जाते हैं। आस्तिक ब्लॉगर को वर्चुअल दुनिया में बैकवर्ड समझा जाता है जबकि नास्तिक होना समय का रिवाज है। आस्तिक को सत्तर तरह के प्रश्नों के जवाब देने पड़ते हैं जबकि नास्तिक से कोई प्रश्न ही नहीं किया जा सकता क्योंकि वह जीवन की बुनियादी बातों को विचार करने लायक़ तक नहीं समझता। करोड़ों आस्तिकों के विचार नैतिकता और जायज़-नाजायज़ के बारे में एक हो सकते हैं लेकिन दो नास्तिकों के विचार भी इस मामले में एक नहीं हो सकते। इसके बावजूद नास्तिक समझते हैं कि अगर उनकी बात मान ली जाए तो देश का कल्याण हो सकता है। आज नास्तिकता भी एक विचारधारा के रूप में हमारे दरम्यान मौजूद है। नास्तिक ब्लॉगर शराब पीता है और फ़ेसबुक के प्रोफ़ाइल में बेधड़क खुद को ‘इंटरेस्टेड इन वुमेन‘ शो करता है। इनका यही सिद्धांत है और ये इसका कट्टरता से पालन करते हैं। कभी अपनी नास्तिकता से इंच भर नहीं हटते लेकिन आस्तिक ब्लॉगर्स पर इल्ज़ाम लगाते रहते हैं कि ये बहुत कट्टर हैं देखो ये अपनी मान्यताओं से नहीं हटते।
अगर आप एक नास्तिक ब्लॉगर हैं तो आपको बुद्धिजीवी का तमग़ा बड़ी आसानी से मिल जाएगा और नास्तिक ब्लॉगर आपको टिप्पणियां भी देने आने लगेंगे। जब बड़े आने लगेंगे तो जो खुद को ज़बर्दस्ती छोटा बनाए हुए हैं, वे भी उनकी देखा देखी आने लगेंगे और आपकी गाड़ी चल पड़ेगी। कोई ब्लॉगर आपके घर यह देखने नहीं आएगा कि जब आपने खुद विवाह किया था तो पूरे धार्मिक रीति-रिवाज के साथ किया था। आज भी आपकी पत्नी गले में मंगलसूत्र और सुहाग चिन्ह धारण करती है और जब आपने अपने बच्चों की शादी की, तब भी आपने पूरे धार्मिक कर्मकांड किए।
ऐसा आपने क्यों किया ? यह आपसे कोई कभी पूछने वाला नहीं है। धार्मिक रीति रिवाज भी करते रहिए ताकि समाज के ताने-उलाहने न सुनने पड़ें और फिर कह दीजिए कि भाई यह सब तो हमारी मिसेज़ की मेहरबानी है वर्ना हम तो इन सब चक्करों में पड़ते ही नहीं। इसे कहते हैं कि ‘रिन्द के रिन्द रहे और जन्नत हाथ से न गई‘।
क्या कह रहे हैं आप ?
रिन्द किसे कहते हैं ?
अरे भाई रिन्द कहते हैं शराबी को।
इसका मतलब है दोनों हाथों में लड्डू रखना।
बड़े ब्लॉगर की यह एक ख़ास हिकमत होती है।
अगर आप नास्तिक नहीं बन सकते तो फिर आपको अपनी आस्था टटोलनी चाहिए और अपना अमल देखना चाहिए। अगर आप नास्तिक नहीं हैं तो आपको अनिवार्य रूप से आस्तिक होना चाहिए। जब आप किसी शिक्षा और परंपरा में आस्था रखते होंगे तो लाज़िमन रूप से किसी न किसी को अपना गुरू भी मानते होंगे और उसकी शिक्षा के अनुसार कुछ बातों को ग़लत और कुछ को सही भी ज़रूर मानते होंगे। अब आपका पहला कर्तव्य यह है कि आपके कर्म आपके विचारों के मुताबिक़ हों या दोनों के दरम्यान अंतर बहुत ज़्यादा न हो। जिस बात को आप ग़लत मानते हों, उससे बचते भी हों और दूसरों को भी बचने की प्रेरणा देते हों और जिस बात को आप अच्छा मानते हों, उसे खुद भी करते हों और दूसरों को भी करने की प्रेरणा देते हों। आपके विचार और कर्म में अंतर जितना कम होगा आप उतने ही बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।
आप नास्तिक हों तो सच्चे हों और अगर आस्तिक हों तो भी आप सच्चे हों। सच में बड़ी ताक़त है। आप सच्चाई में जितना ज़्यादा बड़ा दर्जा रखेंगे, आपकी योग्यताओं का विकास भी उतना ही ज़्यादा होता चला जाएगा और एक दिन आपको आपकी सच्चाई परम सत्य तक भी पहुंचा देगी। जो पाखंडी हैं वे कहीं नहीं पहुंचेगे क्योंकि उनके फ़ैसलों का आधार सत्य नहीं होता बल्कि बहुमत होता है। पाखंडी कभी बहुमत के खि़लाफ़ नहीं जा सकता। बहुमत के खि़लाफ़ केवल वह बोलेगा जो सच्चा है। पाखंडी अवसरवादी होता है। वह कभी कुरबानी नहीं दे सकता।
आपके सामने दोनों रास्ते हैं। आप पाखंडी बनकर भी बहुजन से टिप्पणियां और प्रशंसा पा सकते हैं और यही सब आपको सच्चा बनकर भी मिल सकता है और न भी मिले तब भी आप अपनी आत्मा में संतुष्ट रहेंगे कि मैं वही लिखता हूं जो कि मैं सोचता हूं। ‘डायरी लेखन‘ इसी का नाम है। इसी को ब्लॉग लेखन भी कहा जाता है।
आज लोग जो सोचते हैं, उसी के खि़लाफ़ करते हैं और लोगों को खुश रखने के लिए उसी के खि़लाफ़ लिखते और बोलते हैं। अगर आप विचार और कर्म के इस अंतर को पाट सके तो यह एक बड़ा काम होगा और आपका बड़ा काम ही इस बात का सुबूत खुद होगा कि