tag:blogger.com,1999:blog-21658123684510158912024-03-13T01:41:07.149-07:00बड़ा ब्लागर कैसे बनें ?हिन्दी ब्लागिंग का व्यवहारिक ज्ञान देने वाली विश्व की पहली ओपन यूनिवर्सिटीDR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-50230246366561875922013-04-20T06:02:00.001-07:002013-04-20T06:02:08.658-07:00विदेश में ईनाम क्यों बांटता है बड़ा ब्लॉगर ?Nepal<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://s04.sonyaandtravis.com/images/nepal-2012/thamel-kathmandu-nepal-0-street-stall-chowmein-for-sixty-rupees-delicious.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="http://s04.sonyaandtravis.com/images/nepal-2012/thamel-kathmandu-nepal-0-street-stall-chowmein-for-sixty-rupees-delicious.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="text-align: justify;">
‘सरदार, आपके नॉर्थ एशिया में छपे इंटरव्यू पर ब्लॉगर्स बड़ा ताव खा रहे हैं‘-जंगलायतन वाले ने आकर सांभा स्टाइल में अपने बॉस को ख़बर दी। </div>
<div style="text-align: justify;">
‘सरदार तो तू ऐसे कह रहा है जैसे कि मैं गब्बर सिंह होऊँ।‘-उसके बॉस ने ‘भोजपुरी ब्लॉगिंग के इतिहास‘ के पन्ने पलटते हुए कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘ हें हें हें, आप उनसे कम भी तो नहीं हैं।‘-जंगलायतन के उजड्ड ने अपनी बात ऊपर रखते हुए कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘कैसे ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘वह भी लूटता था और आप भी लूट लेते हैं।‘-यह कहकर उसने अपने हाथ जोड़ दिए और हस्बे आदत ‘हें हें हें‘ करने लगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
बॉस को उसकी बात और अदा दोनों ही भा गईं। कोई ब्लॉगर बॉस को कुछ कह देता था तो यही जाकर उसे अपना गंवारपना दिखाया करता था। यह सारी बात एक ऑफ़िस में चल रही थी। दोनों ही भोजपुरी ब्लॉगर थे। एक बड़ा था और दूसरा छोटा। तीसरा अभी आया नहीं था। जब से उसका ब्लॉग किसी जापानी कंपनी ने ईनाम के लिए छांट लिया था। तब से वह शहर के हरेक सायबर कैफ़े से अपने ब्लॉग को ख़ुद ही वोट कर रहा था और दोस्तों को भी इसी हिल्ले में लगा रखा था। वह जानीश था। उसने अपनी बीवी को भी अपने समर्थन में पोस्ट लिखने पर लगा रखा था। उसे उम्मीद थी कि शायद महिला ब्लॉगर झांसे में आ जाएं।</div>
<div style="text-align: justify;">
बॉस अब भी किताब को पलटे जा रहा था।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘सरदार, इस किताब में क्या रखा है सिवाय लुटने वालों के नाम पतों के अलावा ?‘-जंगलायतन के स्वामी ने पूछा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘सब कहां लुट पाए, कुछ तो बचकर साफ़ निकल गए और कुछ वादा करके मुकर गए।‘-बॉस ने हसरत से कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘...तो फिर आप देख क्या रहे हैं इसमें ?‘-छोटे ब्लॉगर ने बिना सिर खुजाए पूछा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘कुछ नाम, ईनाम के लिए ?‘-बॉस ने बताया।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘ईनाम का यह कौन सा मौसम है ?‘-उसने हैरान होते हुए कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘ईनाम के लिए मौसम-बेमौसम क्या ? ईनाम के मारों को जब भी ईनाम दो तभी ले लेते हैं।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘...लेकिन अचानक ईनाम देने की ज़रूरत क्या आन पड़ी आक़ा ?‘-</div>
<div style="text-align: justify;">
‘ज़रूरत नहीं मजबूरी है। जापानी कंपनी ‘वायचे डेले‘ को पता चल गया है कि इधर पुरस्कारों की बड़ी डिमांड है। उसने भी हमारे ग्राहकों को लुभाना शुरू कर दिया है। एक तो इंटरनेशनल पुरस्कार और ऊपर से मुफ़्त में। अपना बिज़नेस हाथ से जा सकता है।‘-बॉस ने दुख का कड़वा सा घूंट पीते हुए कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘यह भी मुफ़्त में नहीं मिल रहा है। अपने जानीश ने एंकर को बहुत आदाब और तस्लीम किए हैं। तब जाकर उसके कुछ ब्लॉगों को उसने चुना है। आगे से इसमें पैसा और सिफ़ारिश भी चलेगी। जापान का यह पुरस्कार भी अपने भाई बेच डालेंगे।‘-छोटे ब्लॉगर ने तसल्ली दी।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘पुरस्कार बिकते ही हैं। यह सब जानते हैं। उनकी सेल ही हमारी चिन्ता का विषय है। हमारे इलाक़े में दूसरे का पुरस्कार नहीं बिकना चाहिए या कम से कम हमारे पुरस्कारों की सेल बंद नहीं होनी चाहिए। इसी से हमारा दाल-भात चलता है। इसीलिए हमें प्रीमेच्योर ईनाम देना पड़ रहा है।‘-बॉस ने कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘इस बार ईनाम कहां देंगे ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘नेपाल में।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘नेपाल ठीक नहीं रहेगा। वह बदनाम है।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘तू वहां कब गया था ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘मैं नहीं गया तो क्या देवानंद तो गए थे। उन्हें वहां अपनी बहन चरस गांजा पीते हुए मिली थी। आपने देखा नहीं हरे रामा हरे कृष्णा में ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘यह फ़िल्मी बातें हैं।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
‘जगन्नाथ रसोईया भी स्वामी दयानन्द को ज़हर देकर वहीं भागा था।‘-जंगलायतन वाले ने अपना ज्ञान बघारा।<br />
‘यह किताबी बात है।‘<br />
‘वहां समलैंगिकों की परेड भी निकल चुकी है और वहां राज परिवार को भी उनके किसी अपने ने ही ठिकाने लगा दिया था। यह तो हक़ीक़त है न।‘<br />
‘ये पुरानी बातें हैं और न ही हम राजमहलं जाएंगे।‘-बॉस ने कहा।<br />
<br />
<div style="text-align: justify;">
‘वहां कोई घुसने भी नहीं देगा और किसी तरह घुस गए तो बाहर नहीं आने देगा। वहां कई लॉबियां काम कर रही हैं बॉस। सबकी ढपली तो एक ही है लेकिन राग अलग अलग है।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘ढपली एक क्यों है ?‘-बॉस ने मुस्कुराते हुए पूछा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘ग़रीबी के कारण।‘-छोटा ब्लॉगर बोला।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘अच्छा है।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘क्या कहा, ग़रीब होना अच्छा है।‘-उजड्ड ब्लॉगर चकरा गया।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘हां, वहां ग़रीबी है। इसीलिए वहां दिल्ली या लखनऊ के मुक़ाबले कार्यक्रम के लिए जगह सस्ते में ही मिल जाती है। लेबर भी सस्ती है।‘-प्रगतिशील लेखक के रूप में प्रसिद्ध बॉस ने किसी पूंजीपति की भांति कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘...लेकिन बॉस वहां भारत का विरोध करने वाले तत्व भी हैं। कहीं उन्हें हमारा पता चल गया और उन्होंने कोई चीनी बम हमारे सम्मेलन पर फेंक मारा तो ...?‘-छोटे ब्लॉगर ने पते की बात कही। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘...तो क्या ?, दो चार ब्लॉगर मर गए तो अपना नाम दुनिया में हो जाएगा। स्टेज की कुर्सियों को हम चेक करके बैठेंगे। बाक़ी की कुर्सियों को चेक करना ब्लॉगर्स की ज़िम्मेदारी है।‘-बॉस ने समस्या का समाधान कर दिया।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘भोजपुरी ब्लॉगर्स से ज़िम्मेदारी की उम्मीद करना बेकार है बॉस।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘...तो मर जाएं, हमारी बला से। यहां कौन सी कमी हो जाएगी ?‘-बॉस के इरादे बुलंद थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘...परंतु नेपाल ही क्यों ?‘-छोटे ने पूछा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘विदेश के नाम से भव्यता आती है। प्रोग्राम की प्रोडक्शन वैल्यू बढ़ जाती है और प्रायोजक की जेब से ज़्यादा पैसा निकलवाना आसान हो जाता है।‘-बॉस ने कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
तभी जानीश भी आ पहुंचा। बॉस ने उसका खड़े होकर स्वागत किया। इससे पता चला कि वह रूतबे में बॉस के बराबर है। वैसे भी बॉस उसके इलाक़े में रह रहा है। लूट का माल ये दोनों बराबर बांटते हैं। जंगलायतन वाला केवल दिहाड़ी पर इनके लिए दौड़-भाग करता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
जानीश ने मेज़ पर रखी बोतल उठाई और पानी पीने लगा। पानी पीकर उसने एक लिस्ट बॉस की दी-‘इसमें उस सामान की लिस्ट है। जिनकी नेपाल में डिमांड है। ये सामान हम इधर से नेपाल ले जाएंगे।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘एक बात का ध्यान रखना कि पेमेंट में असली नोट ही लेना। वहां नक़ली करेंसी भी चल रही है।‘-बॉस ने ध्यान दिलाया।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘हम बदले में करेंसी नहीं लेंगे बल्कि चाइना का वह सामान ले लेंगे जिसकी इधर डिमांड है।‘-जानीश ने कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘यह तो तस्करी हो जाएगी।‘-छोटे ब्लॉगर ने याद दिलाया।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘तस्करी न करें तो क्या मसख़री करें। ख़र्च कहां से निकलेगा ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘ख़र्च तो वह पुराना प्रायोजक दे ही रहा है।‘-छोटे ने अपनी टांग अड़ाई।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘वह तो प्रॉफ़िट है। फिर वह बंटकर अपने हिस्से में आएगा भी कितना ?‘-जानीश ने कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
तभी दिल्ली से छिपकली डॉट कॉम वाले की कॉल आ गई। यह एक अलग गुट का मालिक है लेकिन ईनाम के धंधे में यह भी इनके साथ शामिल रहता है। इसकी परसेंटेज नहीं होती। यह ईनाम के लिए पार्टी ख़ुद तैयार करता है। उनसे वुसूली भी ख़ुद करता है और थोड़ा बहुत ख़र्च के नाम पर बॉस को दे देता है। यह मरने की कगार पर है लेकिन सुधरने की कोई फ़िक्र नहीं है। अब भी ‘नारी‘ पर छींटाकशी करता रहता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
दिल्ली से लखनऊ तक बड़े ब्लॉगर्स का यही हाल है। शायद नेपाल तक भी यही हाल हो और न भी होगा तो अब हो जाएगा। </div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-48889955859390384132013-03-12T02:19:00.001-07:002013-03-12T05:51:43.990-07:00इश्क़ में भी अपनी अक्ल और बिज़नेस ख़राब नहीं करता बड़ा ब्लॉगर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="text-align: justify;">उसने कह दिया है कि ईनाम के लालच में काम करना अच्छी बात नहीं है।</span><br />
<div style="text-align: justify;">
किसने कह दिया है भाई साहब ?</div>
<div style="text-align: justify;">
अरे भाई, हैं एक बड़े ब्लॉगर !</div>
<div style="text-align: justify;">
कौन से बड़े ब्लॉगर हैं वो ?</div>
<div style="text-align: justify;">
वही जो छोटे छोटे ईनाम कई बार ले चुके हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
अच्छा, अच्छा वह हैं। वे तो ईनाम तब भी छोड़कर न आए जबकि उनके दोस्त, साथी और बिज़नेस पार्टनर ने ख़ुद को अपमानित महसूस किया और उसने अपना ईनाम अपनी कुर्सी पर ही छोड़ दिया था। उस कटिन समय में भी वह अपना ईनाम बड़ी मज़बूती से पकड़कर गाड़ी में उनकी बग़ल में ही बैठे रहे थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
दिल्ली बॉम्बे में ऐसा ही होता है। वे दूसरे की ज़िल्लत को उसी तक रखते हैं। यह सोच देहाती है कि दोस्त ज़लील हो जाए तो हम भी ईनाम ठकुरा दें। ऐसे तो ईनाम कभी भी न मिलेगा। अगले प्रोग्राम में भी कुछ ब्लॉगर्स ने अपने अपमानित होने की बात ब्लॉग जगत को बताई थी। सामूहिक आयोजन हो और कोई अपमानित न हो, ऐसा भला कहीं होता है क्या ?</div>
<div style="text-align: justify;">
<br />
यह तो बड़ी अक्लमंदी की बात है भाई।<br />
हां, और नहीं तो क्या !, इन्हें अल्लाह से भी ईनाम का लालच नहीं है। बस इन्हें तो अल्लाह से इश्क़ हो गया है।<br />
अच्छा, यह नई ख़बर है। जिसे दोस्त से मुहब्बत न हुई उसे अल्लाह से इश्क़ हो गया है।<br />
बड़े शहरों में ऐसा ही होता है। पुराने उर्दू फ़ारसी लिट्रेचर में मुहब्बत और इश्क़ में थोड़ा सा फ़र्क़ माना जाता है। मुहब्बत में अक्ल क़ायम रहती है और इश्क़ में जुनून होता है, दीवानगी होती है। उसमें अक्ल बाक़ी नहीं रहती। जिसमें अक्ल बाक़ी हो, समझो उसे इश्क़ नहीं हुआ और अगर वह बदनामी से डरता हो तो समझ लो उसे मुहब्बत भी नहीं हुई क्योंकि बदनामी इश्क़ में तो होती ही है, मुहब्बत खुल जाय तो उसमें भी हो जाती है।<br />
बदनामी ने इसके दामन को कभी छुआ तक नहीं। अल्लाह का चर्चा करने के लिए जो दो एक ब्लॉगर बदनाम हैं। यह उनके पास तक नहीं फटकता।<br />
इसीलिए हिंदी हिंदू ब्लॉगर्स से कमाने वाला यह अकेला ‘अल्लाह का आशिक़‘ है।<br />
बड़े ब्लॉगर्स का एक रंग यह भी है। ये सदियों से चले आ रहे शब्दों के अर्थ बदल कर रख देते हैं।</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTNbsH5cgYrBuFxqcKITPQ_actd3o9ERvPPOuKrLho4EILKVUh3Vg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTNbsH5cgYrBuFxqcKITPQ_actd3o9ERvPPOuKrLho4EILKVUh3Vg" /></a></div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-35184420076089008822012-09-14T02:52:00.000-07:002012-09-14T08:13:36.878-07:00बीवी का सदुपयोग करता है बड़ा ब्लॉगर Nice Plan<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<a href="http://kajalkumarcartoons.blogspot.in/2012/09/blog-post_12.html" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;" target="_blank"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiCiP8ZVVFO1hJ97GcyS5TYbUs0-Nifj8IQ0lkrImqeUWi3pdAnn_0OC6283dcyhZDpxKWff2Ut3wnueEULwBTut_wMcEG9f5DCkArAVr35nDxiDwV6bmXSdG5zvRqCgLpkrxTN4E3ol94/s320/kajal+ke+kartoon.jpg" width="246" /></a>‘मैं शादी करूंगा तो बस लड़की से ही करूंगा।‘- ब्लॉगर रंजन ने लैपटॉप खटखटाते हुए अपना फ़ैसला सुना दिया।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘लड़की से शादी का चलन अभी तक बाक़ी है, तुम भी कर लोगे तो इसमें नया क्या होगा ?‘-हमने उससे पूछा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘लड़की ब्लॉगर होगी, इसमें यह नया होगा।‘-उसने लैपटॉप को बंद करके बैग में रखते हुए कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘किसी कमाऊ लड़की से शादी करने की ज़िद करता तो हमारी समझ में आता लेकिन एक हिंदी ब्लॉगर तुम्हें क्या दे पाएगी ?'</div>
<div style="text-align: justify;">
दहेज में नॉन ब्लॉगर लड़की का बाप जो देगा वह तो ब्लॉगर का बाप भी ज़रूर देगा बल्कि ज़्यादा देगा। साथ में डेस्क टॉप, लैपटॉप, टैबलेट और इंटरनेट कनेक्टर भी देगा।‘-उसने मुस्कुराते हुए कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
उसकी बात सुनकर हम भी मुस्कुराये-‘बस इतनी सी बात के लिए ही ब्लॉगर लड़की से शादी करोगे।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘नहीं, दरअसल मैं ज़िंदगी को अपने तरीक़े से जीना चाहता हूं। मैं शांति चाहता हूं। मुझे प्राब्लम्स पालने का शौक़ नहीं है और इस तरह दुश्मन भी दबे रहेंगे और एक दिन वे बर्बाद भी हो जाएंगे।‘-उसने हमारी आंखों में झांक कर कहा और कुर्सी से उठकर ड्राइंग रूम में टहलने लगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘बात कुछ समझ में नहीं आई‘-वाक़ई उसकी बात समझ से बाहर थी कि यह सब उसे एक ब्लॉगर लड़की से कैसे मिल सकता है ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘देखिए, एक ब्लॉगर वर्चुअल दुनिया के दोस्त दुश्मनों में मगन रहता है। सो ब्लॉगर लड़की भी ऐसे ही रहेगी और मैं अपनी ज़िंदगी अपने तरीक़े से जी सकूंगा। ब्लॉगिंग के लिए वह देर तक जागती रहेगी और सोएगी तो फिर उठेगी नहीं। ऐसे में वह कोई प्रॉब्लम पैदा ही नहीं कर पाएगी तो उसे पालने की नौबत भी न आएगी।‘-उसने समझाया तो लगा कि उसकी बात में दम है।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘...और दुश्मन कैसे दबे रहेंगे ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘यह मैंने अभी अभी एक पोस्ट पर देखा है कि एक ब्लॉगर शेर की तरह ग़र्राकर किसी समारोह के आयोजकों से पूछ रहा था कि बताओ धन कहां से जुटाया और कहां लुटाया ?‘, ख़ुद को फंसा देखकर आयोजक अपनी बीवी की आईडी से लॉगिन करके ख़ुद ही जवाब देने आ गया। सवाल पूछने वाला बिल्ली की तरह म्याऊं म्याऊं करने लगा। वह समझा कि सामने सचमुच ही भाभी खड़ी हैं। उसे लगा कि इससे कुछ कहा तो ईद का शीर हाथ से निकल जाएगा। सोचिए अगर सामने सचमुच ही भाभी खड़ी हो तो फिर दुश्मन कैसे ललकार कर बात कर सकता है ?‘-उसकी दलील में दम था।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘...और वह दुश्मन की बर्बादी वाली बात कैसे हो पाएगी ?‘-यह बात अब भी हमारी समझ से बाहर थी।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘आंकड़े बता रहे हैं कि ब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग से जुड़े हुए लोग कभी कभी आपस में ज़रूरत से ज़्यादा ही जुड़ जाते हैं और उनकी शादियां टूटने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। हो सकता है कि मेरी क़िस्मत भी किसी दिन मुझ पर मेहरबान हो जाए और मेरी बीवी मेरे किसी दुश्मन के साथ चली जाए। ऐसा हुआ तो दुश्मन की बर्बादी तय है कि नहीं।‘-उसने उम्मीद जताई।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘क्या तुम इसे क़िस्मत की मेहरबानी का नाम दोगे ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘अगर घर से मुसीबत रूख़सत हो जाए तो क्या यह क़िस्मत की मेहरबानी नहीं कहलाएगी ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘मुसीबत ???‘-हम वाक़ई हैरान थे।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘मुसीबत ही नहीं बल्कि डबल मुसीबत। एक तो बीवी नाम ही मुसीबत का है और ऊपर से वह ब्लॉगर भी हो तो जानो कि नीम के ऊपर करेला चढ़ा है।‘-उसने ऐसा मुंह बनाकर कहा जैसे करेला नीम पर नहीं बल्कि उसके मुंह में रखा हो।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘डबल मुसीबत भी कह रहे हो तो उसे घर क्यों ला रहे हो ?‘-हमने थोड़ा झल्लाकर कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘क्योंकि कुवांरेपन का धब्बा हट जाएगा और सम्मान मिल जाएगा। शादीशुदा आदमी को समाज में विश्वसनीय और सम्मानित माना जाता है। ब्लॉग जगत में भी ज़्यादातर विवाहितों को ही सम्मानित किया जाता है। मुझे भी सम्मानित होना अच्छा लगता है। सिंगल ब्लॉगर की लाइन लंबी है जबकि डबल ब्लॉगर यानि दंपति ब्लॉगर में दो चार ही नाम हैं। दंपति ब्लॉगर वाले टाइटल का सम्मान मुझे मिल सकता है। ब्लॉगर मिलन के बहाने आउटिंग भी होती रहेगी और सारा ख़र्चा भी ससुर के सिर पर ही पड़ेगा।‘-उसने ख़ुश होते हुए कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘तेरा तो बहुत लंबा प्लान है भई, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि सारा मामला उल्टा तुम्हारे गले पड़ जाए‘-हमने कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘क्या मतलब ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
‘अगर ब्लॉगर लड़की का भी ऐसा ही कोई छिपा एजेंडा हुआ तो लेने के देने पड़ सकते हैं।‘-हमने कहा तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।</div>
<div style="text-align: justify;">
‘अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा ?‘</div>
<div style="text-align: justify;">
हमने क़हक़हा लगाकर कहा-‘ज़्यादा कुछ नहीं होगा, बस तुम अपने तरीक़े से नहीं जी पाओगे। घर में प्रॉब्लम्स पैदा होती रहेंगी और तुम उन्हें पालते और पढ़ाते रहना। तुम ज़िंदगी भर बिल्ली की तरह म्याऊँ म्याऊँ करते रहोगे। दुश्मन के बजाय तुम ख़ुद ही दबे पड़े रहोगे। ...और हां, तुम्हारी जान को एक काम और बढ़ जाएगा।‘</div>
<div style="text-align: justify;">
वह क्या ?<br />
‘तुम्हारी बीवी तो बच्चे और रसोई संभालेगी, तब उसके ब्लॉग को भी तुम्हें ही संभालना पड़ेगा और उसके प्रशंसकों को भी। दंपति को अवार्ड ऐसे ही नहीं मिल जाता। वे इसके लिए डिज़र्व करते हैं।‘-हमने कहा।</div>
<div style="text-align: justify;">
ड्राइंग रूम में घूमता हुआ रंजन अचानक ही सोफ़े पर पसर गया। उसके माथे पर लकीरें उभर आई थीं। </div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-5389000357887482822012-09-07T07:50:00.000-07:002012-09-07T21:52:01.311-07:00‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘: परिभाषा, उपयोग और सावधानियां Hindi Blogging<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZxRTDAC7ae-sRUWYLNMdagndm98tTIVOEwjfN6g51eJw8JgNQtJx314d_ArV-FzMFy9EnEI2U4kt34v0CAp46CVIf0YzJmkzWaOo6Dffqzecc2zWWj4YWRJgHzr9Tf7dMkEre-fQNZ5s/s1600/best+hindi+bloggers.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZxRTDAC7ae-sRUWYLNMdagndm98tTIVOEwjfN6g51eJw8JgNQtJx314d_ArV-FzMFy9EnEI2U4kt34v0CAp46CVIf0YzJmkzWaOo6Dffqzecc2zWWj4YWRJgHzr9Tf7dMkEre-fQNZ5s/s1600/best+hindi+bloggers.jpeg" /></a></div>
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हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास में वर्ष 2012 कई वजह से याद किया जाएगा। एक ख़ास वजह यह भी है कि ‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘ की शुरूआत इसी वर्ष में हुई। लंगोटिया यारी को दुनिया जानती है। जब इसे ब्लॉगिंग में निभाया जाता है तो लंगोटिया ब्लॉगिंग वुजूद में आती है। ‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘ से मुराद ऐसी ब्लॉगिंग से है जिसमें एक ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर को अपनी ईमेल आईडी का पासवर्ड भी बता देता है, जो कि अत्यंत गोपनीय रखी जाने वाली चीज़ है। लंगोटिया ब्लॉगिंग में दूसरा ब्लॉगर भी ईमेल आईडी का इस्तेमाल दाता ब्लॉगर के हित में करता है। लंगोटिया ब्लॉगिंग में एक ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर पर पूर्ण विश्वास करता है और दूसरा ब्लॉगर उसके विश्वास पर खरा उतरता है और उसके बचाव में भरपूर बहस करता है बल्कि ब्लॉगर्स के साथ डांट डपट भी कर देता है। ब्लॉगर महिला हो तो भी नहीं बख्शता। उससे भी कह देता है कि ‘झूठ के पांव नहीं होते‘ और यह नहीं देखता कि ख़ुद के पास न पैर हैं और न सिर, कुछ पास है तो बस गज़ भर की ज़बान है।<br />बेशक झूठ के पांव नहीं होते लेकिन ज़बान ज़रूर होती है और ज़बान लंबी हो तो आसानी से पकड़ भी ली जाती है। सो एक महिला ने उसकी ज़बान ऐसी पकड़ी कि उसके फ़ोटो खींच अपने सम्मानित ब्लॉग पर चिपका दिए, हमेशा के लिए। <br />हिंदी ब्लॉगिंग में आपसी विश्वास की यह धारा गुपचुप बहे जा रही थी और हम सभी इससे अन्जान थे कि अचानक यह घटना घटी और सबको हैरान कर गई। <br />दोनों ही ब्लॉगर बड़े निकले। जिसने दोनों ब्लॉगर्स के अंतरंग विश्वास को ट्रेस किया और सबको बताया वह भी बड़ी ब्लॉगर ही है। दर्जनों बड़े ब्लॉगर इस घटना के गवाह भी बने। इसलिए घटना का ब्यौरा देना ज़रूरी नहीं है।<br />इस मौक़े पर दोनों बड़े ब्लॉगर मुबारकबाद के मुस्तहिक़ हैं कि उन्होंने हिंदी ब्लॉगर्स के सामने आपसी विश्वास की बेमिसाल मिसाल पेश की है।<br />धर्मवीर जैसी दोस्ती की मिसाल पेश करने वाले इन ब्लॉगर्स को हिंदी ब्लॉगर्स ने मुबारकबाद देने के बजाय लम्पट, नक्क़ाल और फ़्रॉड तक कहा। जिससे कि उन दोनों ब्लॉगर्स को निश्चय ही बुरा लगा होगा। इस घटना का यह एक काला पक्ष है। इतने महान विश्वास के बाद भी तारीफ़ के बजाय ताने मिलें तो अच्छा नहीं लगता।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWphrjfDp_BCxy1rFFiJqb1P1VUVXmMpwHlSpJfiTTJrGmNBZySfYeAVc7mx3ls599lBm23rd6-19irjf5AfmX-MYN8y1At4sjp75eP97h8mwvenN2NrYm04YlAXM5zpYv-5_HVtKZWzM/s1600/blogger+events+lucknow.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="197" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWphrjfDp_BCxy1rFFiJqb1P1VUVXmMpwHlSpJfiTTJrGmNBZySfYeAVc7mx3ls599lBm23rd6-19irjf5AfmX-MYN8y1At4sjp75eP97h8mwvenN2NrYm04YlAXM5zpYv-5_HVtKZWzM/s320/blogger+events+lucknow.png" width="320" /></a></div>
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यह ब्लॉग हिंदी ब्लॉगिंग का व्यवहारिक प्रशिक्षण देता है। इसलिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि लंगोटिया ब्लॉगिंग की ज़रूरत कब पेश आती है और उसे लोगों की बुरी नज़र से बचाने के लिए क्या करना चाहिए ?<br />अगर आप अपने ब्लॉग पर केवल अपने विचार रखते हैं तो लंगोटिया ब्लॉगिंग आपके लिए नहीं है।<br />लंगोटिया ब्लॉगिंग ऐसे दो ब्लॉगर्स के दरम्यान पाई जाती है। जिनमें से एक ख़ुद ब्लॉगर बना हो और दूसरे को उसने ब्लॉगर बनाया हो या ब्लॉगिंग में उसकी मदद करता हो। यह दो बदन एक जान होने जैसी बात है। ऐसा तब किया जाता है जब एक ब्लॉगर अपनी बिसात से ज़्यादा बड़ा काम अपने हाथ में ले लेता है जैसे कि हिंदी ब्लॉगिंग को आगे या पीछे ले जाना। तब वह ज़िम्मेदारी के उस बोझ को उठाने के लिए दूसरे ब्लॉगर को अपने साथ शामिल कर लेता है।<br />एक प्रोग्राम का आयोजन करता है और दूसरा ऐतराज़ करने वालों के दांत खट्टे करता हुआ घूमता है। कभी वह अपने नाम से जवाब देता है और कभी वह दूसरे ब्लॉगर के नाम से जवाब देता है। इसी जवाब देने के चक्कर में कभी कभी चूक हो जाती है और ब्लॉगर पकड़ लिया जाता है। लंगोटिया ब्लॉगिंग की पहली घटना ऐसे ही पकड़ में आई और आलोचना का विषय बन गई।<br />इस घटना का एक रूप तो वह है जो दुनिया ने जाना कि अमुक ब्लॉगर ने कहा कि मैंने अपनी ईमेल आईडी का पासवर्ड अपने मित्र ब्लॉगर को बता दिया था। उसी से कमेंट करने में ग़लती हो गई लेकिन सच्चाई इसके उलट थी, जिसे केवल वह ब्लॉगर जानता है जो कि सच बोलने के मशहूर है। हक़ीक़त यह है कि कमेंट देने में ग़लती ख़ुद उसी से हुई थी लेकिन उसने उसे अपने मित्र के सिर डाल दिया। दरअसल उसने उसे अपना पासवर्ड दिया नहीं था बल्कि उसका पासवर्ड लिया था। पासवर्ड लेकर वह उसके ब्लॉग पर अपनी पत्रिकादि का प्रचार करता है। आप देखेंगे कि पिछली पोस्ट पर ब्लॉगर गालियां दे रहा है और अचानक ही अगली पोस्ट गंभीर आ जाती है जो कि उस ब्लॉग के स्वामी के उजड्ड स्वभाव से मेल नहीं खातीं। दोनों पोस्ट के लेखक दो अलग अलग ब्लॉगर हैं। गालियों भरी भाषा वाली पोस्ट ब्लॉग स्वामी की अपनी लिखी हुई हैं। यह उसके कमेंट्स से प्रमाणित है।<br />याद रखिए कि बड़ा ब्लॉगर अपने से अदना ब्लॉगर को अपना पासवर्ड कभी नहीं देता लेकिन अदना ब्लॉगर सहर्ष अपना पासवर्ड बड़े ब्लॉगर को दे देता है वैसे भी उसके ब्लॉग पर कुछ ख़ास नहीं होता। जिसके लुट जाने का उसे डर हो। कभी कभी ये अदना ब्लॉगर बड़े ब्लॉगर द्वारा ही खड़े किए गए होते हैं। समय समय पर इनसे काम लिया जाता है और बदले में भरपूर सम्मान भी दिया जाता है। अपनी ग़लतियों का ठीकरा फोड़ने के लिए भी इनका सिर काम में लिया जाता है।<br />लंगोटिया ब्लॉगिंग परिस्थितियों की देन और समय की ज़रूरत है। बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए सिर्फ़ अपना ब्लॉग बना लेना ही काफ़ी नहीं है बल्कि कुछ दूसरे लोगों के ब्लॉग बनवाना भी ज़रूरी है। अगर आपको बड़ा ब्लॉगर बनना है तो आपको भी लंगोटिया ब्लॉगिंग करनी पड़ सकती है। हमारी कोशिश है कि इस यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स की लंगोटिया ब्लॉगिंग को कभी किसी की बुरी नज़र न लगे।<br />इसका उपाय यह है कि <br />1. कभी किसी अनाड़ी और नादान को दोस्त न बनाएं।<br />2. हमेशा दूसरे से उसका पासवर्ड पूछें, अपना पासवर्ड दूसरे को न बताएं।<br />3. एक समय में कभी दो ब्राउज़र का इस्तेमाल न करें।<br />4. जब आप एक आईडी से लॉगिन हों तो बस केवल उसी का इस्तेमाल करें। इससे आपको यह याद रखने में आसानी होगी कि आप इस समय किस व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।<br />5. जोश और उत्तेजना में कमेंट न करें। <br />6. कमेंट पब्लिश करने से पहले हमेशा उसका प्रीव्यू देख लें। जो भी ग़लती होगी, नज़र आ जाएगी और उसे दूर भी कर लिया जाएगा।<br />ग़लतियों को सीख के रूप में लेना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें दोहराया न जाए। </div>
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DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-49479740093227840052012-08-30T07:08:00.000-07:002012-08-31T00:12:38.563-07:00जानिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर बहती मुख्यधारा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCkwSJQMcj3X1DUGK8E8WD_h8_AkaSEQyanmoDXN0erPipL7CSxxVL3VsJsHPEf2tUGPD-t7btPWoogEau0qzHe0MqM76D-QPbj0G78xn9kzpB0L_CZh7tzQQnVBE8fEx0OW5RxRkgwYU/s1600/sufi+saint+sant+yoga+namaj.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjCkwSJQMcj3X1DUGK8E8WD_h8_AkaSEQyanmoDXN0erPipL7CSxxVL3VsJsHPEf2tUGPD-t7btPWoogEau0qzHe0MqM76D-QPbj0G78xn9kzpB0L_CZh7tzQQnVBE8fEx0OW5RxRkgwYU/s320/sufi+saint+sant+yoga+namaj.jpg" width="320" /></a></div>
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बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए मुझे क्या करना होगा गुरूजी ? -मेरे मन के आंगन में दाखि़ल होते हुए एक काल्पनिक पात्र ने पूछा। विचार के पैरों से चलते हुए वह अचानक वहां आ खड़ा हुआ जहां मेरा <a href="http://shabdkosh.raftaar.in/Hindi-Dictionary/meaning/avadhan" target="_blank">अवधान</a> उस पर टिक गया और यही उसकी सफलता थी।<br />
मन में विचार तो लाखों आते हैं लेकिन हमारा अवधान किसी किसी पर ही टिकता है।<br />
हम भी ख़ुश हुए कि चंचल मन किसी बहाने थोड़ा ठहरा तो सही। मन किसी एक विचार पर ठहर जाए यही बड़ी उपलब्धि है।<br />
विचार भी हमारा अपना था लिहाज़ा उसमें गुण भी हमारे ही झलक रहे थे। हमें तसल्ली हो गई। मन की दुनिया भी बड़ी अजीब है। मन अपना होता है लेकिन उसमें विचर रहे होते हैं दूसरों के विचार और हमें पता ही नहीं चलता। कभी कभी तो यह जाने बिना ही पूरी उम्र गुज़र जाती है।<br />
काल्पनिक पात्र अब भी हमारे जवाब का मुन्तज़िर था।<br />
हमने उससे मन ही मन कहा-‘बड़ा बनने के लिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग को देखो और उनका अनुसरण करो।‘<br />
‘गुरूजी, आजकल इंस्टेट फ़ूड का ज़माना है और आप बिरयानी दम कर रहे हैं। हमें तो आप इंस्टेंट टिप्स बता दीजिए। आप तो बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पढ़ते ही रहते हैं।‘-उसकी तरंग मेरे मन को छू गई।<br />
‘बड़ा ब्लॉगर बनना है तो आपको साहस करना होगा।‘-हमने कहा। <br />
‘साहस, कैसा साहस ?‘-वह कुछ समझ नहीं पाया।<br />
‘ग़लत को सही कहने का साहस, ग़लत लोगों का साथ देने का साहस, नंगी होती लड़कियों को नारी मुक्ति का आदर्श बताने का साहस, समलैंगिकों के हक़ में तर्क जुटाने का साहस, अपने ज़मीर का गला घोंटने का साहस। आपको नफ़रत फैलानी होगी, मर्यादा और सीमाएं तोड़नी होंगी। न भी तोड़ पाएं तो ऐसा दिखाना होगा कि जैसे कि बस आप तोड़ने ही वाले हैं और तोड़ने वालों को पसंद करते हैं। चाहे आप अपने घर में तीर्थ,व्रत,प्रार्थना सब कुछ करते हों लेकिन अपने लेखन में ख़ुद को नास्तिक ज़ाहिर करना होगा। धर्म को कूड़ा कबाड़ बताना होगा। शराब पीनी है या आज़ाद यौन संबंध बनाने हैं तो ये काम सीधे करने के बजाय पहले संवैधानिक नैतिकता का पाबंद बनना होगा। इससे आपको पारंपरिक नैतिकता की घुटन से आज़ादी ख़ुद ही मिल जाएगी। अब जो चाहे कीजिए। ज़्यादा ब्लॉग फ़ोलो कीजिए, ज़्यादा टिप्पणियां दीजिए। टिप्पणी में ब्लॉगर्स की तारीफ़ कीजिए। हिंदी ब्लॉग पर अंग्रेज़ी में टिप्पणी दीजिए। अपने ब्लॉग पर कुछ कहना हो किसी विचारक को ज़रूर उद्धृत कीजिए। देशी हिन्दी विचारक के बजाय किसी विदेशी विचारक को उद्धृत कीजिए। अंग्रेज़, फ़ेन्च या अमेरिकन, कोई भी चलेगा। जर्मनी का हो तो अच्छा रहेगा। <a href="http://www.auratkihaqiqat.blogspot.in/2012/08/the-most-precious-thing-in-world-is.html" style="background-color: #ffe599;" target="_blank">अरब</a> का भूलकर भी न हो। अपने प्रोफ़ाइल में चित्र ऐसा रखें जिसमें वैभव और ग्रेस एकसाथ नज़र आएं। बुढ़ापे में जवानी का फ़ोटो लगाएं। विदेश यात्राओं का ज़िक्र करें, उनके फ़ोटो दिखाएं। जिस विचारधारा के ब्लॉगर ज़्यादा हों, उनसे बनाकर रखें। बनाकर न भी रखें तो बिगाड़ कर कभी न रखें। मर्द हो तो औरत में दिलचस्पी लो और अगर औरत हो तो मर्दों में दिलचस्पी लो और दोनों ही न हों तो दोनों को रिझाओ। अपनी बात अपनी कविता के बहाने कहो। उसमें उभार, गहराई और लंबाई, सबका ज़िक्र करो। ग़द्य में अश्लीलता कहलाने वाले शब्द कविता में सौंदर्य कहलाते हैं ब्लॉग पर। कविता न लिख सको तो भी उसे कविता बताओ। गद्य लिखकर बीच बीच में एन्टर मारते चले जाओ। तब कोई नहीं कहेगा कि यह कविता नहीं है। यहां कविता और साहित्य से किसी का लेना देना कम ही है। सबके मक़सद यहां कुछ और हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की मुख्य धारा यही है। आप भी सत्य के सिवा कुछ और मक़सद निश्चित करो और ब्लॉगिंग शुरू कर दो। बड़ा ब्लॉगर बन जाओगे। जो
आप होना चाहते हो। सोचो कि तुम वह हो चुके हो। इससे तुम्हारे हाव भाव तुरंत बदल जाएंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यही है। जो
आप ख़ुद को महसूस करते हो,
आप वही हो।‘-हमारी तरंगे भी उसे छू रही थी।<br />
‘...और अगर मैं मुख्यधारा के खि़लाफ़ चलूं और सत्य को मक़सद बनाऊं तो...‘-उसने कहा। आखि़रकार विचार तो वह हमारा ही था।<br />
‘तब
आप तन्हा रह जाओगे।‘-हंमने चेतावनी दी।<br />
‘फ़ायदा इसी में है।‘<br />
‘कैसे ?‘<br />
‘जो मैं लिखूंगा, लिखने से पहले वहीं सोचूंगा। <a href="http://vedkuran.blogspot.com/2012/08/7-habits-super-successful.html" target="_blank"><span style="background-color: #ffe599; color: #cc0000;">जो हम सोचते हैं, हम वही हो जाते हैं। </span></a>मैं सत्य सोचूंगा तो मैं भी सत्य हो जाऊंगा। यही सबसे बड़ी उपलब्धि है। यही बात सबसे बड़ा ब्लॉगर बनाती है।‘-उसने कहा। <br />
काल्पनिक पात्र आगे बढ़ चुका था लेकिन हमारा अवधान अब भी ठीक उसी जगह केंद्रित था जहां कि वह था। एक शून्य का अनुभव हो रहा था और शून्य की अनुभूति का तरीक़ा भी यही है कि पहले आप सारे विचारों में से किसी एक विचार को चुनें, विचार सुन्दर हो, उसकी सुन्दरता आपके ध्यान को बरबस ही खींच लेगी। आप उसमें रम जाएंगे और आपका ध्यान सबसे हटकर एक पर केंद्रित हो जाएगा। फिर आप उस विचार को भी जाने दें। <br />
अब केवल आप बचेंगे निर्विचार। निर्विचार होना सहज सरल है।</div>
</div>
DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com26tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-5946269094402858092012-07-25T10:22:00.000-07:002012-07-29T01:17:21.893-07:00बूढ़े शरीर में भी आंख जवान रखता है बड़ा ब्लॉगर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
दो साल पहले एक परिचित के निमंत्रण पर हम उसके घर गए और साथ में अपने दोस्त को भी ले गए। हमारे परिचित भी मुसलमान थे और हमारे दोस्त भी और हम ख़ुद भी। हमारे परिचित ने हमें क़ायदे से नाश्ता कराया। नाश्ते का सामान भी वह ख़ुद ही लाए और बाद में किचन तक बर्तन भी ख़ुद ही पहुंचाए। उनके शहर में उनके साथ घूमे। हमारे दोस्त तो वापस चले गए लेकिन उनके साथ हम फिर उनके घर आ गए। इस बीच उनकी बीवी हमारे सामने नहीं आईं और न ही उनकी मां हमारे सामने आईं। हमें अच्छा लगा कि इस घर में पर्दे का रिवाज अभी बाक़ी है। </div>
<ul class="rg_ul" data-cnt="24" data-pg="2" style="background-color: white; border: 0px none; color: #222222; font-family: arial,sans-serif; font-size: medium; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 19px; margin: 0px 0px 9px; orphans: 2; padding: 0px; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; width: 1027px; word-spacing: 0px;">
<li class="rg_li" style="border: 0px none; display: inline-block; height: 141px; line-height: 1.2; list-style: none outside none; margin: 0px 12px 12px 0px; overflow: hidden; padding: 0px; position: relative; vertical-align: top; width: 113px;"><img class="rg_i" data-src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcR_N7I4wnykS2ZpdM0AFxae33BCNHuaUiiGvFxynqSlailA7mm2vhiBjto" height="154" name="C4lJ_38McJlM4M:" src="http://t1.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcR_N7I4wnykS2ZpdM0AFxae33BCNHuaUiiGvFxynqSlailA7mm2vhiBjto" style="border: 0px none; display: block;" width="113" /></li>
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इस वाक़ये के कुछ माह बाद हमारे उस परिचित को सम्मानित होना पड़ा . एक बूढ़े आदमी को भी उसी समारोह में सम्मानित होना था। वह उनके शहर आया तो उन्होंने उसे अपने घर पर रूकवाया और उसे असली बूढा समझ कर अपनी बीवी को भी उसके सामने कर दिया। उसने परिचय कराया कि ये हमारी शरीके हयात हैं। हमारा परिचित तो उसे बूढ़ा समझकर सम्मान देता रहा लेकिन वह बूढ़ा उसकी बीवी के रूप का जायज़ा लेता रहा। सम्मान समारोह से लौटकर बाद में उसने अपनी मित्र मंडली को बताया कि जब मैं रात को अमुक के घर पहुंचा तो तुरंत ही एक सुंदर स्त्री नाश्ता-पानी लेकर आ गई। <br />
याद रखिये, जब तक एक आदमी में सुंदरता को महसूस करने की ताक़त बाक़ी है तब तक उसे हरगिज़ हरगिज़ बूढ़ा न समझा जाए और अगर वह आदमी ब्लॉगर भी हो और ब्लॉगर भी बड़ा हो, तब तो बिल्कुल भी उसका ऐतबार न किया जाए और अगर ब्लॉगर होम्योपैथी का जानकार भी हो तो ख़तरा और भी ज़्यादा बढ़ जाता है। <a href="http://hpathy.com/ask-homeopathy-doctors/after-4-months-i-will-be-married-but-i-m-sexualy-weak-i-have-premature-ejculation-so-i-heard-about-damiaplant-by-dr-shwabe-can-i-use-or-suggest-any-otherbest-regards/" target="_blank"><span style="background-color: yellow;">डैमियाना,</span></a> एसिड फॉस और कैलकेरिया फ़्लोरिका खाने वाले पर बुढ़ापा आता ही कब है ?, बस बाल सफ़ेद होते हैं और अगर साइलीशिया खा ली जाए तो सफ़ेद बाल भी काले हो जाएँ। इनके अलावा भी और कई दवाएं हैं जो बदन में बहने वाला माददा आख़िर उम्र तक बनाती रहती हैं। वह खुद भी ऐलानिया बताते रहते हैं कि मैं बूढा नहीं हूँ।<br />
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बालों में सफ़ेदी देखकर लोग उसका ऐतबार करते हैं। लोग ऐतबार करें तो करें लेकिन आप किसी का ऐतबार उसके बाल या उसकी उम्र देखकर मत करना। आजकल ज़माना बड़ा ख़राब है।<br />
किसी को मेहमान बनाने से नहीं बच सकते तो कम से कम नाश्ता पानी तो ख़ुद परोसा ही जा सकता है। ऐसा किया जाए तो फिर आपकी बीवी की सुंदरता का चर्चा कोई अपने ब्लॉग पर नहीं कर पाएगा।<br />
बड़ा ब्लॉगर सफ़र भी करता है और मेहमान भी बनता है और इस दौरान वह अपनी पोस्ट का सामान भी आपके घर से ही ले जाता है। <br />
आपकी बीवी की सुंदरता आप तक रहे तो बेहतर है वर्ना कहीं किसी ब्लॉगर की नज़र पड़ गई तो वह उसका चर्चा अपने ब्लॉग पर किए बिना नहीं मानेगा और तब दूसरे ब्लॉगर भी आपके घर का रूख़ करेंगे। वे भी देखना चाहेंगे कि तुम्हारी बीवी कितनी सुंदर है ?<br />
जो इस तरह के लोगों को अपने घर का रास्ता दिखाने से बच जाए, वास्तव में वही है बड़ा ब्लॉगर .</div>
</div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-67320970806149832052012-05-18T21:33:00.000-07:002012-05-18T21:33:17.528-07:00...ताकि बचा रहे ब्लॉग परिवार Blog Parivar<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
सारी धरती एक परिवार है।<br />बड़ा ब्लॉगर ऐसा मानता है।<br />इसीलिए जब भी मौक़ा मिलता है, वह अपने परिवार से मिलने के लिए निकल लेता है। श्रीनगर की डल झील से लेकर थाईलैंड के मसाज पार्लर तक वह घूम चुका है। अब उसकी नज़र इस कॉन्टिनेंट से बाहर जाने की है।<br />ब्लॉगर ब्लॉगिंग के सहारे घूमता है। जितना वह घूमता है, उससे ज़्यादा उसका दिमाग़ घूमता है।<br />विदेशी ब्लॉगर के दिल को पहले मोम करो फिर उसमें अपनी छाप छोड़ दो।<br />हरेक आदमी अपना नाम और सम्मान चाहता है। यह डेल कारनेगी ने भी बताया है और दूसरों ने भी।<br />जिसे अपना बनाना चाहो, उसके नाम का गुणगान करो, उसे ईनाम दो।<br />वह दिल से ही कहेगा कि आप भी आना कभी हमारे घर यानि विदेश में।<br />बस हो गया काम।<br />विदेश में तो तरसते हैं कि कोई आ जाए अपने देस से।<br />वहां जितने भी देसी आबाद हैं, अपनी सोच से वे भी विदेशी हो चुके हैं।<br />अपना टाइम देने से पहले वह 10 बार सोचता है। यहां के लोगों के पास टाइम की भरमार है। जितना चाहे उतना टाइम ले लो।<br />विदेशी ब्लॉगर को नवाज़ने से विदेशी ब्लॉगर को दोहरा लाभ होता है और ख़ुद नवाज़ने वाले को भी। एक तो विदेश घूमने का मौक़ा मिला और दूसरे, उससे बड़े ख़ुद हो गये क्योंकि ‘देने वाला हाथ बड़ा होता है लेने वाले से‘।<br />ईनाम देता ही बड़ा है।<br />विदेशी दौरे से लौटकर फिर वह वहां के फ़ोटो दिखाएगा जैसे कि झारखंड के लोग दिल्ली में आकर रहते हैं और जब अपने गांव लौटते हैं तो अपनी फ़ोटो दिखाते हैं। उसके रिश्तेदारों में उसका रूतबा कितना बढ़ जाता होगा ?<br />आप सोच सकते हैं।<br />विदेशी दौरे के बाद हिंदी ब्लॉगर का रूतबा भी बढ़ता है। ज़्यादा लोगों से संपर्क भी रूतबा बढ़ाता है। 20-30 लोग भी साथ हो जाएं तो एक अकादमी बनाई जा सकती है। इसे बेस बनाकर राजनीतिक पहुंच वालों तक भी पहुंचा जा सकता है। <br />बड़ा ब्लॉगर जानता है ब्लॉगिंग उर्फ़ न्यू मीडिया की ताक़त। सरकारें तक झुक रही हैं इसके सामने।<br />सरकारों को ऐसे आदमी चाहिएं जो उन्हें ‘न्यू मीडिया‘ के सामने झुकने से बचा सकें।<br />देश में अख़बार हैं और क्रांति के हालात भी हैं लेकिन क्रांति नहीं है।<br />इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पब्लिक को इतने सारे मैच और मनोरंजन दिखाता है कि कुछ देर के लिए सारी हताशा हवा हो जाती है। ‘शीला की जवानी‘ देखकर युवा वर्ग की सोच का रूख़ ही बदल जाता है। क्रांतिकारियों को मरता छोड़कर वह शीला की तलाश में चल देता है और जब शीला उसे मिलती है तो फिर सोनू, मोनू और मुन्नी ख़ुद ही उसके आंगन में खेलने लगती हैं।<br />शादी करते ही उसकी सारी गर्मी हवा हो जाती है।<br />आज़ादी की लड़ाई में गरम दल में वही थे जो अपने कुंवारेपन को बचा पाए। शादी शुदा लोगों की गर्मी और हेकड़ी निकल चुकी थी। सो वे नरम दल में थे और अवज्ञा आंदोलन तक ‘सविनय‘ चलाया करते थे।<br />देश में प्योर देसी बहुत थे लेकिन लोगों को नेहरू पसंद आए क्योंकि वह अंग्रेज़ों को पसंद थे और उनकी बीवियों को भी। नेहरू से लेकर राजीव तक सभी अंग्रेज़ों को बहुत पसंद थे। अंग्रेज़ों की पसंद को नकारना आज भी हिंदुस्तानियों के बस का नहीं है। ब्लॉगिंग और फ़ेसबुक की शुरूआत भी अंग्रेज़ों ने ही की है। <br />विचार की शक्ति हथियार की शक्ति से हमेशा ज़्यादा होती है। सरकारें इस शक्ति से डरी हुई हैं। सरकारों को ऐसे लोगों की तलाश है जो ईनाम ले सकें।<br />ईनाम लेने के बदले में उन्हें ब्लॉगिंग की दिशा को नियंत्रित रखना होगा।<br />यह एक बड़ी डील है जो निकट भविष्य में होने जा रही है।<br />सौदा उसी से होगा जो विदेश रिटर्न होगा और ब्लॉगिंग में कुछ रूतबा रखता होगा।<br />इधर उधर घूमना फिरना और ईनाम बांटना भविष्य की उसी योजना की तैयारी है।<br />गणतंत्र बचाने वाली कहानियां लिखना भी उसी योजना का हिस्सा है यानि कि प्लान लंबा है।<br />जो आज उसकी आलोचना कर रहे हैं, कल वह उन्हें बेच चुका होगा और किसी को पता भी न चलेगा।<br />ब्लॉग जगत भी एक परिवार है।<br />जो परिवार को ही बेच दे, वह बड़ा ब्लॉगर नहीं होता। <br />बड़ा ब्लॉगर वह है जो परिवार को पहले ही ख़बरदार कर दे कि तुम्हें कैसे बेचा जाने वाला है ?</div>
</div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-60051533445144804722012-05-16T02:46:00.001-07:002012-05-16T03:08:35.127-07:00बुराई को फैलने से रोकना है तो भलाई को सराहो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b style="color: blue;">‘करे कोई और भरे कोई‘ कहावत का एक उदाहरण</b><br />
किसी ब्लॉगर महिला ने कहा कि ‘मुहब्बत चूड़ियों की सलामती की मोहताज नहीं होती‘,<br />
यह सुनते ही हमें मुग़ल ए आज़म जलालुददीन मुहम्मद अकबर का डायलॉग याद आया कि हमारा इंसाफ़ आपकी अंधी ममता का मोहताज नहीं है।<br />
यानि कि इंसाफ़ ममता का मोहताज नहीं है और मुहब्बत चूड़ियों की मोहताज नहीं है।<br />
यहां हरेक ख़ुदमुख्तार है और पूरी तरह बाइख्तियार है।<br />
कल कोई कह सकता है कि ‘मुहब्बत गददे तकिए की मोहताज नहीं है‘<br />
वैसे भी मुहब्बत करने वालों को नींद कहां आती है ?<br />
मुहब्बत का नाम ही रोंगटे खड़े कर देता है। <br />
ऐसी रोमांचकारी कविताएं पढ़ पढ़ कर बूढ़े ब्लॉगर्स के हॉर्मोन फिर से रिसने लगे हैं। कविता लिखता है कोई और चूड़ियां और खाट टूटती है किसी और की।<br />
इसे कहते हैं कि ‘करे कोई और भरे कोई‘।<br />
<a href="http://www.google.co.in/imgres?imgurl=http://fashiontrendsabout.com/wp-content/uploads/2011/06/Bangles-and-Eid-Mehndi-Design-e1309413320182.jpg&imgrefurl=http://fashiontrendsabout.com/c/mehndihenna/eid-mehndi-designs/page/5/&usg=__RrF21fA5dL888IdVkKVWsZBwQ1o=&h=510&w=510&sz=68&hl=en&start=98&sig2=QLQRNvnt5VoonyQqMvwGpQ&zoom=1&tbnid=1VkCFpHIgS_GqM:&tbnh=131&tbnw=131&ei=RXezT8OLBYiyrAfS98DxAw&um=1&itbs=1"><img height="131" src="https://encrypted-tbn2.google.com/images?q=tbn:ANd9GcRs600vQVQNXuP_7dG9SLGxa-TOA-fl4TB1HEYxpZ9hJC8cxdbz5VeTKL_cZQ" width="131" /></a><br />
<br />
<br />
ख़ैर एक पुरूष ब्लॉगर ने मीडिया और कॉरपोरेट जगत की मिलीभगत का भांडाफोड़ करते हुए आमिर के ‘सत्यमेव जयते‘ की क़लई खोल दी। कहने लगे कि यह सब प्रायोजित है।<br />
अरे भाई, टी.वी. के कार्यक्रम प्रायोजित ही होते हैं और बड़े स्टार के कार्यक्रम के प्रायोजक भी बड़े ही होते हैं। इसमें चौंकाने वाली बात तो कुछ भी नहीं है।<br />
चौंकाने वाली बात तो यह है कि अब हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर और ब्लॉगर्स भी इधर उधर से माल पकड़ रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों तक से माल पकड़ रहे हैं।<br />
कौन कहां से माल पकड़ रहा है ?<br />
इसकी क़लई खोलो तो जानें !!!<br />
...लेकिन अपनी क़लई ख़ुद कैसे खोल दें ?<br />
<br />
आमिर ख़ान का नाम लेकर मुख़ालिफ़त कर रहे हैं लेकिन किसी ब्लॉगर की मुख़ालिफ़त का नंबर आए तो कन्नी काट जाएंगे।<br />
ब्लॉगर्स की बहादुरी के रंग भी निराले हैं और ईमानदारी के भी।<br />
<br />
बात यह है कि आदमी की अंतरात्मा ईमानदार होती है। उल्टे सीधे धंधों से कमाने के बावजूद अपनी अंतरात्मा को संतुष्ट रखना भी ज़रूरी होता है वर्ना आदमी जी नहीं पाएगा। तब आदमी यह करता है वह ऐसे लोगों की पोल खोलने लगता है जो कि उसका कुछ बिगाड़ न पाएं बल्कि उन्हें पता भी न चले कि किसी ने उनकी मुख़ालिफ़त की है।<br />
इससे आदमी भी सेफ़ रहता है और उसकी अंतरात्मा भी संतुष्ट रहती है।<br />
यह आम ब्लॉगर का रास्ता है जबकि बड़ा ब्लॉगर विश्लेषण और आलोचना की शुरूआत अपने आप से करता है। <br />
सूफ़ी संतों का मार्ग भी यही है। यही चीज़ उन्हें ख़ास बनाती है।<br />
<br />
उनका तरीक़ा यह भी है कि भलाई के काम को सराहो।<br />
भलाई के काम को सराहना न मिली तो फिर उसे करने वाले बुराई के काम करेंगे।<br />
बुराई को फैलने से रोकना है तो भलाई को सराहो।<br />
बुराई से लड़ने का काम तो सिर्फ़ बड़ा ब्लॉगर ही कर सकता है लेकिन भलाई को सराहने जैसा आसान काम करना भी आजकल हरेक ब्लॉगर के बस का नहीं है।</div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-49750935770210893542012-04-25T07:45:00.000-07:002012-04-25T07:52:27.243-07:00त्रिया चरित्र से धोखा नहीं खाता बड़ा ब्लॉगर Best Hindi Blog<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJX1rIu1w4Ws-oJ9WGyabzg2e4IvEziUKcYs_eOcWq7bfVhASi8rOmH7uX5aK23pCZDtCR3_xvc-eJdDRwcgtP1BuDIkXt_KIVnNAXgm4jJv5guJjmiKTnXoWR4df1ka9rv2zn6vgYt_M/s1600/thailand+nri+best+hindi+blogs.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjJX1rIu1w4Ws-oJ9WGyabzg2e4IvEziUKcYs_eOcWq7bfVhASi8rOmH7uX5aK23pCZDtCR3_xvc-eJdDRwcgtP1BuDIkXt_KIVnNAXgm4jJv5guJjmiKTnXoWR4df1ka9rv2zn6vgYt_M/s320/thailand+nri+best+hindi+blogs.jpg" width="248" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
चुनाव नज़्दीक आए तो ब्लॉगर अपनी अपनी पसंद की पार्टी के लिए ज़मीन हमवार करने लगे। किसी ने यह काम इशारे में किया तो किसी ने खुले आम किया। कोई ब्लॉग पर इस विषय में चुप ही रहा। जो चुप रहा उसकी पार्टी उत्तर प्रदेश में जीत गई और जो खुल कर बोला और बोला ही नहीं बल्कि दहाड़ा भी, उसकी पार्टी हार गई।</div>
<div style="text-align: justify;">
हार से पार्टी भी बौखला गई और पार्टी के वर्कर ब्लॉगर भी।</div>
<div style="text-align: justify;">
बौखलाहट पागलपन में बदली तो उसने संविधान का अपमान कर दिया।</div>
<div style="text-align: justify;">
जिसे पार्टी से नहीं बल्कि देश से प्यार है, उसने कह दिया कि ‘मुझे आपत्ति है‘।</div>
<div style="text-align: justify;">
औरत को औरत ने पकड़ लिया और नर्म गुफ़्तगू के साथ ऐसा जकड़ लिया कि जान छुड़ानी भारी हो गई। उनकी हिमायत में एक भाई साहब आ गए।</div>
<div style="text-align: justify;">
बहन भी गालियां बकती है और भाई भी गालियां बकता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
गालियां बकने से इन दोनों को वीरता का नक़ली अहसास होता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
इनमें से एक भाग कर विदेश में बैठा है और दूसरा है ही नहीं।</div>
<div style="text-align: justify;">
भाई के नाम से भी फ़र्ज़ी प्रोफ़ाइल ख़ुद बहन जी ने ही बना रखा है और अपनी हिमायत में भाई बनकर ख़ुद ही बोलती रहती हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
बड़ा ब्लॉगर अपनी हिमायत का इंतेज़ाम ख़ुद ही लेकर चलता है।</div>
<div style="text-align: justify;">
अपने प्रोफ़ाइल से वह ख़ुद को ‘लौह कन्या‘ कहती है तो भाई के प्रोफ़ाइल से अपने दावे की तस्दीक़ कर देती है बल्कि इससे भी आगे बढ़कर ख़ुद को भारत माता का खि़ताब भी दे देती है।</div>
<div style="text-align: justify;">
यह वाक़ई अदभुत है।</div>
<div style="text-align: justify;">
भारत माता के टाइटिल को पाने की यह नायाब तरकीब पहली बार देखी गई है।</div>
<div style="text-align: justify;">
भाई का प्रोफ़ाइल फ़र्ज़ी है, सो वह संविधान का अपमान करता रहा और पीएम तक के अपमान को तत्पर सा होता रहा। उसे पता है कि प्रोफ़ाइल पूरी तरह फ़र्ज़ी है। मेरा कुछ होना नहीं है और जिसका असली है उसने देश को अपनी मर्ज़ी से छोड़ ही रखा है।</div>
<div style="text-align: justify;">
दोनों भाई बहन मुतमईन हैं, सो मज़े से संविधान के खि़लाफ़ बोलते रहे।</div>
<div style="text-align: justify;">
अपने सम्मान के प्रति संवेदनशील ब्लॉगर ज़्यादातर ऐसे केसेज़ को इग्नोर ही करते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
कुल मिलाकर भाई बहन के फ़िल्मी प्यार का मंज़र देखने वालों को बड़ा इमोशनल कर गया।</div>
<div style="text-align: justify;">
इतना प्यार आजकल कहां मिलता है ?</div>
<div style="text-align: justify;">
प्यार के नाम पर भी खिलवाड़ करने वाले ही आजकल ज़्यादा हैं और ऐसे भी हैं कि पहले तो इश्क़ लड़ाएं और जब काम निकल जाए तो आशिक़ से कह दें कि अब आप हमारे भाई बन जाओ।</div>
<div style="text-align: justify;">
...और कलाकार इतनी कि पति को पता ही न चलने दे कि उसकी पीठ पीछे ब्लॉग जगत में क्या गुल खिलाए जा रहे हैं ?</div>
<div style="text-align: justify;">
यह लक्षण तो त्रिया चरित्र से मेल खाते हैं।</div>
<div style="text-align: justify;">
भारत माता का टाइटिल ऐसी औरत के लिए तो नहीं है और न ही कोई देगा।</div>
<div style="text-align: justify;">
ख़ुद कोई हथियाने लगे तो ब्लॉग जगत को सच्चाई वह बता ही देगा जो कि वास्तव में बड़ा ब्लॉगर है।</div>
<div style="text-align: justify;">
</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: Georgia, Times, serif; font-size: 13px; line-height: 18px; margin-bottom: 1em; text-align: left;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGbVUWZMeH1dpCs0vHYXUrewFna4AzznbTEsjU0uIWJhYPPku2QxgnNAL2mIDQzA4OR-4xJhGjbfBDAvjGyJN6IdaSopTHNpayFrfNM9xWINl4jXZg37rf-FFLpclnvwa3e7f2UN8m3pg/s1600-h/1-P1020934-2.jpg" style="color: #3d81ee; text-decoration: none;"><img alt="" border="0" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5293076179006113618" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGbVUWZMeH1dpCs0vHYXUrewFna4AzznbTEsjU0uIWJhYPPku2QxgnNAL2mIDQzA4OR-4xJhGjbfBDAvjGyJN6IdaSopTHNpayFrfNM9xWINl4jXZg37rf-FFLpclnvwa3e7f2UN8m3pg/s400/1-P1020934-2.jpg" style="background-attachment: initial; background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; border-bottom-style: none; border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-image: initial; border-left-style: none; border-left-width: 0px; border-right-style: none; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-style: none; border-top-width: 0px; cursor: pointer; display: block; height: 300px; margin-bottom: 10px; margin-left: auto; margin-right: auto; margin-top: 0px; padding-bottom: 2px; padding-left: 2px; padding-right: 2px; padding-top: 2px; text-align: center; width: 400px;" /></a></div>
<div style="text-align: left;">
<br /></div>
</div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-57586018098163722142012-04-20T03:31:00.001-07:002012-04-20T03:48:33.547-07:00फ़र्रूख़ाबादी स्टाइल की कविता भी बना सकती है बड़ा ब्लॉगर Hindi Poetry<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglax_J-6BOQjO-kz4osOgXAe5wQatRuZLRNq6zUj8wcc82ljO5vCLcO8d7XcDCuG6fl6bYxwJ2eMxX4co9D_W4pUOftD9VG6WkLxGN_1FfHc1Z15sjvOKV343pORzT6uLEZ3OvakWTSeo/s1600/hari+nili+aankh.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEglax_J-6BOQjO-kz4osOgXAe5wQatRuZLRNq6zUj8wcc82ljO5vCLcO8d7XcDCuG6fl6bYxwJ2eMxX4co9D_W4pUOftD9VG6WkLxGN_1FfHc1Z15sjvOKV343pORzT6uLEZ3OvakWTSeo/s1600/hari+nili+aankh.jpeg" /></a></div><div style="text-align: justify;">जब से कविता जी की कविता हिट हुई है तब से ब्लॉग जगत में अजीब सी गहमा गहमी है। ब्लॉगर्स को कविता जी से बड़ी उम्मीदें हो गई हैं। पहले तो वे जैसे दूसरे ब्लॉग पर जाते थे वैसे ही इस ब्लॉग पर भी ‘गहरे भाव‘, ‘सुंदर अभिव्यक्ति‘ और ‘दिल को छूने वाली रचना‘ कहकर निकल आते थे लेकिन अब वे सचमुच तलाश करते हैं कि कौन सी बात दिल को छू रही है ?<br />
न भी छू रही हो तो पुरानी कविता को ही याद कर लेते हैं।<br />
वाह क्या कविता थी ?<br />
दिल को क्या पूरे के पूरे वुजूद को ही छू कर और हिला कर जो रख दिया था उसने।<br />
आज तक हिल रहे हैं और लुत्फ़ ले रहे हैं।<br />
जवान तो जवान बूढ़े भी कम नहीं हैं।<br />
<br />
ज़रा बुड्ढों की दाद देखा कीजिए।<br />
किस किस स्टाइल में दाद देते हैं।<br />
आज का जवान पुराने जवान जैसा नहीं रहा तो आज के बुड्ढों का भी पुराने बुड्ढों की तरह ऐतबार क्या ?<br />
यह तो च्यवनप्राश का देश पहले से ही था और अब तो नई नई तकनीकें और आ गई हैं। कौन जाने किसने क्या खा रखा हो या क्या लगा रखा हो ?<br />
कॉलेज की लड़कियों ने भी एक सर्वे में बताया कि हमें नौजवानों से ज़्यादा डर बुड्ढों से लगता है। ये ‘बेटा बेटा‘ कहकर कहीं भी सहला देते हैं।<br />
जब से कविता हिट हुई है तब से यही डर कविता करने वाली दूसरी ब्लॉगर्स के दिल में भी बैठ गया है कि जाने यह बुड्ढा कहीं उसी कविता की पिनक में तो यहां नहीं आ धमका ?<br />
क्या ज़माना आ गया है कि नारियां कविता करने से पहले और उपमा देने से पहले सत्तर बार सोचती हैं कि इसके भाव ब्लॉगर्स के दिल में कितने गहरे उतरेंगे ?<br />
कहीं ज़्यादा गहरे उतर गए तो जान आफ़त में आ जाएगी।<br />
उपमाएं और अलंकार ही उनकी जान बचा लेते हैं। किसी के पल्ले पड़ती है और किसी के नहीं ?<br />
यह पुराना स्टाइल है कविता का।<br />
नए स्टाइल की कविता में यह सब नहीं चलता। इसमें सब कुछ खुला खेल फ़र्रूख़ाबादी है।<br />
इसमें तो साफ़ बता दिया जाता है कि मेरे महबूब की आंखें हरे कलर की हैं और वह बिन बुलाए चला आता है।<br />
टिप्पणी देने के लिए महबूब स्टाइल में ब्लॉगर्स पहले से ही बिन बुलाए जाने के आदी हैं। सो हरेक को आधे लक्षण तो अपने में ही घटते हुए लगे। बाक़ी रहा आई कलर, सो वह भी बदला जा सकता है। आंख का रंग बदलकर ज़िंदगी रंगीन हो सकती है तो क्या बुरा है ?<br />
जब से नई कविता में महबूब की आंख का रंग पता चला है तो हरेक अपनी आंख का रंग हरा करने पर तुला हुआ है। कोई हरे पत्तों का अर्क़ सुबह शाम डाल रहा है तो किसी ने हरे रंग के लेंस का ही ऑर्डर दे दिया है।<br />
अब सारे टिप्पणीकार जब अगली कविता पढ़ने जाएंगे तो सबकी आंखें हरी हरी होंगी। इतने सारे हरी आंखों वाले देखकर कवयित्री महोदया परेशान हो जाएंगी कि इनमें से मेरा महबूब कौन है ?<br />
और हो सकता है उस दिन असली हरी आंख वाला वहां पहुंचे ही नहीं।<br />
इसी आस में ब्लॉगर्स टिप्पणियां कर रहे हैं वर्ना तो यही ब्लॉगर उससे भी अच्छी कविता पर नहीं पहुंचते।<br />
न इन्हें उसकी कविता से मतलब है और न उसे इनकी टिप्पणी से। हरेक की अपनी अपनी ख्वाहिशें हैं और ख्वाहिशें भी ऐसी कि हरेक ख्वाहिश पर दम निकले।<br />
अंदर से कुछ तो निकले, चाहे दम ही निकले।<br />
टिप्पणीकार यही सोच कर डटे हुए हैं।<br />
बड़ा ब्लॉगर की पोस्ट होती ही ऐसी है। <br />
इनके चक्कर में ईमानदार ब्लॉगर्स पर शक की सुई घूम रही है कि कहीं यह भी तो कोई अरमान पाले हुए नहीं घूम रहा है।<br />
हिंदी ब्लॉगिंग ने किसी को कुछ दिया हो या न दिया हो लेकिन सीनियर सिटीज़न्स को या निठल्लों को समय गुज़ारने का अच्छा टूल दे दिया है।<br />
अगर वृद्धाश्रम के बूढ़ों को ब्लॉगिंग से जोड़ दिया जाए तो उनके मन में भी अरमान अंगड़ाईयां लेने लगेंगे। फिर वे कभी शिकायत न करेंगे कि उनके बेटा बहू उनसे मिलने नहीं आते बल्कि वे ख़ुद चाहेंगे कि उनके बेटा बहू उन्हें डिस्टर्ब करने के लिए कभी न आएं। ब्लॉगिंग दूर के रिश्तों को क़रीब इसी तरह करती है कि वह क़रीब के रिश्तों को दूर कर देती है।<br />
उनके रंगीन अरमान घर पर रहने वाले उनके बूढ़े दोस्तों को पता चल गए तो वे भी ख़ुशी ख़ुशी वृद्धाश्रम में जा पहुंचेंगे।<br />
यह कविता चीज़ ही ऐसी है कि समझ में न भी आए तो भी इसका सेंट्रल आयडिया सबको पहले से ही पता रहता है कि इसमें औरत मर्द के रिश्ते का बयान होगा। दुनिया में इसके सिवा और है ही क्या ?<br />
जिसकी समझ में कविता नहीं आती, यह रिश्ता उसकी भी समझ में आता है। <br />
जिसकी समझ में जो आता है, वह उसी पर वाह वाह करता है।<br />
नए अंदाज़ की कविता की जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बहुत आसान है।<br />
एक बार फ़र्रूख़ाबादी स्टाइल में कविता कर लो, फिर चाहे उसे मिटा भी दो लेकिन उसकी याद किसी के दिल से मिटने वाली नहीं है।<br />
जो ऐसी अमिट याद छोड़ सके, वही है बड़ा ब्लॉगर।</div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-76535133763460448782012-04-13T13:29:00.001-07:002012-04-13T13:38:34.846-07:00यौन शिक्षा देता है बड़ा ब्लॉगर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-Bcaid_Xzx0JZzKecsYmN8IXRZ8i-YPk0lSgtHqg2dY_iogg5gZ0H3UYkLBYGkhMIrN0CDQ0DZRlEXAd4m77rPm5-YS1z_7X2c-VFasOiIb3KGEh05BrIQilSNOP4_IXmTINjH3d85BQ/s1600/vandana+gupta+bold+hindi+poetess.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"></a></div><div style="text-align: justify;"><a href="http://charchashalimanch.blogspot.in/2011/02/awagaman.html" target="_blank">आत्मा</a> कहां से आती है कोई नहीं जानता लेकिन जिस मार्ग से मनुष्य शरीर आता है, उसे सब जानते हैं। ज्ञात के सहारे अज्ञात का पता लगाना मनुष्य का स्वभाव है। आत्मा, परमात्मा और परमेश्वर सब कुछ अज्ञात है। अगर हमें कुछ ज्ञात है तो वह मनुष्य शरीर है या फिर वह मार्ग जहां से वह आता है। ‘इश्क़े मजाज़ी‘ का मार्ग यही है और ‘इश्क़े हक़ीक़ी‘ तक भी पहुंचने के लिए ‘इश्क़े मजाज़ी‘ लाज़िम है।<br />
इसी रास्ते की खोज ने आदमी को वैज्ञानिक बना दिया। हज़ारों साल तक मनुष्य ने खोजा तब जाकर उसे पता चला कि मार्ग के ऊपर गर्भाशय है। धीरे धीरे उसने पता लगाया कि शरीर का निर्माण गर्भाशय में होता है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और समाज सबका केन्द्र गर्भाशय ही है। गर्भाशय न हो तो इनमें से कुछ भी न हो। जिसने जिस क्षेत्र में भी उन्नति की है, गर्भ से निकल ही उन्नति की है। जिसने भी समाज को जो कुछ दिया है, गर्भ से निकलकर ही दिया है। गर्भ से निकलने के लिए गर्भ में होना ज़रूरी है और गर्भ में होने के लिए नर नारी का मिलन ज़रूरी है।<br />
नर नारी के मिलन को अलंकार से सजा कर कहा जाय तो वह साहित्य कहलाता है और उसे बिना अलंकार के कहा जाए तो विज्ञान। जब से नर नारी का मिलन है तब से धर्म भी है और धर्म है तो मर्यादा भी है। <br />
धर्म सभी मनुष्यों का एक ही है लेकिन उसकी व्याख्या में भेद है। जितने भेद हुए उतने ही मत बने और हरेक मत को लोगों ने धर्म समझ लिया। साहित्य पर <a href="http://welayat.in/hindi/index.php?option=com_content&view=article&id=315:2012-02-16-07-29-38&catid=21:2011-11-08-21-18-06&Itemid=9" target="_blank">धर्म-मत</a> का भी प्रभाव पड़ा और उनके दर्शनों का भी। नर हो या नारी, वे अपने शरीर को भी ढकते हैं और अपने आपसी रिश्तों को भी। कौन अपने शरीर को कितना ढके ?, हरे मत की मान्यता अलग है लेकिन ढकते सब हैं।<br />
शरीर के रिश्तों को जब साहित्य में बयान किया जाए तो भी ढक कर ही बयान किया जाए। इस पर भी सब सहमत हैं।<br />
ब्लॉगर्स भी जब नर नारी के रिश्तों का बयान करते हैं तो ढक कर ही करते हैं लेकिन कौन कितना ढके ?, यह हरेक की अपनी अपनी मर्ज़ी है।<br />
कोई बुर्क़े को पर्दा मानता है तो कोई हिजाब को और कोई बिकनी पहनकर भी संतुष्ट है कि हां, पर्दा हो गया।<br />
यही हाल ब्लॉगर्स की रचनाओं का भी है।<br />
तीन ब्लॉगर एक रचना को अश्लील बताते हैं तो तीस उसे अश्लीलता से मुक्त पाते हैं। इससे पता चला कि अश्लीलता के निर्धारण का कोई एक पैमाना भी यहां मौजूद नहीं है।<br />
दस ब्लॉगर एक रचना की प्रशंसा कर रहे होते हैं तो एक उसकी भर्त्सना कर देता है।<br />
इंसान की उत्सुकता इसी उठा पटख़ के बीच अपने काम की जानकारी छांट लेती है।<br />
ज्ञान ऐसे ही बढ़ता आया है और ब्लॉगिंग भी ऐसे ही बढ़ेगी।<br />
<br />
इंसान अपनी उत्पत्ति के प्रति सदा से ही उत्सुक है। बाइबिल की पहली किताब का नाम ही ‘उत्पत्ति‘ है। वेदों ने भी उत्पत्ति के विषय को बड़ी गंभीरता से लिया है और क़ुरआन ने भी। जहां उत्पत्ति है वहां विनाश भी है और विनाश के बाद भी उत्पत्ति है। उत्पत्ति और विनाश के इस चक्र को जो जानता है वह ज्ञानी कहलाता है। <br />
ज्ञान के भी बहुत से स्तर हैं। ज़्यादातर इसके बाह्य और स्थूल पक्ष तक ही सीमित रह जाते हैं। जो सूक्ष्म भाव को ग्रहण कर पाता है, वही अध्यात्म और रूहानियत तक पहुंच पाता है।<br />
<br />
इंसान ग़लतियों से भी सीखता है और सीखकर भी ग़लती करता है।<br />
यौन विषय भी एक ऐसा ही विषय है कि इसमें ग़लतियां होने की और पांव फिसलने की संभावना बहुत है यानि कि डगर पनघट की कठिन बहुत है। कठिन होने के बावजूद लोग न सिर्फ़ इस पर चलते हैं बल्कि सरपट दौड़ते हैं। <br />
औरत मर्द के रिश्तों पर ब्लॉगर्स ने बहुत लिखा है। किसी का लिखा तो लोगों ने पढ़ा तक नहीं और किसी का लिखा ऐसा पढ़ा कि लिखने वाले को मिटाना पड़ गया।<br />
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-Bcaid_Xzx0JZzKecsYmN8IXRZ8i-YPk0lSgtHqg2dY_iogg5gZ0H3UYkLBYGkhMIrN0CDQ0DZRlEXAd4m77rPm5-YS1z_7X2c-VFasOiIb3KGEh05BrIQilSNOP4_IXmTINjH3d85BQ/s1600/vandana+gupta+bold+hindi+poetess.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="192" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-Bcaid_Xzx0JZzKecsYmN8IXRZ8i-YPk0lSgtHqg2dY_iogg5gZ0H3UYkLBYGkhMIrN0CDQ0DZRlEXAd4m77rPm5-YS1z_7X2c-VFasOiIb3KGEh05BrIQilSNOP4_IXmTINjH3d85BQ/s320/vandana+gupta+bold+hindi+poetess.jpg" width="320" /></a><br />
<b style="color: blue;">व्यवहारिक प्रशिक्षण</b><br />
पुराने विषय को जब नए अंदाज़ में कहा जाता है तो उसे पाठक अवश्य मिलते हैं। उदाहरण के लिए वंदना गुप्ता जी की कविता <a href="http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/vandana-gupta.html" target="_blank">‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘</a>।</div><div style="text-align: justify;">जहां एक ओर साहित्यकार अपनी रचना में अलंकारों का इतना ढेर लगा देते हैं कि कवि की मंशा समझना ही दुश्वार हो जाता है। वहीं वंदना जी ने अपनी कविता से सारे अलंकार उतार फेंके और उन्होंने अपने भावों को कहने के लिए वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग किया। यह एक अद्भुत और अभिनव प्रयोग था। हिंदी ब्लॉगर्स इसके अभ्यस्त न थे। वे बौखला से गए और कुछ तो बावले और दिवालिए तक हो गए। इनमें से एक हैं जो कि बात ही कविता में करते हैं लेकिन उनके प्रशंसकों को उनकी एक भी कविता याद नहीं है। वह चिढ़ गए और वह कवयित्री को ऊल जलूल कहने लगे। यह विशुद्ध ईर्ष्या भाव था। इसकी कविता मेरी कविता से ज़्यादा मशहूर कैसे ?</div><div style="text-align: justify;">दो एक कवि और भी मोर्चा खोलकर बैठ गए कि इस विषय पर हमारा ही एकाधिकार रहना चाहिए। उन्होंने भी वंदना जी को हड़का लिया। <br />
बहरहाल <a href="http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/bol-hindi-poetry.html" target="_blank">झगड़ा-पंगा, विचार-विमर्श</a> बहुत हुआ और इतना हुआ कि अब वंदना जी की कविता को भुलाना हिंदी ब्लॉगर्स के लिए आसान नहीं है।<br />
वंदना जी अपनी कविता हटा चुकी हैं। अब लोग उस विषय पर ख़ुद भी कविता करेंगे और कुछ तो उस कविता का रीमेक ही बना डालेंगे। इस तरह कुछ समय तक जो भी मनोरंजन होने वाला है, नए ब्लॉगर्स उसे अपने प्रशिक्षण के तौर पर देख सकते हैं।<br />
हमेशा उस विषय पर लिखिए जिसके प्रति पाठकों में उत्सुकता और आकर्षण पाया जाता हो और उसे नए और अनोखे अंदाज़ में बयान कीजिए। आप इसमें जितना ज़्यादा सफल होंगे, उतने ही बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।<br />
यौन शिक्षा को ब्लॉगिंग का विषय बनाया जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बिल्कुल आसान है। तब न कोई गद्य देखेगा और न पद्य। पाठक तो यह देखेंगे कि आखि़र लिखने वाले ने लिखा क्या है ?<br />
पढ़कर मज़ा आ जाए तो बस आप बन गए बड़ा ब्लॉगर।<br />
इस समय हिंदी ब्लॉग जगत का ढर्रा यही है।</div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-32052308058026809212012-04-05T09:42:00.003-07:002012-04-08T08:51:02.628-07:00गीता पर चलिए और बड़ा ब्लॉगर बनिए Gita as a bloggers' guide<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;">प्यारे छात्रों ! आज के लेक्चर में आपके सामने मानव प्रकृति का एक सनातन रहस्य अनावृत होने जा रहा है। इसे विशुद्ध प्रोफ़ेशनल दृष्टि से समझने और आत्मसात करने की आवश्यकता है।<br />
<br />
भारतीय दर्शन 6 हैं जो कि न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग दर्शन, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा दर्शन हैं। उत्तर मीमांसा दर्शन को ही वेदान्त दर्शन कहा जाता है। ये सभी दर्शन क्लिष्ट और गूढ़ हैं। गीता इन सबका सरल और समन्वित रूप है।<br />
गीता को श्री कृष्ण जी का उपदेश कहा जाता है और कहा जाता है कि यह उपदेश उन्होंने अर्जुन को उस समय दिया था जबकि दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए मैदान में आ खड़ी हुई थीं और बिल्कुल ऐन वक्त पर अर्जुन ने युद्ध से इन्कार कर दिया था।<br />
अर्जुन ने युद्ध से इसलिए इन्कार कर दिया था क्योंकि वह अपने प्यारे भाईयों, दोस्तों और रिश्तेदारों पर तीर चलाना नहीं चाहते थे।<br />
वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन अच्छा ही हुआ कि उन्होंने युद्ध से इन्कार कर दिया।</div><div style="text-align: justify;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrePCzec-H-THRRrKLJxJK6RrsCQMVs4UzAGjltFhilXHkUcAwL77YcYfTfOglo2Cj_e_U-04MAsViRdsUrFzlQkCj65L_ivgO7mC-Lq6DNpzfvd6iRaxxJ7d3sU4aTK9TKer7_5-yKA8/s1600/best+hindi+blogs.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgrePCzec-H-THRRrKLJxJK6RrsCQMVs4UzAGjltFhilXHkUcAwL77YcYfTfOglo2Cj_e_U-04MAsViRdsUrFzlQkCj65L_ivgO7mC-Lq6DNpzfvd6iRaxxJ7d3sU4aTK9TKer7_5-yKA8/s1600/best+hindi+blogs.jpeg" /></a></div><br />
अर्जुन के इन्कार का लाभ हमें यह मिला कि लड़ाई तो होकर ख़त्म हो गई लेकिन गीता का संदेश आज तक हमारे पास है। अर्जुन के इन्कार के कारण हमें गीता मिल गई। गीता सुनकर अर्जुन अर्जुन बन गए और गीता पढ़कर एक साहब बैरिस्टर से गांधी जी बन गए।<br />
गीता अगर आज अपने मूल रूप में सुरक्षित होती तो और भी ज़्यादा प्रभावी होती। आज वह जिस रूप में है, अगर उसे भी आदमी तत्वबुद्धि के साथ पढ़ ले तो वह भारतीय दर्शन की आत्मा को पकड़ सकता है। अगर एक ब्लॉगर इस आत्मा को पकड़ ले तो वह निश्चय ही बड़ा ब्लॉगर बन जाएगा।<br />
ध्यान देने की बात यह है कि श्री कृष्ण जी ने जीवन भर बहुत से उपदेश दिए और बड़े बड़े ज्ञानियों और ऋषियों के समूहों को उपदेश दिए लेकिन गीता का संदेश ही सबसे ज़्यादा पॉपुलर हुआ जो कि मात्र एक व्यक्ति को दिया गया था ?<br />
इसका क्या कारण रहा ?<br />
<br />
इसके बाद आप इस बात पर ध्यान दीजिए कि श्री कृष्ण जी ने जितने भी उपदेश दिए, उनमें सबसे ज़्यादा सुंदर गीता का उपदेश ही है। ऐसा लगता है कि उन्होंने भी अपना सबसे श्रेष्ठ उपदेश सोच समझ कर ही युद्ध के अवसर के लिए बचा रखा था।<br />
ऐसा क्यों ?, ज़रा सोचिए !<br />
<br />
श्री कृष्ण जी मानव मन को जानते थे। वह जानते थे कि टकराव इंसान का स्वभाव है। टक्कर खाकर ही आदमी सीखता है। इसलिए जब मानवता को सबसे बड़ी टक्कर लगने वाली थी तो उन्होंने उसे सबसे बड़ी सीख दी। मानव जाति उनकी वह सीख भुला न सकी जबकि वह उनके दूसरे उपदेश याद न रख सकी। जितने भी राजाओं ने बिना लड़े भिड़े राज्य किया, वे सब भुला दिए गए। इतिहास ने केवल उन्हें याद रखा, जिन्होंने युद्ध किया। जिसने जितना बड़ा युद्ध किया, उसे उतना ही ज़्यादा याद रखा गया। वे याद रहे तो उनकी बातें भी याद रहीं।<br />
<br />
इससे हमें यह पता चलता है कि जिस बात को आप टकराव की जगह बताएंगे, वह बात लोगों के चेतन और अवचेतन मन में ऐसे उतर जाएगी कि लोग चाहें तो भी उसे भुला न सकेंगे।<br />
इसलिए टकराव की जगह तलाश कीजिए।<br />
किसी को टकराव के लिए इन्वाईट कर लीजिए।<br />
कोई न आए तो आप ख़ुद ही कहीं चले जाईये।<br />
कहीं भी कोई टकराव न हो रहा हो तो टकराव की सिचुएशन क्रिएट कीजिए।<br />
ग़ैर मिले तो सुब्हानल्लाह और कोई ग़ैर न मिले तो किसी अपने से ही टकरा जाईये। जैसे कि कृष्ण जी की बात मानकर अर्जुन टकरा गए अपनों से ही।<br />
...लेकिन यह टकराव जायज़ मक़सद के लिए होना चाहिए, सत्य के लिए होना चाहिए क्योंकि सत्यमेव जयते।<br />
यह एक विशेष तकनीक है जिसका अभ्यास श्री कृष्ण जी के निर्देशन में किया जाए तो ब्लॉग जगत से निराश हो चला ब्लॉगर भी पल भर में ही ब्लॉग जगत के केन्द्र में आ खड़ा होता है।<br />
<b style="color: blue;"><br />
व्यवहारिक प्रशिक्षण</b><br />
भाई ख़ुशदीप सहगल जी की ताज़ा पोस्ट पर मचे घमासान के मॉडल पर हम इस तकनीक का अध्ययन बख़ूबी कर सकते हैं।<br />
ब्लॉगिंग में जब तक झगड़े होते रहे लोग टिके रहे और जैसे जैसे झगड़े होने कम होते चले गए ब्लॉगर भी कम होते चले गए अर्थात ब्लॉगर्स की संख्या ब्लॉगिंग में होने वाले विवादों के समानुपाती है।<br />
यह एक रहस्य की बात है। बड़ा ब्लॉगर होने का अभ्यास करने वाले तीरंदाज़ के लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है।<br />
पिछले कुछ अर्से से हिंदी ब्लॉगिंग में कुछ ख़ास नहीं हो रहा था यानि कि लोग लिख रहे थे और पढ़ रहे थे और उकता रहे थे। कहीं कोई विवाद नहीं हो रहा था। हम भी दूसरे कामों में लगे हुए थे वर्ना तो किसी को भी उसकी ग़लती पर टोक दीजिए, बस हो गया विवाद !<br />
ब्लॉग जगत की ख़ुशक़िस्मती देखिए कि कल हमारी नज़र भाई ख़ुशदीप सहगल जी की पोस्ट पर पड़ गई। जिसका शीर्षक है -<br />
<a href="http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/foto.html" target="_blank"><b>‘बोल्डनेस छोड़िए हो जाईये कूल ...ख़ुशदीप‘</b></a><br />
इसमें उन्होंने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम (अर्थात अन पर शांति हो) के बारे में चुटकुले भी लिख रखे हैं और उनका नंगा चित्र भी लगा रखा था।<br />
<br />
इस पर टोकते ही दो काम होने लाज़िमी थे।<br />
1- पहला यह कि तुरंत ही एक विवाद शुरू हो जाएगा और इस तरह उपदेश के लिए एक अच्छा अवसर उपस्थित हो जाएगा।<br />
2- दूसरा यह कि हमें सराहने वाला भाई ख़ुशदीप जैसा ब्लॉगर हम सदा के लिए खो देंगे। <br />
याद रखिए कि आप जिसे भी सार्वजनिक रूप से उसकी ग़लती पर टोकते हैं, आप उसे सदा के लिए खो देते हैं। उसके मन में आपके प्रति एक प्रकार की वितृष्णा जन्म लेती है। वह आपके खि़लाफ़ तो कुछ कर नहीं पाता लेकिन मन ही मन आपसे चिढ़ने लगता है और कभी कभी यह चिढ़ उसके मन से जीवन भर नहीं निकल पाती।<br />
<br />
अगर हम दूसरी बात का ख़याल रखें तो पहली बात कभी हासिल न हो और पहली बात हासिल न करें तो ब्लॉगिंग में हमारी मौजूदगी व्यर्थ है। रिश्ते नाते और अपनाईयत के ख़याल जब आपको आपके कर्तव्य से रोकने लगें तो गीता काम आती है। गीता हमारे भी काम आई और आपके भी काम आएगी।<br />
पिछले दिनों भाई ख़ुशदीप जी ने या हमने जो भी लिखा है, उनमें सबसे ज़्यादा यही पोस्ट पढ़ी गई है जिस पर कि ब्लॉगर्स को टकराव होता हुआ दिखा।<br />
टकराव सचमुच चाहे न हो लेकिन ब्लॉगर्स को दिखना ज़रूर चाहिए कि हां टकराव हो रहा है। जब तक टकराव चल रहा है तब तक ब्लॉगिंग भी चल रही है। <br />
हिंदी ब्लॉगिंग को ज़िंदा रखना है तो थोड़े थोड़े समय पर टकराव का आयोजन करते रहना पड़ेगा।<br />
पूर्व काल में हमने यह रहस्य हरीश सिंह जी को बताया था और यह रहस्य जानकर वह तुरंत ही बड़ा ब्लॉगर बन गए थे। उनका ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत के बड़े ब्लॉग्स में गिना जाता है। आज भी वह हमें फ़ोन करते हैं तो गुरू जी कहकर ही संबोधित करते हैं।<br />
<br />
जल्दी ही आप भी उत्कृष्ट कोटि के विवादों का सृजन कर सकेंगे और आप उनके माध्यम से सत्य का उपदेश देने की कला में भी पारंगत हो जाएंगे। इसका लाभ यह होगा कि आप रिश्ते नातों की मोह माया के बीच निर्लिप्त भाव से अपने कर्तव्य का निर्वाह करना सीख लेंगे। आभासी दुनिया का यह अभ्यास वास्तविक जगत में भी आपके काम आएगा।<br />
<span id="goog_741206205"></span><span id="goog_741206206"></span><br />
युद्ध की भांति ही <a href="http://albelakhari.blogspot.in/2012/04/blog-post_5028.html" target="_blank">सेक्स </a>भी मनुष्य को आदिकाल से ही आकर्षित करता रहा है। इसके सटीक इस्तेमाल से भी आप एक बड़ा ब्लॉगर बन सकते हैं। आगामी किसी क्लास में इस विषय पर भी <a href="http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/vandana-gupta.html" target="_blank">लेक्चर</a> अवश्य दिया जाएगा।<br />
तब तक इंतेज़ार कीजिए और आज बताए गए सूत्र का अभ्यास कीजिए।<br />
<div style="color: blue; text-align: center;"><a href="http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/manu-means-adam.html" target="_blank"><b>करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।</b></a></div></div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-8276312136748048222012-04-01T23:19:00.000-07:002012-04-01T23:19:23.800-07:00बड़ा ब्लॉगर वह है जो दुनिया जहान का विश्लेषण करता है Real Blogger<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_0mZV52eZuGm3AuMqTyWbn1sxNIN8TwQt4SlAE3_mSvzLSIn7O0hdOkyhp25vVPCHFcVQKuatjUbZ4qKq-BnXK56kTWObU3-NU6z-Rsck1bousAyYuACgoNsroRpAgnd2k9v6DB4Y1h4/s1600/hindi+bhasha.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" dea="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_0mZV52eZuGm3AuMqTyWbn1sxNIN8TwQt4SlAE3_mSvzLSIn7O0hdOkyhp25vVPCHFcVQKuatjUbZ4qKq-BnXK56kTWObU3-NU6z-Rsck1bousAyYuACgoNsroRpAgnd2k9v6DB4Y1h4/s1600/hindi+bhasha.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;"></div><div style="text-align: justify;">आदमी की सहज वृत्ति है कि वह सदा दूसरों का विश्लेषण करता है।<br />
जब वह ब्लॉगिंग में आता है तो अपनी यह आदत भी साथ लेकर आता है।<br />
छोटे मोटे ब्लॉगर एक दो ब्लॉगर का विश्लेषण करके ही रह जाते हैं लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारे ब्लॉग जगत का विश्लेषण करने करने का बीड़ा ख़ुद से ही उठा लेता है। जिस काम को दूसरों ने सिर दर्द समझकर छोड़ दिया होता है, उसी काम को यह मज़े से करता है। बड़ा कहलाने का मज़ा ही कुछ ऐसा है। इसी के साथ वह इसमें राजनीतिक पैंतरेबाज़ी भी मज़ा लेता है। जिससे ख़ुश होता है, उसका नाम ऊपर रखता है और जिससे नाराज़ होता है उसका नंबर 100वां रखने के बाद भी अलेक्सा रैंक नदारद कर देता है। गुटबाज़ी को यह न तो भूलता है और न भूलने देता है।<br />
इसे भी मज़ा आता है और इसकी हालत देखकर इसके दुश्मनों को भी मज़ा आता है। दुश्मन देखते हैं कि बेचारा बच्चों की गणित की कॉपी चेक न करके ब्लॉगर्स की अलेक्सा रैंकिंग चेक कर रहा है। बीवी ने नई साड़ी पहनकर उतार भी दी होती है लेकिन यह बेड पर भी लैपटॉप पटपटा रहा होता है। बीवी बच्चों की नज़रों में गिर कर ब्लॉग जगत में ऊंचा उठने की जुगत में बड़ा ब्लॉगर पूरे साल यही करता है और फिर साल दर साल वह यही करता रहता है। वह सबका विश्लेषण ख़ुद करता है और अपने काम के लिए पुरस्कार भी ख़ुद ही लेता है और मज़ेदार बात है कि पुरस्कार देने वाला भी वह ख़ुद ही होता है। <br />
देखते सब हैं, जानते भी सब हैं लेकिन बोले कौन ?<br />
जो भी बोलेगा, अगली बार उसके ब्लॉग का नाम ही विश्लेषण में न चमकेगा।<br />
हानि लाभ का गुणा भाग करने में पुरूष ब्लॉगर बहुत माहिर हैं और महिलाएं तो इस काम में अपना कोई सानी नहीं रखतीं। इसका लाभ भी मिलता है। बड़े ब्लॉगर की सरपरस्ती में ब्लॉगिंग की ट्रेनिंग लेने वाला कोई ब्लॉगर जब ईनाम तक़सीम करता है तो उसके साथ उन्हें भी ईनाम मिलता है।<br />
कहा भी गया है कि ‘संघे शक्ति कलयुगे‘।</div><div style="text-align: justify;">वास्तव में बड़ा ब्लॉगर वह जो है कि हानि लाभ और मान अपमान की परवाह न करके सत्य लिखता है। केवल यही ब्लॉगर होता है कि यह उसका भी विश्लेषण कर डालता है जो कि हज़ारों ब्लॉग्स का विश्लेषण करने का आदी हो चुका है। <br />
एकलव्य कितना ही बड़ा धनुर्धर हो लेकिन उसके पक्ष में खड़ा होने की परंपरा यहां है ही नहीं। राजपाट हार जाएं तो ख़ुद पांडवों के साथ भी कोई खड़ा नहीं होता बल्कि वे ख़ुद भी अपनी पत्नी द्रौपदी के पक्ष में खड़े नहीं होते। <br />
खड़े होने से पहले लोग यह देखते हैं कि इसके साथ खड़े होकर हमें क्या ईनाम मिलेगा ?<br />
ईनाम मिलता हो तो विभीषण भी राम के पक्ष मे आ जाता है और घर से तिरस्कार मिला हो तो दुश्मन की तरफ़ से भाईयों पर तीर चलाने के लिए कर्ण भी खड़ा हो जाएगा और एकलव्य भी वहीं आ जाएगा।<br />
ईनाम बहुत बड़ा मोटिवेशन फ़ैक्टर है। ईनाम के लिए इंसान अपना ईमान और अपना ज़मीर सब कुछ भुला देता है।</div><div style="text-align: justify;">बड़ा ब्लॉगर वह है जिसकी ब्लॉगिंग का केंद्र ‘सत्य‘ होता है। ईमान और ज़मीर इसी के पास होता है। इसकी ब्लॉगिंग में यही सब भरा होता है।<br />
आप ब्लॉग पढ़कर सहज ही जान सकते हैं कि बड़ा ब्लॉगर कौन है और बड़ा ब्लॉगर कैसे बना जाता है ?</div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-32178254878121860322011-09-22T10:44:00.000-07:002011-09-22T10:44:55.649-07:00क्या बड़ा ब्लॉगर टंकी पर ज़रूर चढता है ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: justify;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCgcn2GIWieQggkUl2P6q2FFywK8nMdEAS6mqD-dFUahX9O2SqkTzf3ZTJoHLsrQM3BARMREO1CaMcw2r55x67FMbRBpDgjuHbJF6u7XBepfX7NFBTb9IKzbrY7DTnYqMnYrj42_dxqms/s1600/tanki+par+hindi+blgger.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCgcn2GIWieQggkUl2P6q2FFywK8nMdEAS6mqD-dFUahX9O2SqkTzf3ZTJoHLsrQM3BARMREO1CaMcw2r55x67FMbRBpDgjuHbJF6u7XBepfX7NFBTb9IKzbrY7DTnYqMnYrj42_dxqms/s1600/tanki+par+hindi+blgger.jpeg" /></a></div><div style="text-align: justify;">ऐसी मान्यता क्यों बन गई है कि बड़ा ब्लॉगर वही कहला सकता है जो कि टंकी पर चढ जाए और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाए-'ब्लॉग वालो, तुमसे मेरी ख़ुशी देखी नहीं जाती, तुम मुझसे जलते हो, मेरी टिप्पणियों से जलते हो, लो मैं चला/चली।' </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div style="text-align: justify;">यह सीन है तो फ़िल्म शोले का लेकिन दोहराया जाता है हिंदी ब्लॉग जगत में भी और यह दोहराया भी शायद इसीलिए जाता है कि यह सीन पसंद बहुत आता है चाहे शोले में किया जाए या शोले से बाहर।<br />
इस सीन को लिखा तो मुसलमानों ने है लेकिन मुसलमानों से ज़्यादा इसकी डिमांड उनमें है जो कि पैदा होते ही मुसलमानों को एक समस्या के रूप में देखना शुरू कर देते हैं जबकि वास्तव में वे ख़ुद ही नई नई समस्याएं खड़ी करते रहते हैं या खड़ी हुई समस्याओं के झाड में ख़ुद ही जाकर अपने सींग फंसा लेते हैं और जब उनके सींग फंस जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि उनके सींग लोहे के तो थे ही नहीं जैसा कि दुनिया को बता रखा था।<br />
अब कैसे तो कह दे और कैसे मान ले कि मैं हार गया ?<br />
अब वह कहता है कि ये महिला ब्लागर हैं न, पुरूष समझकर मुझे अपमानित कर रही हैं। ये मुझे ज़ालिम हाकिम के रूप में दिखाकर मुझे बदनाम करना चाहती हैं।<br />
वह अपनी निजी खुन्नस को बड़ी चालाकी से दो वर्गों के टकराव में बदल देता है और तुरंत ही कुछ पुरूष ब्लॉगर महिला ब्लॉगर्स के खि लाफ लामबंद भी हो जाते हैं लेकिन यह क्या यहां तो कुछ महिला ब्लॉगर्स भी समर्थन में आ जाती हैं ?</div><div style="text-align: justify;">यह क्या खिचड़ी है भाई ?<br />
दोनों जेंडर के लोग कैसे मनाने आ सकते हैं ?<br />
<br />
डिज़ायनर ब्लॉगिंग इसी का तो नाम है भाई साहब .<br />
दोनों जेंडर के लोग आते हैं और मनाते हैं।<br />
इन दोनों जेंडर के लोगों को उसने कई स्तर पर जोड रखा होता है।<br />
कुछ से तो याराना होता है विचारधारा का।<br />
तुम भी आग उगलते हो तो देखो हम भी मौक ा देखकर आग ही उगलते हैं।<br />
तुम्हारे सीने में आग है तो हमारे सीने में भी दूध नहीं लावा ही है।<br />
जो तुम, वो हम।<br />
सो हमारे ब्लॉग पर आते रहा करो।<br />
लेकिन कुछ लोग विपरीत विचारधारा के भी होते हैं इन मनाने वालों में।<br />
ये उसके बाप होते हैं।<br />
यानि कि बाप होते नहीं हैं लेकिन वह बना लेता है। बड़ा ब्लॉगर वह होता है जिसके बाप एक से ज़्यादा हों।<br />
जब बाप कई होंगे तो मांएं भी कई चाहिएं और जब मां-बाप बहुत से हो गए तो भाई-बहन की तो लाइन लग ही जाएगी।<br />
यह है शानदार ब्लॉगिंग के लिए एक लाजवाब डिज़ायन।<br />
इसके बाद सबसे ज़्यादा आग बरसाऊ लीडर की जम कर तारीफ करो और उसके तुरंत बाद किसी ऐसे झाड में जाकर टक्कर मार दो जिसमें आग लगवानी हो।<br />
समर्थक तुरंत आ जाएंगे वहां आग लगाने और बेचारा झाड यही सोचता रहेगा कि इससे तो निपट लेता लेकिन इस पूरी फ़ौज से कहां तक लडूं ?<br />
इधर झाड परेशान खड़ा है और उधर हाईलैंड पर बनी टंकी पर पुरूष ब्लॉगर चढ़ा खड़ा है कि बस अब बहुत हो गया, हमें नहीं लिखना ब्लॉग।</div><div style="text-align: justify;">उड़न बिस्तरी जी ने कहा कि 'अच्छा ठीक है बाबा, मत लिखो ब्लॉग, जैसा मन चाहे वैसा करो।'<br />
यह क्या कह दिया ?<br />
यह डायलॉग तो शोले में है ही नहीं, इसने कैसे बोल दिया ?<br />
ब्लॉग जगत के भाई लोगों ने हुल्लड़ पेल दिया।<br />
एक साहब बोले कि आप तो चुप रहते हैं ऐसे मामलों में, आप बोले ही क्यों ?<br />
अब बेचारे उड़न बिस्तरी जी क्या बताएं कि भाई हम पक चुके हैं ये सीन देखकर, थोड़ा नयापन लाने के लिए बोले थे। अब यह कहना अच्छा थोड़े ही लगता कि यह सब नौटंकी चल रही है।<br />
लेकिन उन्हें भी सोचना चाहिए कि कोई नौटंकी दिखा रहा है या कुछ और लेकिन दिखा तो फ़्री में रहा है न। आप उकता रहे हैं तो कम से कम उन्हें देखने दीजिए जिन्हें मज़ा आ रहा है।</div><div style="text-align: justify;"> मनाने वाले लोग जितने ज्य़ादा होते हैं, वह उतना ही बड़ा हिंदी ब्लॉगर समझा जाता है। अपना भाव पता करने के लिए ज रूरी है कि बीच में कम से कम एकाध बार टंकी आरोहण ज रूर किया जाए।<br />
लेकिन जो सचमुच बड़ा ब्लॉगर होता है वह गंभीर होता है। हिंदी ब्लॉगिंग में जैसे जैसे गंभीरता और पुखतगी आती जाएगी, इस तरह की नौटंकियां बंद होती चली जाएंगी।<br />
बहरहाल अब भी अच्छा ही दौर चल रहा है। ज्ञान नहीं मिल रहा है न सही, मज़ा तो आ रहा है न ?</div><div style="text-align: justify;">मज़े के लिए तो आदमी जाने कहां कहां जा चढ़ता है और मज़े की उम्मीद हो तो चढ़ा भी लेता है।<br />
हिमालय पर भी आदमी चढ़ा तो मज़े के लिए चढ़ा , टंकी पर भी चढ़ता है तो आदमी मज़े के लिए ही चढ़ता है।<br />
लेकिन ये सब जगहें चढ ने के लिए ठीक नहीं हैं। यहां चढ़ने से मज़ा तो कम आता है और आदमी का तमाशा ज़्यादा बन जाता है।<br />
एक और जगह है जहां चढ कर मज़ा भी ज़्यादा आता है और पता भी किसी को नहीं चलता।<br />
लेकिन यह उरूज (बुलंदी) हरेक को नसीब नहीं होता। इसे वही पाता है जो वास्तव में बड़ा ब्लॉगर होता है।</div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-85498759420058127602011-09-07T10:52:00.000-07:002011-09-07T10:52:36.358-07:00बड़ा ब्लॉगर वह है जो कमाता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><table cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="float: right; margin-left: 1em; text-align: right;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiY-ULxxPmnevgWgOFxEFYCZYXjyVHEenxL1FRFLVUD6JQ3wmQ28s3kq6ZXuFQHD6ODbtozJKQ-L2W07yn6m7fzI0Au8sBStqYhsHu78Ag5uC1ePWHh31A0tSVrD_thDH2mPPhdA5zRQds/s1600/pustak+vimochan+1.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; margin-bottom: 1em; margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiY-ULxxPmnevgWgOFxEFYCZYXjyVHEenxL1FRFLVUD6JQ3wmQ28s3kq6ZXuFQHD6ODbtozJKQ-L2W07yn6m7fzI0Au8sBStqYhsHu78Ag5uC1ePWHh31A0tSVrD_thDH2mPPhdA5zRQds/s1600/pustak+vimochan+1.jpeg" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">चित्र प्रतीकात्मक है , गूगल से साभार </td></tr>
</tbody></table><div style="text-align: right;"></div><div style="text-align: justify;"><b style="color: blue;">बड़ा ब्लॉगर कमाता ज़रूर है। यह बड़े ब्लॉगर का मुख्य लक्षण है। </b><br />
कोई नाम कमाता है, कोई इज़्ज़त कमाता है और कोई पैसा कमाता है। <br />
कोई ईमानदारी से कमाता है और धोखाधड़ी से कमाता है।<br />
कोई एक पम्फ़लैट तक नहीं लिख पाता लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारा इतिहास लिख देता है। कोई अपनी किताब लिखकर बिना विमोचन के ही बांट कर धन्य हो जाता है लेकिन बड़ा ब्लॉगर अपनी एक किताब का दो दो बार विमोचन करा लेता है और वह भी दो दो राजधानियों में।<br />
बड़े ब्लॉगर की बड़ी बात होती है। <br />
‘एक से भले दो‘ की मिसाल सामने रखते हुए, वह अपने ही जैसा एक और पकड़ लेता है। बंगाल के तो जादूगर मशहूर हैं और दिल्ली के ठग भी एक ज़माने में काफ़ी मशहूर थे लेकिन बिहार के चोर ज़्यादा मशहूर नहीं हैं।<br />
बहरहाल बंगाल के जादूगर भी बग़लें झांकने लगेंगे अगर दिल्ली का ठग और बिहार का चोर मिलकर काम करने पर आ जाएं तो...<br />
और अगर ये ब्लॉगिंग में आ जायें तो बिना किताब छापे ही बेचकर दिखा दें और जो बड़े बड़े तीस मार खां बने फिरते हैं हिंदी ब्लॉगर, वे पैसे देंगे पहले और किताब उन्हें मिलेगी 4 माह बाद और वह भी 2 बार विमोचन होने के बाद।<br />
जिस किताब का 2 बार विमोचन हो चुका हो, उसकी आबरू तो पहले ही तार तार कर दी गई है, अब उसमें क्या बचा है ?<br />
कोई शरीफ़ आदमी तो उसे अपनी किताबों के साथ रखेगा नहीं और न ही कोई शरीफ़ किताब उसके पास रहने के लिए तैयार होगी।<br />
ज़्यादातर किताबें बिना विमोचन की होती हैं।<br />
उनका विमोचन बस पाठक ही करता है।</div><div style="text-align: justify;">चलिए बहुत हुआ तो एक बार उसका आवरण उतारने का हक़ लेखक का भी मान लिया हमने।<br />
बार बार उसका आवरण उतारना क्या उसका चीर हरण नहीं माना जाएगा ?<br />
दुख की बात है कि आदमी अपनी इज़्ज़त बढ़ाने के लिए किताब की इज़्ज़त से खेल रहा है और बार बार स्टेज सजा कर सरे आम उसे नग्न कर रहा है।<br />
अगर इन दोनों अवि-रवि के कपड़े कोई दो दो बार उतारे तो इन्हें कैसा लगेगा ?<br />
पर इन्हें कोई इमोशंस की फ़ीलिंग थोड़े ही है,<br />
ख़ैर हमारा फ़र्ज़ था इन्हें थोड़ी सी ख़ुराक़ देना सो दे दी।<br />
आप लोग अपना वर्तमान देखिए और अपना भविष्य संवारिए।<br />
आप लोग किसी नई पुरानी क्रांति के चक्कर में भी मत पड़िए।<br />
सब फ़ालतू के धंधे हैं।<br />
इतिहास लोगों को अपने ख़ानदान का पता नहीं है कि कहां से आए थे और कब आए थे ?<br />
ऐसे में भोजपुरी ब्लॉगिंग का इतिहास कौन पढ़ेगा ?<br />
नहीं ,<br />
ऐसा नहीं है।<br />
ब्लॉग जगत पढ़ेगा उनकी दोनों किताबें।<br />
उनकी किताब क्या पढ़ेगा , उनकी किताब में अपना तज़्करा पढ़ेगा और अपने बीवी बच्चों को भी पढ़वाएगा कि देखो आप नहीं जानते हम कित्ती बड़ी तोप बन गए हैंगे, देखो किताब में हमारा फोटो भी है और हमारा नाम भी।<br />
डेल कारनेगी ने कहा है कि ‘आदमी को सबसे प्यारी आवाज़ उसके नाम की आवाज़ लगती है‘<br />
ठग इस बात को जानते हैं और वे लोगों की इसी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर अपनी रददी को किताब के भाव बेच भागते हैं।<br />
आदमी सब कुछ जानते हुए भी उसे लेने पर मजबूर है।<br />
हक़ीक़त तो यह है कि बड़ा ब्लॉगर वास्तव में वह है जो इनकी ठगी का शिकार न हो और इनके ही कान उमेठ दे।</div><div style="text-align: justify;"><span style="font-size: large;"><a href="http://navbharattimes-indiatimes.blogspot.com/"><b>देखिये कमाने के कुछ जायज़ तरीके (वीडियो)</b></a></span></div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-72304524960103921962011-08-15T06:16:00.000-07:002011-08-15T17:15:30.695-07:00चिंता करने से पहले उचित जगह का चुनाव करता है बड़ा ब्लॉगर Right Place<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNQBxruiRQd4cCec626sCegp8qnX4_GrcwQZ2Wdjc7OUPsOmbIGxc-MWUaOvfCjx-z6urEJ2udP_K5zBxcze4FOPENkdH1rH0SIm5mPmyJE7Imwsdk-VuMpRfCWyVaXCAG0QqyGE0qJ2U/s1600/big.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="149" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNQBxruiRQd4cCec626sCegp8qnX4_GrcwQZ2Wdjc7OUPsOmbIGxc-MWUaOvfCjx-z6urEJ2udP_K5zBxcze4FOPENkdH1rH0SIm5mPmyJE7Imwsdk-VuMpRfCWyVaXCAG0QqyGE0qJ2U/s200/big.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;"><a href="http://tobeabigblogger.blogspot.com/2011/03/spicy-class.html">चिंता करना बड़े ब्लॉगर का मुख्य लक्षण होता है।</a> इस विषय में पिछली क्लास में आपको बताया जा चुका है। आज आपको यह बताया जाएगा कि किस शैली का हिंदी ब्लॉगर किस जगह पर ज़्यादा चिंता करता है ?<br />
पिछले कुछ समय से <a href="http://mankiduniya.blogspot.com/2011/08/frogs-online.html">हिंदी ब्लॉगिंग में मेंढक शैली</a> का विकास बड़ी तेज़ी से हुआ है और इनमें भी कुछ ब्लॉगर बड़े माने जाते हैं। उदार मानवीय दृष्टिकोण से रिक्त होने के बावजूद चिंता करने का गुण इस शैली के बड़े ब्लॉगर्स में भी समान रूप से पाया जाता है। अंतर केवल यह है कि मनुष्य के सहज स्वभाव से आभूषित हिंदी ब्लॉगर तो किसी भी समय और किसी भी जगह चिंता कर सकता है लेकिन मेंढक शैली का बड़ा ब्लॉगर सदैव किसी ब़ड़ी और आलीशान जगह पर ही चिंता किया करता है।<br />
मिसाल के तौर पर उसे अरण्डी के घटते हुए पौधों की चिंता करनी है या लुप्त होते हुए गिद्धों के बारे में चिंता करनी है तो ऐसा नहीं है कि वह एकाएक ही चिंतित हो उठे।<br />
नहीं, वह मनुष्यों की तरह ऐसा नहीं करेगा।<br />
पहले वह अपनी आलीशान कार से किसी आलीशान से पार्क, क्लब या हॉल-मॉल में जाएगा और फिर वहां की सबसे आलीशान जगह खड़े होकर सोचेगा कि इस बिल्डिंग को बनाने के लिए अरण्डी के कुल कितने पौधे काट दिए गए होंगे।<br />
इस तरह से वह सच्चाई को प्रत्यक्ष तौर पर सबके सामने ले आता है।<br />
इस तरह एक तरफ़ तो ब्लॉग जगत के सामने उसके चिंतन की गहराई आ जाती है और दूसरी तरफ़ उसके स्टेटस की ऊंचाई और उसकी जेब की मोटाई भी दिखाई देती है। <br />
बड़ा ब्लॉगर वह होता है जो एक पंथ से कई काज एक साथ करता है।<br />
यह बात भी पिछली क्लास में आपको बताई जा चुकी है।<br />
इससे एक फ़ायदा यह भी होता है कि शान टपकाऊ सोच के अन्य ब्लॉगर्स भी वहां आ जुड़ते हैं और इतनी टिप्पणियाँ देते हैं कि बैठे बिठाए स्नेह और प्यार का एक अच्छा सा माहौल बन जाता है। <br />
यह स्नेह और प्यार मालदारों का , मालदारों के द्वारा और केवल मालदारों के लिए ही होता है। <br />
बड़ा ब्लॉगर अपने बच्चों के शादी ब्याह के लिए हैसियतदार मेहमानों का जुगाड़ भी यहीं से कर लेता है। किराये के मेहमानों का चलन अभी हमारे मुल्क में आम नहीं हुआ है। पहले तो शादी ब्याह में खाना घराती ही अपने हाथ से खिलाया करते थे लेकिन अब यह सब व्यवस्था होटल वाले के ज़िम्मे हो चुकी है लेकिन मेहमानों का इंतेज़ाम अभी तक ख़ुद ही करना पड़ता है।<br />
हो सकता है कि आने वाले समय में यह ज़िम्मेदारी भी होटल वाले पर ही डाल दी जाए तब उसकी तरफ से ऑर्डर और पेशगी मिलते ही कोई भी बड़ा ब्लॉगर आसानी से यह काम कर सकता है। लोगों के निजी समारोह में रौनक़ बढ़ाने का काम भी मेंढक शैली के ब्लॉगर्स से लिया जा सकता है। एक प्रकाशक के समारोह में इसका सफल परीक्षण किया ही जा चुका है।<br />
ब्लॉगर मीट के नाम पर सबको जमा कर लिया, दूल्हा दुल्हन वालों की शोभा भी बढ़ जाएगी और आपस का मिलना मिलाना और खाना पीना भी हो जाएगा। ब्लॉगर मीट में अभी तक केवल खाना और खाने के बाद पीना ही हुआ है। खाना और पीना यहां भी हो जाएगा। जो कैश मिलेगा , उसे बड़ा ब्लॉगर बांट भी सकता है और पूरा का पूरा अपनी जेब में भी रख सकता है और तब हिंदी ब्लॉगिंग एक दूध देने वाली गाय बन जाएगी। जब ब्लॉगर्स ज्वलंत मुददों पर समझ में न आने वाले स्टाइल में बात करते दिखेंगे तो पूरे दार्शनिक से दिखेंगे, जिससे कुछ का स्पेशल पेमेंट भी वसूल किया जा सकता है।<br />
मेंढक शैली के बड़े ब्लॉगर की सोच बहुत गहरी होती है। वह सदा कल्याण की बात ही सोचता है, केवल अपने और अपनों के कल्याण की। <br />
लोगों को चाहिए कि वे उस पर शक न किया करें और जिनसे वह अलग रहने के लिए कहे बिना किसी सवाल के उनसे अलग हो जाया करें।<br />
पूरी पॉलिसी हरेक को बता दी जाएगी तो उसकी सीक्रेसी ख़त्म हो जाएगी।<br />
ब्लॉगिंग के उत्साह से भरा हुआ ब्लॉगर तो उनके इशारे से ही सारी बात समझ लेता है और फिर अपनी टिप्पणी में समझाने की कोशिश भी करता है मगर इशारे में ही। दूसरों की समझ में न भी आए तब भी उन्हें मान लेना चाहिए कि बड़ा ब्लॉगर है तो बात भी कुछ बड़ी ही होगी। इससे अपने ब्लॉग पर टिप्पणी भी मिलती रहती है और ब्लॉगर्स मीट में खाने पीने का मौक़ा भी। ज़रा सी भी किंतु परंतु की तो वह समझेगा कि आप उसके कुएं के नहीं हैं।<br />
बहरहाल बात यह हो रही थी कि कितनी ही मामूली चीज़ की चिंता क्यों न की जाए लेकिन जगह आलीशान होनी चाहिए और उसका फ़ोटो भी स्टाइल में ही होना चाहिए। मेंढक शैली का बड़ा ब्लॉगर इन बातों का ख़ास ख़याल रखता है।</div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-65852207459760574132011-06-14T04:44:00.000-07:002011-06-14T04:45:13.186-07:00बड़ा ब्लॉगर ब्लॉगवन में शेर होता है तो सच की दुनिया में हाथी'झूठ के नाख़ून अभी इतने लंबे नहीं हुए कि वह सच का चेहरा नोच सके।'<br />
पहले तो आप यह डायलॉग पढ़िए और बताइये कि यह डायलॉग आपको कैसा लगा ?<br />
यह किसी फिल्म का डायलॉग नहीं है । इसे हमने अभी अभी लिखा है । <br />
अब आपकी आज की क्लास शुरू करते हैं ।<br />
बड़ा ब्लॉगर सच के लिए लड़ता है और वह झूठ के दावेदारों को ढेर कर देता है। बड़े बड़े मुंह की खाकर , मुँह छिपाकर और दुम दबाकर भाग लेते हैं । ये सभी बीच चौराहे पर नंगे हो चुके हैं । इनकी नाक कट चुकी है । अपनी इज़्ज़त गंवाने वाले ये ब्लॉगर दिल में ख़ार खाए बैठे रहते हैं । ऊपरी दिल से ये पोस्ट पर आते भी हैं और सराहते भी हैं लेकिन इनके अहंकार का ज़ख़्मी साँप अंदर ही अंदर फुंकारता रहता है । बड़ा ब्लॉगर भी इनकी टिप्पणियों के बदले में आभार प्रकट करता रहता है लेकिन उसे पता है कि जो शत्रु डर कर, हार कर या असहाय हो कर संधि करता है वह कुछ समय बाद शक्ति अर्जित करके पलट कर हमला ज़रूर करता है ।<br />
वह उस हमले को ठीक उसी दिन जानता है जिस दिन शत्रु उसके सामने संधि का प्रस्ताव रखता है ।<br />
बड़ा ब्लॉगर मनु स्मृति , चाणक्य नीति , विदुर नीति, रामायण, महाभारत , भृतहरि शतकं , पंचतंत्र , हितोपदेश और गीता सब कुछ पढ़े हुए होता है । इन सभी में शत्रु का मनोविज्ञान और उसकी चालबाज़ियों का पूर्ण विवरण मौजूद है । कोई भी शत्रु इनमें वर्णित चालबाज़ियों से हटकर कोई नई चालबाज़ी हरगिज़ नहीं कर सकता। सभी संभावित चालों को बड़ा ब्लॉगर जानता है और अपने दुश्मनों को भी वह पहचानता है । शिखंडी को भी वह चिन्हित कर लेता है।<br />
वह जानता है कि इंजीनियर अब उसके लिए लाक्षागृह नहीं बनाएगा । कोई भी बूढ़ा दुश्मन उस पर सीधे हमला नहीं करेगा और दूर बैठे दो चार अधेड़ नास्तिक भी कुछ करने में समर्थ नहीं हैं ।<br />
बस वे अपनी फ़र्ज़ी आई डी से कुछ कमेंट करके यही जता सकते हैं कि आप जिस शहर में रहते हैं वह बुलंद है और आपके कंधों पर तीन शेर ग़ुर्रा रहे हैं ।<br />
दूर से वे मात्र इतना ही जान पाते हैं और समझते हैं कि इसे तो हम नियमावली दिखा कर ही दबा लेंगे लेकिन अगर वे इंजीनियर से संपर्क करें तो उन्हें पता चल जाएगा कि इस ऊँचे शहर का MLA कौन है और कैसा है ?<br />
कोई शहर ऐसा नहीं है जहाँ उसके आदमी न हों । जिसने उसे न देखा हो वह अमिताभ बच्चन की सरकार देख ले या हॉलीवुड की गॉड फ़ादर।<br />
मालिक का नाम बड़े ब्लॉगर को हरेक से आदर दिलाता है , पुलिस से भी और डॉन से भी । हरेक उससे पूछता है कि कोई काम हो तो बताओ ।<br />
बड़ा ब्लॉगर उन्हें क्या काम बताए ?<br />
कोई झगड़ा रीयल वर्ल्ड में जब है ही नहीं तो उन्हें आख़िर क्या काम बताया जा सकता है ? <br />
बड़ा ब्लॉगर ब्लॉगवन में शेर होता है तो सच की दुनिया में हाथी।<br />
हाथी मेरे साथी ।<br />
वे सभी फ़िल्में अच्छी हैं जो कुछ न कुछ अच्छा दिखाती हैं और अंत में ज़ालिम की ज़िल्लत भरी मौत पर ही ये फ़िल्में ख़त्म होती हैं ।DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-4696232756462996032011-06-12T05:46:00.001-07:002011-06-12T05:46:39.224-07:00डर को जीत कर ही लिखता है 'बड़ा ब्लॉगर''How to stop worring and start living ?' में डेल कारनेगी जी ने चिँता और तनाव से मुक्ति पाने के बहुत से तरीक़े बताए हैं । उनमें से एक तरीक़ा यह है कि आदमी जो भी कारोबार , नौकरी या आंदोलन कर रहा है । उसमें बुरे से भी बुरा जो कुछ संभव हो , अपने लिए उसकी कल्पना करे और अपने मन को उस नुक़्सान को सहने के लिए तैयार कर ले । यह आसान नहीं है लेकिन जैसे ही आदमी यह अभ्यास करता है वैसे ही वह डर से आगे निकल कर वहाँ पहुँच जाता है जहाँ जीत है । <br />
ब्लॉगिंग करने वालों का जीवन पहले से ही कई तरह के तनाव से भरा होता है । उससे मुक्ति पाने के लिए वे ब्लॉगिंग शुरू करते हैं लेकिन यहाँ सुख के साथ कम या ज्यादा कुछ न कुछ दुख और चिंता उन पर और सवार हो जाती है । नज़रिए का अंतर भी यहाँ आम बात है और बदतमीज़ी भी । <br />
'कौन बनेगा सर्वेसर्वा ?' की कोशिश में यहाँ गुट भी बने हुए हैं और गुट बनते ही गुटबाज़ी के लिए हैं । गुटबाज़ी से टकराव और टकराव से केवल तनाव पैदा होता है । जो बदमाश है वह यहाँ धमकियाँ देता है कि जान से मार दूँगा और जो क़ानून का जानकार है वह क़ानूनी लक्ष्मण रेखा खींचता रहता है कि कौन ब्लॉगर क्या कर सकता है और क्या नहीं ?<br />
ग़ुंडा हो या वकील , काम दोनों डराने का ही करते हैं। <br />
डराता कौन है ?<br />
याद रखिए जो ख़ुद डरा हुआ होता है वही दूसरों को डराता है । अपना डर छिपाने और दूसरों को डराने की कोशिश तनाव को जन्म देती है । ऐसी कोशिशें छोटेपन का लक्षण होती हैं।<br />
बड़ा ब्लॉगर निर्भय होता है। वह मानता है कि उसका परिवार , उसका रोज़गार और उसका जीवन जो कुछ भी उसके पास है वह उनमें से किसी भी चीज़ का मालिक नहीं है । इन सब चीजों का मालिक वास्तव में सच्चा मालिक है और वह स्वयं तो केवल एक अमानतदार है । वह इन चीजों को लेने में भी मजबूर है और इन्हें देने में भी । <br />
जो चीज़ उसे दी गई है वह उससे एक दिन ले ली जाएगी । मालिक <br />
दुनिया में निमित्त और सबब के तौर पर चाहे किसी दुश्मन को ही इस्तेमाल क्यों न करे लेकिन होता वही है जो मालिक का हुक्म होता है ।<br />
सत्य और असत्य के इस संघर्ष में सब कुछ ईश्वर की योजना के अनुसार ही होता है लेकिन आदमी अपने विवेक का ग़लत इस्तेमाल करके खुद को सच्चे मालिक और मानवता का मुजरिम बना लेता है । <br />
यह तत्व की बात है और जो तत्व को जानता है उसे कोई चीज़ कभी नहीं डराती।<br />
याद रखिए , चीज़ें ,घटनाएं और आदमी आपको नहीं डरातीं बल्कि आपको डराता है उन्हें देखने का नज़रिया।<br />
ज्ञान आता है तो डर ख़ुद ब ख़ुद चला जाता है और जैसे ही डर से मुक्ति मिलती है आदमी बड़ा ब्लॉगर बन जाता है ।DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-5238555501286013882011-06-10T02:48:00.001-07:002011-06-10T02:48:57.033-07:00अंतर्विरोध में नहीं जीता है बड़ा ब्लॉगरआदमी स्वभाव से महत्वाकांक्षी और जल्दबाज़ होता है । वह समाज में बड़े स्तर पर सकारात्मक बदलाव का इच्छुक होता है। वह सुनहरे भविष्य के सपने अपनी पसंद के रंग की ऐनक से देखता है और जब उसी रंग में रंगा हुआ कोई आदमी या दल उसे रंगीन सपने दिखाता है तो उसे लगता है कि वह अवसर आ चुका है जिसका उसे इंतज़ार था । वह तुरंत ऐलान कर देता है कि 'बस या तो अभी वर्ना कभी नहीं ।' <br />
ऐसा आदमी सच को नहीं जानता और जब उसकी कल्पनाएं हक़ीक़त नहीं बनतीं तो उसका अन्तर्मन हा हा कार कर उठता है । तब भी वह अपनी जल्दबाज़ी को दोष नहीं देता और न ही अपने मार्गदर्शक व्यक्ति और दल की ख़ुदग़र्ज़ी पर ही नज़र डालता है । इसके बजाय कभी तो वह सत्ता पर क़ाबिज़ पार्टी को कोसता है , कभी समाज के बुद्धिजीवियों की समझ पर अफ़सोस जताता है और कभी मीडियाकर्मियों पर बिक जाने या डर जाने का इल्ज़ाम लगाता है । अपनी आशाओं की टूटी किरचियाँ लेकर वह मन ही मन सोचता रहता है कि आख़िर लोग सकारात्मक तब्दीली के लिए अपना जी जान लड़ाने से अपना जी क्यों चुरा रहे हैं ?<br />
क्राँति तो बस दरवाज़े पर ही खड़ी थी लेकिन लोग हैं कि क्राँतिकारी जी महाराज की ही खिल्ली उड़ा रहे हैं ?<br />
लानत है ऐसे लोगों पर ।<br />
मैंने साल भर तक इन्हें इतनी अच्छी अच्छी बातें सुनाईं लेकिन ये फिर भी राह पर न आए , तो आख़िर हमारे नेता और हम लोग किसके लिए लड़ रहे हैं ?<br />
<br />
ऐसे विचार आदमी के मन में आते हैं । एक साधारण ब्लॉगर के मन में भी ऐसे विचार आते हैं और तब वह अन्तर्विरोध में जीने लगता है । जिसकी वजह से उसका मन ब्लॉगिंग से विरक्त हो जाता है । एक छोटे ब्लॉगर में ये लक्षण पाया जाना सामान्य बात है ।<br />
बड़ा ब्लॉगर वह है जो बहुत पहले ही इस मंजिल को पार कर चुका होता है। वह जान चुका होता है कि तब्दीलियाँ हमेशा धीरे धीरे आती हैं और वह यह भी जान लेता है कि जैसे उसे एक रंग पसंद है वैसे ही दूसरे लोगों को भी कोई न कोई रंग पसंद है और उनमें से हरेक आदमी एक ही सुनहरे सपने को अपनी पसंद के रंग में ढल कर हक़ीक़त बनते देखना चाहते हैं । सुनहरा सपना लगातार साकार होता जा रहा है बिना किसी नेता के ही लेकिन उन्हें उसकी कोई खूबी नज़र नहीं आती। बड़ा ब्लॉगर जानता है कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन का सीधा संबंध लोगों की सोच से है । लोगों की सोच जैसी और जितनी बदलती जाएगी , समाज में भी वैसी और उतनी ही तब्दीली आती चली जाएगी और जब समाज के ज़्यादातर लोगों में सत्य और न्याय की चेतना का विकास अपने टॉप पर पहुँच जाएगा तो समाज में वह बड़ी तब्दीली आ जाएगी जो कि वाँछित है। यह हज़ार पाँच सौ लोगों के बल पर नहीं आएगी और न ही दो चार साल में आ जाएगी । एक आदमी के बल पर एकाध सत्याग्रह से तो बिल्कुल नहीं आएगी और बुज़दिल नेता और ख़ुदग़र्ज़ साथियों के कारण तो इस तब्दीली की प्रक्रिया ही मंद पड़ जाएगी और वे तो इसे रिवर्स कर देने के 'हिडेन एजेंडे' पर चल रहे हैं।<br />
बड़ा ब्लॉगर इस सच्चाई को जानता है इसीलिए वह अपने कर्म पर ध्यान देता है जिसके ज़रिए से समाज में तब्दीली आनी है। <br />
छोटा ब्लॉगर सोचता है कि ब्लॉगिंग छोड़कर ज़मीनी स्तर पर कुछ काम किया जाए जबकि बड़ा ब्लॉगर ब्लॉगिंग, ज़मीनी और आसमानी सब काम एक साथ करता है । वह अपने मिशन से ब्लॉगर्स को इंट्रोड्यूस कराता है । ब्लॉगिंग का ज्ञान समाज में बाँटकर अपने समर्थन और लोकप्रियता का दायरा बढ़ाता है और इस संपर्क में प्राप्त अनुभवों को वह ब्लॉग और अख़बार , दोनों जगह शेयर करता है । इस तरह वह ज्ञान अर्जन और ज्ञान वितरण की cyclic process के ज़रिए समाज में सकारात्मक तब्दीली लाने में अपने हिस्से का योगदान करता रहता है । इसके नतीजे में उसकी लोकप्रियता बढ़ती चली जाती है । जैसे जैसे उसका कद बढ़ता जाता है वैसे वैसे वह बड़े से और ज्यादा बड़ा ब्लॉगर बनता चला जाता है।<br />
हम अपने आप को अपनी क्षमताओं के आधार पर आँकते हैं जबकि लोग हमें हमारे द्वारा किए गए कामों के आधार पर आँकते हैं । <br />
अच्छी सोच रखना अच्छी बात है लेकिन उसे पूरा करने के लिए हक़ीक़त जानना बहुत ज़रूरी है और हक़ीक़त यह है कि बड़ी तब्दीलियाँ बड़े धैर्य वाले लोगों की बड़ी मेहनत से आती है । जो खोखले दावे करता है और झूठे नारे लगाता है, उससे कुछ खास हो नहीं पाता सिवाय ऊँची छलाँग लगाने के । समाज के लिए उसका 'योग'-दान बस यही होता है ।DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-70616121333762636152011-06-05T19:56:00.001-07:002011-06-05T19:56:39.800-07:00'मनुष्य के स्वभाव और प्रकृति के धर्म , दोनों का ज्ञान' रखता है बड़ा ब्लॉगर Thought provoking'बोलने और लिखने का मक़सद होता है सत्य की गवाही देना' या हम कह सकते हैं कि होना चाहिए। ब्लॉग लिखा जाए या कुछ और , जो कुछ भी लिखा जाए इसी मक़सद के तहत लिखा जाए। एक बड़ा ब्लॉगर ऐसा मानता है। सत्य में प्रबल आकर्षण शक्ति होती है और इसे हरेक आत्मा पहचानती है। लिहाज़ा जो सत्य को अपने लेखन की बुनियाद बनाता है। वह अनायास ही लोकप्रियता के सोपान चढ़ता चला जाता है । इतना ही बल्कि वह अपनी विजय का सामान भी जुटा लेता है क्योंकि 'सत्यमेव जयते' कोई कहावत नहीं है बल्कि एक नियम है जिसे कहावत में बयान किया गया है। जीतने वाली चीज़ है सत्य और आपको इस धरती पर सत्य का साक्षी बनाकर पैदा किया गया है अर्थात आपको जीतने के लिए ही पैदा किया गया है । विजय उल्लास , ऐश्वर्य और आनंद सब कुछ साथ लाती है लेकिन इस विजय के लिए इंसान को दूसरों से नहीं बल्कि अपने आप से लड़ना पड़ता है । अपने खिलाफ़ खुद खड़ा होना पड़ता है। जो आदमी खुद अपने खिलाफ खड़ा हो सकता है । वही निष्पक्ष होकर विचार कर सकता है और अपनी गलती के ग़लत और दूसरे के सही को सत्य कह सकता है। अपने मिथ्या अभिमान को जीतने और सत्य को पाने वाला आदमी यही होता है । अब अगर आप सत्य को सामने लाते हैं तो आप अपने जन्म के मक़सद को पूरा करते हैं और अगर आप अपनी रीयल फ़ीलिग्स के ख़िलाफ़ लिखते हैं तो अपनी आत्मा का हनन करते हैं । आप चाहें या न चाहें लेकिन अपने हरेक अमल के ज़रिये या तो आप अपना विकास कर रहे हैं फिर अपनी आत्मा का हनन।<br />
बड़ा ब्लॉगर कहलाने का हक़दार वह है जो अपनी आत्मा का हनन कभी नहीं करता। वह सदा सत्य ही लिखता है।<br />
वह पोस्ट भी लिखता है और टिप्पणी भी, जो भी लिखता है सत्य ही लिखता है। कभी वह टिप्पणी को पोस्ट बना देता है और ऐसा वे भी करते रहते हैं जो कि बड़े ब्लॉगर वास्तव में नहीं होते लेकिन कभी कभी बड़ा ब्लॉगर दूसरों के ब्लॉग पर अपनी टिप्पणी को भी एक पोस्ट का रूप दे देता है और दूसरे ऐसा नहीं कर पाते। <br />
इससे बड़े ब्लॉगर को भी लाभ होता है और उस पोस्ट को भी जिस पर कि वह टिप्पणी करता है। उस पोस्ट पर अब दिल से निकली हूई टिप्पणियाँ आने लगती हैं। उसकी टिप्पणियाँ Thougqt provoking होती हैं। चिंतन की ठप्प पड़ी प्रक्रिया को चालू करना ही उसका मक़सद होता है। इसीलिए उसकी टिप्पणियाँ अद्भुत हुआ करती हैं। <br />
कोई नहीं जानता कि किस पोस्ट या टिप्पणी में किस मुद्दे को उठाकर वह किसे और कब झिंझोड़ डाले ?<br />
इस प्रकार वह एक सस्पेंस बनाए रखता है जिससे उसकी पोस्ट और टिप्पणियों के लिए सभी ब्लॉगर्स की उत्सुकता सदा बनी रहती है चाहे वे उसके समर्थक हों या फिर उसके विरोधी। उसके विरोधी उस पर निगरानी रखने की नीयत से उसकी पोस्ट और टिप्पणियाँ पढ़ते हैं लेकिन वे नहीं जानते कि हल्के हल्के Data उनके mind में ट्रांसफ़र हो रहा है और वे क्रमिक रूप से प्रबुद्ध होते जा रहे हैं और एक समय वह आएगा जब उनकी चेतना का विकास इतना हो जाएगा कि वे भी बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे अर्थात वे भी सत्य के साक्षी बन जाएँगे। <br />
अतः हम कह सकते हैं कि बड़ा ब्लॉगर वह है जो सत्य के सांचे में खुद के साथ साथ दूसरों को भी ढालता रहता है , धीरे-धीरे और खेल-खेल में । याद रहे कि खेल इंसान को पसंद है और धीरे-धीरे प्रकृति का स्वभाव और उसका नियम है। बड़ा ब्लॉगर वह है जिसे मनुष्य के स्वभाव और प्रकृति के धर्म , दोनों का ज्ञान होता है। इंसान को बड़ा बनाने वाली चीज़ ज्ञान है। यह बात एक ब्लॉगर पर भी लागू होती है।DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-24744326897416211602011-05-29T14:02:00.000-07:002011-05-29T14:06:24.841-07:00‘टिप्पणी के भ्रष्टाचार‘ से मुक्त होता है बड़ा ब्लॉगर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3FVEsjiQ2KZOvNcUaqHg_YVVSUuho1Eq-gmSyJq-B4NH5fBhpr7mW3O_uuGz-pf04rQHsZ6sNXlcahxm27i-XHhSBi57c0lyAPkP17YY3iYUEh1714yqNxcM4ldK7NxSm893MPObetiY/s1600/yoga+n+sufism.gif" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="167" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3FVEsjiQ2KZOvNcUaqHg_YVVSUuho1Eq-gmSyJq-B4NH5fBhpr7mW3O_uuGz-pf04rQHsZ6sNXlcahxm27i-XHhSBi57c0lyAPkP17YY3iYUEh1714yqNxcM4ldK7NxSm893MPObetiY/s200/yoga+n+sufism.gif" width="200" /></a></div>डेल कारनेगी एक विश्व विख्यात लेखक हैं। आम तौर पर उनकी दो किताबें बहुत मशहूर हैं ‘हाउ टू स्टॉप वरीइंग एंड स्टार्ट लिविंग‘ और एक और जो इससे भी ज़्यादा मशहूर है। कुछ और भी किताबें उन्होंने लिखी हैं लेकिन वे इतनी मशहूर नहीं हैं।<br />
क्या आप जानते हैं कि उनकी दूसरी मशहूर किताब का नाम क्या है ?, जिससे उन्हें पहचाना जाता है और दुनिया की हरेक बड़ी भाषा में उसका अनुवाद मौजूद है।<br />
ख़ैर, इन किताबों को पढ़े हुए 25 साल से ज़्यादा हो गए। इन किताबों का मैं क़ायल हूं और चाहता हूं कि हरेक आदमी इन्हें ज़रूर पढ़े।<br />
डेल कारनेगी की किताबें <b><span class="Apple-style-span" style="color: magenta;"><a href="http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/dr-anwer-jamal.html">सकारात्मक विचार</a></span></b> देती हैं।<br />
लेकिन कहीं कहीं मैं उनसे सहमत नहीं हो पाता।<br />
उन्हीं की तरह दूसरे बहुत से लेखकों ने भी लोगों को दोस्त बनाने की कला पर किताबें लिखी हैं। लोकप्रिय होने के लिए सभी एक ही सुझाव देते हैं कि आप किसी के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय ज़ाहिर मत कीजिए और किसी के विचारों का खंडन मत कीजिए क्योंकि हरेक को अपने विचार प्रिय हैं और वह उन्हें सत्य मानता है। किसी के विचारों का खंडन करने के बाद उसके मन में आपके लिए दूरी और खटास पड़ जाएगी।<br />
बात एकदम सही है लेकिन क्या हम इसका पालन कर सकते हैं या हमें इस उसूल का पालन करना चाहिए ?<br />
जब हम किसी ब्लॉगर की पोस्ट पढ़ते हैं तो टिप्पणी करते हुए बहुत लोग ग़लत को ग़लत कहने के बजाय बचकर निकल जाते हैं।<br />
क्या यह प्रवृत्ति सही है ?<br />
बल्कि बहुत बार ऐसा भी देखा जाता है कि लोग ग़लत बातों का समर्थन करने लग जाते हैं मात्र अपने समर्थन को बनाए रखने के लिए, केवल इसलिए कि कहने वाला अपने ग्रुप का होता है।<br />
क्या ऐसा करना सही होता है ?<br />
कई बार ऐसा भी होता है कि बात सही होती है लेकिन उसे कहने वाला या तो अपने ग्रुप का नहीं होता है या फिर अपनी पसंद का नहीं होता है। ऐसे में भी उसकी सही बात को सही कहने का कष्ट नहीं किया जाता।<br />
<div style="text-align: left;">इसी तरह की और भी बातें हैं, जिन्हें हम ‘टिप्पणी में भ्रष्टाचार‘ की संज्ञा दे सकते हैं। किसी भी विषय में जब सत्य का पालन नहीं किया जाता तो वहां भ्रष्टाचार ख़ुद ब ख़ुद जन्म ले लेता है। इस समय हिंदी ब्लॉग जगत में यह भ्रष्टाचार आम है। इसके निवारण का उपाय केवल यही है कि सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने में झिझक बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए, चाहे इसके लिए लोकप्रियता कभी भी न मिले या मिली हुई भी जाती हो तो चली जाए। केवल <b><span class="Apple-style-span" style="color: magenta;"><a href="http://quranse.blogspot.com/2011/05/blog-post_28.html">‘सत्य‘</a></span></b> को ही अपना मक़सद बनाता है बड़ा ब्लॉगर। </div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com27tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-48902839260403274922011-05-27T09:34:00.000-07:002011-05-27T18:59:20.022-07:00‘टिप्पणी का सच जानता है बड़ा ब्लॉगर'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">टिप्पणियों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन अपने विद्यार्थियों के लिए आज हम एक ऐसा लेख पेश करेंगे जो हिंदी ब्लॉग जगत को आईना भी दिखाता है और सीखने वालों को बहुत कुछ सिखाता भी है। ज़रूरत बस एक नज़र की है। आईना देखने के लिए भी नज़र चाहिए और उसमें मौजूद ‘तत्व‘ को ग्रहण करने के लिए भी नज़र चाहिए।<br />
जनाब सतीश सक्सेना जी का यह लेख मुझे बेहद पसंद है और इतना ज़्यादा पसंद है कि बिना उनसे औपचारिक अनुमति लिए ही उसे हम यहां पेश कर रहे हैं। यह औपचारिकता तब के लिए छोड़ दी है जबकि वह ख़ुद यहां कमेंट करने आएंगे। <br />
...तो साहिबान, क़द्रदान लीजिए आज आपके सामने पेश है<b><span class="Apple-style-span" style="color: purple;"> ‘टिप्पणी के बारे में सबसे बड़ा सच‘ </span></b><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Georgia, serif; font-size: 15px;"></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2OdtNlbadrp_u86_BlF174xneOCtpwKXGFMiJpfejsgFhs9THPIpj-Yth6aNDsCLFF_G4CEmw5ExXJIp0M2LhF2ivKdOlvOiLubaup2Vo7vIdSzOWHE1_CDgAi7o1EAN9GA1_GJosC4w/s1600/papa_good+night.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2OdtNlbadrp_u86_BlF174xneOCtpwKXGFMiJpfejsgFhs9THPIpj-Yth6aNDsCLFF_G4CEmw5ExXJIp0M2LhF2ivKdOlvOiLubaup2Vo7vIdSzOWHE1_CDgAi7o1EAN9GA1_GJosC4w/s1600/papa_good+night.jpg" /></a></div><blockquote class=""><div style="text-align: center;"><b><span class="Apple-style-span" style="color: magenta;">टिप्पणियां देने की विवशता - सतीश सक्सेना</span></b></div>किसी भी लेख की महत्ता बिना टिप्पणियों के बेकार लगती है ,लगता है किसी वीराने में आ गए हैं ! और टिप्पणिया चाहने के लिए टिप्पणिया देनी बहुत जरूरी हैं ! सो हर लेख के तुरंत बाद ५० अथवा उससे अधिक जगह टिप्पणी करनी होती है तब कहीं २५ -३० टिप्पणियों का जुगाड़ होता हैं ! :-((<br />
अब लम्बा लेख कैसे पढ़ें ..समझ ही नहीं आता ! ऐसे लेख पर टिप्पणी करने के लिए अन्य टिप्पणीकर्ता की प्रतिक्रिया देख कर उससे मिलती जुलती टिप्पणी ठोकना लगता होता है ! चाहे उस बेचारे का बेडा गर्क हो जाये :-)<br />
<ul><li style="text-align: justify;">अगर किसी बहुत बेहतरीन लेख का कबाड़ा करना हो तो पहली नकारात्मक टिप्पणी कर दीजिये फिर देखिये उस बेचारे की क्या हालत होती है ! बड़े बड़े मशहूर लोग उसकी कापी करते चले जायेंगे ! </li>
</ul><ul><li style="color: blue; text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="color: black;">किसी अन्य टिप्पणी कर्ता जिसे आप विद्वान् समझते हों की टिप्पणी की कापी करना अच्छा लगेगा और लोग आपकी टिप्पणी को ऐवें ही नहीं लेंगे !</span></li>
</ul>और हम जैसे मूढ़ लोग अपने आप पर और अपनी संगत पर हँसेंगे ...दुआ करता हूँ कि कुछ लेख को ध्यान से पढने वाले भी आ जाएँ तो इतनी मेहनत करना सार्थक हो ! मेरे जैसे मूढमति, टिप्पणी न करें तो ठीक ही होगा सो आज से टिप्पणी कम करने का प्रयत्न करूंगा , जिससे बदले में टिप्पणी न मिलें और दुआ मानूंगा कि कम लोग पढ़ने आयें मगर वही आयें जो मन से पढ़ें !<br />
:-)))) </blockquote> ( यह लेख एक व्यंग्य है )<br />
साभार : <a href="http://satish-saxena.blogspot.com/2010/11/blog-post_24.html"><b><span class="Apple-style-span" style="color: magenta;">http://satish-saxena.blogspot.com/2010/11/blog-post_24.html</span></b></a><br />
<br />
<div class="post-header" style="color: blue;"><div class="post-header-line-1"></div></div><br />
</div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-76019677477918522512011-05-22T03:19:00.000-07:002011-05-22T03:19:51.115-07:00वह क्या राज़ है जिसे जानने के बाद आदमी बड़ा ब्लॉगर बन जाता है ? Art OF Blogging<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
‘इस हाथ दे और उस हाथ ले।‘<br />
कमेंट कमाने का यह मूल उसूल है।<br />
आप किसी की शादी या सालगिरह पर जाते हैं तो कुछ दुआ के बोल देकर आते हैं और कुछ रक़म भी। कुछ समय बाद जब आपके यहां इसी तरह का कोई फंक्शन होता है तो लोग आपके यहां भी आते हैं और देकर जाते हैं, वही दुआएं और वही रक़म। हां, थोड़ा ऊपर नीचे भी हो सकता है।<br />
याद रखिए कि अगर आपने किसी के यहां जाकर कुछ दिया ही नहीं तो फिर आपको भी किसी से कुछ मिलने वाला नहीं है और न ही आपको किसी से कुछ पाने की उम्मीद ही रखनी चाहिए।<br />
आप रक़म बांटेंगे तो लौटकर आपको भी रक़म ही मिलेगी और अगर आप टिप्पणियां बांटेंगे तो लौटकर आपको भी टिप्पणियां ही मिलेंगी। इस दुनिया में कोई आपको कुछ दे नहीं सकता और न ही देता है। दुनिया तो आपको तभी लौटाएगी जबकि वह आपसे कुछ पाएगी। बिना कुछ पाए आपको देने वाला दाता केवल एक रब है, वही सबसे बड़ा है और वह सबको देता है।<br />
अगर आप बड़ा ब्लॉगर बनना चाहते हैं तो आप भी अपनी हद भर सबको दीजिए। बिना किसी से कुछ पाए दीजिए, किसी से कुछ पाने की उम्मीद रखे बिना दीजिए।<br />
आप कभी इसलिए टिप्पणी मत कीजिए कि वह भी आपको लौटकर टिप्पणी दे। जो इस आशा के साथ टिप्पणी देता है वह छोटा ब्लॉगर होता है और सदा तनाव में जीता है। छोटी अपेक्षाएं ब्लॉगर के लिए सदा चिंता का कारण बनती हैं। छोटों से और ओछों से तो दुनिया पहले ही भरी हुई है। आपको ऐसा नहीं बनना चाहिए।<br />
जो भी शीर्षक आपको अच्छा लगे, उस लेख पर जाइये और उसे पढ़कर ईमानदारी से अपनी राय दीजिए।<br />
जब आप निरपेक्ष भाव से कुछ समय तक ऐसा करेंगे तो आप देखेंगे कि आपके ब्लॉग का टिप्प्णी सूचकांक ऊपर चढ़ता जा रहा है।<br />
ये टिप्पणियां सच्ची होंगी और आपके लिए बौद्धिक ऊर्जा मुहैया करेंगी। लोगों की तरफ़ से आपको सही सलाह भी मिलेगी और जब आप उन पर ध्यान देंगे तो आपके लेख ही नहीं बल्कि आपके व्यक्तित्व तक में निखार आता चला जाएगा।<br />
जितना निखार आएगा, आपकी बड़ाई में उतना ही इज़ाफ़ा होता चला जाएगा।<br />
यह बात जो जान लेता है, वह बड़ा ब्लॉगर बन जाता है।<br />
</div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-7388817761425091002011-05-21T00:30:00.001-07:002011-05-21T00:43:45.602-07:00'अपने दोनों हाथ में लडडू रखता है बड़ा ब्लॉगर' The complicated game'बड़ा ब्लॉगर अपने दोनों हाथ में लडडू रखता है।'<br />
बड़ा ब्लॉगर अपने समर्थकों के सहयोग से आगे बढ़ता है और अपने विरोधियों की छाती और उनके कंधों पर चढ़ता है । दोस्तों से काम तो दुनिया लेती है लेकिन विरोधियों की ऊर्जा को इस्तेमाल एक बड़ा ब्लॉगर ही कर सकता है । वह अपने समर्थन में लिखी गई पोस्ट को हिट करता और करवाता है और अपने विरोध में लिखी गई पोस्टों को भी। यहाँ तक कि उसके विरोधी उसके प्रचारक मात्र बनकर रह जाते हैं । जब कोई उसका विरोध नहीं करता तो बड़ा ब्लॉगर फ़र्ज़ी ब्लॉग बनाकर अपना विरोध स्वयं करता है । उस ब्लॉग पर प्रायः अन्य विरोधी ही टिप्पणी करते हैं और इस तरह वह अपने विरोधियों को चिन्हित कर लेता है और उनके इलाज पर उचित ध्यान देता है ।<br />
ब्लॉग जगत में कोई नहीं जानता कि किस ब्लॉग से अपना विरोध वह स्वयं कर रहा है और किस ब्लॉग से सचमुच ही विरोध हो रहा है । इस तरह विरोधियों के विरोध की धार कुंद हो जाती है और उसे केवल प्रचार मिलता रहता है।<br />
<br />
ऐसा करके वह अपने विरोधियों को पसोपेश में डाल देता है । अगर वे अपना विरोध बंद करते हैं तो वह निर्विरोध हो जाएगा जैसे कि दूसरे हैं और अगर उसका विरोध बदस्तूर जारी रखा जाए तो भी उसे प्रचार मिल रहा है । <br />
विरोधी ब्लॉगर जो भी करेगा वह बड़े ब्लॉगर का केवल फ़ायदा ही करेगा ।<br />
एक बड़ा ब्लॉगर ऐसा सोचता है । आप भी ऐसे सोचेंगे तो बहुत जल्द आप भी एक बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-2165812368451015891.post-20229511121742962092011-05-07T11:24:00.000-07:002011-05-09T22:39:24.734-07:00लखनऊ में आज सम्मानित किए गए सलीम ख़ान और डा. अनवर जमाल Best Blogger<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">बड़ा ब्लॉगर पूरी कोशिश करता है कि वह अपने पाठकों को ताज़ा जानकारी से बाख़बर रखे .</span><br />
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: justify;">इसी कोशिश में आज<b><a href="http://mushayera.blogspot.com/2011/05/gazal.html"> 'मुशायरा' ब्लॉग पर एक पोस्ट आई</a></b> और वादा किया गया कि इवेंट के फोटो भी जल्द ही दिखायेंगे.</div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: justify;">सो जैसे ही फोटो आये, आपके लिए हाज़िर कर दिए गए. यह प्रोग्राम चौ. चरण सिंह सहकारिता भवन लखनऊ में संपन्न हुआ.</div><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: justify;">समाज के जो तबक़े आधुनिक शिक्षा से पिछड़ गए हैं, उन तक शिक्षा का प्रकाश कैसे पहुंचे ? इस सम्मलेन का उद्देश्य यही था.</div><div class="separator" style="clear: both; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: center;"></div><div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px;">इस सम्मलेन का आयोजन 'आल इण्डिया उर्दू तालीम घर, लखनऊ' ने किया, जिसमें मुल्क के अलग अलग हिस्सों से बहुत से बुद्धिजीवियों और आलिमों ने भाग लिया. जिनमें अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली, प्रोफ़ेसर अख्तरुल वासे (चेयरमैन उर्दू एकेडमी दिल्ली), डा. इस्लाम क़ासमी (सदर जमीअतुल उलेमा, उत्तराखंड), प्रोफ़ेसर अब्दुल वहाब ‘क़ैसर साहब (डायरेक्टर ऑफ़ एग्ज़ामिनेशन, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद), डा. असलम जमशेदपुरी (उर्दू विभागाध्यक्ष चौ. चरण सिंह यनिवर्सिटी मेरठ), डा. साग़र बर्नी (अध्यक्ष उर्दू विभाग चै. चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ) प्रोफ़ेसर तनवीर चिश्ती (गोचर पी.जी. कॉलेज, सहारनपुर), डा. ज़फ़र गुलज़ार (चै. चरण सिंह यूनि., मेरठ) और डा. असलम क़ासमी साहब (उत्तराखंड) के नाम प्रमुख हैं। सभी लोगों ने हाज़िरीने मजलिस को अपने आलिमाना ख़यालात से नवाज़ा। मीडिया की दुनिया की एक क़द्दावर हस्ती जनाब अज़ीज़ बर्नी साहब किसी मजबूरी की वजह से रू ब रू न आ सके। उन्होंने तक़रीबन 10 मिनट तक कॉन्फ़्रेंस के ज़रिये सभा को संबोधित किया और उर्दू तालीम घर की कोशिशों को सराहा। इस प्रोग्राम में संभल से आए जनाब डा. फ़हीम अख़तर साहब और अनवर फ़रीदी साहब और दीगर शायरों ने अपने कलाम से भी दर्शकों को अम्नो-मुहब्बत का बेहतरीन संदेश दिया। </span></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 28px;"><br />
</span></span></div><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"></span><br />
<div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 28px;">इस मौक़े पर सलीम ख़ान साहब को हिंदी ब्लॉगिंग के ज़रिये एकता की राह के पत्थर तोड़कर उसे हमवार करने के लिए बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड मौलाना ख़ालिद रशीद फ़िरंगी महली के हाथों दिया गया। इंटरनेट के ज़रिये लोगों तक इल्म आम करने के लिए उन्होंने जो निःस्वार्थ योगदान संस्था को दिया है, उसकी भी संस्था द्वारा भरपूर तारीफ़ की गई। मौलाना ख़ालिद साहब ने हमें भी अपने हाथों से बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड दिया। हमें यह अवार्ड <b><span class="Apple-style-span" style="color: #4c1130;"><a href="http://islamdharma.blogspot.com/2011/03/maulana-qari-tayyab-sahab.html">उर्दू से हिंदी अनुवाद</a></span></b> के लिए दिया गया जो कि हमने कई उर्दू किताबों का हिंदी में किया है और इस तरह हिंदी ब्लॉगर्स के लिए उर्दू लिट्रेचर को समझना मुमकिन बना दिया। दीगर ब्लॉग के साथ ‘मुशायरा‘ ब्लॉग की भी तारीफ़ की गई। इस ब्लॉग पर भी हमने बहुत से शायरों के कलाम को उर्दू से हिन्दी में अनुवाद करके पेश किया है . </span></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 28px;">हमने सभा को संबोधित करते हुए एक संदेश भी दिया। इस मौक़े पर डा. असलम क़ासमी साहब की एक किताब ‘उर्दू तन्क़ीद और उसका पसमंज़र‘ का विमोचन भी किया गया, जो कि उनकी थीसिस है जिसके लिए उन्हें डॉक्ट्रेट से नवाज़ा गया है।. इस प्रोग्राम की अध्यक्षता मौलाना मुहम्मद फुरकान क़ासमी साहब ने की जो कि एक हिन्दोस्तान भर की मस्जिदों की समिति के ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं.</span></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><div style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 28px;">हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया से इस प्रोग्राम में हमारे अलावा सलीम ख़ान, अनवार अहमद साहब, डा. असलम क़ासमी, डा. अयाज़ अहमद, तारिक़ भाई, फ़िरोज़ अहमद, डा. डंडा लखनवी, डा. शाहिद हसनैन व अन्य शामिल थे। कुछ ब्लॉगर्स के अकाउंट्स फ़ेसबुक पर हैं। पूरे कार्यक्रम की कवरेज करने के लिए मीडिया भी मौजूद था और वीआईपी की सुरक्षा के लिए ख़ासी तादाद में सुरक्षाकर्मी भी मौजूद रहे। </span></span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="line-height: 28px;">प्रोग्राम की शुरुआत <b><span class="Apple-style-span" style="color: #20124d;"><a href="http://quranhindi.com/">कुरआन शरीफ़ की तिलावत</a></span></b> से हुई और ख़ात्मा दुआ पर हुआ . </span></span><br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhr2mGHSB0Z8uF3IDJr8EybCy1m8ApN5gvAgYczMX4kShOSdu_uLpFNs3NZDT1r2juqmaCLHT99hr27ZeJvZCaSjUXliRNMz4OrqTc6lg8skO4hgzSZ4aiIvUvHqsoaMMtNE7z19fcaISE/s1600/Security+1+at+entrence.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhr2mGHSB0Z8uF3IDJr8EybCy1m8ApN5gvAgYczMX4kShOSdu_uLpFNs3NZDT1r2juqmaCLHT99hr27ZeJvZCaSjUXliRNMz4OrqTc6lg8skO4hgzSZ4aiIvUvHqsoaMMtNE7z19fcaISE/s320/Security+1+at+entrence.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">सुरक्षा के लिए मौजूद पुलिसकर्मी<br />
</td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTeN1J2Q-NjdOcOB-DbP6LR7DlipkuSbaI42pyxR-Izhbq6Zy9tueXL_D0vB_WQkcPzZ02aGg_4wEhEc8ib3l2HC2ZTW30QyE5jo0wEje9yqdZYzGJPKhpnx4DBQVqrXumNkAETFIvAWc/s1600/Security+2+for+VIP.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTeN1J2Q-NjdOcOB-DbP6LR7DlipkuSbaI42pyxR-Izhbq6Zy9tueXL_D0vB_WQkcPzZ02aGg_4wEhEc8ib3l2HC2ZTW30QyE5jo0wEje9yqdZYzGJPKhpnx4DBQVqrXumNkAETFIvAWc/s320/Security+2+for+VIP.jpg" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">वीआईपी मेहमानों की सुरक्षा के लिए मौजूद दरोगा</td></tr>
</tbody></table></div></div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhO6bKcWJzTfqd2Ua9fQwoAFrLtfRBL-6TMd4_u5misDuQhqtN52YIBsE3fzp_GV37yd5mbZJssyYdrSRLvIbGabqOAp_Jt5zb_xAQmcd_PLQGRDHnsK3tkpnB91wjhnzEDNxJv2mq3KZI/s1600/Anwer+Jamal+and+Friends.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhO6bKcWJzTfqd2Ua9fQwoAFrLtfRBL-6TMd4_u5misDuQhqtN52YIBsE3fzp_GV37yd5mbZJssyYdrSRLvIbGabqOAp_Jt5zb_xAQmcd_PLQGRDHnsK3tkpnB91wjhnzEDNxJv2mq3KZI/s320/Anwer+Jamal+and+Friends.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">हिन्दी ब्लॉगर्स की टीम प्रोग्राम के शुरू में </td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7l1sb8GK85wBqRJ0KECsVkRK8GDUQ6QFy4GGNDIGM6rOf1Q6zoCL8dz5bKQVXr_qA__zz-vXEqs0tBysWar2IR89ppqGE9rec702BhBHK21LzINMzLXjnHGWrs6z95lEF5HALJdMI36w/s1600/Saleem+Khan+Gulposhi.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7l1sb8GK85wBqRJ0KECsVkRK8GDUQ6QFy4GGNDIGM6rOf1Q6zoCL8dz5bKQVXr_qA__zz-vXEqs0tBysWar2IR89ppqGE9rec702BhBHK21LzINMzLXjnHGWrs6z95lEF5HALJdMI36w/s320/Saleem+Khan+Gulposhi.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">सलीम ख़ान प्रोफ़ेसर असलम जमशैदपुरी साहब को फूल पेश करते हुए </span><br />
<span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">प्रोफ़ेसर साहब एक हिन्दी ब्लॉगर भी हैं.</span></td></tr>
</tbody></table><div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: center;"><br />
</div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNOvp9bo_80fNhD1dofwWkwcIu5w7JiSxexJ72UjVvLtMlNrsJZ8nSOq7x5I8tsXuYtAauLMHgkErTlCE7F748XQYek_JjhuQDmqweBF6YCAopbUPjbD7yh5l-ZNtZLs9sqi-dbfDK55U/s1600/taqreer+sunte+stagewasi.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNOvp9bo_80fNhD1dofwWkwcIu5w7JiSxexJ72UjVvLtMlNrsJZ8nSOq7x5I8tsXuYtAauLMHgkErTlCE7F748XQYek_JjhuQDmqweBF6YCAopbUPjbD7yh5l-ZNtZLs9sqi-dbfDK55U/s320/taqreer+sunte+stagewasi.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">स्टेज पर मौजूद सम्मानित मेहमान </td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgn7GGOP2r_IGBXCZobPbtEHDpwdTUonEIk5swLxQuXm4eV3JtbDE__-6iZ__BRnXq304ptoIEvHr540VZe_vch8XfOTNXtrQmtaArLwJtENKJb88y5jZIWuyKbg4_E_alrBtTquH7-7Cg/s1600/DSC_1018.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgn7GGOP2r_IGBXCZobPbtEHDpwdTUonEIk5swLxQuXm4eV3JtbDE__-6iZ__BRnXq304ptoIEvHr540VZe_vch8XfOTNXtrQmtaArLwJtENKJb88y5jZIWuyKbg4_E_alrBtTquH7-7Cg/s320/DSC_1018.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">मौलाना मुहम्मद फुरकान क़ासमी</span></td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9N1zIbsZnPGbb7S8cEDUryikAzf4Er0ri4bFTV96xniAcT8yACazp5cnlSa4mxK2y8jSjE6hqCEL9_5lEiivSnpnp0xE1sVYeSme6GB9nieKVgwbODanf0e7_Rgrrk8ZoUop9SNYvWp0/s1600/Danda+Lakhnawi%252C+Saleem%252C+Anwer+Jamal.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh9N1zIbsZnPGbb7S8cEDUryikAzf4Er0ri4bFTV96xniAcT8yACazp5cnlSa4mxK2y8jSjE6hqCEL9_5lEiivSnpnp0xE1sVYeSme6GB9nieKVgwbODanf0e7_Rgrrk8ZoUop9SNYvWp0/s320/Danda+Lakhnawi%252C+Saleem%252C+Anwer+Jamal.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">डा. डंडा लखनवी, सलीम खान, अनवर जमाल, डा. अयाज़,डा. सुरेश उजाला एडिटर, अनिल </span></td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6UhvfKaIjvMDzg84_jImScky6j06qH9bnHmUkpCwTgKVOpaGkpTghg0DfNiOS8g3xebO5DXXXA9RjvL9iSIbXVpmGSALGsjjOoDtQTLeK9sYM2_jw6Ttel_dZGvEl3gDwQbb1E4vb4qU/s1600/Qasmi+on+stage.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6UhvfKaIjvMDzg84_jImScky6j06qH9bnHmUkpCwTgKVOpaGkpTghg0DfNiOS8g3xebO5DXXXA9RjvL9iSIbXVpmGSALGsjjOoDtQTLeK9sYM2_jw6Ttel_dZGvEl3gDwQbb1E4vb4qU/s320/Qasmi+on+stage.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">मंच का विहंगम दृश्य </td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjk5k-1xOHnv4uMG8YN2yKHxwZN6hV61bDJdJRdQNb7HR8eSzym4jmskFgSyGefobfs849hhs9EXboYM1zSqBkFa9y4KeJL0BPmJoGutOzL5QYgzRONaR3VRJRsoQTjfKoJgF_mUbFsL7s/s1600/Dr.+Aslam+Qasmi+2.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjk5k-1xOHnv4uMG8YN2yKHxwZN6hV61bDJdJRdQNb7HR8eSzym4jmskFgSyGefobfs849hhs9EXboYM1zSqBkFa9y4KeJL0BPmJoGutOzL5QYgzRONaR3VRJRsoQTjfKoJgF_mUbFsL7s/s320/Dr.+Aslam+Qasmi+2.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">डा. असलम क़ासमी </td></tr>
</tbody></table><div class="separator" style="clear: both; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 28px; text-align: center;"></div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgST2OBmxI3w6ctC4274zing3TXbEN_HI1Hsce3sMRCcaPsZV_lq3w_7O6W4P96xMy-_335viPD0ZLD8xJ4QF6c4WRHVLcy2vRtQZQ-joqRrqwHzuUX_6E04RZB_DCz1iHEMYVfyCb1Ec/s1600/Saleem+on+stage.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhgST2OBmxI3w6ctC4274zing3TXbEN_HI1Hsce3sMRCcaPsZV_lq3w_7O6W4P96xMy-_335viPD0ZLD8xJ4QF6c4WRHVLcy2vRtQZQ-joqRrqwHzuUX_6E04RZB_DCz1iHEMYVfyCb1Ec/s320/Saleem+on+stage.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">सलीम खान स्टेज पर </td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgboRGZpk7712nDsinIfH46-wZWgjlFHhng0wVHH7anBoAVQyTvRTqsVGMbyigvUXEcP_auHCw-Gn0t4wpklnQPzJ5rpqcmAX5khcaJpwNKUavv0wNq18V-j2uxty42EVhL7enaqcI_B6U/s1600/Anwer+Jamal+on+stage.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgboRGZpk7712nDsinIfH46-wZWgjlFHhng0wVHH7anBoAVQyTvRTqsVGMbyigvUXEcP_auHCw-Gn0t4wpklnQPzJ5rpqcmAX5khcaJpwNKUavv0wNq18V-j2uxty42EVhL7enaqcI_B6U/s320/Anwer+Jamal+on+stage.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">डा. अनवर जमाल स्टेज पर </td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2bTVUNyiCpMWtQw-aVkXYSoOdNV24ntsgjRNs0OlGp5DewLB1UjoaqvBYLZ5VLueVu5q5t_jqNBc3VLA29qWfljfHc4TdutInJSCsQGWOZobivrowZfFXTz31BTal5zI6hBhcyOe412w/s1600/Anwer+Jamal+Taqreer+1.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2bTVUNyiCpMWtQw-aVkXYSoOdNV24ntsgjRNs0OlGp5DewLB1UjoaqvBYLZ5VLueVu5q5t_jqNBc3VLA29qWfljfHc4TdutInJSCsQGWOZobivrowZfFXTz31BTal5zI6hBhcyOe412w/s320/Anwer+Jamal+Taqreer+1.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">डा. अनवर जमाल सभा को संबोधित करते हुए </td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhknoPT7Mxo7UEVxXXPnJEZBylkDb8wlkqupgfCZiBdE3koDc2d8Jk-PIu_NmAACjIDaoeBe660BbBJ8SLB38Yp5JvK-DMwIDckR44bSsDqx-Sm_sVm9CXi0IfPQYVSyS0p35BdW3n6pM4/s1600/Anwer+Jamal+Taqreer+2.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhknoPT7Mxo7UEVxXXPnJEZBylkDb8wlkqupgfCZiBdE3koDc2d8Jk-PIu_NmAACjIDaoeBe660BbBJ8SLB38Yp5JvK-DMwIDckR44bSsDqx-Sm_sVm9CXi0IfPQYVSyS0p35BdW3n6pM4/s320/Anwer+Jamal+Taqreer+2.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">एक विहंगम दृश्य </td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuW3XUVsHJOtzBJlv1C8L35ZUAGIg_aI2dmKRZwudHed3_UO2jCvVT9ASf-elVo0hZxnozLG6KsSger2TxY7qfbY6vJSpw8a_gkqWjP1BXQ8PjUfso31JQabsxpAbEsSduMnFZSfytRVM/s1600/Anwer+Jamal+Taqreer+3.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuW3XUVsHJOtzBJlv1C8L35ZUAGIg_aI2dmKRZwudHed3_UO2jCvVT9ASf-elVo0hZxnozLG6KsSger2TxY7qfbY6vJSpw8a_gkqWjP1BXQ8PjUfso31JQabsxpAbEsSduMnFZSfytRVM/s320/Anwer+Jamal+Taqreer+3.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">अनवर जमाल एक भावपूर्ण मुद्रा में </td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhD-uy0UppsP3I3giHLl2M1aZEFjHZsKV4jFILantpnLAoaJyuVGOTCxaneIsSVLSLYoAFpRof2myoxx1unHWvd1q9keYzz0mlnOXTOP_Rf_K7sDHblDIUxn7O-bQTycHMkRke-RdKhLn0/s1600/Anwer+Jamal++With+Prize.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhD-uy0UppsP3I3giHLl2M1aZEFjHZsKV4jFILantpnLAoaJyuVGOTCxaneIsSVLSLYoAFpRof2myoxx1unHWvd1q9keYzz0mlnOXTOP_Rf_K7sDHblDIUxn7O-bQTycHMkRke-RdKhLn0/s320/Anwer+Jamal++With+Prize.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;"> मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली डा. अनवर जमाल को ईनाम से नवाज़ते हुए </span></td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOv9z7UgEi7fDy5kxYzDC44jN1J_QGmqKKS_X2VR1YH-vvGTTK-OMAZuO0uPyLM0gnt5x4MT6k2Rl1M35vMlOTG6YnXKaOLA9VrvLIfd7brv1JEE_V_19K-AKfanmv0SuW5HH-QkOfmfk/s1600/Saleem+and+Prize.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOv9z7UgEi7fDy5kxYzDC44jN1J_QGmqKKS_X2VR1YH-vvGTTK-OMAZuO0uPyLM0gnt5x4MT6k2Rl1M35vMlOTG6YnXKaOLA9VrvLIfd7brv1JEE_V_19K-AKfanmv0SuW5HH-QkOfmfk/s320/Saleem+and+Prize.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 28px;">मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली सलीम खान को बेस्ट ब्लॉगर के ईनाम से नवाज़ते हुए डा.</span></td></tr>
</tbody></table><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkOgRilEZ0vR6NdBQyd0ydFgHfMhV1wawDZv1x_m2PRSscPzLDSlQPhsdxKFp3otC3sZUtYGqZDhSCyeSSoFuIhZctzfdO3l5f1_opWDRLKfVfjR0PTRLr0oZqBSVZAEd4skO4IJjiMG4/s1600/Saleem+khan%252C+Furqan+Qasmi.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjkOgRilEZ0vR6NdBQyd0ydFgHfMhV1wawDZv1x_m2PRSscPzLDSlQPhsdxKFp3otC3sZUtYGqZDhSCyeSSoFuIhZctzfdO3l5f1_opWDRLKfVfjR0PTRLr0oZqBSVZAEd4skO4IJjiMG4/s320/Saleem+khan%252C+Furqan+Qasmi.JPG" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">एक यादगार लम्हा सलीम खान के लिए<br />
<br />
<span class="Apple-style-span" style="color: #333333; font-family: Arial, serif; font-size: 12px; line-height: 22px;"><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="border-bottom-color: rgb(204, 204, 204); border-bottom-style: solid; border-bottom-width: 1px; border-left-color: rgb(204, 204, 204); border-left-style: solid; border-left-width: 1px; border-right-color: rgb(204, 204, 204); border-right-style: solid; border-right-width: 1px; border-top-color: rgb(204, 204, 204); border-top-style: solid; border-top-width: 1px; margin-bottom: 0.5em; margin-left: auto; margin-right: auto; padding-bottom: 4px; padding-left: 4px; padding-right: 4px; padding-top: 4px; position: relative; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIKtpmEJ2uAkAbuw0Im7jVS6ZuCinqY6XWLMBDatZNmkLCkXIfJUfT2mTfkIR9hy01mSUKPFVArVsxZiJj8fpJ8I_rLHukeOsFj16PJ74HGdKXVCeBr46evd3zJ0tvWDTkF3_fnt4cFPk/s1600/DSC_0979.JPG" imageanchor="1" style="color: #452f8e; margin-left: auto; margin-right: auto; text-decoration: none;"><img border="0" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIKtpmEJ2uAkAbuw0Im7jVS6ZuCinqY6XWLMBDatZNmkLCkXIfJUfT2mTfkIR9hy01mSUKPFVArVsxZiJj8fpJ8I_rLHukeOsFj16PJ74HGdKXVCeBr46evd3zJ0tvWDTkF3_fnt4cFPk/s320/DSC_0979.JPG" style="border-bottom-style: none; border-bottom-width: medium; border-color: initial; border-color: initial; border-left-style: none; border-left-width: medium; border-right-style: none; border-right-width: medium; border-top-style: none; border-top-width: medium; border-width: initial; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; position: relative;" width="320" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="font-size: 12px; text-align: center;">मीडियाकर्मी रिपोर्टिंग करते हुए</td></tr>
</tbody></table></span></td></tr>
</tbody></table><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div></div>DR. ANWER JAMALhttp://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.com30