ऐसी मान्यता क्यों बन गई है कि बड़ा ब्लॉगर वही कहला सकता है जो कि टंकी पर चढ जाए और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाए-'ब्लॉग वालो, तुमसे मेरी ख़ुशी देखी नहीं जाती, तुम मुझसे जलते हो, मेरी टिप्पणियों से जलते हो, लो मैं चला/चली।'
यह सीन है तो फ़िल्म शोले का लेकिन दोहराया जाता है हिंदी ब्लॉग जगत में भी और यह दोहराया भी शायद इसीलिए जाता है कि यह सीन पसंद बहुत आता है चाहे शोले में किया जाए या शोले से बाहर।
इस सीन को लिखा तो मुसलमानों ने है लेकिन मुसलमानों से ज़्यादा इसकी डिमांड उनमें है जो कि पैदा होते ही मुसलमानों को एक समस्या के रूप में देखना शुरू कर देते हैं जबकि वास्तव में वे ख़ुद ही नई नई समस्याएं खड़ी करते रहते हैं या खड़ी हुई समस्याओं के झाड में ख़ुद ही जाकर अपने सींग फंसा लेते हैं और जब उनके सींग फंस जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि उनके सींग लोहे के तो थे ही नहीं जैसा कि दुनिया को बता रखा था।
अब कैसे तो कह दे और कैसे मान ले कि मैं हार गया ?
अब वह कहता है कि ये महिला ब्लागर हैं न, पुरूष समझकर मुझे अपमानित कर रही हैं। ये मुझे ज़ालिम हाकिम के रूप में दिखाकर मुझे बदनाम करना चाहती हैं।
वह अपनी निजी खुन्नस को बड़ी चालाकी से दो वर्गों के टकराव में बदल देता है और तुरंत ही कुछ पुरूष ब्लॉगर महिला ब्लॉगर्स के खि लाफ लामबंद भी हो जाते हैं लेकिन यह क्या यहां तो कुछ महिला ब्लॉगर्स भी समर्थन में आ जाती हैं ?
इस सीन को लिखा तो मुसलमानों ने है लेकिन मुसलमानों से ज़्यादा इसकी डिमांड उनमें है जो कि पैदा होते ही मुसलमानों को एक समस्या के रूप में देखना शुरू कर देते हैं जबकि वास्तव में वे ख़ुद ही नई नई समस्याएं खड़ी करते रहते हैं या खड़ी हुई समस्याओं के झाड में ख़ुद ही जाकर अपने सींग फंसा लेते हैं और जब उनके सींग फंस जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि उनके सींग लोहे के तो थे ही नहीं जैसा कि दुनिया को बता रखा था।
अब कैसे तो कह दे और कैसे मान ले कि मैं हार गया ?
अब वह कहता है कि ये महिला ब्लागर हैं न, पुरूष समझकर मुझे अपमानित कर रही हैं। ये मुझे ज़ालिम हाकिम के रूप में दिखाकर मुझे बदनाम करना चाहती हैं।
वह अपनी निजी खुन्नस को बड़ी चालाकी से दो वर्गों के टकराव में बदल देता है और तुरंत ही कुछ पुरूष ब्लॉगर महिला ब्लॉगर्स के खि लाफ लामबंद भी हो जाते हैं लेकिन यह क्या यहां तो कुछ महिला ब्लॉगर्स भी समर्थन में आ जाती हैं ?
यह क्या खिचड़ी है भाई ?
दोनों जेंडर के लोग कैसे मनाने आ सकते हैं ?
डिज़ायनर ब्लॉगिंग इसी का तो नाम है भाई साहब .
दोनों जेंडर के लोग आते हैं और मनाते हैं।
इन दोनों जेंडर के लोगों को उसने कई स्तर पर जोड रखा होता है।
कुछ से तो याराना होता है विचारधारा का।
तुम भी आग उगलते हो तो देखो हम भी मौक ा देखकर आग ही उगलते हैं।
तुम्हारे सीने में आग है तो हमारे सीने में भी दूध नहीं लावा ही है।
जो तुम, वो हम।
सो हमारे ब्लॉग पर आते रहा करो।
लेकिन कुछ लोग विपरीत विचारधारा के भी होते हैं इन मनाने वालों में।
ये उसके बाप होते हैं।
यानि कि बाप होते नहीं हैं लेकिन वह बना लेता है। बड़ा ब्लॉगर वह होता है जिसके बाप एक से ज़्यादा हों।
जब बाप कई होंगे तो मांएं भी कई चाहिएं और जब मां-बाप बहुत से हो गए तो भाई-बहन की तो लाइन लग ही जाएगी।
यह है शानदार ब्लॉगिंग के लिए एक लाजवाब डिज़ायन।
इसके बाद सबसे ज़्यादा आग बरसाऊ लीडर की जम कर तारीफ करो और उसके तुरंत बाद किसी ऐसे झाड में जाकर टक्कर मार दो जिसमें आग लगवानी हो।
समर्थक तुरंत आ जाएंगे वहां आग लगाने और बेचारा झाड यही सोचता रहेगा कि इससे तो निपट लेता लेकिन इस पूरी फ़ौज से कहां तक लडूं ?
इधर झाड परेशान खड़ा है और उधर हाईलैंड पर बनी टंकी पर पुरूष ब्लॉगर चढ़ा खड़ा है कि बस अब बहुत हो गया, हमें नहीं लिखना ब्लॉग।
दोनों जेंडर के लोग कैसे मनाने आ सकते हैं ?
डिज़ायनर ब्लॉगिंग इसी का तो नाम है भाई साहब .
दोनों जेंडर के लोग आते हैं और मनाते हैं।
इन दोनों जेंडर के लोगों को उसने कई स्तर पर जोड रखा होता है।
कुछ से तो याराना होता है विचारधारा का।
तुम भी आग उगलते हो तो देखो हम भी मौक ा देखकर आग ही उगलते हैं।
तुम्हारे सीने में आग है तो हमारे सीने में भी दूध नहीं लावा ही है।
जो तुम, वो हम।
सो हमारे ब्लॉग पर आते रहा करो।
लेकिन कुछ लोग विपरीत विचारधारा के भी होते हैं इन मनाने वालों में।
ये उसके बाप होते हैं।
यानि कि बाप होते नहीं हैं लेकिन वह बना लेता है। बड़ा ब्लॉगर वह होता है जिसके बाप एक से ज़्यादा हों।
जब बाप कई होंगे तो मांएं भी कई चाहिएं और जब मां-बाप बहुत से हो गए तो भाई-बहन की तो लाइन लग ही जाएगी।
यह है शानदार ब्लॉगिंग के लिए एक लाजवाब डिज़ायन।
इसके बाद सबसे ज़्यादा आग बरसाऊ लीडर की जम कर तारीफ करो और उसके तुरंत बाद किसी ऐसे झाड में जाकर टक्कर मार दो जिसमें आग लगवानी हो।
समर्थक तुरंत आ जाएंगे वहां आग लगाने और बेचारा झाड यही सोचता रहेगा कि इससे तो निपट लेता लेकिन इस पूरी फ़ौज से कहां तक लडूं ?
इधर झाड परेशान खड़ा है और उधर हाईलैंड पर बनी टंकी पर पुरूष ब्लॉगर चढ़ा खड़ा है कि बस अब बहुत हो गया, हमें नहीं लिखना ब्लॉग।
उड़न बिस्तरी जी ने कहा कि 'अच्छा ठीक है बाबा, मत लिखो ब्लॉग, जैसा मन चाहे वैसा करो।'
यह क्या कह दिया ?
यह डायलॉग तो शोले में है ही नहीं, इसने कैसे बोल दिया ?
ब्लॉग जगत के भाई लोगों ने हुल्लड़ पेल दिया।
एक साहब बोले कि आप तो चुप रहते हैं ऐसे मामलों में, आप बोले ही क्यों ?
अब बेचारे उड़न बिस्तरी जी क्या बताएं कि भाई हम पक चुके हैं ये सीन देखकर, थोड़ा नयापन लाने के लिए बोले थे। अब यह कहना अच्छा थोड़े ही लगता कि यह सब नौटंकी चल रही है।
लेकिन उन्हें भी सोचना चाहिए कि कोई नौटंकी दिखा रहा है या कुछ और लेकिन दिखा तो फ़्री में रहा है न। आप उकता रहे हैं तो कम से कम उन्हें देखने दीजिए जिन्हें मज़ा आ रहा है।
यह क्या कह दिया ?
यह डायलॉग तो शोले में है ही नहीं, इसने कैसे बोल दिया ?
ब्लॉग जगत के भाई लोगों ने हुल्लड़ पेल दिया।
एक साहब बोले कि आप तो चुप रहते हैं ऐसे मामलों में, आप बोले ही क्यों ?
अब बेचारे उड़न बिस्तरी जी क्या बताएं कि भाई हम पक चुके हैं ये सीन देखकर, थोड़ा नयापन लाने के लिए बोले थे। अब यह कहना अच्छा थोड़े ही लगता कि यह सब नौटंकी चल रही है।
लेकिन उन्हें भी सोचना चाहिए कि कोई नौटंकी दिखा रहा है या कुछ और लेकिन दिखा तो फ़्री में रहा है न। आप उकता रहे हैं तो कम से कम उन्हें देखने दीजिए जिन्हें मज़ा आ रहा है।
मनाने वाले लोग जितने ज्य़ादा होते हैं, वह उतना ही बड़ा हिंदी ब्लॉगर समझा जाता है। अपना भाव पता करने के लिए ज रूरी है कि बीच में कम से कम एकाध बार टंकी आरोहण ज रूर किया जाए।
लेकिन जो सचमुच बड़ा ब्लॉगर होता है वह गंभीर होता है। हिंदी ब्लॉगिंग में जैसे जैसे गंभीरता और पुखतगी आती जाएगी, इस तरह की नौटंकियां बंद होती चली जाएंगी।
बहरहाल अब भी अच्छा ही दौर चल रहा है। ज्ञान नहीं मिल रहा है न सही, मज़ा तो आ रहा है न ?
लेकिन जो सचमुच बड़ा ब्लॉगर होता है वह गंभीर होता है। हिंदी ब्लॉगिंग में जैसे जैसे गंभीरता और पुखतगी आती जाएगी, इस तरह की नौटंकियां बंद होती चली जाएंगी।
बहरहाल अब भी अच्छा ही दौर चल रहा है। ज्ञान नहीं मिल रहा है न सही, मज़ा तो आ रहा है न ?
मज़े के लिए तो आदमी जाने कहां कहां जा चढ़ता है और मज़े की उम्मीद हो तो चढ़ा भी लेता है।
हिमालय पर भी आदमी चढ़ा तो मज़े के लिए चढ़ा , टंकी पर भी चढ़ता है तो आदमी मज़े के लिए ही चढ़ता है।
लेकिन ये सब जगहें चढ ने के लिए ठीक नहीं हैं। यहां चढ़ने से मज़ा तो कम आता है और आदमी का तमाशा ज़्यादा बन जाता है।
एक और जगह है जहां चढ कर मज़ा भी ज़्यादा आता है और पता भी किसी को नहीं चलता।
लेकिन यह उरूज (बुलंदी) हरेक को नसीब नहीं होता। इसे वही पाता है जो वास्तव में बड़ा ब्लॉगर होता है।
हिमालय पर भी आदमी चढ़ा तो मज़े के लिए चढ़ा , टंकी पर भी चढ़ता है तो आदमी मज़े के लिए ही चढ़ता है।
लेकिन ये सब जगहें चढ ने के लिए ठीक नहीं हैं। यहां चढ़ने से मज़ा तो कम आता है और आदमी का तमाशा ज़्यादा बन जाता है।
एक और जगह है जहां चढ कर मज़ा भी ज़्यादा आता है और पता भी किसी को नहीं चलता।
लेकिन यह उरूज (बुलंदी) हरेक को नसीब नहीं होता। इसे वही पाता है जो वास्तव में बड़ा ब्लॉगर होता है।