Saturday, April 20, 2013

विदेश में ईनाम क्यों बांटता है बड़ा ब्लॉगर ?Nepal



‘सरदार, आपके नॉर्थ एशिया में छपे इंटरव्यू पर ब्लॉगर्स बड़ा ताव खा रहे  हैं‘-जंगलायतन वाले ने आकर सांभा स्टाइल में अपने बॉस को ख़बर दी। 
‘सरदार तो तू ऐसे कह रहा है जैसे कि मैं गब्बर सिंह होऊँ।‘-उसके बॉस ने ‘भोजपुरी ब्लॉगिंग के इतिहास‘ के पन्ने पलटते हुए कहा।
‘ हें हें हें, आप उनसे कम भी तो नहीं हैं।‘-जंगलायतन के उजड्ड ने अपनी बात ऊपर रखते हुए कहा।
‘कैसे ?‘
‘वह भी लूटता था और आप भी लूट लेते हैं।‘-यह कहकर उसने अपने हाथ जोड़ दिए और हस्बे आदत ‘हें हें हें‘ करने लगा।
बॉस को उसकी बात और अदा दोनों ही भा गईं। कोई ब्लॉगर बॉस को कुछ कह देता था तो यही जाकर उसे अपना गंवारपना दिखाया करता था। यह सारी बात एक ऑफ़िस में चल रही थी। दोनों ही भोजपुरी ब्लॉगर थे। एक बड़ा था और दूसरा छोटा। तीसरा अभी आया नहीं था। जब से उसका ब्लॉग किसी जापानी कंपनी ने ईनाम के लिए छांट लिया था। तब से वह शहर के हरेक सायबर कैफ़े से अपने ब्लॉग को ख़ुद ही वोट कर रहा था और दोस्तों को भी इसी हिल्ले में लगा रखा था। वह जानीश था। उसने अपनी बीवी को भी अपने समर्थन में पोस्ट लिखने पर लगा रखा था। उसे उम्मीद थी कि शायद महिला ब्लॉगर झांसे में आ जाएं।
बॉस अब भी किताब को पलटे जा रहा था।
‘सरदार, इस किताब में क्या रखा है सिवाय लुटने वालों के नाम पतों के अलावा ?‘-जंगलायतन के स्वामी ने पूछा।
‘सब कहां लुट पाए, कुछ तो बचकर साफ़ निकल गए और कुछ वादा करके मुकर गए।‘-बॉस ने हसरत से कहा।
‘...तो फिर आप देख क्या रहे हैं इसमें ?‘-छोटे ब्लॉगर ने बिना सिर खुजाए पूछा।
‘कुछ नाम, ईनाम के लिए ?‘-बॉस ने बताया।
‘ईनाम का यह कौन सा मौसम है ?‘-उसने हैरान होते हुए कहा।
‘ईनाम के लिए मौसम-बेमौसम क्या ? ईनाम के मारों को जब भी ईनाम दो तभी ले लेते हैं।‘
‘...लेकिन अचानक ईनाम देने की ज़रूरत क्या आन पड़ी आक़ा ?‘-
‘ज़रूरत नहीं मजबूरी है। जापानी कंपनी ‘वायचे डेले‘ को पता चल गया है कि इधर पुरस्कारों की बड़ी डिमांड है। उसने भी हमारे ग्राहकों को लुभाना शुरू कर दिया है। एक तो इंटरनेशनल पुरस्कार और ऊपर से मुफ़्त में। अपना बिज़नेस हाथ से जा सकता है।‘-बॉस ने दुख का कड़वा सा घूंट पीते हुए कहा।
‘यह भी मुफ़्त में नहीं मिल रहा है। अपने जानीश ने एंकर को बहुत आदाब और तस्लीम किए हैं। तब जाकर उसके कुछ ब्लॉगों को उसने चुना है। आगे से इसमें पैसा और सिफ़ारिश भी चलेगी। जापान का यह पुरस्कार भी अपने भाई बेच डालेंगे।‘-छोटे ब्लॉगर ने तसल्ली दी।
‘पुरस्कार बिकते ही हैं। यह सब जानते हैं। उनकी सेल ही हमारी चिन्ता का विषय है। हमारे इलाक़े में दूसरे का पुरस्कार नहीं बिकना चाहिए या कम से कम हमारे पुरस्कारों की सेल बंद नहीं होनी चाहिए। इसी से हमारा दाल-भात चलता है। इसीलिए हमें प्रीमेच्योर ईनाम देना पड़ रहा है।‘-बॉस ने कहा।
‘इस बार ईनाम कहां देंगे ?‘
‘नेपाल में।‘
‘नेपाल ठीक नहीं रहेगा। वह बदनाम है।‘
‘तू वहां कब गया था ?‘
‘मैं नहीं गया तो क्या देवानंद तो गए थे। उन्हें वहां अपनी बहन चरस गांजा पीते हुए मिली थी। आपने देखा नहीं हरे रामा हरे कृष्णा में ?‘
‘यह फ़िल्मी बातें हैं।‘
‘जगन्नाथ रसोईया भी स्वामी दयानन्द को ज़हर देकर वहीं भागा था।‘-जंगलायतन वाले ने अपना ज्ञान बघारा।
‘यह किताबी बात है।‘
‘वहां समलैंगिकों की परेड भी निकल चुकी है और वहां राज परिवार को भी उनके किसी अपने ने ही ठिकाने लगा दिया था। यह तो हक़ीक़त है न।‘
‘ये पुरानी बातें हैं और न ही हम राजमहलं जाएंगे।‘-बॉस ने कहा।

‘वहां कोई घुसने भी नहीं देगा और किसी तरह घुस गए तो बाहर नहीं आने देगा। वहां कई लॉबियां काम कर रही हैं बॉस। सबकी ढपली तो एक ही है लेकिन राग अलग अलग है।‘
‘ढपली एक क्यों है ?‘-बॉस ने मुस्कुराते हुए पूछा।
‘ग़रीबी के कारण।‘-छोटा ब्लॉगर बोला।
‘अच्छा है।‘
‘क्या कहा, ग़रीब होना अच्छा है।‘-उजड्ड ब्लॉगर चकरा गया।
‘हां, वहां ग़रीबी है। इसीलिए वहां दिल्ली या लखनऊ के मुक़ाबले कार्यक्रम के लिए जगह सस्ते में ही मिल जाती है। लेबर भी सस्ती है।‘-प्रगतिशील लेखक के रूप में प्रसिद्ध बॉस ने किसी पूंजीपति की भांति कहा।
‘...लेकिन बॉस वहां भारत का विरोध करने वाले तत्व भी हैं। कहीं उन्हें हमारा पता चल गया और उन्होंने कोई चीनी बम हमारे सम्मेलन पर फेंक मारा तो ...?‘-छोटे ब्लॉगर ने पते की बात कही। उसके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं।
‘...तो क्या ?, दो चार ब्लॉगर मर गए तो अपना नाम दुनिया में हो जाएगा। स्टेज की कुर्सियों को हम चेक करके बैठेंगे। बाक़ी की कुर्सियों को चेक करना ब्लॉगर्स की ज़िम्मेदारी है।‘-बॉस ने समस्या का समाधान कर दिया।
‘भोजपुरी ब्लॉगर्स से ज़िम्मेदारी की उम्मीद करना बेकार है बॉस।‘
‘...तो मर जाएं, हमारी बला से। यहां कौन सी कमी हो जाएगी ?‘-बॉस के इरादे बुलंद थे।
‘...परंतु नेपाल ही क्यों ?‘-छोटे ने पूछा।
‘विदेश के नाम से भव्यता आती है। प्रोग्राम की प्रोडक्शन वैल्यू बढ़ जाती है और प्रायोजक की जेब से ज़्यादा पैसा निकलवाना आसान हो जाता है।‘-बॉस ने कहा।
तभी जानीश भी आ पहुंचा। बॉस ने उसका खड़े होकर स्वागत किया। इससे पता चला कि वह रूतबे में बॉस के बराबर है। वैसे भी बॉस उसके इलाक़े में रह रहा है। लूट का माल ये दोनों बराबर बांटते हैं। जंगलायतन वाला केवल दिहाड़ी पर इनके लिए दौड़-भाग करता है।
जानीश ने मेज़ पर रखी बोतल उठाई और पानी पीने लगा। पानी पीकर उसने एक लिस्ट बॉस की दी-‘इसमें उस सामान की लिस्ट है। जिनकी नेपाल में डिमांड है। ये सामान हम इधर से नेपाल ले जाएंगे।‘
‘एक बात का ध्यान रखना कि पेमेंट में असली नोट ही लेना। वहां नक़ली करेंसी भी चल रही है।‘-बॉस ने ध्यान दिलाया।
‘हम बदले में करेंसी नहीं लेंगे बल्कि चाइना का वह सामान ले लेंगे जिसकी इधर डिमांड है।‘-जानीश ने कहा।
‘यह तो तस्करी हो जाएगी।‘-छोटे ब्लॉगर ने याद दिलाया।
‘तस्करी न करें तो क्या मसख़री करें। ख़र्च कहां से निकलेगा ?‘
‘ख़र्च तो वह पुराना प्रायोजक दे ही रहा है।‘-छोटे ने अपनी टांग अड़ाई।
‘वह तो प्रॉफ़िट है। फिर वह बंटकर अपने हिस्से में आएगा भी कितना ?‘-जानीश ने कहा।
तभी दिल्ली से छिपकली डॉट कॉम वाले की कॉल आ गई। यह एक अलग गुट का मालिक है लेकिन ईनाम के धंधे में यह भी इनके साथ शामिल रहता है। इसकी परसेंटेज नहीं होती। यह ईनाम के लिए पार्टी ख़ुद तैयार करता है। उनसे वुसूली भी ख़ुद करता है और थोड़ा बहुत ख़र्च के नाम पर बॉस को दे देता है। यह मरने की कगार पर है लेकिन सुधरने की कोई फ़िक्र नहीं है। अब भी ‘नारी‘ पर छींटाकशी करता रहता है।
दिल्ली से लखनऊ तक बड़े ब्लॉगर्स का यही हाल है। शायद नेपाल तक भी यही हाल हो और न भी होगा तो अब हो जाएगा। 

Tuesday, March 12, 2013

इश्क़ में भी अपनी अक्ल और बिज़नेस ख़राब नहीं करता बड़ा ब्लॉगर

उसने कह दिया है कि ईनाम के लालच में काम करना अच्छी बात नहीं है।
किसने कह दिया है भाई साहब ?
अरे भाई, हैं एक बड़े ब्लॉगर !
कौन से बड़े ब्लॉगर हैं वो ?
वही जो छोटे छोटे ईनाम कई बार ले चुके हैं।
अच्छा, अच्छा वह हैं। वे तो ईनाम तब भी छोड़कर न आए जबकि उनके दोस्त, साथी और बिज़नेस पार्टनर ने ख़ुद को अपमानित महसूस किया और उसने अपना ईनाम अपनी कुर्सी पर ही छोड़ दिया था। उस कटिन समय में भी वह अपना ईनाम बड़ी मज़बूती से पकड़कर गाड़ी में उनकी बग़ल में ही बैठे रहे थे।
दिल्ली बॉम्बे में ऐसा ही होता है। वे दूसरे की ज़िल्लत को उसी तक रखते हैं। यह सोच देहाती है कि दोस्त ज़लील हो जाए तो हम भी ईनाम ठकुरा दें। ऐसे तो ईनाम कभी भी न मिलेगा। अगले प्रोग्राम में भी कुछ ब्लॉगर्स ने अपने अपमानित होने की बात ब्लॉग जगत को बताई थी। सामूहिक आयोजन हो और कोई अपमानित न हो, ऐसा भला कहीं होता है क्या ?

यह तो बड़ी अक्लमंदी की बात है भाई।
हां, और नहीं तो क्या !, इन्हें अल्लाह से भी ईनाम का लालच नहीं है। बस इन्हें तो अल्लाह से इश्क़ हो गया है।
अच्छा, यह नई ख़बर है। जिसे दोस्त से मुहब्बत न हुई उसे अल्लाह से इश्क़ हो गया है।
बड़े शहरों में ऐसा ही होता है। पुराने उर्दू फ़ारसी लिट्रेचर में मुहब्बत और इश्क़ में थोड़ा सा फ़र्क़ माना जाता है। मुहब्बत में अक्ल क़ायम रहती है और इश्क़ में जुनून होता है, दीवानगी होती है। उसमें अक्ल बाक़ी नहीं रहती। जिसमें अक्ल बाक़ी हो, समझो उसे इश्क़ नहीं हुआ और अगर वह बदनामी से डरता हो तो समझ लो उसे मुहब्बत भी नहीं हुई क्योंकि बदनामी इश्क़ में तो होती ही है, मुहब्बत खुल जाय तो उसमें भी हो जाती है।
बदनामी ने इसके दामन को कभी छुआ तक नहीं। अल्लाह का चर्चा करने के लिए जो दो एक ब्लॉगर बदनाम हैं। यह उनके पास तक नहीं फटकता।
इसीलिए हिंदी हिंदू ब्लॉगर्स से कमाने वाला यह अकेला ‘अल्लाह का आशिक़‘ है।
बड़े ब्लॉगर्स का एक रंग यह भी है। ये सदियों से चले आ रहे शब्दों के अर्थ बदल कर रख देते हैं।

Friday, September 14, 2012

बीवी का सदुपयोग करता है बड़ा ब्लॉगर Nice Plan

‘मैं शादी करूंगा तो बस लड़की से ही करूंगा।‘- ब्लॉगर रंजन ने लैपटॉप खटखटाते हुए अपना फ़ैसला सुना दिया।
‘लड़की से शादी का चलन अभी तक बाक़ी है, तुम भी कर लोगे तो इसमें नया क्या होगा ?‘-हमने उससे पूछा।
‘लड़की ब्लॉगर होगी, इसमें यह नया होगा।‘-उसने लैपटॉप को बंद करके बैग में रखते हुए कहा।
‘किसी कमाऊ लड़की से शादी करने की ज़िद करता तो हमारी समझ में आता लेकिन एक हिंदी ब्लॉगर तुम्हें क्या दे पाएगी ?'
दहेज में नॉन ब्लॉगर लड़की का बाप जो देगा वह तो ब्लॉगर का बाप भी ज़रूर देगा बल्कि ज़्यादा देगा। साथ में डेस्क टॉप, लैपटॉप, टैबलेट और इंटरनेट कनेक्टर भी देगा।‘-उसने मुस्कुराते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर हम भी मुस्कुराये-‘बस इतनी सी बात के लिए ही ब्लॉगर लड़की से शादी करोगे।‘
‘नहीं, दरअसल मैं ज़िंदगी को अपने तरीक़े से जीना चाहता हूं।  मैं शांति चाहता हूं। मुझे प्राब्लम्स पालने का शौक़ नहीं है और इस तरह दुश्मन भी दबे रहेंगे और एक दिन वे बर्बाद भी हो जाएंगे।‘-उसने हमारी आंखों में झांक कर कहा और कुर्सी से उठकर ड्राइंग रूम में टहलने लगा।
‘बात कुछ समझ में नहीं आई‘-वाक़ई उसकी बात समझ से बाहर थी कि यह सब उसे एक ब्लॉगर लड़की से कैसे मिल सकता है ?‘
‘देखिए, एक ब्लॉगर वर्चुअल दुनिया के दोस्त दुश्मनों में मगन रहता है। सो ब्लॉगर लड़की भी ऐसे ही रहेगी और मैं अपनी ज़िंदगी अपने तरीक़े से जी सकूंगा। ब्लॉगिंग के लिए वह देर तक जागती रहेगी और सोएगी तो फिर उठेगी नहीं। ऐसे में वह कोई प्रॉब्लम पैदा ही नहीं कर पाएगी तो उसे पालने की नौबत भी न आएगी।‘-उसने समझाया तो लगा कि उसकी बात में दम है।
‘...और दुश्मन कैसे दबे रहेंगे ?‘
‘यह मैंने अभी अभी एक पोस्ट पर देखा है कि एक ब्लॉगर शेर की तरह ग़र्राकर किसी समारोह के आयोजकों से पूछ रहा था कि बताओ धन कहां से जुटाया और कहां लुटाया ?‘, ख़ुद को फंसा देखकर आयोजक अपनी बीवी की आईडी से लॉगिन करके ख़ुद ही जवाब देने आ गया। सवाल पूछने वाला बिल्ली की तरह म्याऊं म्याऊं करने लगा। वह समझा कि सामने सचमुच ही भाभी खड़ी हैं। उसे लगा कि इससे कुछ कहा तो ईद का शीर हाथ से निकल जाएगा। सोचिए अगर सामने सचमुच ही भाभी खड़ी हो तो फिर दुश्मन कैसे ललकार कर बात कर सकता है ?‘-उसकी दलील में दम था।
‘...और वह दुश्मन की बर्बादी वाली बात कैसे हो पाएगी ?‘-यह बात अब भी हमारी समझ से बाहर थी।
‘आंकड़े बता रहे हैं कि ब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग से जुड़े हुए लोग कभी कभी आपस में ज़रूरत से ज़्यादा ही जुड़ जाते हैं और उनकी शादियां टूटने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। हो सकता है कि मेरी क़िस्मत भी किसी दिन मुझ पर मेहरबान हो जाए और मेरी बीवी मेरे किसी दुश्मन के साथ चली जाए। ऐसा हुआ तो दुश्मन की बर्बादी तय है कि नहीं।‘-उसने उम्मीद जताई।
‘क्या तुम इसे क़िस्मत की मेहरबानी का नाम दोगे ?‘
‘अगर घर से मुसीबत रूख़सत हो जाए तो क्या यह क़िस्मत की मेहरबानी नहीं कहलाएगी ?‘
‘मुसीबत ???‘-हम वाक़ई हैरान थे।
‘मुसीबत ही नहीं बल्कि डबल मुसीबत। एक तो बीवी नाम ही मुसीबत का है और ऊपर से वह ब्लॉगर भी हो तो जानो कि नीम के ऊपर करेला चढ़ा है।‘-उसने ऐसा मुंह बनाकर कहा जैसे करेला नीम पर नहीं बल्कि उसके मुंह में रखा हो।
‘डबल मुसीबत भी कह रहे हो तो उसे घर क्यों ला रहे हो ?‘-हमने थोड़ा झल्लाकर कहा।
‘क्योंकि कुवांरेपन का धब्बा हट जाएगा और सम्मान मिल जाएगा। शादीशुदा आदमी को समाज में विश्वसनीय और सम्मानित माना जाता है। ब्लॉग जगत में भी ज़्यादातर विवाहितों को ही सम्मानित किया जाता है। मुझे भी सम्मानित होना अच्छा लगता है। सिंगल ब्लॉगर की लाइन लंबी है जबकि डबल ब्लॉगर यानि दंपति ब्लॉगर में दो चार ही नाम हैं। दंपति ब्लॉगर वाले टाइटल का सम्मान मुझे मिल सकता है। ब्लॉगर मिलन के बहाने आउटिंग भी होती रहेगी और सारा ख़र्चा भी ससुर के सिर पर ही पड़ेगा।‘-उसने ख़ुश होते हुए कहा।
‘तेरा तो बहुत लंबा प्लान है भई, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि सारा मामला उल्टा तुम्हारे गले पड़ जाए‘-हमने कहा।
‘क्या मतलब ?‘
‘अगर ब्लॉगर लड़की का भी ऐसा ही कोई छिपा एजेंडा हुआ तो लेने के देने पड़ सकते हैं।‘-हमने कहा तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
‘अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा ?‘
हमने क़हक़हा लगाकर कहा-‘ज़्यादा कुछ नहीं होगा, बस तुम अपने तरीक़े से नहीं जी पाओगे। घर में प्रॉब्लम्स पैदा होती रहेंगी और तुम उन्हें पालते और पढ़ाते रहना। तुम ज़िंदगी भर बिल्ली की तरह म्याऊँ म्याऊँ करते रहोगे। दुश्मन के बजाय तुम ख़ुद ही दबे पड़े रहोगे। ...और हां, तुम्हारी जान को एक काम और बढ़ जाएगा।‘
वह क्या ?
‘तुम्हारी बीवी तो बच्चे और रसोई संभालेगी, तब उसके ब्लॉग को भी तुम्हें ही संभालना पड़ेगा और उसके प्रशंसकों को भी। दंपति को अवार्ड ऐसे ही नहीं मिल जाता। वे इसके लिए डिज़र्व करते हैं।‘-हमने कहा।
ड्राइंग रूम में घूमता हुआ रंजन अचानक ही सोफ़े पर पसर गया। उसके माथे पर लकीरें उभर आई थीं।

Friday, September 7, 2012

‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘: परिभाषा, उपयोग और सावधानियां Hindi Blogging

हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास में वर्ष 2012  कई वजह से याद किया जाएगा। एक ख़ास वजह यह भी है कि ‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘ की शुरूआत इसी वर्ष में हुई। लंगोटिया यारी को दुनिया जानती है। जब इसे ब्लॉगिंग में निभाया जाता है तो लंगोटिया ब्लॉगिंग वुजूद में आती है। ‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘ से मुराद ऐसी ब्लॉगिंग से है जिसमें एक ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर को अपनी ईमेल आईडी का पासवर्ड भी बता देता है, जो कि अत्यंत गोपनीय रखी जाने वाली चीज़ है। लंगोटिया ब्लॉगिंग में दूसरा ब्लॉगर भी ईमेल आईडी का इस्तेमाल दाता ब्लॉगर के हित में करता है। लंगोटिया ब्लॉगिंग में एक ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर पर पूर्ण विश्वास करता है और दूसरा ब्लॉगर उसके विश्वास पर खरा उतरता है और उसके बचाव में भरपूर बहस करता है बल्कि ब्लॉगर्स के साथ डांट डपट भी कर देता है। ब्लॉगर महिला हो तो भी नहीं बख्शता। उससे भी कह देता है कि ‘झूठ के पांव नहीं होते‘ और यह नहीं देखता कि ख़ुद के पास न पैर हैं और न सिर, कुछ पास है तो बस गज़ भर की ज़बान है।
बेशक झूठ के पांव नहीं होते लेकिन ज़बान ज़रूर होती है और ज़बान लंबी हो तो आसानी से पकड़ भी ली जाती है। सो एक महिला ने उसकी ज़बान ऐसी पकड़ी कि उसके फ़ोटो खींच अपने सम्मानित ब्लॉग पर चिपका दिए, हमेशा के लिए।
हिंदी ब्लॉगिंग में आपसी विश्वास की यह धारा गुपचुप बहे जा रही थी और हम सभी इससे अन्जान थे कि अचानक यह घटना घटी और सबको हैरान कर गई।
दोनों ही ब्लॉगर बड़े निकले। जिसने दोनों ब्लॉगर्स के अंतरंग विश्वास को ट्रेस किया और सबको बताया वह भी बड़ी ब्लॉगर ही है। दर्जनों बड़े ब्लॉगर इस घटना के गवाह भी बने। इसलिए घटना का ब्यौरा देना ज़रूरी नहीं है।
इस मौक़े पर दोनों बड़े ब्लॉगर मुबारकबाद के मुस्तहिक़ हैं कि उन्होंने हिंदी ब्लॉगर्स के सामने आपसी विश्वास की बेमिसाल मिसाल पेश की है।
धर्मवीर जैसी दोस्ती की मिसाल पेश करने वाले इन ब्लॉगर्स को हिंदी ब्लॉगर्स ने मुबारकबाद देने के बजाय लम्पट, नक्क़ाल और फ़्रॉड तक कहा। जिससे कि उन दोनों ब्लॉगर्स को निश्चय ही बुरा लगा होगा। इस घटना का यह एक काला पक्ष है। इतने महान विश्वास के बाद भी तारीफ़ के बजाय ताने मिलें तो अच्छा नहीं लगता।

यह ब्लॉग हिंदी ब्लॉगिंग का व्यवहारिक प्रशिक्षण देता है। इसलिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि लंगोटिया ब्लॉगिंग की ज़रूरत कब पेश आती है और उसे लोगों की बुरी नज़र से बचाने के लिए क्या करना चाहिए ?
अगर आप अपने ब्लॉग पर केवल अपने विचार रखते हैं तो लंगोटिया ब्लॉगिंग आपके लिए नहीं है।
लंगोटिया ब्लॉगिंग ऐसे दो ब्लॉगर्स के दरम्यान पाई जाती है। जिनमें से एक ख़ुद ब्लॉगर बना हो और दूसरे को उसने ब्लॉगर बनाया हो या ब्लॉगिंग में उसकी मदद करता हो। यह दो बदन एक जान होने जैसी बात है। ऐसा तब किया जाता है जब एक ब्लॉगर अपनी बिसात से ज़्यादा बड़ा काम अपने हाथ में ले लेता है जैसे कि हिंदी ब्लॉगिंग को आगे या पीछे ले जाना। तब वह ज़िम्मेदारी के उस बोझ को उठाने के लिए दूसरे ब्लॉगर को अपने साथ शामिल कर लेता है।
एक प्रोग्राम का आयोजन करता है और दूसरा ऐतराज़ करने वालों के दांत खट्टे करता हुआ घूमता है। कभी वह अपने नाम से जवाब देता है और कभी वह दूसरे ब्लॉगर के नाम से जवाब देता है। इसी जवाब देने के चक्कर में कभी कभी चूक हो जाती है और ब्लॉगर पकड़ लिया जाता है। लंगोटिया ब्लॉगिंग की पहली घटना ऐसे ही पकड़ में आई और आलोचना का विषय बन गई।
इस घटना का एक रूप तो वह है जो दुनिया ने जाना कि अमुक ब्लॉगर ने कहा कि मैंने अपनी ईमेल आईडी का पासवर्ड अपने मित्र ब्लॉगर को बता दिया था। उसी से कमेंट करने में ग़लती हो गई लेकिन सच्चाई इसके उलट थी, जिसे केवल वह ब्लॉगर जानता है जो कि सच बोलने के मशहूर है। हक़ीक़त यह है कि कमेंट देने में ग़लती ख़ुद उसी से हुई थी लेकिन उसने उसे अपने मित्र के सिर डाल दिया। दरअसल उसने उसे अपना पासवर्ड दिया नहीं था बल्कि उसका पासवर्ड लिया था। पासवर्ड लेकर वह उसके ब्लॉग पर अपनी पत्रिकादि का प्रचार करता है। आप देखेंगे कि पिछली पोस्ट पर ब्लॉगर गालियां दे रहा है और अचानक ही अगली पोस्ट गंभीर आ जाती है जो कि उस ब्लॉग के स्वामी के उजड्ड स्वभाव से मेल नहीं खातीं। दोनों पोस्ट के लेखक दो अलग अलग ब्लॉगर हैं। गालियों भरी भाषा वाली पोस्ट ब्लॉग स्वामी की अपनी लिखी हुई हैं। यह उसके कमेंट्स से प्रमाणित है।
याद रखिए कि बड़ा ब्लॉगर अपने से अदना ब्लॉगर को अपना पासवर्ड कभी नहीं देता लेकिन अदना ब्लॉगर सहर्ष अपना पासवर्ड बड़े ब्लॉगर को दे देता है वैसे भी उसके ब्लॉग पर कुछ ख़ास नहीं होता। जिसके लुट जाने का उसे डर हो। कभी कभी ये अदना ब्लॉगर बड़े ब्लॉगर द्वारा ही खड़े किए गए होते हैं। समय समय पर इनसे काम लिया जाता है और बदले में भरपूर सम्मान भी दिया जाता है। अपनी ग़लतियों का ठीकरा फोड़ने के लिए भी इनका सिर काम में लिया जाता है।
लंगोटिया ब्लॉगिंग परिस्थितियों की देन और समय की ज़रूरत है। बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए सिर्फ़ अपना ब्लॉग बना लेना ही काफ़ी नहीं है बल्कि कुछ दूसरे लोगों के ब्लॉग बनवाना भी ज़रूरी है। अगर आपको बड़ा ब्लॉगर बनना है तो आपको भी लंगोटिया ब्लॉगिंग करनी पड़ सकती है। हमारी कोशिश है कि इस यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स की लंगोटिया ब्लॉगिंग को कभी किसी की बुरी नज़र न लगे।
इसका उपाय यह है कि
1. कभी किसी अनाड़ी और नादान को दोस्त न बनाएं।
2. हमेशा दूसरे से उसका पासवर्ड पूछें, अपना पासवर्ड दूसरे को न बताएं।
3. एक समय में कभी दो ब्राउज़र का इस्तेमाल न करें।
4. जब आप एक आईडी से लॉगिन हों तो बस केवल उसी का इस्तेमाल करें। इससे आपको यह याद रखने में आसानी होगी कि आप इस समय किस व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
5. जोश और उत्तेजना में कमेंट न करें।
6. कमेंट पब्लिश करने से पहले हमेशा उसका प्रीव्यू देख लें। जो भी ग़लती होगी, नज़र आ जाएगी और उसे दूर भी कर लिया जाएगा।
ग़लतियों को सीख के रूप में लेना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें दोहराया न जाए।

Thursday, August 30, 2012

जानिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर बहती मुख्यधारा

बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए मुझे क्या करना होगा गुरूजी ? -मेरे मन के आंगन में दाखि़ल होते हुए एक काल्पनिक पात्र ने पूछा। विचार के पैरों से चलते हुए वह अचानक वहां आ खड़ा हुआ जहां मेरा अवधान उस पर टिक गया और यही उसकी सफलता थी।
मन में विचार तो लाखों आते हैं लेकिन हमारा अवधान किसी किसी पर ही टिकता है।
हम भी ख़ुश हुए कि चंचल मन किसी बहाने थोड़ा ठहरा तो सही। मन किसी एक विचार पर ठहर जाए यही बड़ी उपलब्धि है।
विचार भी हमारा अपना था लिहाज़ा उसमें गुण भी हमारे ही झलक रहे थे। हमें तसल्ली हो गई। मन की दुनिया भी बड़ी अजीब है। मन अपना होता है लेकिन उसमें विचर रहे होते हैं दूसरों के विचार और हमें पता ही नहीं चलता। कभी कभी तो यह जाने बिना ही पूरी उम्र गुज़र जाती है।
काल्पनिक पात्र अब भी हमारे जवाब का मुन्तज़िर था।
हमने उससे मन ही मन कहा-‘बड़ा बनने के लिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग को देखो और उनका अनुसरण करो।‘
‘गुरूजी, आजकल इंस्टेट फ़ूड का ज़माना है और आप बिरयानी दम कर रहे हैं। हमें तो आप इंस्टेंट टिप्स बता दीजिए। आप तो बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पढ़ते ही रहते हैं।‘-उसकी तरंग मेरे मन को छू गई।
‘बड़ा ब्लॉगर बनना है तो आपको साहस करना होगा।‘-हमने कहा।
‘साहस, कैसा साहस ?‘-वह कुछ समझ नहीं पाया।
‘ग़लत को सही कहने का साहस, ग़लत लोगों का साथ देने का साहस, नंगी होती लड़कियों को नारी मुक्ति का आदर्श बताने का साहस, समलैंगिकों के हक़ में तर्क जुटाने का साहस, अपने ज़मीर का गला घोंटने का साहस। आपको नफ़रत फैलानी होगी, मर्यादा और सीमाएं तोड़नी होंगी। न भी तोड़ पाएं तो ऐसा दिखाना होगा कि जैसे कि बस आप तोड़ने ही वाले हैं और तोड़ने वालों को पसंद करते हैं। चाहे आप अपने घर में तीर्थ,व्रत,प्रार्थना सब कुछ करते हों लेकिन अपने लेखन में ख़ुद को नास्तिक ज़ाहिर करना होगा। धर्म को कूड़ा कबाड़ बताना होगा। शराब पीनी है या आज़ाद यौन संबंध बनाने हैं तो ये काम सीधे करने के बजाय पहले संवैधानिक नैतिकता का पाबंद बनना होगा। इससे आपको पारंपरिक नैतिकता की घुटन से आज़ादी ख़ुद ही मिल जाएगी। अब जो चाहे कीजिए। ज़्यादा ब्लॉग फ़ोलो कीजिए, ज़्यादा टिप्पणियां दीजिए। टिप्पणी में ब्लॉगर्स की तारीफ़ कीजिए। हिंदी ब्लॉग पर अंग्रेज़ी में टिप्पणी दीजिए। अपने ब्लॉग पर कुछ कहना हो किसी विचारक को ज़रूर उद्धृत कीजिए। देशी हिन्दी विचारक के बजाय किसी विदेशी विचारक को उद्धृत कीजिए। अंग्रेज़, फ़ेन्च या अमेरिकन, कोई भी चलेगा। जर्मनी का हो तो अच्छा रहेगा। अरब का भूलकर भी न हो। अपने प्रोफ़ाइल में चित्र ऐसा रखें जिसमें वैभव और ग्रेस एकसाथ नज़र आएं। बुढ़ापे में जवानी का फ़ोटो लगाएं। विदेश यात्राओं का ज़िक्र करें, उनके फ़ोटो दिखाएं। जिस विचारधारा के ब्लॉगर ज़्यादा हों, उनसे बनाकर रखें। बनाकर न भी रखें तो बिगाड़ कर कभी न रखें। मर्द हो तो औरत में दिलचस्पी लो और अगर औरत हो तो मर्दों में दिलचस्पी लो और दोनों ही न हों तो दोनों को रिझाओ। अपनी बात अपनी कविता के बहाने कहो। उसमें उभार, गहराई और लंबाई, सबका ज़िक्र करो। ग़द्य में अश्लीलता कहलाने वाले शब्द कविता में सौंदर्य कहलाते हैं ब्लॉग पर। कविता न लिख सको तो भी उसे कविता बताओ। गद्य लिखकर बीच बीच में एन्टर मारते चले जाओ। तब कोई नहीं कहेगा कि यह कविता नहीं है। यहां कविता और साहित्य से किसी का लेना देना कम ही है। सबके मक़सद यहां कुछ और हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की मुख्य धारा यही है। आप भी सत्य के सिवा कुछ और मक़सद निश्चित करो और ब्लॉगिंग शुरू कर दो। बड़ा ब्लॉगर बन जाओगे। जो  आप होना चाहते हो। सोचो कि तुम वह हो चुके हो। इससे तुम्हारे हाव भाव तुरंत बदल जाएंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यही है। जो  आप ख़ुद को महसूस करते हो,  आप वही हो।‘-हमारी तरंगे भी उसे छू रही थी।
‘...और अगर मैं मुख्यधारा के खि़लाफ़ चलूं और सत्य को मक़सद बनाऊं तो...‘-उसने कहा। आखि़रकार विचार तो वह हमारा ही था।
‘तब  आप तन्हा रह जाओगे।‘-हंमने चेतावनी दी।
‘फ़ायदा इसी में है।‘
‘कैसे ?‘
‘जो मैं लिखूंगा, लिखने से पहले वहीं सोचूंगा। जो हम सोचते हैं, हम वही हो जाते हैं। मैं सत्य सोचूंगा तो मैं भी सत्य हो जाऊंगा। यही सबसे बड़ी उपलब्धि है। यही बात सबसे बड़ा ब्लॉगर बनाती है।‘-उसने कहा।
काल्पनिक पात्र आगे बढ़ चुका था लेकिन हमारा अवधान अब भी ठीक उसी जगह केंद्रित था जहां कि वह था। एक शून्य का अनुभव हो रहा था और शून्य की अनुभूति का तरीक़ा भी यही है कि पहले आप सारे विचारों में से किसी एक विचार को चुनें, विचार सुन्दर हो, उसकी सुन्दरता आपके ध्यान को बरबस ही खींच लेगी। आप उसमें रम जाएंगे और आपका ध्यान सबसे हटकर एक पर केंद्रित हो जाएगा। फिर आप उस विचार को भी जाने दें।
अब केवल आप बचेंगे निर्विचार। निर्विचार होना सहज सरल है।

Wednesday, July 25, 2012

बूढ़े शरीर में भी आंख जवान रखता है बड़ा ब्लॉगर

दो साल पहले एक परिचित के निमंत्रण पर हम उसके घर गए और साथ में अपने दोस्त को भी ले गए। हमारे परिचित भी मुसलमान थे और हमारे दोस्त भी और हम ख़ुद भी। हमारे परिचित ने हमें क़ायदे से नाश्ता कराया। नाश्ते का सामान भी वह ख़ुद ही लाए और बाद में किचन तक बर्तन भी ख़ुद ही पहुंचाए। उनके शहर में उनके साथ घूमे। हमारे दोस्त तो वापस चले गए लेकिन उनके साथ हम फिर उनके घर आ गए। इस बीच उनकी बीवी हमारे सामने नहीं आईं और न ही उनकी मां हमारे सामने आईं। हमें अच्छा लगा कि इस घर में पर्दे का रिवाज अभी बाक़ी है।
इस वाक़ये के कुछ माह बाद हमारे उस परिचित को सम्मानित होना पड़ा . एक बूढ़े आदमी को भी उसी समारोह में सम्मानित होना था। वह उनके शहर आया तो उन्होंने उसे अपने घर पर रूकवाया और उसे असली बूढा समझ कर अपनी बीवी को भी उसके सामने कर दिया। उसने परिचय कराया कि ये हमारी शरीके हयात हैं। हमारा परिचित तो उसे बूढ़ा समझकर सम्मान देता रहा लेकिन वह बूढ़ा उसकी बीवी के रूप का जायज़ा लेता रहा। सम्मान समारोह से लौटकर बाद में उसने अपनी मित्र मंडली को बताया कि जब मैं रात को अमुक के घर पहुंचा तो तुरंत ही एक सुंदर स्त्री  नाश्ता-पानी लेकर आ गई।
याद रखिये, जब तक एक आदमी में सुंदरता को महसूस करने की ताक़त बाक़ी है तब तक उसे हरगिज़ हरगिज़ बूढ़ा न समझा जाए और अगर वह आदमी ब्लॉगर भी हो और ब्लॉगर भी बड़ा हो, तब तो बिल्कुल भी उसका ऐतबार न किया जाए और अगर ब्लॉगर होम्योपैथी का जानकार भी हो तो ख़तरा और भी ज़्यादा बढ़ जाता है। डैमियाना, एसिड फॉस और कैलकेरिया फ़्लोरिका खाने वाले पर बुढ़ापा आता ही कब है ?, बस बाल सफ़ेद होते हैं और अगर साइलीशिया खा ली जाए तो सफ़ेद बाल भी काले हो जाएँ। इनके अलावा भी और कई दवाएं हैं जो बदन में  बहने वाला माददा आख़िर उम्र तक बनाती  रहती हैं। वह खुद भी ऐलानिया बताते रहते हैं कि मैं बूढा नहीं हूँ।

बालों में सफ़ेदी देखकर लोग उसका ऐतबार करते हैं। लोग ऐतबार करें तो करें लेकिन आप किसी का ऐतबार उसके बाल या उसकी उम्र देखकर मत करना। आजकल ज़माना बड़ा ख़राब है।
किसी को मेहमान बनाने से नहीं बच सकते तो कम से कम नाश्ता पानी तो ख़ुद परोसा ही जा सकता है। ऐसा किया जाए तो फिर आपकी बीवी की सुंदरता का चर्चा कोई अपने ब्लॉग पर नहीं कर पाएगा।
बड़ा ब्लॉगर सफ़र भी करता है और मेहमान भी बनता है और इस दौरान वह अपनी पोस्ट का सामान भी आपके घर से ही ले जाता है। 
आपकी बीवी की सुंदरता आप तक रहे तो बेहतर है वर्ना कहीं किसी ब्लॉगर की नज़र पड़ गई तो वह उसका चर्चा अपने ब्लॉग पर किए बिना नहीं मानेगा और तब दूसरे ब्लॉगर भी आपके घर का रूख़ करेंगे। वे भी देखना चाहेंगे कि तुम्हारी बीवी कितनी सुंदर है ?
जो इस तरह के लोगों को अपने घर का रास्ता दिखाने से बच जाए, वास्तव में वही है बड़ा ब्लॉगर .

Friday, May 18, 2012

...ताकि बचा रहे ब्लॉग परिवार Blog Parivar

सारी धरती एक परिवार है।
बड़ा ब्लॉगर ऐसा मानता है।
इसीलिए जब भी मौक़ा मिलता है, वह अपने परिवार से मिलने के लिए निकल लेता है। श्रीनगर की डल झील से लेकर थाईलैंड के मसाज पार्लर तक वह घूम चुका है। अब उसकी नज़र इस कॉन्टिनेंट से बाहर जाने की है।
ब्लॉगर ब्लॉगिंग के सहारे घूमता है। जितना वह घूमता है, उससे ज़्यादा उसका दिमाग़ घूमता है।
विदेशी ब्लॉगर के दिल को पहले मोम करो फिर उसमें अपनी छाप छोड़ दो।
हरेक आदमी अपना नाम और सम्मान चाहता है। यह डेल कारनेगी ने भी बताया है और दूसरों ने भी।
जिसे अपना बनाना चाहो, उसके नाम का गुणगान करो, उसे ईनाम दो।
वह दिल से ही कहेगा कि आप भी आना कभी हमारे घर यानि विदेश में।
बस हो गया काम।
विदेश में तो तरसते हैं कि कोई आ जाए अपने देस से।
वहां जितने भी देसी आबाद हैं, अपनी सोच से वे भी विदेशी हो चुके हैं।
अपना टाइम देने से पहले वह 10 बार सोचता है। यहां के लोगों के पास टाइम की भरमार है। जितना चाहे उतना टाइम ले लो।
विदेशी ब्लॉगर को नवाज़ने से विदेशी ब्लॉगर को दोहरा लाभ होता है और ख़ुद नवाज़ने वाले को भी। एक तो विदेश घूमने का मौक़ा मिला और दूसरे, उससे बड़े ख़ुद हो गये क्योंकि ‘देने वाला हाथ बड़ा होता है लेने वाले से‘।
ईनाम देता ही बड़ा है।
विदेशी दौरे से लौटकर फिर वह वहां के फ़ोटो दिखाएगा जैसे कि झारखंड के लोग दिल्ली में आकर रहते हैं और जब अपने गांव लौटते हैं तो अपनी फ़ोटो दिखाते हैं। उसके रिश्तेदारों में उसका रूतबा कितना बढ़ जाता होगा ?
आप सोच सकते हैं।
विदेशी दौरे के बाद हिंदी ब्लॉगर का रूतबा भी बढ़ता है। ज़्यादा लोगों से संपर्क भी रूतबा बढ़ाता है। 20-30 लोग भी साथ हो जाएं तो एक अकादमी बनाई जा सकती है। इसे बेस बनाकर राजनीतिक पहुंच वालों तक भी पहुंचा जा सकता है।
बड़ा ब्लॉगर जानता है ब्लॉगिंग उर्फ़ न्यू मीडिया की ताक़त। सरकारें तक झुक रही हैं इसके सामने।
सरकारों को ऐसे आदमी चाहिएं जो उन्हें ‘न्यू मीडिया‘ के सामने झुकने से बचा सकें।
देश में अख़बार हैं और क्रांति के हालात भी हैं लेकिन क्रांति नहीं है।
इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पब्लिक को इतने सारे मैच और मनोरंजन दिखाता है कि कुछ देर के लिए सारी हताशा हवा हो जाती है। ‘शीला की जवानी‘ देखकर युवा वर्ग की सोच का रूख़ ही बदल जाता है। क्रांतिकारियों को मरता छोड़कर वह शीला की तलाश में चल देता है और जब शीला उसे मिलती है तो फिर सोनू, मोनू और मुन्नी ख़ुद ही उसके आंगन में खेलने लगती हैं।
शादी करते ही उसकी सारी गर्मी हवा हो जाती है।
आज़ादी की लड़ाई में गरम दल में वही थे जो अपने कुंवारेपन को बचा पाए। शादी शुदा लोगों की गर्मी और हेकड़ी निकल चुकी थी। सो वे नरम दल में थे और अवज्ञा आंदोलन तक ‘सविनय‘ चलाया करते थे।
देश में प्योर देसी बहुत थे लेकिन लोगों को नेहरू पसंद आए क्योंकि वह अंग्रेज़ों को पसंद थे और उनकी बीवियों को भी। नेहरू से लेकर राजीव तक सभी अंग्रेज़ों को बहुत पसंद थे। अंग्रेज़ों की पसंद को नकारना आज भी हिंदुस्तानियों के बस का नहीं है। ब्लॉगिंग और फ़ेसबुक की शुरूआत भी अंग्रेज़ों ने ही की है।
विचार की शक्ति हथियार की शक्ति से हमेशा ज़्यादा होती है। सरकारें इस शक्ति से डरी हुई हैं। सरकारों को ऐसे लोगों की तलाश है जो ईनाम ले सकें।
ईनाम लेने के बदले में उन्हें ब्लॉगिंग की दिशा को नियंत्रित रखना होगा।
यह एक बड़ी डील है जो निकट भविष्य में होने जा रही है।
सौदा उसी से होगा जो विदेश रिटर्न होगा और ब्लॉगिंग में कुछ रूतबा रखता होगा।
इधर उधर घूमना फिरना और ईनाम बांटना भविष्य की उसी योजना की तैयारी है।
गणतंत्र बचाने वाली कहानियां लिखना भी उसी योजना का हिस्सा है यानि कि प्लान लंबा है।
जो आज उसकी आलोचना कर रहे हैं, कल वह उन्हें बेच चुका होगा और किसी को पता भी न चलेगा।
ब्लॉग जगत भी एक परिवार है।
जो परिवार को ही बेच दे, वह बड़ा ब्लॉगर नहीं होता।
बड़ा ब्लॉगर वह है जो परिवार को पहले ही ख़बरदार कर दे कि तुम्हें कैसे बेचा जाने वाला है ?