आत्मा कहां से आती है कोई नहीं जानता लेकिन जिस मार्ग से मनुष्य शरीर आता है, उसे सब जानते हैं। ज्ञात के सहारे अज्ञात का पता लगाना मनुष्य का स्वभाव है। आत्मा, परमात्मा और परमेश्वर सब कुछ अज्ञात है। अगर हमें कुछ ज्ञात है तो वह मनुष्य शरीर है या फिर वह मार्ग जहां से वह आता है। ‘इश्क़े मजाज़ी‘ का मार्ग यही है और ‘इश्क़े हक़ीक़ी‘ तक भी पहुंचने के लिए ‘इश्क़े मजाज़ी‘ लाज़िम है।
इसी रास्ते की खोज ने आदमी को वैज्ञानिक बना दिया। हज़ारों साल तक मनुष्य ने खोजा तब जाकर उसे पता चला कि मार्ग के ऊपर गर्भाशय है। धीरे धीरे उसने पता लगाया कि शरीर का निर्माण गर्भाशय में होता है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और समाज सबका केन्द्र गर्भाशय ही है। गर्भाशय न हो तो इनमें से कुछ भी न हो। जिसने जिस क्षेत्र में भी उन्नति की है, गर्भ से निकल ही उन्नति की है। जिसने भी समाज को जो कुछ दिया है, गर्भ से निकलकर ही दिया है। गर्भ से निकलने के लिए गर्भ में होना ज़रूरी है और गर्भ में होने के लिए नर नारी का मिलन ज़रूरी है।
नर नारी के मिलन को अलंकार से सजा कर कहा जाय तो वह साहित्य कहलाता है और उसे बिना अलंकार के कहा जाए तो विज्ञान। जब से नर नारी का मिलन है तब से धर्म भी है और धर्म है तो मर्यादा भी है।
धर्म सभी मनुष्यों का एक ही है लेकिन उसकी व्याख्या में भेद है। जितने भेद हुए उतने ही मत बने और हरेक मत को लोगों ने धर्म समझ लिया। साहित्य पर धर्म-मत का भी प्रभाव पड़ा और उनके दर्शनों का भी। नर हो या नारी, वे अपने शरीर को भी ढकते हैं और अपने आपसी रिश्तों को भी। कौन अपने शरीर को कितना ढके ?, हरे मत की मान्यता अलग है लेकिन ढकते सब हैं।
शरीर के रिश्तों को जब साहित्य में बयान किया जाए तो भी ढक कर ही बयान किया जाए। इस पर भी सब सहमत हैं।
ब्लॉगर्स भी जब नर नारी के रिश्तों का बयान करते हैं तो ढक कर ही करते हैं लेकिन कौन कितना ढके ?, यह हरेक की अपनी अपनी मर्ज़ी है।
कोई बुर्क़े को पर्दा मानता है तो कोई हिजाब को और कोई बिकनी पहनकर भी संतुष्ट है कि हां, पर्दा हो गया।
यही हाल ब्लॉगर्स की रचनाओं का भी है।
तीन ब्लॉगर एक रचना को अश्लील बताते हैं तो तीस उसे अश्लीलता से मुक्त पाते हैं। इससे पता चला कि अश्लीलता के निर्धारण का कोई एक पैमाना भी यहां मौजूद नहीं है।
दस ब्लॉगर एक रचना की प्रशंसा कर रहे होते हैं तो एक उसकी भर्त्सना कर देता है।
इंसान की उत्सुकता इसी उठा पटख़ के बीच अपने काम की जानकारी छांट लेती है।
ज्ञान ऐसे ही बढ़ता आया है और ब्लॉगिंग भी ऐसे ही बढ़ेगी।
इंसान अपनी उत्पत्ति के प्रति सदा से ही उत्सुक है। बाइबिल की पहली किताब का नाम ही ‘उत्पत्ति‘ है। वेदों ने भी उत्पत्ति के विषय को बड़ी गंभीरता से लिया है और क़ुरआन ने भी। जहां उत्पत्ति है वहां विनाश भी है और विनाश के बाद भी उत्पत्ति है। उत्पत्ति और विनाश के इस चक्र को जो जानता है वह ज्ञानी कहलाता है।
ज्ञान के भी बहुत से स्तर हैं। ज़्यादातर इसके बाह्य और स्थूल पक्ष तक ही सीमित रह जाते हैं। जो सूक्ष्म भाव को ग्रहण कर पाता है, वही अध्यात्म और रूहानियत तक पहुंच पाता है।
इंसान ग़लतियों से भी सीखता है और सीखकर भी ग़लती करता है।
यौन विषय भी एक ऐसा ही विषय है कि इसमें ग़लतियां होने की और पांव फिसलने की संभावना बहुत है यानि कि डगर पनघट की कठिन बहुत है। कठिन होने के बावजूद लोग न सिर्फ़ इस पर चलते हैं बल्कि सरपट दौड़ते हैं।
औरत मर्द के रिश्तों पर ब्लॉगर्स ने बहुत लिखा है। किसी का लिखा तो लोगों ने पढ़ा तक नहीं और किसी का लिखा ऐसा पढ़ा कि लिखने वाले को मिटाना पड़ गया।
व्यवहारिक प्रशिक्षण
पुराने विषय को जब नए अंदाज़ में कहा जाता है तो उसे पाठक अवश्य मिलते हैं। उदाहरण के लिए वंदना गुप्ता जी की कविता ‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘।
इसी रास्ते की खोज ने आदमी को वैज्ञानिक बना दिया। हज़ारों साल तक मनुष्य ने खोजा तब जाकर उसे पता चला कि मार्ग के ऊपर गर्भाशय है। धीरे धीरे उसने पता लगाया कि शरीर का निर्माण गर्भाशय में होता है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और समाज सबका केन्द्र गर्भाशय ही है। गर्भाशय न हो तो इनमें से कुछ भी न हो। जिसने जिस क्षेत्र में भी उन्नति की है, गर्भ से निकल ही उन्नति की है। जिसने भी समाज को जो कुछ दिया है, गर्भ से निकलकर ही दिया है। गर्भ से निकलने के लिए गर्भ में होना ज़रूरी है और गर्भ में होने के लिए नर नारी का मिलन ज़रूरी है।
नर नारी के मिलन को अलंकार से सजा कर कहा जाय तो वह साहित्य कहलाता है और उसे बिना अलंकार के कहा जाए तो विज्ञान। जब से नर नारी का मिलन है तब से धर्म भी है और धर्म है तो मर्यादा भी है।
धर्म सभी मनुष्यों का एक ही है लेकिन उसकी व्याख्या में भेद है। जितने भेद हुए उतने ही मत बने और हरेक मत को लोगों ने धर्म समझ लिया। साहित्य पर धर्म-मत का भी प्रभाव पड़ा और उनके दर्शनों का भी। नर हो या नारी, वे अपने शरीर को भी ढकते हैं और अपने आपसी रिश्तों को भी। कौन अपने शरीर को कितना ढके ?, हरे मत की मान्यता अलग है लेकिन ढकते सब हैं।
शरीर के रिश्तों को जब साहित्य में बयान किया जाए तो भी ढक कर ही बयान किया जाए। इस पर भी सब सहमत हैं।
ब्लॉगर्स भी जब नर नारी के रिश्तों का बयान करते हैं तो ढक कर ही करते हैं लेकिन कौन कितना ढके ?, यह हरेक की अपनी अपनी मर्ज़ी है।
कोई बुर्क़े को पर्दा मानता है तो कोई हिजाब को और कोई बिकनी पहनकर भी संतुष्ट है कि हां, पर्दा हो गया।
यही हाल ब्लॉगर्स की रचनाओं का भी है।
तीन ब्लॉगर एक रचना को अश्लील बताते हैं तो तीस उसे अश्लीलता से मुक्त पाते हैं। इससे पता चला कि अश्लीलता के निर्धारण का कोई एक पैमाना भी यहां मौजूद नहीं है।
दस ब्लॉगर एक रचना की प्रशंसा कर रहे होते हैं तो एक उसकी भर्त्सना कर देता है।
इंसान की उत्सुकता इसी उठा पटख़ के बीच अपने काम की जानकारी छांट लेती है।
ज्ञान ऐसे ही बढ़ता आया है और ब्लॉगिंग भी ऐसे ही बढ़ेगी।
इंसान अपनी उत्पत्ति के प्रति सदा से ही उत्सुक है। बाइबिल की पहली किताब का नाम ही ‘उत्पत्ति‘ है। वेदों ने भी उत्पत्ति के विषय को बड़ी गंभीरता से लिया है और क़ुरआन ने भी। जहां उत्पत्ति है वहां विनाश भी है और विनाश के बाद भी उत्पत्ति है। उत्पत्ति और विनाश के इस चक्र को जो जानता है वह ज्ञानी कहलाता है।
ज्ञान के भी बहुत से स्तर हैं। ज़्यादातर इसके बाह्य और स्थूल पक्ष तक ही सीमित रह जाते हैं। जो सूक्ष्म भाव को ग्रहण कर पाता है, वही अध्यात्म और रूहानियत तक पहुंच पाता है।
इंसान ग़लतियों से भी सीखता है और सीखकर भी ग़लती करता है।
यौन विषय भी एक ऐसा ही विषय है कि इसमें ग़लतियां होने की और पांव फिसलने की संभावना बहुत है यानि कि डगर पनघट की कठिन बहुत है। कठिन होने के बावजूद लोग न सिर्फ़ इस पर चलते हैं बल्कि सरपट दौड़ते हैं।
औरत मर्द के रिश्तों पर ब्लॉगर्स ने बहुत लिखा है। किसी का लिखा तो लोगों ने पढ़ा तक नहीं और किसी का लिखा ऐसा पढ़ा कि लिखने वाले को मिटाना पड़ गया।
व्यवहारिक प्रशिक्षण
पुराने विषय को जब नए अंदाज़ में कहा जाता है तो उसे पाठक अवश्य मिलते हैं। उदाहरण के लिए वंदना गुप्ता जी की कविता ‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘।
जहां एक ओर साहित्यकार अपनी रचना में अलंकारों का इतना ढेर लगा देते हैं कि कवि की मंशा समझना ही दुश्वार हो जाता है। वहीं वंदना जी ने अपनी कविता से सारे अलंकार उतार फेंके और उन्होंने अपने भावों को कहने के लिए वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग किया। यह एक अद्भुत और अभिनव प्रयोग था। हिंदी ब्लॉगर्स इसके अभ्यस्त न थे। वे बौखला से गए और कुछ तो बावले और दिवालिए तक हो गए। इनमें से एक हैं जो कि बात ही कविता में करते हैं लेकिन उनके प्रशंसकों को उनकी एक भी कविता याद नहीं है। वह चिढ़ गए और वह कवयित्री को ऊल जलूल कहने लगे। यह विशुद्ध ईर्ष्या भाव था। इसकी कविता मेरी कविता से ज़्यादा मशहूर कैसे ?
दो एक कवि और भी मोर्चा खोलकर बैठ गए कि इस विषय पर हमारा ही एकाधिकार रहना चाहिए। उन्होंने भी वंदना जी को हड़का लिया।
बहरहाल झगड़ा-पंगा, विचार-विमर्श बहुत हुआ और इतना हुआ कि अब वंदना जी की कविता को भुलाना हिंदी ब्लॉगर्स के लिए आसान नहीं है।
वंदना जी अपनी कविता हटा चुकी हैं। अब लोग उस विषय पर ख़ुद भी कविता करेंगे और कुछ तो उस कविता का रीमेक ही बना डालेंगे। इस तरह कुछ समय तक जो भी मनोरंजन होने वाला है, नए ब्लॉगर्स उसे अपने प्रशिक्षण के तौर पर देख सकते हैं।
हमेशा उस विषय पर लिखिए जिसके प्रति पाठकों में उत्सुकता और आकर्षण पाया जाता हो और उसे नए और अनोखे अंदाज़ में बयान कीजिए। आप इसमें जितना ज़्यादा सफल होंगे, उतने ही बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।
यौन शिक्षा को ब्लॉगिंग का विषय बनाया जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बिल्कुल आसान है। तब न कोई गद्य देखेगा और न पद्य। पाठक तो यह देखेंगे कि आखि़र लिखने वाले ने लिखा क्या है ?
पढ़कर मज़ा आ जाए तो बस आप बन गए बड़ा ब्लॉगर।
इस समय हिंदी ब्लॉग जगत का ढर्रा यही है।
बहरहाल झगड़ा-पंगा, विचार-विमर्श बहुत हुआ और इतना हुआ कि अब वंदना जी की कविता को भुलाना हिंदी ब्लॉगर्स के लिए आसान नहीं है।
वंदना जी अपनी कविता हटा चुकी हैं। अब लोग उस विषय पर ख़ुद भी कविता करेंगे और कुछ तो उस कविता का रीमेक ही बना डालेंगे। इस तरह कुछ समय तक जो भी मनोरंजन होने वाला है, नए ब्लॉगर्स उसे अपने प्रशिक्षण के तौर पर देख सकते हैं।
हमेशा उस विषय पर लिखिए जिसके प्रति पाठकों में उत्सुकता और आकर्षण पाया जाता हो और उसे नए और अनोखे अंदाज़ में बयान कीजिए। आप इसमें जितना ज़्यादा सफल होंगे, उतने ही बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।
यौन शिक्षा को ब्लॉगिंग का विषय बनाया जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बिल्कुल आसान है। तब न कोई गद्य देखेगा और न पद्य। पाठक तो यह देखेंगे कि आखि़र लिखने वाले ने लिखा क्या है ?
पढ़कर मज़ा आ जाए तो बस आप बन गए बड़ा ब्लॉगर।
इस समय हिंदी ब्लॉग जगत का ढर्रा यही है।
7 comments:
इस देश में बच्चों के बजाय प्रौढ़ों को यौन शिक्षा की ज्यादा जरुरत है
इंसान ग़लतियों से भी सीखता है और सीखकर भी ग़लती करता है।
यौन विषय भी एक ऐसा ही विषय है कि इसमें ग़लतियां होने की और पांव फिसलने की संभावना बहुत है यानि कि डगर पनघट की कठिन बहुत है। कठिन होने के बावजूद लोग न सिर्फ़ इस पर चलते हैं बल्कि सरपट दौड़ते हैं।
इसी भागदौड़ में लोग बाग ठोकर खाकर गिर रहे हैं .
एक संजीदा नसीहत और मनोरंजन भी,
ऐसा लगता है की इस देश में जवानों से ज़्यादा बूढों को यौन शिक्षा देने की ज्यादा जरुरत है.
सही कहा अरविन्द जी आजकल ब्लॉग जगत में जेसे जेसे लेख सामने आ रहे हे इस से तो यही लगता है
मित्रवर,
आप से निवेदन है कि इस पोस्ट को
समय निकाल कर अगर पढ़ पाए तो कृपा होगी
जरुर पढें http://dineshpareek19.blogspot.in/2012/04/blog-post.html पर क्लिक करें ।
सही विश्लेषण है। जिनसे पथ-प्रदर्शन की अपेक्षा थी,वही कीचड़ उछालने में जुट गए। ध्यान रहे कि इनमें से ज़्यादातर लोग वही हैं जो पुरानी बहसों में कहा करते थे कि ब्लॉगिंग का असली मज़ा अथवा पोस्ट का असली पुरस्कार तो टिप्पणी में ही है।
--निहायत ही घटिया व मूर्खतापूर्ण आलेख है...टेडी पूंछ कभी सीधी हो ही नहीं सकती..
---- "वंदना जी ने अपनी कविता से सारे अलंकार उतार फेंके और उन्होंने अपने भावों को कहने के लिए वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग किया। यह एक अद्भुत और अभिनव प्रयोग था। हिंदी ब्लॉगर्स इसके अभ्यस्त न थे|"
--------- वह कोई कविता थी, कविता क्या होती है पता भी है? निश्चय ही नन्गा होना भी अभिनव प्रयोग होता है..पूनम की तरह..
---"हमेशा उस विषय पर लिखिए जिसके प्रति पाठकों में उत्सुकता और आकर्षण पाया जाता हो और उसे नए और अनोखे अंदाज़ में बयान कीजिए। आप इसमें जितना ज़्यादा सफल होंगे, उतने ही बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।"
------------बहुत अच्छी सलाह है लिखो अनोखे अन्दाज़ में सबसे बडे बन जाओगे।चाहे वेवकूफ़ी का विषय हो....
----"यौन शिक्षा को ब्लॉगिंग का विषय बनाया जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बिल्कुल आसान है। तब न कोई गद्य देखेगा और न पद्य। पाठक तो यह देखेंगे कि आखि़र लिखने वाले ने लिखा क्या है ?पढ़कर मज़ा आ जाए तो बस आप बन गए बड़ा ब्लॉगर। इस समय हिंदी ब्लॉग जगत का ढर्रा यही है।"
-------------- यह वन्दना व उनकी कविता का पक्ष लेना है या मज़ाक उडाना? यही भाव तो सारे विवाद, झगदा, पन्गा की जड था।
@ डा. श्याम गुप्त जी ! अगर आप में ज़रा भी सेंस ऑफ़ ह्यूमर एंड विट होता तो आप इस लेख की भावना को समझ लेते लेकिन आपका कहना बिल्कुल सही है कि टेढ़ी पूंछ कभी सीधी नहीं होती।
हालांकि इस लेख का ताल्लुक़ आप से नहीं भी हो सकता तब भी आपको यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए, जिसकी रचनाकारा हैं लेडी रचना-
इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
हिंदी सेवी होने का तमगा अपने लगा लिया
फिर
अपना जनम सिद्ध अधिकार समझ लिया
जो भी हिंदी मे ब्लॉग पर कुछ भी लिखे
उसकी हिंदी , रचना धर्मिता की आलोचना करना
इस लेख को मैं दृष्टिपात के अप्रैल अंक में प्रकाशित कर रहा हूँ, यदि कोई आपत्ति हो तो, दो दिनों के भीतर आपत्ति मेरे मेल आई डी पर देने की कृपा करें wgmrak@gmail.com
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