प्यारे छात्रों ! आज के लेक्चर में आपके सामने मानव प्रकृति का एक सनातन रहस्य अनावृत होने जा रहा है। इसे विशुद्ध प्रोफ़ेशनल दृष्टि से समझने और आत्मसात करने की आवश्यकता है।
भारतीय दर्शन 6 हैं जो कि न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग दर्शन, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा दर्शन हैं। उत्तर मीमांसा दर्शन को ही वेदान्त दर्शन कहा जाता है। ये सभी दर्शन क्लिष्ट और गूढ़ हैं। गीता इन सबका सरल और समन्वित रूप है।
गीता को श्री कृष्ण जी का उपदेश कहा जाता है और कहा जाता है कि यह उपदेश उन्होंने अर्जुन को उस समय दिया था जबकि दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए मैदान में आ खड़ी हुई थीं और बिल्कुल ऐन वक्त पर अर्जुन ने युद्ध से इन्कार कर दिया था।
अर्जुन ने युद्ध से इसलिए इन्कार कर दिया था क्योंकि वह अपने प्यारे भाईयों, दोस्तों और रिश्तेदारों पर तीर चलाना नहीं चाहते थे।
वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन अच्छा ही हुआ कि उन्होंने युद्ध से इन्कार कर दिया।
भारतीय दर्शन 6 हैं जो कि न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग दर्शन, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा दर्शन हैं। उत्तर मीमांसा दर्शन को ही वेदान्त दर्शन कहा जाता है। ये सभी दर्शन क्लिष्ट और गूढ़ हैं। गीता इन सबका सरल और समन्वित रूप है।
गीता को श्री कृष्ण जी का उपदेश कहा जाता है और कहा जाता है कि यह उपदेश उन्होंने अर्जुन को उस समय दिया था जबकि दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए मैदान में आ खड़ी हुई थीं और बिल्कुल ऐन वक्त पर अर्जुन ने युद्ध से इन्कार कर दिया था।
अर्जुन ने युद्ध से इसलिए इन्कार कर दिया था क्योंकि वह अपने प्यारे भाईयों, दोस्तों और रिश्तेदारों पर तीर चलाना नहीं चाहते थे।
वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन अच्छा ही हुआ कि उन्होंने युद्ध से इन्कार कर दिया।
अर्जुन के इन्कार का लाभ हमें यह मिला कि लड़ाई तो होकर ख़त्म हो गई लेकिन गीता का संदेश आज तक हमारे पास है। अर्जुन के इन्कार के कारण हमें गीता मिल गई। गीता सुनकर अर्जुन अर्जुन बन गए और गीता पढ़कर एक साहब बैरिस्टर से गांधी जी बन गए।
गीता अगर आज अपने मूल रूप में सुरक्षित होती तो और भी ज़्यादा प्रभावी होती। आज वह जिस रूप में है, अगर उसे भी आदमी तत्वबुद्धि के साथ पढ़ ले तो वह भारतीय दर्शन की आत्मा को पकड़ सकता है। अगर एक ब्लॉगर इस आत्मा को पकड़ ले तो वह निश्चय ही बड़ा ब्लॉगर बन जाएगा।
ध्यान देने की बात यह है कि श्री कृष्ण जी ने जीवन भर बहुत से उपदेश दिए और बड़े बड़े ज्ञानियों और ऋषियों के समूहों को उपदेश दिए लेकिन गीता का संदेश ही सबसे ज़्यादा पॉपुलर हुआ जो कि मात्र एक व्यक्ति को दिया गया था ?
इसका क्या कारण रहा ?
इसके बाद आप इस बात पर ध्यान दीजिए कि श्री कृष्ण जी ने जितने भी उपदेश दिए, उनमें सबसे ज़्यादा सुंदर गीता का उपदेश ही है। ऐसा लगता है कि उन्होंने भी अपना सबसे श्रेष्ठ उपदेश सोच समझ कर ही युद्ध के अवसर के लिए बचा रखा था।
ऐसा क्यों ?, ज़रा सोचिए !
श्री कृष्ण जी मानव मन को जानते थे। वह जानते थे कि टकराव इंसान का स्वभाव है। टक्कर खाकर ही आदमी सीखता है। इसलिए जब मानवता को सबसे बड़ी टक्कर लगने वाली थी तो उन्होंने उसे सबसे बड़ी सीख दी। मानव जाति उनकी वह सीख भुला न सकी जबकि वह उनके दूसरे उपदेश याद न रख सकी। जितने भी राजाओं ने बिना लड़े भिड़े राज्य किया, वे सब भुला दिए गए। इतिहास ने केवल उन्हें याद रखा, जिन्होंने युद्ध किया। जिसने जितना बड़ा युद्ध किया, उसे उतना ही ज़्यादा याद रखा गया। वे याद रहे तो उनकी बातें भी याद रहीं।
इससे हमें यह पता चलता है कि जिस बात को आप टकराव की जगह बताएंगे, वह बात लोगों के चेतन और अवचेतन मन में ऐसे उतर जाएगी कि लोग चाहें तो भी उसे भुला न सकेंगे।
इसलिए टकराव की जगह तलाश कीजिए।
किसी को टकराव के लिए इन्वाईट कर लीजिए।
कोई न आए तो आप ख़ुद ही कहीं चले जाईये।
कहीं भी कोई टकराव न हो रहा हो तो टकराव की सिचुएशन क्रिएट कीजिए।
ग़ैर मिले तो सुब्हानल्लाह और कोई ग़ैर न मिले तो किसी अपने से ही टकरा जाईये। जैसे कि कृष्ण जी की बात मानकर अर्जुन टकरा गए अपनों से ही।
...लेकिन यह टकराव जायज़ मक़सद के लिए होना चाहिए, सत्य के लिए होना चाहिए क्योंकि सत्यमेव जयते।
यह एक विशेष तकनीक है जिसका अभ्यास श्री कृष्ण जी के निर्देशन में किया जाए तो ब्लॉग जगत से निराश हो चला ब्लॉगर भी पल भर में ही ब्लॉग जगत के केन्द्र में आ खड़ा होता है।
व्यवहारिक प्रशिक्षण
भाई ख़ुशदीप सहगल जी की ताज़ा पोस्ट पर मचे घमासान के मॉडल पर हम इस तकनीक का अध्ययन बख़ूबी कर सकते हैं।
ब्लॉगिंग में जब तक झगड़े होते रहे लोग टिके रहे और जैसे जैसे झगड़े होने कम होते चले गए ब्लॉगर भी कम होते चले गए अर्थात ब्लॉगर्स की संख्या ब्लॉगिंग में होने वाले विवादों के समानुपाती है।
यह एक रहस्य की बात है। बड़ा ब्लॉगर होने का अभ्यास करने वाले तीरंदाज़ के लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है।
पिछले कुछ अर्से से हिंदी ब्लॉगिंग में कुछ ख़ास नहीं हो रहा था यानि कि लोग लिख रहे थे और पढ़ रहे थे और उकता रहे थे। कहीं कोई विवाद नहीं हो रहा था। हम भी दूसरे कामों में लगे हुए थे वर्ना तो किसी को भी उसकी ग़लती पर टोक दीजिए, बस हो गया विवाद !
ब्लॉग जगत की ख़ुशक़िस्मती देखिए कि कल हमारी नज़र भाई ख़ुशदीप सहगल जी की पोस्ट पर पड़ गई। जिसका शीर्षक है -
‘बोल्डनेस छोड़िए हो जाईये कूल ...ख़ुशदीप‘
इसमें उन्होंने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम (अर्थात अन पर शांति हो) के बारे में चुटकुले भी लिख रखे हैं और उनका नंगा चित्र भी लगा रखा था।
इस पर टोकते ही दो काम होने लाज़िमी थे।
1- पहला यह कि तुरंत ही एक विवाद शुरू हो जाएगा और इस तरह उपदेश के लिए एक अच्छा अवसर उपस्थित हो जाएगा।
2- दूसरा यह कि हमें सराहने वाला भाई ख़ुशदीप जैसा ब्लॉगर हम सदा के लिए खो देंगे।
याद रखिए कि आप जिसे भी सार्वजनिक रूप से उसकी ग़लती पर टोकते हैं, आप उसे सदा के लिए खो देते हैं। उसके मन में आपके प्रति एक प्रकार की वितृष्णा जन्म लेती है। वह आपके खि़लाफ़ तो कुछ कर नहीं पाता लेकिन मन ही मन आपसे चिढ़ने लगता है और कभी कभी यह चिढ़ उसके मन से जीवन भर नहीं निकल पाती।
अगर हम दूसरी बात का ख़याल रखें तो पहली बात कभी हासिल न हो और पहली बात हासिल न करें तो ब्लॉगिंग में हमारी मौजूदगी व्यर्थ है। रिश्ते नाते और अपनाईयत के ख़याल जब आपको आपके कर्तव्य से रोकने लगें तो गीता काम आती है। गीता हमारे भी काम आई और आपके भी काम आएगी।
पिछले दिनों भाई ख़ुशदीप जी ने या हमने जो भी लिखा है, उनमें सबसे ज़्यादा यही पोस्ट पढ़ी गई है जिस पर कि ब्लॉगर्स को टकराव होता हुआ दिखा।
टकराव सचमुच चाहे न हो लेकिन ब्लॉगर्स को दिखना ज़रूर चाहिए कि हां टकराव हो रहा है। जब तक टकराव चल रहा है तब तक ब्लॉगिंग भी चल रही है।
हिंदी ब्लॉगिंग को ज़िंदा रखना है तो थोड़े थोड़े समय पर टकराव का आयोजन करते रहना पड़ेगा।
पूर्व काल में हमने यह रहस्य हरीश सिंह जी को बताया था और यह रहस्य जानकर वह तुरंत ही बड़ा ब्लॉगर बन गए थे। उनका ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत के बड़े ब्लॉग्स में गिना जाता है। आज भी वह हमें फ़ोन करते हैं तो गुरू जी कहकर ही संबोधित करते हैं।
जल्दी ही आप भी उत्कृष्ट कोटि के विवादों का सृजन कर सकेंगे और आप उनके माध्यम से सत्य का उपदेश देने की कला में भी पारंगत हो जाएंगे। इसका लाभ यह होगा कि आप रिश्ते नातों की मोह माया के बीच निर्लिप्त भाव से अपने कर्तव्य का निर्वाह करना सीख लेंगे। आभासी दुनिया का यह अभ्यास वास्तविक जगत में भी आपके काम आएगा।
युद्ध की भांति ही सेक्स भी मनुष्य को आदिकाल से ही आकर्षित करता रहा है। इसके सटीक इस्तेमाल से भी आप एक बड़ा ब्लॉगर बन सकते हैं। आगामी किसी क्लास में इस विषय पर भी लेक्चर अवश्य दिया जाएगा।
तब तक इंतेज़ार कीजिए और आज बताए गए सूत्र का अभ्यास कीजिए।
5 comments:
वाह भाई डॉ. साहब आपने तो इस पोस्ट में कमाल ही कर दिया। यह सही है कि युद्ध और प्रेम दोनों स्थितियाँ किंकर्त्तव्यविमूढ़ता की होती हैं तथा ऐसे में सुझाया गया रास्ता वह भी कृष्ण जैसे गुरु द्वारा भला क्यूँ न सर्वकालिक उपयुक्तता का प्रमाण बने? आपकी इस नीति के बिनाह पर इस समय आपको कृष्ण का दर्ज़ा देने में हमें किंचित भी हिचक नहीं है। 'सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित दु:खभाग्भवेत'
वैसे गीता के अलावा श्री क्रष्ण के और उपदेश क्या हैं.....
बहुत अच्छी पोस्ट लाजवाब विश्लेषण।
आपने सही कहा उपदेश भी वक़्त पर देने से ज्यादा कारगर साबित होता है या जैसे गरम लोहे पर हथौड़ा मरने से ही लोहा शेप लेता है बिलकुल सही जिस पोस्ट में ज्यादा विरोधाभास होता है वही पोपुलर हो जाती है लोग ओरों की टिपण्णी पढने में भी वक़्त देने लगते हैं यानी मिर्च मसाला मिल जाता है आपकी इस पोस्ट से कम से कम यह रहस्य तो पता लगा |सच्चाई कडवी होती है इस लिए लोग सुधार की बात हजम नहीं कर पाते और कट लेते हैं
बहुत अच्छा सराहनीय आलेख बधाई आपको |
बहुत खूब |
चुन चुन कर लाते रहे, अनवर बढ़िया चीज |
मानव मानव बन रहे, सीखे तनिक तमीज ||
Post a Comment