आदमी की सहज वृत्ति है कि वह सदा दूसरों का विश्लेषण करता है।
जब वह ब्लॉगिंग में आता है तो अपनी यह आदत भी साथ लेकर आता है।
छोटे मोटे ब्लॉगर एक दो ब्लॉगर का विश्लेषण करके ही रह जाते हैं लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारे ब्लॉग जगत का विश्लेषण करने करने का बीड़ा ख़ुद से ही उठा लेता है। जिस काम को दूसरों ने सिर दर्द समझकर छोड़ दिया होता है, उसी काम को यह मज़े से करता है। बड़ा कहलाने का मज़ा ही कुछ ऐसा है। इसी के साथ वह इसमें राजनीतिक पैंतरेबाज़ी भी मज़ा लेता है। जिससे ख़ुश होता है, उसका नाम ऊपर रखता है और जिससे नाराज़ होता है उसका नंबर 100वां रखने के बाद भी अलेक्सा रैंक नदारद कर देता है। गुटबाज़ी को यह न तो भूलता है और न भूलने देता है।
इसे भी मज़ा आता है और इसकी हालत देखकर इसके दुश्मनों को भी मज़ा आता है। दुश्मन देखते हैं कि बेचारा बच्चों की गणित की कॉपी चेक न करके ब्लॉगर्स की अलेक्सा रैंकिंग चेक कर रहा है। बीवी ने नई साड़ी पहनकर उतार भी दी होती है लेकिन यह बेड पर भी लैपटॉप पटपटा रहा होता है। बीवी बच्चों की नज़रों में गिर कर ब्लॉग जगत में ऊंचा उठने की जुगत में बड़ा ब्लॉगर पूरे साल यही करता है और फिर साल दर साल वह यही करता रहता है। वह सबका विश्लेषण ख़ुद करता है और अपने काम के लिए पुरस्कार भी ख़ुद ही लेता है और मज़ेदार बात है कि पुरस्कार देने वाला भी वह ख़ुद ही होता है।
देखते सब हैं, जानते भी सब हैं लेकिन बोले कौन ?
जो भी बोलेगा, अगली बार उसके ब्लॉग का नाम ही विश्लेषण में न चमकेगा।
हानि लाभ का गुणा भाग करने में पुरूष ब्लॉगर बहुत माहिर हैं और महिलाएं तो इस काम में अपना कोई सानी नहीं रखतीं। इसका लाभ भी मिलता है। बड़े ब्लॉगर की सरपरस्ती में ब्लॉगिंग की ट्रेनिंग लेने वाला कोई ब्लॉगर जब ईनाम तक़सीम करता है तो उसके साथ उन्हें भी ईनाम मिलता है।
कहा भी गया है कि ‘संघे शक्ति कलयुगे‘।
जब वह ब्लॉगिंग में आता है तो अपनी यह आदत भी साथ लेकर आता है।
छोटे मोटे ब्लॉगर एक दो ब्लॉगर का विश्लेषण करके ही रह जाते हैं लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारे ब्लॉग जगत का विश्लेषण करने करने का बीड़ा ख़ुद से ही उठा लेता है। जिस काम को दूसरों ने सिर दर्द समझकर छोड़ दिया होता है, उसी काम को यह मज़े से करता है। बड़ा कहलाने का मज़ा ही कुछ ऐसा है। इसी के साथ वह इसमें राजनीतिक पैंतरेबाज़ी भी मज़ा लेता है। जिससे ख़ुश होता है, उसका नाम ऊपर रखता है और जिससे नाराज़ होता है उसका नंबर 100वां रखने के बाद भी अलेक्सा रैंक नदारद कर देता है। गुटबाज़ी को यह न तो भूलता है और न भूलने देता है।
इसे भी मज़ा आता है और इसकी हालत देखकर इसके दुश्मनों को भी मज़ा आता है। दुश्मन देखते हैं कि बेचारा बच्चों की गणित की कॉपी चेक न करके ब्लॉगर्स की अलेक्सा रैंकिंग चेक कर रहा है। बीवी ने नई साड़ी पहनकर उतार भी दी होती है लेकिन यह बेड पर भी लैपटॉप पटपटा रहा होता है। बीवी बच्चों की नज़रों में गिर कर ब्लॉग जगत में ऊंचा उठने की जुगत में बड़ा ब्लॉगर पूरे साल यही करता है और फिर साल दर साल वह यही करता रहता है। वह सबका विश्लेषण ख़ुद करता है और अपने काम के लिए पुरस्कार भी ख़ुद ही लेता है और मज़ेदार बात है कि पुरस्कार देने वाला भी वह ख़ुद ही होता है।
देखते सब हैं, जानते भी सब हैं लेकिन बोले कौन ?
जो भी बोलेगा, अगली बार उसके ब्लॉग का नाम ही विश्लेषण में न चमकेगा।
हानि लाभ का गुणा भाग करने में पुरूष ब्लॉगर बहुत माहिर हैं और महिलाएं तो इस काम में अपना कोई सानी नहीं रखतीं। इसका लाभ भी मिलता है। बड़े ब्लॉगर की सरपरस्ती में ब्लॉगिंग की ट्रेनिंग लेने वाला कोई ब्लॉगर जब ईनाम तक़सीम करता है तो उसके साथ उन्हें भी ईनाम मिलता है।
कहा भी गया है कि ‘संघे शक्ति कलयुगे‘।
वास्तव में बड़ा ब्लॉगर वह जो है कि हानि लाभ और मान अपमान की परवाह न करके सत्य लिखता है। केवल यही ब्लॉगर होता है कि यह उसका भी विश्लेषण कर डालता है जो कि हज़ारों ब्लॉग्स का विश्लेषण करने का आदी हो चुका है।
एकलव्य कितना ही बड़ा धनुर्धर हो लेकिन उसके पक्ष में खड़ा होने की परंपरा यहां है ही नहीं। राजपाट हार जाएं तो ख़ुद पांडवों के साथ भी कोई खड़ा नहीं होता बल्कि वे ख़ुद भी अपनी पत्नी द्रौपदी के पक्ष में खड़े नहीं होते।
खड़े होने से पहले लोग यह देखते हैं कि इसके साथ खड़े होकर हमें क्या ईनाम मिलेगा ?
ईनाम मिलता हो तो विभीषण भी राम के पक्ष मे आ जाता है और घर से तिरस्कार मिला हो तो दुश्मन की तरफ़ से भाईयों पर तीर चलाने के लिए कर्ण भी खड़ा हो जाएगा और एकलव्य भी वहीं आ जाएगा।
ईनाम बहुत बड़ा मोटिवेशन फ़ैक्टर है। ईनाम के लिए इंसान अपना ईमान और अपना ज़मीर सब कुछ भुला देता है।
एकलव्य कितना ही बड़ा धनुर्धर हो लेकिन उसके पक्ष में खड़ा होने की परंपरा यहां है ही नहीं। राजपाट हार जाएं तो ख़ुद पांडवों के साथ भी कोई खड़ा नहीं होता बल्कि वे ख़ुद भी अपनी पत्नी द्रौपदी के पक्ष में खड़े नहीं होते।
खड़े होने से पहले लोग यह देखते हैं कि इसके साथ खड़े होकर हमें क्या ईनाम मिलेगा ?
ईनाम मिलता हो तो विभीषण भी राम के पक्ष मे आ जाता है और घर से तिरस्कार मिला हो तो दुश्मन की तरफ़ से भाईयों पर तीर चलाने के लिए कर्ण भी खड़ा हो जाएगा और एकलव्य भी वहीं आ जाएगा।
ईनाम बहुत बड़ा मोटिवेशन फ़ैक्टर है। ईनाम के लिए इंसान अपना ईमान और अपना ज़मीर सब कुछ भुला देता है।
बड़ा ब्लॉगर वह है जिसकी ब्लॉगिंग का केंद्र ‘सत्य‘ होता है। ईमान और ज़मीर इसी के पास होता है। इसकी ब्लॉगिंग में यही सब भरा होता है।
आप ब्लॉग पढ़कर सहज ही जान सकते हैं कि बड़ा ब्लॉगर कौन है और बड़ा ब्लॉगर कैसे बना जाता है ?
आप ब्लॉग पढ़कर सहज ही जान सकते हैं कि बड़ा ब्लॉगर कौन है और बड़ा ब्लॉगर कैसे बना जाता है ?
6 comments:
एकलव्य कितना ही बड़ा धनुर्धर हो लेकिन उसके पक्ष में खड़ा होने की परंपरा यहां है ही नहीं। राजपाट हार जाएं तो ख़ुद पांडवों के साथ भी कोई खड़ा नहीं होता बल्कि वे ख़ुद भी अपनी पत्नी द्रौपदी के पक्ष में खड़े नहीं होते।
खड़े होने से पहले लोग यह देखते हैं कि इसके साथ खड़े होकर हमें क्या ईनाम मिलेगा ?
भाई वाह...वाह...वाह...क्या कह दिया है आपने...कमाल...तालियाँ...तालियाँ...तालियाँ...
नीरज
सटीक |
गुट बाजी में लीन |
महा-प्रवीन |
आरक्षित हैं कुछ ब्लॉग
बाकी दीन-हीन |
आपस में ख़रीदे-बेंचें
जायका मजेदार नमकीन |
अगल बगल क्यूँ देखें-
होंगे तो होंगे जहीन |
सारा रस तो है आस-पास
बाकी तो होंगे ही रसहीन |
यही सोच है जाति-पांत मित्र सेक्स-क्षेत्र
और सामाजिक स्टेटस |
हम तो हैं ही बुद्धिहीन |
टिप्पणी कर्मे से भी बचते हैं लोग --
कहीं यह हमारी रैंक नीचे न गिरा दे |
सिरफिरा है |
ज्ञानवर्धक जानकारी
इतने दिन कहाँ रहे. चलिए देर आये दुरुस्त आये.
badhiya vishleshan......
salam.
आपकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत।
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