हमने अपनी शरीके-हयात को बताया-‘ख़ानम ! महीने की आखि़री तारीख़ को हिंदी ब्लॉगर्स का एक सम्मेलन हो रहा है।‘
‘तो‘-उन्होंने अपनी रसोई से ही दरयाफ़्त दिया।
अब हमें अपनी स्टडी से निकलकर उनकी रियासत के मरकज़ में यानि कि किचन में जाना पड़ा।
‘भई, तो से क्या मतलब ?, सम्मेलन हो रहा है ब्लॉगर्स का।‘-हमने जैसे ही कहा तो उन्होंने अपने हाथ के मसाले मिक्सी में डालकर मिक्सी फ़ुल स्पीड पर ऐसी चलाई कि तमाम टमाटर लहू-लुहान होकर रह गए। हमने शुक्र मनाया कि हम टमाटर की योनि में नहीं जन्मे वर्ना आज पीसकर रख दिए गए होते। तमाम मर्दों की तरह हम भी अपने दिल ही दिल में अपनी ख़ानम से डरे हुए से रहते हैं लेकिन बाहर से उन पर दूसरों की तरह हम भी कभी अपने दिल की हक़ीक़त ज़ाहिर नहीं होने देते। आज मर्दों के पास बस एक यह भ्रम ही तो बचा हुआ है मर्दानगी का कि हम तोप हैं वर्ना तो आज कौन सा काम ऐसा है जिसे औरत नहीं कर रही है या कर नहीं सकती और वह भी मर्द से बेहतर। यहां तक कि हिंदी ब्लॉगिंग भी औरतें ही कर रही हैं मर्दों से बेहतर। मर्द क्या कर रहा है ?
औरत की आबरू तार-तार कर रहा है, उसे नंगा कर रहा है।
छिनाल छिपकली डॉट कॉम वाले भाई विशाल ‘वनस्पति‘ जी के नाम से तो ऐसा लगता है मानों वे पुरातन भारतीय संस्कृति के कोई बहुत बड़े प्रहरी हों लेकिन जब हमने उनकी ‘छिनाल छिपकली‘ वाली पोस्ट देखी तो हम शर्म के मारे भाग आए वहां से बिना टिप्पणी किए ही। भाई विशाल ने वहां एक औरत की बिल्कुल नंगी फ़ोटो लगा रखी थी जो कि उन्होंने अपनी पत्नी या बहन की तो बिल्कुल भी नहीं लगाई होगी। जब वे अपनी पत्नी और बहन की मादरज़ाद नंगी फ़ोटो नहीं लगा सकते तो फिर उन्होंने किसी और की बीवी और बहन की फ़ोटो ही क्यों लगाई अपनी पोस्ट पर ?
हया-ग़ैरत का कुछ पता नहीं और दावा यह है कि ‘अभिव्यक्ति की नई क्रांति‘ पर होल्ड हमारा होना चाहिए।
उनसे भी ज़्यादा बेग़ैरत वे औरतें हैं जो उस पोस्ट पर विराजी हुई वाह-वाह कर रही हैं। बाद में एक बूढ़ी तजर्बेकारा ने उनके कान खींचे तो उन्होंने किसी की बहन की वह नंगी फ़ोटो वहां से हटाई। इसीलिए कहते हैं कि पुराना चावल पुराना ही होता है।
ख़ैर, टमाटर पर अपना गुस्सा निकालने के बाद हमारी ख़ानम चावल धोने लगीं और जब वे पानी के संपर्क में आईं तो उनका टेम्प्रेचर कुछ कम हुआ। हमने फिर कहा-‘हमें हिंदी ब्लॉगर्स के इस भव्य सम्मेलन में बुलाया जा रहा है विद फ़ैमिली। सो आप चिंटू-पिंटू, नन्हीं और मुन्नी को तैयार कर देना और खुद भी तैयार रहना।‘
उन्होंने पूछा-’क्या मतलब ?‘
‘अरे भई, क्या हर बात खोलकर ही कहनी पड़ेगी ? आप एक गृहस्थन हैं, थोड़ा समझा कीजिए। दावत वाले दिन बच्चों को सुबह नाश्ता मत दीजिएगा, बस चाय पिला दीजिएगा और दोपहर को हल्का फुल्का सा ही दीजिएगा ताकि रात को हमारे मेज़बान को कोई शिकायत न हो कि उनका खाना बचकर बेकार गया।‘-हमने अपनी हिकमत बयान की तो वे भड़क पडीं-‘आपने इतनी बेहूदा बात सोची भी कैसे ?, क्या हम मुफ़्तख़ोर हैं ?‘
‘अरे भई, हमने नहीं सोची बल्कि यह ब्लॉगर सम्मेलन का आम रिवाज है, वहां सभी ऐसे ही तैयारी से आते हैं।‘-हमने बताया।
‘आपकी ख़ानदानी शराफ़त और ग़ैरत को दिन-ब-दिन आखि़र होता क्या जा रहा है ?‘-उन्होंने अपनी हैरत का इज़्हार किया।
‘क्यों क्या हुआ हमारी शराफ़त को ?‘-अब हम सचमुच ही भन्ना गए थे।
‘जबसे ब्लॉगिंग शुरू की है तब से आपकी कोई चूड़ी टूटी हमसे ?‘-हमने भी अपनी शराफ़त का सुबूत पेश कर दिया।
‘हमने चूड़ियां ही पहननी छोड़ दीं जबसे आपने यह निगोड़ी ब्लॉगिंग शुरू की है। इसने तो सुहागन और बेवा का ही फ़र्क़ मिटाकर रख दिया है। जब कोई देखने वाला ही नहीं तो क्या करें हम बन-संवर कर ?‘-उनके तो आंसू निकल पड़े। आप रोने वाले से नहीं लड़ सकते। औरत की सारी ताक़त उसकी आंखों में है। यहां शोला भी है और शबनम भी। उन्हें रोते हुए अगर हमारे बच्चों ने देख लिया तो बच्चे भी हमसे नफ़रत करने लगेंगे, सोचेंगे कि ज़रूर हमारी अम्मी जान को मारा होगा। हम उनकी मिन्नत समाजत करने लगे और अब जो हमने उनके चेहरे को ग़ौर से देखा तो वाक़ई दुख सा हुआ। उनका चेहरा विधवा का सा ही लग रहा था। तभी हमें ख़याल आया कि अगर सरकार देश की जनसंख्या पर सचमुच क़ाबू पाना चाहती है तो उसे ब्लॉगिंग को बढ़ावा देना चाहिए। क्या मजाल अगर कोई शौहर अपनी बीवी के पास फटक भी जाए।
‘देखिए, आप हमारी शराफ़त पर सवाल उठा रही थीं लेकिन क्या यह आपकी शराफ़त की बात है कि दिन में ही रो रही हैं ? क्या आप हमारे बच्चों को हमसे बदगुमान करना चाहती हैं ?‘-उन्हें चुप करने का हथकंडा हमें पता था और सचमुच वह चुप हो भी गईं। औरतों को अपनी परेशानी का इतना ख़याल नहीं होता जितना ख़याल वे अपने नालायक़ से शौहरों की इज़्ज़त का रखती हैं।
‘शरीफ़ हूं तभी आपके घर में दिन काट रही हूं और आपके बच्चे पाल रही हूं। ख़ैर आप बताएं कि आपका मसअला अस्ल में है क्या ?‘-अब वह बात करने के मूड में आ गई थीं।
‘भई, खाने की दावत है, बुलावा आया है, मुख़तसर कहानी तो यह है।‘-हमने शॉर्टकट मारना ही मुनासिब समझा।
‘आपके पास कोई कॉल आई है क्या ?‘-उन्होंने पूछा।
‘नहीं तो, सपना समूह वालों की तरफ़ से हमें एक दावतनामा मिला है ईमेल के ज़रिये।‘-हमने कहा।
‘बस ?‘-उन्होंने बस पर बहुत ज़्यादा ज़ोर दिया तो हम खटक गए।
‘तो क्या किसी कबूतर को संदेसा लाना चाहिए था?‘-हम झुंझला से गए।
‘क्या उन लोगों के पास आपका मोबाइल नंबर नहीं है ?‘-उन्होंने पूछा।
‘है क्यों नहीं, बिल्कुल है। अभी तो हमने विशाल ‘वनस्पति‘ जी को खुद दिया था चैट पर‘-हमने कहा।
‘इसके बावजूद भी उन्होंने आपको कॉल नहीं की। इसका मतलब समझे आप ?‘-उन्होंने हमसे पूछा।
‘नहीं तो।‘-हमें अपनी अक्ल पर रोने को जी चाह रहा था।
‘वे चाहते ही नहीं हैं कि आप उनके प्रोग्राम में आएं। अगर वे आपको दिल से बुलाने के ख्वाहिशमंद होते तो वे आपको कॉल ज़रूर करते।‘-उनकी बात में दम था।
‘अगर उन्हें हमें बुलाना ही नहीं है तो फिर उन्होंने हमें इन्विटेशन कार्ड क्यों भेजा ?‘-हमने मासूमियत से पूछा।
‘ताकि वे आपको अपनी शान दिखा सकें कि देखो हम कित्ता बड़ा प्रोग्राम कर रहे हैं। आपमें दम है तो आप इससे बड़ा प्रोग्राम करके दिखाएं।‘-उन्होंने कहा और हमारे दिल को भी लगा।
‘जब आप हमें ब्याहने आए थे तो जिन लोगों को आप अपने निकाह में मौजूद देखना चाहते थे, उन्हें आपने कार्ड भी भेजा, कॉल भी किया और उन्हें कार भी करके दी ताकि वे आने से रह न जाएं।‘
‘हां, यह तो है।‘-हमने कहा।
‘इस प्रोग्राम में भी मुन्तज़िमीन जिन्हें बुलाना चाहते हैं उन्हें कार्ड के साथ कॉल भी ज़रूर की होगी और उनके लिए कन्वेंस का इंतज़ाम भी किया होगा।‘-उन्होंने केस पूरी तरह सॉल्व कर दिया था।
‘इसका मतलब तो यह है कि इस प्रोग्राम में सिर्फ़ ईनाम ही नहीं बल्कि मेहमान भी फ़िक्स हैं। घोटाला दर घोटाला‘-हम कुछ सोचते हुए से बुदबुदाए।
‘और नहीं तो क्या ?‘-अपनी दानिश्वरी साबित होते देखकर अब उनके होंठों पर मुस्कुराहट तैरने लगी थी।
‘तो निमंत्रण भेजने का मक़सद आजकल बुलाना नहीं होता बल्कि अपनी शेख़ी बघारना होता है।‘
‘जी हां।‘-उन्होंने बड़े फ़ख्र से कहा। अपने हाथ से एक उम्दा सी दावत निकलते देखकर हमारा दिल बहुत फड़फड़ा रहा था।
‘लेकिन कुछ ब्लॉगर्स तो मात्र इन्वीटेशन कार्ड पाकर ही पहुंच जाएंगे सम्मेलन में।‘-हमने अपना अंदेशा ज़ाहिर किया।
‘सिर्फ़ वे ब्लॉगर्स जाएंगे जिनके बीवी नहीं होगी या होगी तो उससे वे पूछेंगे नहीं।‘-उन्होंने कहा।
‘वे वहां क्यों जाएंगे ?‘
‘जिस मक़सद से वहां लड़कियां आएंगी। जानते हो आजकल रिश्ते मिलना कितना मुश्किल हो रहा है ?‘-उन्होंने एक और क्ल्यू दिया।
‘तो जो लोग आएंगे, उन्हें भी ‘हिंदी ब्लॉगिंग का आगा-पीछा‘ जानने में कोई दिलचस्पी न होगी।‘-हमारी हैरत बढ़ती ही जा रही थी।
‘हर आदमी आज तरह-तरह के मसाएल से घिरा हुआ है, उसे सिर्फ़ अपने मसाएल का हल चाहिए। वह जहां भी जाता है अपने मसाएल के हल के लिए जाता है या फिर ...।‘-उन्होंने मुस्कुराकर बात अधूरी छोड़ दी। उनका विधवापन हल्के-हल्के दूर होता जा रहा था। लग रहा था कि आज ज़रूर कुछ होकर रहेगा, बहुत दिनों बाद।
‘या फिर...।‘-लेकिन हम भी हातिम ताई की तरह पहले सवाल हल कर लेना चाहते थे।
‘या फिर अपने मसाएल से फ़रार इख्तियार करने के लिए, थोड़ा सा दिल बहलाने के लिए।‘
‘हां, शायद इसीलिए वहां नाच-गाने और नाटक वग़ैरह का प्रोग्राम भी रखा गया है। इसका मतलब आयोजक भी जानते हैं कि हमारी किताब और हमारी परिचर्चा से लोगों को बोरियत होगी ?‘-हमें हैरत का एक और झटका लगा।
‘लेकिन लोग बोर होंगे नहीं।‘-उन्होंने फिर एक और चोट कर डाली।
‘क्यों भला ?‘
‘कुछ अपनी अक्ल पर भी तो ज़ोर डालिए न। बस बहुत हो गई बातें। हमें खाना तैयार करने दीजिए। बच्चे अब स्कूल से आते ही होंगे। आप खुद तो किसी काम के अब बचे नहीं हैं। हमें तो अपने बच्चे देखने दीजिए।
हम समझ रहे थे कि वह क्या कह रही हैं और क्या चाह रही हैं लेकिन हम सचमुच ही कुछ कर पाने की हालत में नहीं रह गए थे। यह ब्लॉगिंग अंदर तक से खोखला कर देती है। ग़ैरत के साथ-साथ यह ताक़त को भी चाट जाती है।
‘अंदर से खोखले लोगों का सम्मेलन बाहर से कितना भव्य लगेगा ?‘-हम मन ही मन में सोच रहे थे। काश हमें उन दोनों में से कोई फ़ोन ही कर लेता तो कम से कम अपने परिजनों को साथ ले जाने का हमारा मुंह तो हो जाता। (...जारी)