Wednesday, September 7, 2011

बड़ा ब्लॉगर वह है जो कमाता है

चित्र प्रतीकात्मक है , गूगल से साभार
बड़ा ब्लॉगर कमाता ज़रूर है। यह बड़े ब्लॉगर का मुख्य लक्षण है।
कोई नाम कमाता है, कोई इज़्ज़त कमाता है और कोई पैसा कमाता है।
कोई ईमानदारी से कमाता है और धोखाधड़ी से कमाता है।
कोई एक पम्फ़लैट तक नहीं लिख पाता लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारा इतिहास लिख देता है। कोई अपनी किताब लिखकर बिना विमोचन के ही बांट कर धन्य हो जाता है लेकिन बड़ा ब्लॉगर अपनी एक किताब का दो दो बार विमोचन करा लेता है और वह भी दो दो राजधानियों में।
बड़े ब्लॉगर की बड़ी बात होती है।
‘एक से भले दो‘ की मिसाल सामने रखते हुए, वह अपने ही जैसा एक और पकड़ लेता है। बंगाल के तो जादूगर मशहूर हैं और दिल्ली के ठग भी एक ज़माने में काफ़ी मशहूर थे लेकिन बिहार के चोर ज़्यादा मशहूर नहीं हैं।
बहरहाल बंगाल के जादूगर भी बग़लें झांकने लगेंगे अगर दिल्ली का ठग और बिहार का चोर मिलकर काम करने पर आ जाएं तो...
और अगर ये ब्लॉगिंग में आ जायें तो बिना किताब छापे ही बेचकर दिखा दें और जो बड़े बड़े तीस मार खां बने फिरते हैं हिंदी ब्लॉगर, वे पैसे देंगे पहले और किताब उन्हें मिलेगी 4 माह बाद और वह भी 2 बार विमोचन होने के बाद।
जिस किताब का 2 बार विमोचन हो चुका हो, उसकी आबरू तो पहले ही तार तार कर दी गई है, अब उसमें क्या बचा है ?
कोई शरीफ़ आदमी तो उसे अपनी किताबों के साथ रखेगा नहीं और न ही कोई शरीफ़ किताब उसके पास रहने के लिए तैयार होगी।
ज़्यादातर किताबें बिना विमोचन की होती हैं।
उनका विमोचन बस पाठक ही करता है।
चलिए बहुत हुआ तो एक बार उसका आवरण उतारने का हक़ लेखक का भी मान लिया हमने।
बार बार उसका आवरण उतारना क्या उसका चीर हरण नहीं माना जाएगा ?
दुख की बात है कि आदमी अपनी इज़्ज़त बढ़ाने के लिए किताब की इज़्ज़त से खेल रहा है और बार बार स्टेज सजा कर सरे आम उसे नग्न कर रहा है।
अगर इन दोनों अवि-रवि के कपड़े कोई दो दो बार उतारे तो इन्हें कैसा लगेगा ?
पर इन्हें कोई इमोशंस की फ़ीलिंग थोड़े ही है,
ख़ैर हमारा फ़र्ज़ था इन्हें थोड़ी सी ख़ुराक़ देना सो दे दी।
आप लोग अपना वर्तमान देखिए और अपना भविष्य संवारिए।
आप लोग किसी नई पुरानी क्रांति के चक्कर में भी मत पड़िए।
सब फ़ालतू के धंधे हैं।
इतिहास लोगों को अपने ख़ानदान का पता नहीं है कि कहां से आए थे और कब आए थे ?
ऐसे में भोजपुरी ब्लॉगिंग का इतिहास कौन पढ़ेगा ?
नहीं ,
ऐसा नहीं है।
ब्लॉग जगत पढ़ेगा उनकी दोनों किताबें।
उनकी किताब क्या पढ़ेगा , उनकी किताब में अपना तज़्करा पढ़ेगा और अपने बीवी बच्चों को भी पढ़वाएगा कि देखो आप नहीं जानते हम कित्ती बड़ी तोप बन गए हैंगे, देखो किताब में हमारा फोटो भी है और हमारा नाम भी।
डेल कारनेगी ने कहा है कि ‘आदमी को सबसे प्यारी आवाज़ उसके नाम की आवाज़ लगती है‘
ठग इस बात को जानते हैं और वे लोगों की इसी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर अपनी रददी को किताब के भाव बेच भागते हैं।
आदमी सब कुछ जानते हुए भी उसे लेने पर मजबूर है।
हक़ीक़त तो यह है कि बड़ा ब्लॉगर वास्तव में वह है जो इनकी ठगी का शिकार न हो और इनके ही कान उमेठ दे।

9 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

जमाल जी, पता नहीं क्‍यों आप दूसरों के चक्‍कर में अपनी ऊर्जा बर्बाद कर रहे हैं। दूसरे के कामों पर परोक्ष रूप से नुक्‍ताचीनी से अच्‍छा है स्‍वयं उससे अच्‍छा काम किया जाए।


जहां तक एक किताब के दो दो बार विमोचन का सवाल है, आप किसी बडे भ्रम में है। आपको बताना चाहूंगा कि दिल्‍ली में जिस किताब का विमोचन हुआ था, वह ब्‍लॉगरों के लेखों का संग्रह है और लखनऊ में जिस किताब का विमोचन हो रहा है, वह ब्‍लॉगिंग के इतिहास से सम्‍बंधित रवीन्‍द्र प्रभात जी की स्‍वयं की किताब है।

और हां, आपसे एक निवेदन है कि कृपया अपनी पोस्‍टों की सूचना मेल द्वारा न दिये करें और न ही फेसबुक पर मेरी वाल पर उन्‍हें चस्‍पा किया करें। इससे मुझे काफी असुविधा होती है।

मनोज पाण्डेय said...

जिसे यह भी नहीं मालूम कि एक पुस्तक का विमोचन दो बार हो रहा है या दो अलग-अलग पुस्तकों का और उसपर लिख दिया लेक्चर लंबा-चौरा . इसी को कहते हैं आँख का अंधा नाम नयनसुख .....क्योंकि सावन के अन्धें को हर जगह हरा हरा ही दिखाई देता है, वैसे लिखने के लहजे से तो मानहानि का प्रत्यक्ष मामला बन रहा है और इन्हें लेखकों की ओर से नोटिस दिया जाना चाहिए !

Ayaz ahmad said...

मनोज पानडे जी, जाकीर भाई हिन्दू और मुसलमानों की बातों में नुक्ताचीनी करते रहते हैं, इनके लहजे से आपको कभी नहीं लगा कि इन्हें भी कोई मानहानि के मुकददमे में लपेट सकता है.
जो चोरी करता है उसे चोरों की तरह रहना चाहिए, सीनाजोरी महंगी पड़ जाती है और जिससे आप यहां बात कर रहे हैं, उसके बारे में मैं भी जानता हूं और जाकीर भी लेकिन आप नहीं जानते.
आप यहां अनवर जमाल साहब को आंख का अंधा और नाम नयन सुख की कहावत सुना रहे हो, यह खुद मानहानि का पुख्ता सुबूत है.

जल्दी भिजवाइये नोटिस, बताइये कब भिजवा रहे हैं आपके आका जी मानहानि का नोटिस ?

Ayaz ahmad said...

जाकीर भाई @ दिल्ली में आयोजन के अवसर पर यह बात सामने आई थी कि रवींद्र प्रभात ब्लॉगर जी ने ईनाम की मूल सूची बदल दी थी और जो ईनाम सलीम खान साहब के लिए घोषित किया गया था, वह खुशदीप सहगल को पकड़ा दिया गया और वहां अपना अपमान देखकर खुशदीप जी ने भी वह ईनाम लौटा दिया था.

क्या यह बात सही है कि पहले ईनाम की सूची में सलीम साहब का नाम था और बाद में हटा दिया गया था ?

अगर यह आरोप सही है तो फिर क्या इसे बेईमानी नहीं कहा जाएगा ?

अगर नास्तिक बनने के बाद भी आप ईनाम और सम्मान के लालच में बेईमानों के खि़लाफ़ मुंह खोलने से डरते रहे तो फिर आपके नास्तिक होने का क्या फाएदा ?

आप मुस्लिम धर्म और हिंदू धर्म में चमत्कारों पर पोस्ट बनाते हो और उनमें नुक्ताचीनी करते हो, तब आपको यह खयाल क्यों नहीं आता कि हम नुक्ताचीनी करके अपनी ऊर्जा व्यर्थ गंवा रहे हैं ?

सारी नसीहतें दूसरों के लिए ही हैं, अपने काम को तो जागरूकता लाना कहते हो,
यही बात यहां भी समझ लीजिए कि हिंदी ब्लॉगिंग में जो चोर ठग मिज़ाज के लोग सक्रिय हो गए हैं शायद उनसे होशियार करने के बारे में यह पोस्ट बनाई गई होगी।

आस्तिक लोगों की पोस्ट पर अपनी नास्तिकता के प्रचार से भरी पोस्ट्स के लिंक छोड़ते हुए तो आप यह नहीं सोचते कि इन्हें मेरी छोड़ी हुई गंदगी से कितनी असुविधा हो रही होगी ?

तब तो आप अपने रीडर और अपनी एलेक्सा रैंकिंग बढ़ाने के लिए अपने लिंक छोड़ना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हो।
नास्तिक होकर भी दो पैमानों से नापने की आदत नहीं छोड़ पाए ?

तौबा करो अपनी गलतियों से और सुधर जाओ,
जब दुनिया में ही कोई जवाब आप नहीं दे पा रहे हो तो अपने पैदा करने वाले को कैसे दे पाओगे ?

मनोज पाण्डेय said...

यदि सलीम खान के नाम का परिकल्पना सम्मान हेतु चयन हुआ था, तो उन्हें इसकी सूचना दी गयी होगी या फिर सार्वजनिक रूप से घोषणा की गयी होगी ....प्रमाण देकर बात किया करो हवा हवाई नहीं ! आसमान पर थूकोगे तो ......!

Ayaz ahmad said...

मनोज पानडे जी , आसमान में नहीं थूका जा रहा है .
आप देखना चाहें तो प्रमाण बहुत हैं. आप रविन्द्र प्रभात साहब से खुद पूछ लीजिए.
वर्ना जिसके साथ अन्याय किया, जिसे धोखा दिया उसका बयान देख लीजिए.
आप यह यूआरएल कापी करके ऊपर पते की जगह डाल कर देखिए कि वहां क्या लिखा है ?

http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/04/blog-fixing_28.html

ईनाम घोटाले के शिकार बने सलीम ख़ान Blog Fixing
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जनाब सलीम ख़ान साहब ! हिंदी ब्लॉगर्स को परिकल्पना समूह की तरफ़ वर्ष 2010 में ईनाम दिये जाने की जो घोषणा हुई थी, क्या उसमें आपका नाम मौजूद था ?
आपको किस शीर्षक के अंतर्गत ईनाम दिया जा रहा था ?

Answer : मैं पिछली मर्तबा आयोजकों में से था.
मुझे वर्ष के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉगर अंतर्गत ईनाम दिया गया था.

DR. ANWER JAMAL said...

अक्ल के ठप्प होने का पूरा सुबूत है

@ भाई मनोज पांडे जी !
यह एक यूनिवर्सिटी है जहां ब्लॉगिंग के रहस्यों को हास-परिहास और व्यंग्य के माध्यम से सिखाया जाता है। व्यंग्यकार आए दिन लालू बिहारी से लेकर दिल्ली की शीला दीक्षित तक के बारे में व्यंग्य करते रहते हैं बल्कि राहुल, सोनिया और पीएम तक पर व्यंग्य लिखते हैं और आप लोग मज़े ले लेकर पढ़ते भी हैं लेकिन उन्हें कभी किसी ने धमकी नहीं दी कि आपने मानहानि कर दी है जैसा कि आप यहां कह रहे हैं।
यह आपकी अक्ल के ठप्प होने का पूरा सुबूत है।
क्योंकि आप प्रमाण मांगते हैं इसलिए आपको प्रमाण दे दिया।

2. अब बिंदु नंबर दो पर ध्यान दीजिए .
मानहानि किस की हो रही है यहां ?
क्या यहां किसी ब्लॉगर का नाम, लोकेशन और उसकी किसी रचना कोई नाम यहां मौजूद है ?
यहां भोजपुरी ब्लॉगिंग का इतिहास लिखने वाले दो अवि-रवि का ज़िक्र हो रहा है। उन्होंने एक एक किताब का विमोचन दो दो बार कर डाला है।

अब हमने तो लिखा क्या और आप उसे फ़िट कर रहे हैं किन लोगों पर ?
इस घटना में कुछ बिंदुओं में समानता देखकर ही आपका ध्यान उन हिंदी ब्लॉगर्स की ओर गया होगा लेकिन आपको ध्यान देना चाहिए था कि आप कह रहे हैं कि जिन दो लोगों के बारे में स्पष्टीकरण आप दे रहे हैं। उन्होंने एक पुस्तक का विमोचन दो बार नहीं किया है।
इसी से आपको जान लेना चाहिए था कि हमारे पात्र और हमारी घटना अलग है।
हमारे पात्र एक किताब का विमोचन दो बार करते हैं और उनमें से एक बेईमान और धोखेबाज़ है और दूसरा ठग है जबकि आपके द्वारा इंगित व्यक्ति ऐसे तो होंगे ही नहीं।
इससे यह भी पता चलता है कि आपके और हमारे पात्रों का चरित्र और उद्देश्य भी अलग है।
अतः आपको जान लेना चाहिए था कि पात्र और घटनाओं में पूर्ण साम्य नहीं है।

...और यह जानकर आपको सुखद आश्चर्य होगा कि हक़ीक़ भोजपुरी ब्लॉगिंग का इतिहास‘ आज तक किसी ने भी नहीं लिखा है और न ही अवि-रवि नाम के पात्रों ने किसी किताब का विमोचन 2 बार किया है। 2 बार तो क्या बल्कि एक बार भी नहीं किया है बल्कि सिरे ही नहीं किया है क्योंकि ये वास्तव में हैं ही नहीं।

अब आप यह सोचिए कि जो पात्र वास्तव में हैं ही नहीं और जो घटना कभी हुई ही नहीं, उसे व्यंग्य में लिखा जाए तो मानहानि किसकी हुई ?
...लेकिन आपने मेरी मानहानि ज़रूर कर दी है और आपका कमेंट मेरे पास ईमेल में रिकॉर्ड है, उसे सुरक्षित कर लिया गया है।

अब आपकी स्थिति बहुत हास्यास्पद सी हो गई है।
ख़ैर आदमी बात को पूरी तरह न समझ पाए या बात तो समझ जाए लेकिन बात कहने वाले को न समझ पाए तो आदमी को ऐसी उपहासजनक स्थिति का सामना करना ही पड़ता है।

कोई बात नहीं है। इस संवाद में कम से कम यह तो पता चला कि हमारी कथा के तथ्यों से कुछ कुछ मेल खाने वाले आदमी हिंदी ब्लॉगिंग में भी किताबों का विमोचन करा रहे हैं।
आप उन्हें हमारी शुभकामनाएं दीजिएगा !

DR. ANWER JAMAL said...

इस ब्लॉग का काम है ब्लॉगर्स की हक़ीक़त को सामने ले आना

@ भाई ज़ाकिर साहब ! मनोज पांडे जी से तो कोई शिकायत नहीं है लेकिन आप तो समझदार हैं और आप ख़ुद भी फैंटेसी आदि लिखते रहते हैं, आप तो थोड़ा तर्क बुद्धि से काम लेते ?
भावनाओं में बहकर आप भी हमसे लड़ लिए ?
हा हा हा

आप इब्ने सफ़ी के फ़ैन हैं,
सच बताइये कि क्या यहां इमरान और उनके नौकर जैसी कॉमेडी नहीं हो गई है ?
यही इस ब्लॉग का काम है और यह इसमें सफल है।
इस ब्लॉग का काम है ब्लॉगर्स की हक़ीक़त को सामने ले आना, आपके सहयोग से वह अब सबके सामने आ चुकी है।
सहयोग के लिए धन्यवाद !
याद है कि कभी कभी इमरान ख़ुद को बदमाशों से पकड़वा दिया करता है ताकि वह उनके अड्डे तक और उनके बॉस तक पहुंच सके।
बॉस जब गिरफ़्त में आता है तब चमचे ग़ुंडों को पता चलता है कि हमने इमरान पर हमला करके ग़लती की थी।
हा हा हा

आप दोनों का यहां स्वागत है बार बार ।

S.M.Masoom said...

taliyaaaaaaaaaaaaan :)