Sunday, May 29, 2011

‘टिप्पणी के भ्रष्टाचार‘ से मुक्त होता है बड़ा ब्लॉगर

डेल कारनेगी एक विश्व विख्यात लेखक हैं। आम तौर पर उनकी दो किताबें बहुत मशहूर हैं ‘हाउ टू स्टॉप वरीइंग एंड स्टार्ट लिविंग‘ और एक और जो इससे भी ज़्यादा मशहूर है। कुछ और भी किताबें उन्होंने लिखी हैं लेकिन वे इतनी मशहूर नहीं हैं।
क्या आप जानते हैं कि उनकी दूसरी मशहूर किताब का नाम क्या है ?, जिससे उन्हें पहचाना जाता है और दुनिया की हरेक बड़ी भाषा में उसका अनुवाद मौजूद है।
ख़ैर, इन किताबों को पढ़े हुए 25 साल से ज़्यादा हो गए। इन किताबों का मैं क़ायल हूं और चाहता हूं कि हरेक आदमी इन्हें ज़रूर पढ़े।
डेल कारनेगी की किताबें सकारात्मक विचार देती हैं।
लेकिन कहीं कहीं मैं उनसे सहमत नहीं हो पाता।
उन्हीं की तरह दूसरे बहुत से लेखकों ने भी लोगों को दोस्त बनाने की कला पर किताबें लिखी हैं। लोकप्रिय होने के लिए सभी एक ही सुझाव देते हैं कि आप किसी के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय ज़ाहिर मत कीजिए और किसी के विचारों का खंडन मत कीजिए क्योंकि हरेक को अपने विचार प्रिय हैं और वह उन्हें सत्य मानता है। किसी के विचारों का खंडन करने के बाद उसके मन में आपके लिए दूरी और खटास पड़ जाएगी।
बात एकदम सही है लेकिन क्या हम इसका पालन कर सकते हैं या हमें इस उसूल का पालन करना चाहिए ?
जब हम किसी ब्लॉगर की पोस्ट पढ़ते हैं तो टिप्पणी करते हुए बहुत लोग ग़लत को ग़लत कहने के बजाय बचकर निकल जाते हैं।
क्या यह प्रवृत्ति सही है ?
बल्कि बहुत बार ऐसा भी देखा जाता है कि लोग ग़लत बातों का समर्थन करने लग जाते हैं मात्र अपने समर्थन को बनाए रखने के लिए, केवल इसलिए कि कहने वाला अपने ग्रुप का होता है।
क्या ऐसा करना सही होता है ?
कई बार ऐसा भी होता है कि बात सही होती है लेकिन उसे कहने वाला या तो अपने ग्रुप का नहीं होता है या फिर अपनी पसंद का नहीं होता है। ऐसे में भी उसकी सही बात को सही कहने का कष्ट नहीं किया जाता।
इसी तरह की और भी बातें हैं, जिन्हें हम ‘टिप्पणी में भ्रष्टाचार‘ की संज्ञा दे सकते हैं। किसी भी विषय में जब सत्य का पालन नहीं किया जाता तो वहां भ्रष्टाचार ख़ुद ब ख़ुद जन्म ले लेता है। इस समय हिंदी ब्लॉग जगत में यह भ्रष्टाचार आम है। इसके निवारण का उपाय केवल यही है कि सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने में झिझक बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए, चाहे इसके लिए लोकप्रियता कभी भी न मिले या मिली हुई भी जाती हो तो चली जाए। केवल ‘सत्य‘ को ही अपना मक़सद बनाता है बड़ा ब्लॉगर। 

Friday, May 27, 2011

‘टिप्पणी का सच जानता है बड़ा ब्लॉगर'

टिप्पणियों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन अपने विद्यार्थियों के लिए आज हम एक ऐसा लेख पेश करेंगे जो हिंदी ब्लॉग जगत को आईना भी दिखाता है और सीखने वालों को बहुत कुछ सिखाता भी है। ज़रूरत बस एक नज़र की है। आईना देखने के लिए भी नज़र चाहिए और उसमें मौजूद ‘तत्व‘ को ग्रहण करने के लिए भी नज़र चाहिए।
जनाब सतीश सक्सेना जी का यह लेख मुझे बेहद पसंद है और इतना ज़्यादा पसंद है कि बिना उनसे औपचारिक अनुमति लिए ही उसे हम यहां पेश कर रहे हैं। यह औपचारिकता तब के लिए छोड़ दी है जबकि वह ख़ुद यहां कमेंट करने आएंगे।
...तो साहिबान, क़द्रदान लीजिए आज आपके सामने पेश है ‘टिप्पणी के बारे में सबसे बड़ा सच‘ 

टिप्पणियां देने की विवशता - सतीश सक्सेना
किसी भी लेख की महत्ता बिना टिप्पणियों के बेकार लगती है ,लगता है किसी वीराने में आ गए हैं ! और टिप्पणिया चाहने के लिए टिप्पणिया देनी बहुत जरूरी हैं ! सो हर लेख के तुरंत बाद ५० अथवा उससे अधिक जगह टिप्पणी करनी होती है तब कहीं २५ -३० टिप्पणियों का जुगाड़ होता हैं !  :-((
अब लम्बा लेख कैसे पढ़ें ..समझ ही नहीं आता ! ऐसे लेख पर टिप्पणी करने के लिए अन्य टिप्पणीकर्ता की प्रतिक्रिया देख कर उससे मिलती जुलती टिप्पणी ठोकना लगता होता है ! चाहे उस बेचारे का बेडा गर्क हो जाये :-)
  • अगर किसी बहुत बेहतरीन लेख का कबाड़ा करना हो तो पहली नकारात्मक टिप्पणी कर दीजिये फिर देखिये उस बेचारे की क्या हालत होती है ! बड़े बड़े मशहूर लोग उसकी कापी करते चले जायेंगे ! 
  • किसी अन्य टिप्पणी कर्ता जिसे आप विद्वान् समझते हों की टिप्पणी की कापी करना अच्छा लगेगा और लोग आपकी टिप्पणी को ऐवें ही नहीं लेंगे !
  •  
और हम जैसे मूढ़ लोग अपने आप पर और अपनी संगत पर हँसेंगे  ...दुआ करता हूँ कि कुछ लेख को ध्यान से पढने वाले भी आ जाएँ  तो इतनी मेहनत करना सार्थक हो ! मेरे जैसे मूढमति, टिप्पणी न करें तो ठीक ही होगा सो आज से टिप्पणी कम करने का प्रयत्न करूंगा , जिससे बदले में टिप्पणी न मिलें  और दुआ मानूंगा कि कम लोग पढ़ने आयें मगर वही आयें जो मन से पढ़ें !
:-))))                                                                            
                             ( यह लेख एक व्यंग्य है )
साभार : http://satish-saxena.blogspot.com/2010/11/blog-post_24.html


Sunday, May 22, 2011

वह क्या राज़ है जिसे जानने के बाद आदमी बड़ा ब्लॉगर बन जाता है ? Art OF Blogging


‘इस हाथ दे और उस हाथ ले।‘
कमेंट कमाने का यह मूल उसूल है।
आप किसी की शादी या सालगिरह पर जाते हैं तो कुछ दुआ के बोल देकर आते हैं और कुछ रक़म भी। कुछ समय बाद जब आपके यहां इसी तरह का कोई फंक्शन होता है तो लोग आपके यहां भी आते हैं और देकर जाते हैं, वही दुआएं और वही रक़म। हां, थोड़ा ऊपर नीचे भी हो सकता है।
याद रखिए कि अगर आपने किसी के यहां जाकर कुछ दिया  ही नहीं तो फिर आपको भी किसी से कुछ मिलने वाला नहीं है और न ही आपको किसी से कुछ पाने की उम्मीद ही रखनी चाहिए।
आप रक़म बांटेंगे तो लौटकर आपको भी रक़म ही मिलेगी और अगर आप टिप्पणियां बांटेंगे तो लौटकर आपको भी टिप्पणियां ही मिलेंगी। इस दुनिया में कोई आपको कुछ दे नहीं सकता और न ही देता है। दुनिया तो आपको तभी लौटाएगी जबकि वह आपसे कुछ पाएगी। बिना कुछ पाए आपको देने वाला दाता केवल एक रब है, वही सबसे बड़ा है और वह सबको देता है।
अगर आप बड़ा ब्लॉगर बनना चाहते हैं तो आप भी अपनी हद भर सबको दीजिए। बिना किसी से कुछ पाए दीजिए, किसी से कुछ पाने की उम्मीद रखे बिना दीजिए।
आप कभी इसलिए टिप्पणी मत कीजिए कि वह भी आपको लौटकर टिप्पणी दे। जो इस आशा के साथ टिप्पणी देता है वह छोटा ब्लॉगर होता है और सदा तनाव में जीता है। छोटी अपेक्षाएं ब्लॉगर के लिए सदा चिंता का कारण बनती हैं। छोटों से और ओछों से तो दुनिया पहले ही भरी हुई है। आपको ऐसा नहीं बनना चाहिए।
जो भी शीर्षक आपको अच्छा लगे, उस लेख पर जाइये और उसे पढ़कर ईमानदारी से अपनी राय दीजिए।
जब आप निरपेक्ष भाव से कुछ समय तक ऐसा करेंगे तो आप देखेंगे कि आपके ब्लॉग का टिप्प्णी सूचकांक ऊपर चढ़ता जा रहा है।
ये टिप्पणियां सच्ची होंगी और आपके लिए बौद्धिक ऊर्जा मुहैया करेंगी। लोगों की तरफ़ से आपको सही सलाह भी मिलेगी और जब आप उन पर ध्यान देंगे तो आपके लेख ही नहीं बल्कि आपके व्यक्तित्व तक में निखार आता चला जाएगा।
जितना निखार आएगा, आपकी बड़ाई में उतना ही इज़ाफ़ा होता चला जाएगा।
यह बात जो जान लेता है, वह बड़ा ब्लॉगर बन जाता है।

Saturday, May 21, 2011

'अपने दोनों हाथ में लडडू रखता है बड़ा ब्लॉगर' The complicated game

'बड़ा ब्लॉगर अपने दोनों हाथ में लडडू रखता है।'
बड़ा ब्लॉगर अपने समर्थकों के सहयोग से आगे बढ़ता है और अपने विरोधियों की छाती और उनके कंधों पर चढ़ता है । दोस्तों से काम तो दुनिया लेती है लेकिन विरोधियों की ऊर्जा को इस्तेमाल एक बड़ा ब्लॉगर ही कर सकता है । वह अपने समर्थन में लिखी गई पोस्ट को हिट करता और करवाता है और अपने विरोध में लिखी गई पोस्टों को भी। यहाँ तक कि उसके विरोधी उसके प्रचारक मात्र बनकर रह जाते हैं । जब कोई उसका विरोध नहीं करता तो बड़ा ब्लॉगर फ़र्ज़ी ब्लॉग बनाकर अपना विरोध स्वयं करता है । उस ब्लॉग पर प्रायः अन्य विरोधी ही टिप्पणी करते हैं और इस तरह वह अपने विरोधियों को चिन्हित कर लेता है और उनके इलाज पर उचित ध्यान देता है ।
ब्लॉग जगत में कोई नहीं जानता कि किस ब्लॉग से अपना विरोध वह स्वयं कर रहा है और किस ब्लॉग से सचमुच ही विरोध हो रहा है । इस तरह विरोधियों के विरोध की धार कुंद हो जाती है और उसे केवल प्रचार मिलता रहता है।

ऐसा करके वह अपने विरोधियों को पसोपेश में डाल देता है । अगर वे अपना विरोध बंद करते हैं तो वह निर्विरोध हो जाएगा जैसे कि दूसरे हैं और अगर उसका विरोध बदस्तूर जारी रखा जाए तो भी उसे प्रचार मिल रहा है ।
विरोधी ब्लॉगर जो भी करेगा वह बड़े ब्लॉगर का केवल फ़ायदा ही करेगा ।
एक बड़ा ब्लॉगर ऐसा सोचता है । आप भी ऐसे सोचेंगे तो बहुत जल्द आप भी एक बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।

Saturday, May 7, 2011

लखनऊ में आज सम्मानित किए गए सलीम ख़ान और डा. अनवर जमाल Best Blogger

बड़ा ब्लॉगर पूरी कोशिश करता है कि वह अपने पाठकों को ताज़ा जानकारी से बाख़बर रखे .
इसी कोशिश में आज 'मुशायरा' ब्लॉग पर एक पोस्ट आई और वादा किया गया कि इवेंट के फोटो भी जल्द ही दिखायेंगे.
सो जैसे  ही फोटो आये, आपके लिए हाज़िर कर दिए गए. यह प्रोग्राम चौ. चरण सिंह सहकारिता भवन लखनऊ में संपन्न हुआ.
समाज के जो तबक़े आधुनिक शिक्षा से पिछड़  गए हैं, उन तक शिक्षा का प्रकाश कैसे पहुंचे ? इस सम्मलेन का उद्देश्य यही था.
इस सम्मलेन का आयोजन 'आल इण्डिया उर्दू तालीम घर, लखनऊ' ने किया, जिसमें मुल्क के अलग अलग हिस्सों से बहुत से बुद्धिजीवियों और आलिमों ने भाग लिया. जिनमें अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त  मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली,  प्रोफ़ेसर अख्तरुल वासे (चेयरमैन उर्दू एकेडमी दिल्ली), डा. इस्लाम क़ासमी (सदर जमीअतुल उलेमा, उत्तराखंड), प्रोफ़ेसर अब्दुल वहाब ‘क़ैसर साहब (डायरेक्टर ऑफ़  एग्ज़ामिनेशन, मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद), डा. असलम जमशेदपुरी (उर्दू विभागाध्यक्ष चौ. चरण सिंह यनिवर्सिटी मेरठ), डा. साग़र बर्नी (अध्यक्ष उर्दू विभाग चै. चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ) प्रोफ़ेसर तनवीर चिश्ती (गोचर पी.जी. कॉलेज, सहारनपुर), डा. ज़फ़र गुलज़ार (चै. चरण सिंह यूनि., मेरठ) और डा. असलम क़ासमी साहब (उत्तराखंड) के नाम प्रमुख हैं। सभी लोगों ने हाज़िरीने मजलिस को अपने आलिमाना ख़यालात से नवाज़ा। मीडिया की दुनिया की एक क़द्दावर हस्ती जनाब अज़ीज़ बर्नी साहब किसी मजबूरी की वजह से रू ब रू न आ सके। उन्होंने तक़रीबन 10 मिनट तक कॉन्फ़्रेंस के ज़रिये सभा को संबोधित किया और उर्दू तालीम घर की कोशिशों को सराहा। इस प्रोग्राम में संभल से आए जनाब डा. फ़हीम अख़तर साहब और अनवर फ़रीदी साहब और दीगर शायरों ने अपने कलाम से भी दर्शकों को अम्नो-मुहब्बत का बेहतरीन संदेश दिया। 


इस मौक़े पर सलीम ख़ान साहब को हिंदी ब्लॉगिंग के ज़रिये एकता की राह के पत्थर तोड़कर उसे हमवार करने के लिए बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड मौलाना ख़ालिद रशीद फ़िरंगी महली के हाथों दिया गया। इंटरनेट के ज़रिये लोगों तक इल्म आम करने के लिए उन्होंने जो निःस्वार्थ योगदान संस्था को दिया है, उसकी भी संस्था द्वारा भरपूर तारीफ़ की गई। मौलाना ख़ालिद साहब ने हमें भी अपने हाथों से बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड दिया। हमें यह अवार्ड उर्दू से हिंदी अनुवाद के लिए दिया गया जो कि हमने कई उर्दू किताबों का हिंदी में किया है और इस तरह हिंदी ब्लॉगर्स के लिए उर्दू लिट्रेचर को समझना मुमकिन बना दिया। दीगर ब्लॉग के साथ ‘मुशायरा‘ ब्लॉग की भी तारीफ़ की गई। इस ब्लॉग पर भी हमने बहुत से शायरों के कलाम को उर्दू से हिन्दी में अनुवाद करके पेश किया है . 
हमने सभा को संबोधित करते हुए एक संदेश भी दिया। इस मौक़े पर डा. असलम क़ासमी साहब की एक किताब ‘उर्दू तन्क़ीद और उसका पसमंज़र‘ का विमोचन भी किया गया, जो कि उनकी थीसिस है जिसके लिए उन्हें डॉक्ट्रेट से नवाज़ा गया है।. इस प्रोग्राम की अध्यक्षता मौलाना मुहम्मद फुरकान  क़ासमी साहब ने की  जो कि एक हिन्दोस्तान भर की मस्जिदों की समिति के ज्वाइंट सेक्रेटरी हैं.
हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया से इस प्रोग्राम में हमारे अलावा सलीम ख़ान, अनवार अहमद साहब, डा. असलम क़ासमी, डा. अयाज़ अहमद, तारिक़ भाई, फ़िरोज़ अहमद, डा. डंडा लखनवी, डा. शाहिद हसनैन व अन्य शामिल थे। कुछ ब्लॉगर्स के अकाउंट्स फ़ेसबुक पर हैं। पूरे कार्यक्रम की कवरेज करने के लिए मीडिया भी मौजूद था और वीआईपी की सुरक्षा के लिए ख़ासी तादाद में सुरक्षाकर्मी भी मौजूद रहे। 
प्रोग्राम की शुरुआत कुरआन शरीफ़ की तिलावत से हुई और ख़ात्मा दुआ पर हुआ . 
सुरक्षा के लिए मौजूद पुलिसकर्मी
वीआईपी मेहमानों की सुरक्षा के लिए मौजूद दरोगा
हिन्दी ब्लॉगर्स की टीम प्रोग्राम के शुरू में 
सलीम ख़ान प्रोफ़ेसर असलम जमशैदपुरी साहब को फूल पेश करते हुए 
प्रोफ़ेसर साहब एक हिन्दी ब्लॉगर भी हैं.

स्टेज पर मौजूद सम्मानित मेहमान  
मौलाना मुहम्मद फुरकान  क़ासमी
डा. डंडा लखनवी, सलीम खान, अनवर जमाल, डा. अयाज़,डा. सुरेश उजाला एडिटर,  अनिल   
मंच का विहंगम दृश्य 
डा. असलम क़ासमी 
सलीम खान स्टेज पर  
डा. अनवर जमाल स्टेज पर 
डा. अनवर जमाल सभा को संबोधित करते हुए 
एक विहंगम दृश्य 
अनवर जमाल एक भावपूर्ण मुद्रा में 
 मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली डा. अनवर जमाल को ईनाम से नवाज़ते हुए 
मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली सलीम खान  को बेस्ट ब्लॉगर के ईनाम से नवाज़ते हुए  डा.
एक यादगार लम्हा सलीम खान के लिए

मीडियाकर्मी  रिपोर्टिंग करते हुए

Thursday, May 5, 2011

अगर आप बड़ा ब्लॉगर बनना चाहते हैं तो आपको भी अपने अंदर निरालापन ज़रूर लाना होगा Be a unique blogger


बड़ा ब्लॉगर कोई नया काम नहीं करता बल्कि वह हर काम को एक नए अंदाज़ में करता है जैसे कि शौचालय में समय गुज़ारना। शौच का जीवन में बड़ा महत्व है। इंसान की पहचान उसके शौच से ही होती है। इंसान वह नहीं होता जो कि वह बाहर से नज़र आता है बल्कि अस्ल इंसान वह होता है जो कि अंदर होता है। इंसान की हक़ीक़त उसके अंदर ही छिपी हुई होती है बल्कि हक़ीक़त यह है कि हर चीज़ की हक़ीक़त ही अंदर छिपी हुई होती है। सेहत और बीमारी का राज़ भी इंसान के अंदर ही छिपा हुआ होता है। उसके राज़ को भी ठीक से तभी जाना जा सकता है जबकि उसके अंदर से आने वाली चीज़ को देख लिया जाए।
पुराने ज़माने में हकीम-वैद्य मरीज़ की नाड़ी देखने के साथ-साथ उसके अंदर से निकले मल-मूत्र को भी चेक करते थे। नया ज़माना आया तो काढ़ों के बजाय इंजेक्शन और कैप्सूल चल गए लेकिन पैथोलॉजी में आज भी मरीज़ के मल-मूत्र की जांच की जाती है। जो कुछ इंसान के अंदर से निकलता है, वह बता देता है कि इसके अंदर क्या है ?
शरीर से स्थूल मल निकलता है और मन से सूक्ष्म, जो कि मुंह के रास्ते बाहर निकलता है। इंसान के अंदर से निकलने वाले विचार ही वास्तव में उसका सही परिचय होते हैं।
इंसान जो कुछ बोलता है या जो कुछ लिखता है, उन सबमें उसके अंदर से निकलने वाले विचार होते हैं, उन्हें देखकर ही आप समझ सकते हैं कि यह आदमी कितना ठीक है और कितना ग़लत ?
जब आप किसी ब्लॉगर की पोस्ट पढ़ें तो इसी तरह जागरूक होकर पढ़ें। इसका फ़ायदा आपको यह मिलेगा कि अगर उसके विचारों में किसी भी तरह की कोई गंदगी होगी तो आप उसे स्वीकार नहीं करेंगे। कोई कितना ही प्यारा दोस्त क्यों न हो लेकिन उसकी गंदगी को अपने सिर पर उठाकर कोई नहीं घूमता लेकिन ब्लॉग जगत में यह एक आम बात है कि दोस्त ने क्या कहा है ?
और उसमें कितनी गंदगी भरी हुई है ?
यह देखे बिना ही उसके विचार को तुरंत अपने मन में समेट लेते हैं और उसे दस जगह और परोस आते हैं।
जो ऐसा करता है, वह बड़ा ब्लॉगर नहीं होता।
बड़ा ब्लॉगर वही होता है जो कि कुछ भी अपनाने से पहले उसकी गुणवत्ता और उसकी उपयोगिता को आज़माकर देखता है और सच्चा और अच्छा देखने के बाद ही उसे अपनाता है।
वैद्य और हकीम मानते हैं कि ज़्यादातर बीमारियों के पीछे पेट की गड़बड़ी होती है। अगर पेट को सही कर दिया जाए तो मरीज़ बहुत से मर्ज़ों से मुक्ति पा सकता है।
जिन लोगों ने इंसान के मन को अपने अध्ययन का विषय बनाया है, उन्होंने पाया है कि गुस्सा, जलन और लालच जैसे जज़्बात इंसान की सेहत ख़राब करते हैं। यही वजह है कि जो लोग इन बुरे जज़्बात से बचते हैं, उन लोगों की सेहत आम तौर पर अच्छी होती है।
यह बिल्कुल सादा सी बातें हैं। इनमें कोई हंसी-मज़ाक़ और व्यंग्य नहीं है।
बहरहाल आदमी सीखना चाहे तो तन्हाई में भी सीख सकता है और वह न सीखना चाहे तो कॉलिज और यूनिवर्सिटी में भी नहीं सीख सकता। सीखने का जज़्बा भी इंसान के अंदर ही होता है, बाहर की चीज़ें तो उसे सिर्फ़ रास्ता दिखाती हैं।
बड़ा ब्लॉगर वही है जो हर समय कुछ न कुछ नया सीखता रहता है। उसे हर जगह एक पोस्ट का विषय नज़र आता है। जब वह शौचालय में होता है तो भी वह मनन कर रहा होता है कि वह अपने पाठकों को नया क्या दे सकता है ?
और जब वह बाहर निकलता है तब भी वह कुछ नया देने की कोशिश करता है।
सो जब हम अपने शौचालय से बाहर निकले तो ख़याल आया कि क्यों न अपने पाठकों को हम अपना शौचालय दिखा दें ?
हरा-भरा मंज़र देखकर उनकी भी तबियत हरी-भरी हो जाएगी। गर्मी के मौसम में हरियाली देखकर उन्हें सुकून भी मिलेगा।
यह सोचकर ख़ास आपके लिए हमने कुछ फ़ोटो लिए और अब उन्हें आपके सामने पेश किया जाता है। देखकर बताइये कि आपको हमारे शौचालय की लोकेशन कैसी लगी ?
शौचालय, जो कि पिछवाड़े बना हुआ है.
पपीते का पेड़ 
लौकी या तोरी की बेल 
अमरुद का पेड़ 
हरे टमाटर से भरी हुई शाख़
कुछ कुछ सुर्ख हो चले टमाटर 
पेड़ों के पीछे छिपा हुआ हमारा शौचालय 

आपको हम यह भी बताते चलें कि यहां एक ही छत के नीचे तीन शौचालय बने हुए हैं, जिन्हें हम सिर्फ़ दिन में ही इस्तेमाल करते हैं। रात में वे शौचालय काम में आते हैं जो कि घर के अंदर बने हुए हैं।
बहरहाल बड़े ब्लॉगर्स की अदाएं निराली होती हैं।
अगर आप बड़ा ब्लॉगर बनना चाहते हैं तो आपको भी अपने अंदर इतना निरालापन ज़रूर लाना होगा कि अगर आप अपने शौचालय के बारे में भी बताएं तो इतने लोग उसे भी चाव से पढने आयें कि वह हॉट लिस्ट में पहुंच जाए।

और अधिक फ़ोटो आपको यहाँ मिलेंगे