डेल कारनेगी एक विश्व विख्यात लेखक हैं। आम तौर पर उनकी दो किताबें बहुत मशहूर हैं ‘हाउ टू स्टॉप वरीइंग एंड स्टार्ट लिविंग‘ और एक और जो इससे भी ज़्यादा मशहूर है। कुछ और भी किताबें उन्होंने लिखी हैं लेकिन वे इतनी मशहूर नहीं हैं।
क्या आप जानते हैं कि उनकी दूसरी मशहूर किताब का नाम क्या है ?, जिससे उन्हें पहचाना जाता है और दुनिया की हरेक बड़ी भाषा में उसका अनुवाद मौजूद है।
ख़ैर, इन किताबों को पढ़े हुए 25 साल से ज़्यादा हो गए। इन किताबों का मैं क़ायल हूं और चाहता हूं कि हरेक आदमी इन्हें ज़रूर पढ़े।
डेल कारनेगी की किताबें सकारात्मक विचार देती हैं।
लेकिन कहीं कहीं मैं उनसे सहमत नहीं हो पाता।
उन्हीं की तरह दूसरे बहुत से लेखकों ने भी लोगों को दोस्त बनाने की कला पर किताबें लिखी हैं। लोकप्रिय होने के लिए सभी एक ही सुझाव देते हैं कि आप किसी के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय ज़ाहिर मत कीजिए और किसी के विचारों का खंडन मत कीजिए क्योंकि हरेक को अपने विचार प्रिय हैं और वह उन्हें सत्य मानता है। किसी के विचारों का खंडन करने के बाद उसके मन में आपके लिए दूरी और खटास पड़ जाएगी।
बात एकदम सही है लेकिन क्या हम इसका पालन कर सकते हैं या हमें इस उसूल का पालन करना चाहिए ?
जब हम किसी ब्लॉगर की पोस्ट पढ़ते हैं तो टिप्पणी करते हुए बहुत लोग ग़लत को ग़लत कहने के बजाय बचकर निकल जाते हैं।
क्या यह प्रवृत्ति सही है ?
बल्कि बहुत बार ऐसा भी देखा जाता है कि लोग ग़लत बातों का समर्थन करने लग जाते हैं मात्र अपने समर्थन को बनाए रखने के लिए, केवल इसलिए कि कहने वाला अपने ग्रुप का होता है।
क्या ऐसा करना सही होता है ?
कई बार ऐसा भी होता है कि बात सही होती है लेकिन उसे कहने वाला या तो अपने ग्रुप का नहीं होता है या फिर अपनी पसंद का नहीं होता है। ऐसे में भी उसकी सही बात को सही कहने का कष्ट नहीं किया जाता।
क्या आप जानते हैं कि उनकी दूसरी मशहूर किताब का नाम क्या है ?, जिससे उन्हें पहचाना जाता है और दुनिया की हरेक बड़ी भाषा में उसका अनुवाद मौजूद है।
ख़ैर, इन किताबों को पढ़े हुए 25 साल से ज़्यादा हो गए। इन किताबों का मैं क़ायल हूं और चाहता हूं कि हरेक आदमी इन्हें ज़रूर पढ़े।
डेल कारनेगी की किताबें सकारात्मक विचार देती हैं।
लेकिन कहीं कहीं मैं उनसे सहमत नहीं हो पाता।
उन्हीं की तरह दूसरे बहुत से लेखकों ने भी लोगों को दोस्त बनाने की कला पर किताबें लिखी हैं। लोकप्रिय होने के लिए सभी एक ही सुझाव देते हैं कि आप किसी के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय ज़ाहिर मत कीजिए और किसी के विचारों का खंडन मत कीजिए क्योंकि हरेक को अपने विचार प्रिय हैं और वह उन्हें सत्य मानता है। किसी के विचारों का खंडन करने के बाद उसके मन में आपके लिए दूरी और खटास पड़ जाएगी।
बात एकदम सही है लेकिन क्या हम इसका पालन कर सकते हैं या हमें इस उसूल का पालन करना चाहिए ?
जब हम किसी ब्लॉगर की पोस्ट पढ़ते हैं तो टिप्पणी करते हुए बहुत लोग ग़लत को ग़लत कहने के बजाय बचकर निकल जाते हैं।
क्या यह प्रवृत्ति सही है ?
बल्कि बहुत बार ऐसा भी देखा जाता है कि लोग ग़लत बातों का समर्थन करने लग जाते हैं मात्र अपने समर्थन को बनाए रखने के लिए, केवल इसलिए कि कहने वाला अपने ग्रुप का होता है।
क्या ऐसा करना सही होता है ?
कई बार ऐसा भी होता है कि बात सही होती है लेकिन उसे कहने वाला या तो अपने ग्रुप का नहीं होता है या फिर अपनी पसंद का नहीं होता है। ऐसे में भी उसकी सही बात को सही कहने का कष्ट नहीं किया जाता।
इसी तरह की और भी बातें हैं, जिन्हें हम ‘टिप्पणी में भ्रष्टाचार‘ की संज्ञा दे सकते हैं। किसी भी विषय में जब सत्य का पालन नहीं किया जाता तो वहां भ्रष्टाचार ख़ुद ब ख़ुद जन्म ले लेता है। इस समय हिंदी ब्लॉग जगत में यह भ्रष्टाचार आम है। इसके निवारण का उपाय केवल यही है कि सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने में झिझक बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए, चाहे इसके लिए लोकप्रियता कभी भी न मिले या मिली हुई भी जाती हो तो चली जाए। केवल ‘सत्य‘ को ही अपना मक़सद बनाता है बड़ा ब्लॉगर।