Wednesday, April 25, 2012

त्रिया चरित्र से धोखा नहीं खाता बड़ा ब्लॉगर Best Hindi Blog


चुनाव नज़्दीक आए तो ब्लॉगर अपनी अपनी पसंद की पार्टी के लिए ज़मीन हमवार करने लगे। किसी ने यह काम इशारे में किया तो किसी ने खुले आम किया। कोई ब्लॉग पर इस विषय में चुप ही रहा। जो चुप रहा उसकी पार्टी उत्तर प्रदेश में जीत गई और जो खुल कर बोला और बोला ही नहीं बल्कि दहाड़ा भी, उसकी पार्टी हार गई।
हार से पार्टी भी बौखला गई और पार्टी के वर्कर ब्लॉगर भी।
बौखलाहट पागलपन में बदली तो उसने संविधान का अपमान कर दिया।
जिसे पार्टी से नहीं बल्कि देश से प्यार है, उसने कह दिया कि ‘मुझे आपत्ति है‘।
औरत को औरत ने पकड़ लिया और नर्म गुफ़्तगू के साथ ऐसा जकड़ लिया कि जान छुड़ानी भारी हो गई। उनकी हिमायत में एक भाई साहब आ गए।
बहन भी गालियां बकती है और भाई भी गालियां बकता है।
गालियां बकने से इन दोनों को वीरता का नक़ली अहसास होता है।
इनमें से एक भाग कर विदेश में बैठा है और दूसरा है ही नहीं।
भाई के नाम से भी फ़र्ज़ी प्रोफ़ाइल ख़ुद बहन जी ने ही बना रखा है और अपनी हिमायत में भाई बनकर ख़ुद ही बोलती रहती हैं।
बड़ा ब्लॉगर अपनी हिमायत का इंतेज़ाम ख़ुद ही लेकर चलता है।
अपने प्रोफ़ाइल से वह ख़ुद को ‘लौह कन्या‘ कहती है तो भाई के प्रोफ़ाइल से अपने दावे की तस्दीक़ कर देती है बल्कि इससे भी आगे बढ़कर ख़ुद को भारत माता का खि़ताब भी दे देती है।
यह वाक़ई अदभुत है।
भारत माता के टाइटिल को पाने की यह नायाब तरकीब पहली बार देखी गई है।
भाई का प्रोफ़ाइल फ़र्ज़ी है, सो वह संविधान का अपमान करता रहा और पीएम तक के अपमान को तत्पर सा होता रहा। उसे पता है कि प्रोफ़ाइल पूरी तरह फ़र्ज़ी है। मेरा कुछ होना नहीं है और जिसका असली है उसने देश को अपनी मर्ज़ी से छोड़ ही रखा है।
दोनों भाई बहन मुतमईन हैं, सो मज़े से संविधान के खि़लाफ़ बोलते रहे।
अपने सम्मान के प्रति संवेदनशील ब्लॉगर ज़्यादातर ऐसे केसेज़ को इग्नोर ही करते हैं।
कुल मिलाकर भाई बहन के फ़िल्मी प्यार का मंज़र देखने वालों को बड़ा इमोशनल कर गया।
इतना प्यार आजकल कहां मिलता है ?
प्यार के नाम पर भी खिलवाड़ करने वाले ही आजकल ज़्यादा हैं और ऐसे भी हैं कि पहले तो इश्क़ लड़ाएं और जब काम निकल जाए तो आशिक़ से कह दें कि अब आप हमारे भाई बन जाओ।
...और कलाकार इतनी कि पति को पता ही न चलने दे कि उसकी पीठ पीछे ब्लॉग जगत में क्या गुल खिलाए जा रहे हैं ?
यह लक्षण तो त्रिया चरित्र से मेल खाते हैं।
भारत माता का टाइटिल ऐसी औरत के लिए तो नहीं है और न ही कोई देगा।
ख़ुद कोई हथियाने लगे तो ब्लॉग जगत को सच्चाई वह बता ही देगा जो कि वास्तव में बड़ा ब्लॉगर है।

Friday, April 20, 2012

फ़र्रूख़ाबादी स्टाइल की कविता भी बना सकती है बड़ा ब्लॉगर Hindi Poetry

जब से कविता जी की कविता हिट हुई है तब से ब्लॉग जगत में अजीब सी गहमा गहमी है। ब्लॉगर्स को कविता जी से बड़ी उम्मीदें हो गई हैं। पहले तो वे जैसे दूसरे ब्लॉग पर जाते थे वैसे ही इस ब्लॉग पर भी ‘गहरे भाव‘, ‘सुंदर अभिव्यक्ति‘ और ‘दिल को छूने वाली रचना‘ कहकर निकल आते थे लेकिन अब वे सचमुच तलाश करते हैं कि कौन सी बात दिल को छू रही है ?
न भी छू रही हो तो पुरानी कविता को ही याद कर लेते हैं।
वाह क्या कविता थी ?
दिल को क्या पूरे के पूरे वुजूद को ही छू कर और हिला कर जो रख दिया था उसने।
आज तक हिल रहे हैं और लुत्फ़ ले रहे हैं।
जवान तो जवान बूढ़े भी कम नहीं हैं।

ज़रा बुड्ढों की दाद देखा कीजिए।
किस किस स्टाइल में दाद देते हैं।
आज का जवान पुराने जवान जैसा नहीं रहा तो आज के बुड्ढों का भी पुराने बुड्ढों की तरह ऐतबार क्या ?
यह तो च्यवनप्राश का देश पहले से ही था और अब तो नई नई तकनीकें और आ गई हैं। कौन जाने किसने क्या खा रखा हो या क्या लगा रखा हो ?
कॉलेज की लड़कियों ने भी एक सर्वे में बताया कि हमें नौजवानों से ज़्यादा डर बुड्ढों से लगता है। ये ‘बेटा बेटा‘ कहकर कहीं भी सहला देते हैं।
जब से कविता हिट हुई है तब से यही डर कविता करने वाली दूसरी ब्लॉगर्स के दिल में भी बैठ गया है कि जाने यह बुड्ढा कहीं उसी कविता की पिनक में तो यहां नहीं आ धमका ?
क्या ज़माना आ गया है कि नारियां कविता करने से पहले और उपमा देने से पहले सत्तर बार सोचती हैं कि इसके भाव ब्लॉगर्स के दिल में कितने गहरे उतरेंगे ?
कहीं ज़्यादा गहरे उतर गए तो जान आफ़त में आ जाएगी।
उपमाएं और अलंकार ही उनकी जान बचा लेते हैं। किसी के पल्ले पड़ती है और किसी के नहीं ?
यह पुराना स्टाइल है कविता का।
नए स्टाइल की कविता में यह सब नहीं चलता। इसमें सब कुछ खुला खेल फ़र्रूख़ाबादी है।
इसमें तो साफ़ बता दिया जाता है कि मेरे महबूब की आंखें हरे कलर की हैं और वह बिन बुलाए चला आता है।
टिप्पणी देने के लिए महबूब स्टाइल में ब्लॉगर्स पहले से ही बिन बुलाए जाने के आदी हैं। सो हरेक को आधे लक्षण तो अपने में ही घटते हुए लगे। बाक़ी रहा आई कलर, सो वह भी बदला जा सकता है। आंख का रंग बदलकर ज़िंदगी रंगीन हो सकती है तो क्या बुरा है ?
जब से नई कविता में महबूब की आंख का रंग पता चला है तो हरेक अपनी आंख का रंग हरा करने पर तुला हुआ है। कोई हरे पत्तों का अर्क़ सुबह शाम डाल रहा है तो किसी ने हरे रंग के लेंस का ही ऑर्डर दे दिया है।
अब सारे टिप्पणीकार जब अगली कविता पढ़ने जाएंगे तो सबकी आंखें हरी हरी होंगी। इतने सारे हरी आंखों वाले देखकर कवयित्री महोदया परेशान हो जाएंगी कि इनमें से मेरा महबूब कौन है ?
और हो सकता है उस दिन असली हरी आंख वाला वहां पहुंचे ही नहीं।
इसी आस में ब्लॉगर्स टिप्पणियां कर रहे हैं वर्ना तो यही ब्लॉगर उससे भी अच्छी कविता पर नहीं पहुंचते।
न इन्हें उसकी कविता से मतलब है और न उसे इनकी टिप्पणी से। हरेक की अपनी अपनी ख्वाहिशें हैं और ख्वाहिशें भी ऐसी कि हरेक ख्वाहिश पर दम निकले।
अंदर से कुछ तो निकले, चाहे दम ही निकले।
टिप्पणीकार यही सोच कर डटे हुए हैं।
बड़ा ब्लॉगर की पोस्ट होती ही ऐसी है।
इनके चक्कर में ईमानदार ब्लॉगर्स पर शक की सुई घूम रही है कि कहीं यह भी तो कोई अरमान पाले हुए नहीं घूम रहा है।
हिंदी ब्लॉगिंग ने किसी को कुछ दिया हो या न दिया हो लेकिन सीनियर सिटीज़न्स को या निठल्लों को समय गुज़ारने का अच्छा टूल दे दिया है।
अगर वृद्धाश्रम के बूढ़ों को ब्लॉगिंग से जोड़ दिया जाए तो उनके मन में भी अरमान अंगड़ाईयां लेने लगेंगे। फिर वे कभी शिकायत न करेंगे कि उनके बेटा बहू उनसे मिलने नहीं आते बल्कि वे ख़ुद चाहेंगे कि उनके बेटा बहू उन्हें डिस्टर्ब करने के लिए कभी न आएं। ब्लॉगिंग दूर के रिश्तों को क़रीब इसी तरह करती है कि वह क़रीब के रिश्तों को दूर कर देती है।
उनके रंगीन अरमान घर पर रहने वाले उनके बूढ़े दोस्तों को पता चल गए तो वे भी ख़ुशी ख़ुशी वृद्धाश्रम में जा पहुंचेंगे।
यह कविता चीज़ ही ऐसी है कि समझ में न भी आए तो भी इसका सेंट्रल आयडिया सबको पहले से ही पता रहता है कि इसमें औरत मर्द के रिश्ते का बयान होगा। दुनिया में इसके सिवा और है ही क्या ?
जिसकी समझ में कविता नहीं आती, यह रिश्ता उसकी भी समझ में आता है।
जिसकी समझ में जो आता है, वह उसी पर वाह वाह करता है।
नए अंदाज़ की कविता की जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बहुत आसान है।
एक बार फ़र्रूख़ाबादी स्टाइल में कविता कर लो, फिर चाहे उसे मिटा भी दो लेकिन उसकी याद किसी के दिल से मिटने वाली नहीं है।
जो ऐसी अमिट याद छोड़ सके, वही है बड़ा ब्लॉगर।

Friday, April 13, 2012

यौन शिक्षा देता है बड़ा ब्लॉगर

आत्मा कहां से आती है कोई नहीं जानता लेकिन जिस मार्ग से मनुष्य शरीर आता है, उसे सब जानते हैं। ज्ञात के सहारे अज्ञात का पता लगाना मनुष्य का स्वभाव है। आत्मा, परमात्मा और परमेश्वर सब कुछ अज्ञात है। अगर हमें कुछ ज्ञात है तो वह मनुष्य शरीर है या फिर वह मार्ग जहां से वह आता है। ‘इश्क़े मजाज़ी‘ का मार्ग यही है और ‘इश्क़े हक़ीक़ी‘ तक भी पहुंचने के लिए ‘इश्क़े मजाज़ी‘ लाज़िम है।
इसी रास्ते की खोज ने आदमी को वैज्ञानिक बना दिया। हज़ारों साल तक मनुष्य ने खोजा तब जाकर उसे पता चला कि मार्ग के ऊपर गर्भाशय है। धीरे धीरे उसने पता लगाया कि शरीर का निर्माण गर्भाशय में होता है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और समाज सबका केन्द्र गर्भाशय ही है। गर्भाशय न हो तो इनमें से कुछ भी न हो। जिसने जिस क्षेत्र में भी उन्नति की है, गर्भ से निकल ही उन्नति की है। जिसने भी समाज को जो कुछ दिया है, गर्भ से निकलकर ही दिया है। गर्भ से निकलने के लिए गर्भ में होना ज़रूरी है और गर्भ में होने के लिए नर नारी का मिलन ज़रूरी है।
नर नारी के मिलन को अलंकार से सजा कर कहा जाय तो वह साहित्य कहलाता है और उसे बिना अलंकार के कहा जाए तो विज्ञान। जब से नर नारी का मिलन है तब से धर्म भी है और धर्म है तो मर्यादा भी है।
धर्म सभी मनुष्यों का एक ही है लेकिन उसकी व्याख्या में भेद है। जितने भेद हुए उतने ही मत बने और हरेक मत को लोगों ने धर्म समझ लिया। साहित्य पर धर्म-मत का भी प्रभाव पड़ा और उनके दर्शनों का भी। नर हो या नारी, वे अपने शरीर को भी ढकते हैं और अपने आपसी रिश्तों को भी। कौन अपने शरीर को कितना ढके ?, हरे मत की मान्यता अलग है लेकिन ढकते सब हैं।
शरीर के रिश्तों को जब साहित्य में बयान किया जाए तो भी ढक कर ही बयान किया जाए। इस पर भी सब सहमत हैं।
ब्लॉगर्स भी जब नर नारी के रिश्तों का बयान करते हैं तो ढक कर ही करते हैं लेकिन कौन कितना ढके ?, यह हरेक की अपनी अपनी मर्ज़ी है।
कोई बुर्क़े को पर्दा मानता है तो कोई हिजाब को और कोई बिकनी पहनकर भी संतुष्ट है कि हां, पर्दा हो गया।
यही हाल ब्लॉगर्स की रचनाओं का भी है।
तीन ब्लॉगर एक रचना को अश्लील बताते हैं तो तीस उसे अश्लीलता से मुक्त पाते हैं। इससे पता चला कि अश्लीलता के निर्धारण का कोई एक पैमाना भी यहां मौजूद नहीं है।
दस ब्लॉगर एक रचना की प्रशंसा कर रहे होते हैं तो एक उसकी भर्त्सना कर देता है।
इंसान की उत्सुकता इसी उठा पटख़ के बीच अपने काम की जानकारी छांट लेती है।
ज्ञान ऐसे ही बढ़ता आया है और ब्लॉगिंग भी ऐसे ही बढ़ेगी।

इंसान अपनी उत्पत्ति के प्रति सदा से ही उत्सुक है। बाइबिल की पहली किताब का नाम ही ‘उत्पत्ति‘ है। वेदों ने भी उत्पत्ति के विषय को बड़ी गंभीरता से लिया है और क़ुरआन ने भी। जहां उत्पत्ति है वहां विनाश भी है और विनाश के बाद भी उत्पत्ति है। उत्पत्ति और विनाश के इस चक्र को जो जानता है वह ज्ञानी कहलाता है।
ज्ञान के भी बहुत से स्तर हैं। ज़्यादातर इसके बाह्य और स्थूल पक्ष तक ही सीमित रह जाते हैं। जो सूक्ष्म भाव को ग्रहण कर पाता है, वही अध्यात्म और रूहानियत तक पहुंच पाता है।

इंसान ग़लतियों से भी सीखता है और सीखकर भी ग़लती करता है।
यौन विषय भी एक ऐसा ही विषय है कि इसमें ग़लतियां होने की और पांव फिसलने की संभावना बहुत है यानि कि डगर पनघट की कठिन बहुत है। कठिन होने के बावजूद लोग न सिर्फ़ इस पर चलते हैं बल्कि सरपट दौड़ते हैं।
औरत मर्द के रिश्तों पर ब्लॉगर्स ने बहुत लिखा है। किसी का लिखा तो लोगों ने पढ़ा तक नहीं और किसी का लिखा ऐसा पढ़ा कि लिखने वाले को मिटाना पड़ गया।

व्यवहारिक प्रशिक्षण
पुराने विषय को जब नए अंदाज़ में कहा जाता है तो उसे पाठक अवश्य मिलते हैं। उदाहरण के लिए वंदना गुप्ता जी की कविता ‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘
जहां एक ओर साहित्यकार अपनी रचना में अलंकारों का इतना ढेर लगा देते हैं कि कवि की मंशा समझना ही दुश्वार हो जाता है। वहीं वंदना जी ने अपनी कविता से सारे अलंकार उतार फेंके और उन्होंने अपने भावों को कहने के लिए वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग किया। यह एक अद्भुत और अभिनव प्रयोग था। हिंदी ब्लॉगर्स इसके अभ्यस्त न थे। वे बौखला से गए और कुछ तो बावले और दिवालिए तक हो गए। इनमें से एक हैं जो कि बात ही कविता में करते हैं लेकिन उनके प्रशंसकों को उनकी एक भी कविता याद नहीं है। वह चिढ़ गए और वह कवयित्री को ऊल जलूल कहने लगे। यह विशुद्ध ईर्ष्या भाव था। इसकी कविता मेरी कविता से ज़्यादा मशहूर कैसे ?
दो एक कवि और भी मोर्चा खोलकर बैठ गए कि इस विषय पर हमारा ही एकाधिकार रहना चाहिए। उन्होंने भी वंदना जी को हड़का लिया।
बहरहाल झगड़ा-पंगा, विचार-विमर्श बहुत हुआ और इतना हुआ कि अब वंदना जी की कविता को भुलाना हिंदी ब्लॉगर्स के लिए आसान नहीं है।
वंदना जी अपनी कविता हटा चुकी हैं। अब लोग उस विषय पर ख़ुद भी कविता करेंगे और कुछ तो उस कविता का रीमेक ही बना डालेंगे। इस तरह कुछ समय तक जो भी मनोरंजन होने वाला है, नए ब्लॉगर्स उसे अपने प्रशिक्षण के तौर पर देख सकते हैं।
हमेशा उस विषय पर लिखिए जिसके प्रति पाठकों में उत्सुकता और आकर्षण पाया जाता हो और उसे नए और अनोखे अंदाज़ में बयान कीजिए। आप इसमें जितना ज़्यादा सफल होंगे, उतने ही बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।
यौन शिक्षा को ब्लॉगिंग का विषय बनाया जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बिल्कुल आसान है। तब न कोई गद्य देखेगा और न पद्य। पाठक तो यह देखेंगे कि आखि़र लिखने वाले ने लिखा क्या है ?
पढ़कर मज़ा आ जाए तो बस आप बन गए बड़ा ब्लॉगर।
इस समय हिंदी ब्लॉग जगत का ढर्रा यही है।

Thursday, April 5, 2012

गीता पर चलिए और बड़ा ब्लॉगर बनिए Gita as a bloggers' guide

प्यारे छात्रों ! आज के लेक्चर में आपके सामने मानव प्रकृति का एक सनातन रहस्य अनावृत होने जा रहा है। इसे विशुद्ध प्रोफ़ेशनल दृष्टि से समझने और आत्मसात करने की आवश्यकता है।

भारतीय दर्शन 6 हैं जो कि न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग दर्शन, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा दर्शन हैं। उत्तर मीमांसा दर्शन को ही वेदान्त दर्शन कहा जाता है। ये सभी दर्शन क्लिष्ट और गूढ़ हैं। गीता इन सबका सरल और समन्वित रूप है।
गीता को श्री कृष्ण जी का उपदेश कहा जाता है और कहा जाता है कि यह उपदेश उन्होंने अर्जुन को उस समय दिया था जबकि दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए मैदान में आ खड़ी हुई थीं और बिल्कुल ऐन वक्त पर अर्जुन ने युद्ध से इन्कार कर दिया था।
अर्जुन ने युद्ध से इसलिए इन्कार कर दिया था क्योंकि वह अपने प्यारे भाईयों, दोस्तों और रिश्तेदारों पर तीर चलाना नहीं चाहते थे।
वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन अच्छा ही हुआ कि उन्होंने युद्ध से इन्कार कर दिया।

अर्जुन के इन्कार का लाभ हमें यह मिला कि लड़ाई तो होकर ख़त्म हो गई लेकिन गीता का संदेश आज तक हमारे पास है। अर्जुन के इन्कार के कारण हमें गीता मिल गई। गीता सुनकर अर्जुन अर्जुन बन गए और गीता पढ़कर एक साहब बैरिस्टर से गांधी जी बन गए।
गीता अगर आज अपने मूल रूप में सुरक्षित होती तो और भी ज़्यादा प्रभावी होती। आज वह जिस रूप में है, अगर उसे भी आदमी तत्वबुद्धि के साथ पढ़ ले तो वह भारतीय दर्शन की आत्मा को पकड़ सकता है। अगर एक ब्लॉगर इस आत्मा को पकड़ ले तो वह निश्चय ही बड़ा ब्लॉगर बन जाएगा।
ध्यान देने की बात यह है कि श्री कृष्ण जी ने जीवन भर बहुत से उपदेश दिए और बड़े बड़े ज्ञानियों और ऋषियों के समूहों को उपदेश दिए लेकिन गीता का संदेश ही सबसे ज़्यादा पॉपुलर हुआ जो कि मात्र एक व्यक्ति को दिया गया था ?
इसका क्या कारण रहा ?

इसके बाद आप इस बात पर ध्यान दीजिए कि श्री कृष्ण जी ने जितने भी उपदेश दिए, उनमें सबसे ज़्यादा सुंदर गीता का उपदेश ही है। ऐसा लगता है कि उन्होंने भी अपना सबसे श्रेष्ठ उपदेश सोच समझ कर ही युद्ध के अवसर के लिए बचा रखा था।
ऐसा क्यों ?, ज़रा सोचिए !

श्री कृष्ण जी मानव मन को जानते थे। वह जानते थे कि टकराव इंसान का स्वभाव है। टक्कर खाकर ही आदमी सीखता है। इसलिए जब मानवता को सबसे बड़ी टक्कर लगने वाली थी तो उन्होंने उसे सबसे बड़ी सीख दी। मानव जाति उनकी वह सीख भुला न सकी जबकि वह उनके दूसरे उपदेश याद न रख सकी। जितने भी राजाओं ने बिना लड़े भिड़े राज्य किया, वे सब भुला दिए गए। इतिहास ने केवल उन्हें याद रखा, जिन्होंने युद्ध किया। जिसने जितना बड़ा युद्ध किया, उसे उतना ही ज़्यादा याद रखा गया। वे याद रहे तो उनकी बातें भी याद रहीं।

इससे हमें यह पता चलता है कि जिस बात को आप टकराव की जगह बताएंगे, वह बात लोगों के चेतन और अवचेतन मन में ऐसे उतर जाएगी कि लोग चाहें तो भी उसे भुला न सकेंगे।
इसलिए टकराव की जगह तलाश कीजिए।
किसी को टकराव के लिए इन्वाईट कर लीजिए।
कोई न आए तो आप ख़ुद ही कहीं चले जाईये।
कहीं भी कोई टकराव न हो रहा हो तो टकराव की सिचुएशन क्रिएट कीजिए।
ग़ैर मिले तो सुब्हानल्लाह और कोई ग़ैर न मिले तो किसी अपने से ही टकरा जाईये। जैसे कि कृष्ण जी की बात मानकर अर्जुन टकरा गए अपनों से ही।
...लेकिन यह टकराव जायज़ मक़सद के लिए होना चाहिए, सत्य के लिए होना चाहिए क्योंकि सत्यमेव जयते।
यह एक विशेष तकनीक है जिसका अभ्यास श्री कृष्ण जी के निर्देशन में किया जाए तो ब्लॉग जगत से निराश हो चला ब्लॉगर भी पल भर में ही ब्लॉग जगत के केन्द्र में आ खड़ा होता है।

व्यवहारिक प्रशिक्षण

भाई ख़ुशदीप सहगल जी की ताज़ा पोस्ट पर मचे घमासान के मॉडल पर हम इस तकनीक का अध्ययन बख़ूबी कर सकते हैं।
ब्लॉगिंग में जब तक झगड़े होते रहे लोग टिके रहे और जैसे जैसे झगड़े होने कम होते चले गए ब्लॉगर भी कम होते चले गए अर्थात ब्लॉगर्स की संख्या ब्लॉगिंग में होने वाले विवादों के समानुपाती है।
यह एक रहस्य की बात है। बड़ा ब्लॉगर होने का अभ्यास करने वाले तीरंदाज़ के लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है।
पिछले कुछ अर्से से हिंदी ब्लॉगिंग में कुछ ख़ास नहीं हो रहा था यानि कि लोग लिख रहे थे और पढ़ रहे थे और उकता रहे थे। कहीं कोई विवाद नहीं हो रहा था। हम भी दूसरे कामों में लगे हुए थे वर्ना तो किसी को भी उसकी ग़लती पर टोक दीजिए, बस हो गया विवाद !
ब्लॉग जगत की ख़ुशक़िस्मती देखिए कि कल हमारी नज़र भाई ख़ुशदीप सहगल जी की पोस्ट पर पड़ गई। जिसका शीर्षक है -
‘बोल्डनेस छोड़िए हो जाईये कूल ...ख़ुशदीप‘
इसमें उन्होंने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम (अर्थात अन पर शांति हो) के बारे में चुटकुले भी लिख रखे हैं और उनका नंगा चित्र भी लगा रखा था।

इस पर टोकते ही दो काम होने लाज़िमी थे।
1- पहला यह कि तुरंत ही एक विवाद शुरू हो जाएगा और इस तरह उपदेश के लिए एक अच्छा अवसर उपस्थित हो जाएगा।
2- दूसरा यह कि हमें सराहने वाला भाई ख़ुशदीप जैसा ब्लॉगर हम सदा के लिए खो देंगे।
याद रखिए कि आप जिसे भी सार्वजनिक रूप से उसकी ग़लती पर टोकते हैं, आप उसे सदा के लिए खो देते हैं। उसके मन में आपके प्रति एक प्रकार की वितृष्णा जन्म लेती है। वह आपके खि़लाफ़ तो कुछ कर नहीं पाता लेकिन मन ही मन आपसे चिढ़ने लगता है और कभी कभी यह चिढ़ उसके मन से जीवन भर नहीं निकल पाती।

अगर हम दूसरी बात का ख़याल रखें तो पहली बात कभी हासिल न हो और पहली बात हासिल न करें तो ब्लॉगिंग में हमारी मौजूदगी व्यर्थ है। रिश्ते नाते और अपनाईयत के ख़याल जब आपको आपके कर्तव्य से रोकने लगें तो गीता काम आती है। गीता हमारे भी काम आई और आपके भी काम आएगी।
पिछले दिनों भाई ख़ुशदीप जी ने या हमने जो भी लिखा है, उनमें सबसे ज़्यादा यही पोस्ट पढ़ी गई है जिस पर कि ब्लॉगर्स को टकराव होता हुआ दिखा।
टकराव सचमुच चाहे न हो लेकिन ब्लॉगर्स को दिखना ज़रूर चाहिए कि हां टकराव हो रहा है। जब तक टकराव चल रहा है तब तक ब्लॉगिंग भी चल रही है।
हिंदी ब्लॉगिंग को ज़िंदा रखना है तो थोड़े थोड़े समय पर टकराव का आयोजन करते रहना पड़ेगा।
पूर्व काल में हमने यह रहस्य हरीश सिंह जी को बताया था और यह रहस्य जानकर वह तुरंत ही बड़ा ब्लॉगर बन गए थे। उनका ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत के बड़े ब्लॉग्स में गिना जाता है। आज भी वह हमें फ़ोन करते हैं तो गुरू जी कहकर ही संबोधित करते हैं।

जल्दी ही आप भी उत्कृष्ट कोटि के विवादों का सृजन कर सकेंगे और आप उनके माध्यम से सत्य का उपदेश देने की कला में भी पारंगत हो जाएंगे। इसका लाभ यह होगा कि आप रिश्ते नातों की मोह माया के बीच निर्लिप्त भाव से अपने कर्तव्य का निर्वाह करना सीख लेंगे। आभासी दुनिया का यह अभ्यास वास्तविक जगत में भी आपके काम आएगा।

युद्ध की भांति ही सेक्स भी मनुष्य को आदिकाल से ही आकर्षित करता रहा है। इसके सटीक इस्तेमाल से भी आप एक बड़ा ब्लॉगर बन सकते हैं। आगामी किसी क्लास में इस विषय पर भी लेक्चर अवश्य दिया जाएगा।
तब तक इंतेज़ार कीजिए और आज बताए गए सूत्र का अभ्यास कीजिए।

Sunday, April 1, 2012

बड़ा ब्लॉगर वह है जो दुनिया जहान का विश्लेषण करता है Real Blogger

आदमी की सहज वृत्ति है कि वह सदा दूसरों का विश्लेषण करता है।
जब वह ब्लॉगिंग में आता है तो अपनी यह आदत भी साथ लेकर आता है।
छोटे मोटे ब्लॉगर एक दो ब्लॉगर का विश्लेषण करके ही रह जाते हैं लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारे ब्लॉग जगत का विश्लेषण करने करने का बीड़ा ख़ुद से ही उठा लेता है। जिस काम को दूसरों ने सिर दर्द समझकर छोड़ दिया होता है, उसी काम को यह मज़े से करता है। बड़ा कहलाने का मज़ा ही कुछ ऐसा है। इसी के साथ वह इसमें राजनीतिक पैंतरेबाज़ी भी मज़ा लेता है। जिससे ख़ुश होता है, उसका नाम ऊपर रखता है और जिससे नाराज़ होता है उसका नंबर 100वां रखने के बाद भी अलेक्सा रैंक नदारद कर देता है। गुटबाज़ी को यह न तो भूलता है और न भूलने देता है।
इसे भी मज़ा आता है और इसकी हालत देखकर इसके दुश्मनों को भी मज़ा आता है। दुश्मन देखते हैं कि बेचारा बच्चों की गणित की कॉपी चेक न करके ब्लॉगर्स की अलेक्सा रैंकिंग चेक कर रहा है। बीवी ने नई साड़ी पहनकर उतार भी दी होती है लेकिन यह बेड पर भी लैपटॉप पटपटा रहा होता है। बीवी बच्चों की नज़रों में गिर कर ब्लॉग जगत में ऊंचा उठने की जुगत में बड़ा ब्लॉगर पूरे साल यही करता है और फिर साल दर साल वह यही करता रहता है। वह सबका विश्लेषण ख़ुद करता है और अपने काम के लिए पुरस्कार भी ख़ुद ही लेता है और मज़ेदार बात है कि पुरस्कार देने वाला भी वह ख़ुद ही होता है।
देखते सब हैं, जानते भी सब हैं लेकिन बोले कौन ?
जो भी बोलेगा, अगली बार उसके ब्लॉग का नाम ही विश्लेषण में न चमकेगा।
हानि लाभ का गुणा भाग करने में पुरूष ब्लॉगर बहुत माहिर हैं और महिलाएं तो इस काम में अपना कोई सानी नहीं रखतीं। इसका लाभ भी मिलता है। बड़े ब्लॉगर की सरपरस्ती में ब्लॉगिंग की ट्रेनिंग लेने वाला कोई ब्लॉगर जब ईनाम तक़सीम करता है तो उसके साथ उन्हें भी ईनाम मिलता है।
कहा भी गया है कि ‘संघे शक्ति कलयुगे‘।
वास्तव में बड़ा ब्लॉगर वह जो है कि हानि लाभ और मान अपमान की परवाह न करके सत्य लिखता है। केवल यही ब्लॉगर होता है कि यह उसका भी विश्लेषण कर डालता है जो कि हज़ारों ब्लॉग्स का विश्लेषण करने का आदी हो चुका है।
एकलव्य कितना ही बड़ा धनुर्धर हो लेकिन उसके पक्ष में खड़ा होने की परंपरा यहां है ही नहीं। राजपाट हार जाएं तो ख़ुद पांडवों के साथ भी कोई खड़ा नहीं होता बल्कि वे ख़ुद भी अपनी पत्नी द्रौपदी के पक्ष में खड़े नहीं होते।
खड़े होने से पहले लोग यह देखते हैं कि इसके साथ खड़े होकर हमें क्या ईनाम मिलेगा ?
ईनाम मिलता हो तो विभीषण भी राम के पक्ष मे आ जाता है और घर से तिरस्कार मिला हो तो दुश्मन की तरफ़ से भाईयों पर तीर चलाने के लिए कर्ण भी खड़ा हो जाएगा और एकलव्य भी वहीं आ जाएगा।
ईनाम बहुत बड़ा मोटिवेशन फ़ैक्टर है। ईनाम के लिए इंसान अपना ईमान और अपना ज़मीर सब कुछ भुला देता है।
बड़ा ब्लॉगर वह है जिसकी ब्लॉगिंग का केंद्र ‘सत्य‘ होता है। ईमान और ज़मीर इसी के पास होता है। इसकी ब्लॉगिंग में यही सब भरा होता है।
आप ब्लॉग पढ़कर सहज ही जान सकते हैं कि बड़ा ब्लॉगर कौन है और बड़ा ब्लॉगर कैसे बना जाता है ?