Friday, September 14, 2012

बीवी का सदुपयोग करता है बड़ा ब्लॉगर Nice Plan

‘मैं शादी करूंगा तो बस लड़की से ही करूंगा।‘- ब्लॉगर रंजन ने लैपटॉप खटखटाते हुए अपना फ़ैसला सुना दिया।
‘लड़की से शादी का चलन अभी तक बाक़ी है, तुम भी कर लोगे तो इसमें नया क्या होगा ?‘-हमने उससे पूछा।
‘लड़की ब्लॉगर होगी, इसमें यह नया होगा।‘-उसने लैपटॉप को बंद करके बैग में रखते हुए कहा।
‘किसी कमाऊ लड़की से शादी करने की ज़िद करता तो हमारी समझ में आता लेकिन एक हिंदी ब्लॉगर तुम्हें क्या दे पाएगी ?'
दहेज में नॉन ब्लॉगर लड़की का बाप जो देगा वह तो ब्लॉगर का बाप भी ज़रूर देगा बल्कि ज़्यादा देगा। साथ में डेस्क टॉप, लैपटॉप, टैबलेट और इंटरनेट कनेक्टर भी देगा।‘-उसने मुस्कुराते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर हम भी मुस्कुराये-‘बस इतनी सी बात के लिए ही ब्लॉगर लड़की से शादी करोगे।‘
‘नहीं, दरअसल मैं ज़िंदगी को अपने तरीक़े से जीना चाहता हूं।  मैं शांति चाहता हूं। मुझे प्राब्लम्स पालने का शौक़ नहीं है और इस तरह दुश्मन भी दबे रहेंगे और एक दिन वे बर्बाद भी हो जाएंगे।‘-उसने हमारी आंखों में झांक कर कहा और कुर्सी से उठकर ड्राइंग रूम में टहलने लगा।
‘बात कुछ समझ में नहीं आई‘-वाक़ई उसकी बात समझ से बाहर थी कि यह सब उसे एक ब्लॉगर लड़की से कैसे मिल सकता है ?‘
‘देखिए, एक ब्लॉगर वर्चुअल दुनिया के दोस्त दुश्मनों में मगन रहता है। सो ब्लॉगर लड़की भी ऐसे ही रहेगी और मैं अपनी ज़िंदगी अपने तरीक़े से जी सकूंगा। ब्लॉगिंग के लिए वह देर तक जागती रहेगी और सोएगी तो फिर उठेगी नहीं। ऐसे में वह कोई प्रॉब्लम पैदा ही नहीं कर पाएगी तो उसे पालने की नौबत भी न आएगी।‘-उसने समझाया तो लगा कि उसकी बात में दम है।
‘...और दुश्मन कैसे दबे रहेंगे ?‘
‘यह मैंने अभी अभी एक पोस्ट पर देखा है कि एक ब्लॉगर शेर की तरह ग़र्राकर किसी समारोह के आयोजकों से पूछ रहा था कि बताओ धन कहां से जुटाया और कहां लुटाया ?‘, ख़ुद को फंसा देखकर आयोजक अपनी बीवी की आईडी से लॉगिन करके ख़ुद ही जवाब देने आ गया। सवाल पूछने वाला बिल्ली की तरह म्याऊं म्याऊं करने लगा। वह समझा कि सामने सचमुच ही भाभी खड़ी हैं। उसे लगा कि इससे कुछ कहा तो ईद का शीर हाथ से निकल जाएगा। सोचिए अगर सामने सचमुच ही भाभी खड़ी हो तो फिर दुश्मन कैसे ललकार कर बात कर सकता है ?‘-उसकी दलील में दम था।
‘...और वह दुश्मन की बर्बादी वाली बात कैसे हो पाएगी ?‘-यह बात अब भी हमारी समझ से बाहर थी।
‘आंकड़े बता रहे हैं कि ब्लॉगिंग और सोशल नेटवर्किंग से जुड़े हुए लोग कभी कभी आपस में ज़रूरत से ज़्यादा ही जुड़ जाते हैं और उनकी शादियां टूटने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। हो सकता है कि मेरी क़िस्मत भी किसी दिन मुझ पर मेहरबान हो जाए और मेरी बीवी मेरे किसी दुश्मन के साथ चली जाए। ऐसा हुआ तो दुश्मन की बर्बादी तय है कि नहीं।‘-उसने उम्मीद जताई।
‘क्या तुम इसे क़िस्मत की मेहरबानी का नाम दोगे ?‘
‘अगर घर से मुसीबत रूख़सत हो जाए तो क्या यह क़िस्मत की मेहरबानी नहीं कहलाएगी ?‘
‘मुसीबत ???‘-हम वाक़ई हैरान थे।
‘मुसीबत ही नहीं बल्कि डबल मुसीबत। एक तो बीवी नाम ही मुसीबत का है और ऊपर से वह ब्लॉगर भी हो तो जानो कि नीम के ऊपर करेला चढ़ा है।‘-उसने ऐसा मुंह बनाकर कहा जैसे करेला नीम पर नहीं बल्कि उसके मुंह में रखा हो।
‘डबल मुसीबत भी कह रहे हो तो उसे घर क्यों ला रहे हो ?‘-हमने थोड़ा झल्लाकर कहा।
‘क्योंकि कुवांरेपन का धब्बा हट जाएगा और सम्मान मिल जाएगा। शादीशुदा आदमी को समाज में विश्वसनीय और सम्मानित माना जाता है। ब्लॉग जगत में भी ज़्यादातर विवाहितों को ही सम्मानित किया जाता है। मुझे भी सम्मानित होना अच्छा लगता है। सिंगल ब्लॉगर की लाइन लंबी है जबकि डबल ब्लॉगर यानि दंपति ब्लॉगर में दो चार ही नाम हैं। दंपति ब्लॉगर वाले टाइटल का सम्मान मुझे मिल सकता है। ब्लॉगर मिलन के बहाने आउटिंग भी होती रहेगी और सारा ख़र्चा भी ससुर के सिर पर ही पड़ेगा।‘-उसने ख़ुश होते हुए कहा।
‘तेरा तो बहुत लंबा प्लान है भई, लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि सारा मामला उल्टा तुम्हारे गले पड़ जाए‘-हमने कहा।
‘क्या मतलब ?‘
‘अगर ब्लॉगर लड़की का भी ऐसा ही कोई छिपा एजेंडा हुआ तो लेने के देने पड़ सकते हैं।‘-हमने कहा तो उसके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
‘अगर ऐसा हुआ तो क्या होगा ?‘
हमने क़हक़हा लगाकर कहा-‘ज़्यादा कुछ नहीं होगा, बस तुम अपने तरीक़े से नहीं जी पाओगे। घर में प्रॉब्लम्स पैदा होती रहेंगी और तुम उन्हें पालते और पढ़ाते रहना। तुम ज़िंदगी भर बिल्ली की तरह म्याऊँ म्याऊँ करते रहोगे। दुश्मन के बजाय तुम ख़ुद ही दबे पड़े रहोगे। ...और हां, तुम्हारी जान को एक काम और बढ़ जाएगा।‘
वह क्या ?
‘तुम्हारी बीवी तो बच्चे और रसोई संभालेगी, तब उसके ब्लॉग को भी तुम्हें ही संभालना पड़ेगा और उसके प्रशंसकों को भी। दंपति को अवार्ड ऐसे ही नहीं मिल जाता। वे इसके लिए डिज़र्व करते हैं।‘-हमने कहा।
ड्राइंग रूम में घूमता हुआ रंजन अचानक ही सोफ़े पर पसर गया। उसके माथे पर लकीरें उभर आई थीं।

Friday, September 7, 2012

‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘: परिभाषा, उपयोग और सावधानियां Hindi Blogging

हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास में वर्ष 2012  कई वजह से याद किया जाएगा। एक ख़ास वजह यह भी है कि ‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘ की शुरूआत इसी वर्ष में हुई। लंगोटिया यारी को दुनिया जानती है। जब इसे ब्लॉगिंग में निभाया जाता है तो लंगोटिया ब्लॉगिंग वुजूद में आती है। ‘लंगोटिया ब्लॉगिंग‘ से मुराद ऐसी ब्लॉगिंग से है जिसमें एक ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर को अपनी ईमेल आईडी का पासवर्ड भी बता देता है, जो कि अत्यंत गोपनीय रखी जाने वाली चीज़ है। लंगोटिया ब्लॉगिंग में दूसरा ब्लॉगर भी ईमेल आईडी का इस्तेमाल दाता ब्लॉगर के हित में करता है। लंगोटिया ब्लॉगिंग में एक ब्लॉगर दूसरे ब्लॉगर पर पूर्ण विश्वास करता है और दूसरा ब्लॉगर उसके विश्वास पर खरा उतरता है और उसके बचाव में भरपूर बहस करता है बल्कि ब्लॉगर्स के साथ डांट डपट भी कर देता है। ब्लॉगर महिला हो तो भी नहीं बख्शता। उससे भी कह देता है कि ‘झूठ के पांव नहीं होते‘ और यह नहीं देखता कि ख़ुद के पास न पैर हैं और न सिर, कुछ पास है तो बस गज़ भर की ज़बान है।
बेशक झूठ के पांव नहीं होते लेकिन ज़बान ज़रूर होती है और ज़बान लंबी हो तो आसानी से पकड़ भी ली जाती है। सो एक महिला ने उसकी ज़बान ऐसी पकड़ी कि उसके फ़ोटो खींच अपने सम्मानित ब्लॉग पर चिपका दिए, हमेशा के लिए।
हिंदी ब्लॉगिंग में आपसी विश्वास की यह धारा गुपचुप बहे जा रही थी और हम सभी इससे अन्जान थे कि अचानक यह घटना घटी और सबको हैरान कर गई।
दोनों ही ब्लॉगर बड़े निकले। जिसने दोनों ब्लॉगर्स के अंतरंग विश्वास को ट्रेस किया और सबको बताया वह भी बड़ी ब्लॉगर ही है। दर्जनों बड़े ब्लॉगर इस घटना के गवाह भी बने। इसलिए घटना का ब्यौरा देना ज़रूरी नहीं है।
इस मौक़े पर दोनों बड़े ब्लॉगर मुबारकबाद के मुस्तहिक़ हैं कि उन्होंने हिंदी ब्लॉगर्स के सामने आपसी विश्वास की बेमिसाल मिसाल पेश की है।
धर्मवीर जैसी दोस्ती की मिसाल पेश करने वाले इन ब्लॉगर्स को हिंदी ब्लॉगर्स ने मुबारकबाद देने के बजाय लम्पट, नक्क़ाल और फ़्रॉड तक कहा। जिससे कि उन दोनों ब्लॉगर्स को निश्चय ही बुरा लगा होगा। इस घटना का यह एक काला पक्ष है। इतने महान विश्वास के बाद भी तारीफ़ के बजाय ताने मिलें तो अच्छा नहीं लगता।

यह ब्लॉग हिंदी ब्लॉगिंग का व्यवहारिक प्रशिक्षण देता है। इसलिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि लंगोटिया ब्लॉगिंग की ज़रूरत कब पेश आती है और उसे लोगों की बुरी नज़र से बचाने के लिए क्या करना चाहिए ?
अगर आप अपने ब्लॉग पर केवल अपने विचार रखते हैं तो लंगोटिया ब्लॉगिंग आपके लिए नहीं है।
लंगोटिया ब्लॉगिंग ऐसे दो ब्लॉगर्स के दरम्यान पाई जाती है। जिनमें से एक ख़ुद ब्लॉगर बना हो और दूसरे को उसने ब्लॉगर बनाया हो या ब्लॉगिंग में उसकी मदद करता हो। यह दो बदन एक जान होने जैसी बात है। ऐसा तब किया जाता है जब एक ब्लॉगर अपनी बिसात से ज़्यादा बड़ा काम अपने हाथ में ले लेता है जैसे कि हिंदी ब्लॉगिंग को आगे या पीछे ले जाना। तब वह ज़िम्मेदारी के उस बोझ को उठाने के लिए दूसरे ब्लॉगर को अपने साथ शामिल कर लेता है।
एक प्रोग्राम का आयोजन करता है और दूसरा ऐतराज़ करने वालों के दांत खट्टे करता हुआ घूमता है। कभी वह अपने नाम से जवाब देता है और कभी वह दूसरे ब्लॉगर के नाम से जवाब देता है। इसी जवाब देने के चक्कर में कभी कभी चूक हो जाती है और ब्लॉगर पकड़ लिया जाता है। लंगोटिया ब्लॉगिंग की पहली घटना ऐसे ही पकड़ में आई और आलोचना का विषय बन गई।
इस घटना का एक रूप तो वह है जो दुनिया ने जाना कि अमुक ब्लॉगर ने कहा कि मैंने अपनी ईमेल आईडी का पासवर्ड अपने मित्र ब्लॉगर को बता दिया था। उसी से कमेंट करने में ग़लती हो गई लेकिन सच्चाई इसके उलट थी, जिसे केवल वह ब्लॉगर जानता है जो कि सच बोलने के मशहूर है। हक़ीक़त यह है कि कमेंट देने में ग़लती ख़ुद उसी से हुई थी लेकिन उसने उसे अपने मित्र के सिर डाल दिया। दरअसल उसने उसे अपना पासवर्ड दिया नहीं था बल्कि उसका पासवर्ड लिया था। पासवर्ड लेकर वह उसके ब्लॉग पर अपनी पत्रिकादि का प्रचार करता है। आप देखेंगे कि पिछली पोस्ट पर ब्लॉगर गालियां दे रहा है और अचानक ही अगली पोस्ट गंभीर आ जाती है जो कि उस ब्लॉग के स्वामी के उजड्ड स्वभाव से मेल नहीं खातीं। दोनों पोस्ट के लेखक दो अलग अलग ब्लॉगर हैं। गालियों भरी भाषा वाली पोस्ट ब्लॉग स्वामी की अपनी लिखी हुई हैं। यह उसके कमेंट्स से प्रमाणित है।
याद रखिए कि बड़ा ब्लॉगर अपने से अदना ब्लॉगर को अपना पासवर्ड कभी नहीं देता लेकिन अदना ब्लॉगर सहर्ष अपना पासवर्ड बड़े ब्लॉगर को दे देता है वैसे भी उसके ब्लॉग पर कुछ ख़ास नहीं होता। जिसके लुट जाने का उसे डर हो। कभी कभी ये अदना ब्लॉगर बड़े ब्लॉगर द्वारा ही खड़े किए गए होते हैं। समय समय पर इनसे काम लिया जाता है और बदले में भरपूर सम्मान भी दिया जाता है। अपनी ग़लतियों का ठीकरा फोड़ने के लिए भी इनका सिर काम में लिया जाता है।
लंगोटिया ब्लॉगिंग परिस्थितियों की देन और समय की ज़रूरत है। बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए सिर्फ़ अपना ब्लॉग बना लेना ही काफ़ी नहीं है बल्कि कुछ दूसरे लोगों के ब्लॉग बनवाना भी ज़रूरी है। अगर आपको बड़ा ब्लॉगर बनना है तो आपको भी लंगोटिया ब्लॉगिंग करनी पड़ सकती है। हमारी कोशिश है कि इस यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स की लंगोटिया ब्लॉगिंग को कभी किसी की बुरी नज़र न लगे।
इसका उपाय यह है कि
1. कभी किसी अनाड़ी और नादान को दोस्त न बनाएं।
2. हमेशा दूसरे से उसका पासवर्ड पूछें, अपना पासवर्ड दूसरे को न बताएं।
3. एक समय में कभी दो ब्राउज़र का इस्तेमाल न करें।
4. जब आप एक आईडी से लॉगिन हों तो बस केवल उसी का इस्तेमाल करें। इससे आपको यह याद रखने में आसानी होगी कि आप इस समय किस व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
5. जोश और उत्तेजना में कमेंट न करें।
6. कमेंट पब्लिश करने से पहले हमेशा उसका प्रीव्यू देख लें। जो भी ग़लती होगी, नज़र आ जाएगी और उसे दूर भी कर लिया जाएगा।
ग़लतियों को सीख के रूप में लेना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें दोहराया न जाए।

Thursday, August 30, 2012

जानिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर बहती मुख्यधारा

बड़ा ब्लॉगर बनने के लिए मुझे क्या करना होगा गुरूजी ? -मेरे मन के आंगन में दाखि़ल होते हुए एक काल्पनिक पात्र ने पूछा। विचार के पैरों से चलते हुए वह अचानक वहां आ खड़ा हुआ जहां मेरा अवधान उस पर टिक गया और यही उसकी सफलता थी।
मन में विचार तो लाखों आते हैं लेकिन हमारा अवधान किसी किसी पर ही टिकता है।
हम भी ख़ुश हुए कि चंचल मन किसी बहाने थोड़ा ठहरा तो सही। मन किसी एक विचार पर ठहर जाए यही बड़ी उपलब्धि है।
विचार भी हमारा अपना था लिहाज़ा उसमें गुण भी हमारे ही झलक रहे थे। हमें तसल्ली हो गई। मन की दुनिया भी बड़ी अजीब है। मन अपना होता है लेकिन उसमें विचर रहे होते हैं दूसरों के विचार और हमें पता ही नहीं चलता। कभी कभी तो यह जाने बिना ही पूरी उम्र गुज़र जाती है।
काल्पनिक पात्र अब भी हमारे जवाब का मुन्तज़िर था।
हमने उससे मन ही मन कहा-‘बड़ा बनने के लिए बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग को देखो और उनका अनुसरण करो।‘
‘गुरूजी, आजकल इंस्टेट फ़ूड का ज़माना है और आप बिरयानी दम कर रहे हैं। हमें तो आप इंस्टेंट टिप्स बता दीजिए। आप तो बड़े ब्लॉगर्स के ब्लॉग पढ़ते ही रहते हैं।‘-उसकी तरंग मेरे मन को छू गई।
‘बड़ा ब्लॉगर बनना है तो आपको साहस करना होगा।‘-हमने कहा।
‘साहस, कैसा साहस ?‘-वह कुछ समझ नहीं पाया।
‘ग़लत को सही कहने का साहस, ग़लत लोगों का साथ देने का साहस, नंगी होती लड़कियों को नारी मुक्ति का आदर्श बताने का साहस, समलैंगिकों के हक़ में तर्क जुटाने का साहस, अपने ज़मीर का गला घोंटने का साहस। आपको नफ़रत फैलानी होगी, मर्यादा और सीमाएं तोड़नी होंगी। न भी तोड़ पाएं तो ऐसा दिखाना होगा कि जैसे कि बस आप तोड़ने ही वाले हैं और तोड़ने वालों को पसंद करते हैं। चाहे आप अपने घर में तीर्थ,व्रत,प्रार्थना सब कुछ करते हों लेकिन अपने लेखन में ख़ुद को नास्तिक ज़ाहिर करना होगा। धर्म को कूड़ा कबाड़ बताना होगा। शराब पीनी है या आज़ाद यौन संबंध बनाने हैं तो ये काम सीधे करने के बजाय पहले संवैधानिक नैतिकता का पाबंद बनना होगा। इससे आपको पारंपरिक नैतिकता की घुटन से आज़ादी ख़ुद ही मिल जाएगी। अब जो चाहे कीजिए। ज़्यादा ब्लॉग फ़ोलो कीजिए, ज़्यादा टिप्पणियां दीजिए। टिप्पणी में ब्लॉगर्स की तारीफ़ कीजिए। हिंदी ब्लॉग पर अंग्रेज़ी में टिप्पणी दीजिए। अपने ब्लॉग पर कुछ कहना हो किसी विचारक को ज़रूर उद्धृत कीजिए। देशी हिन्दी विचारक के बजाय किसी विदेशी विचारक को उद्धृत कीजिए। अंग्रेज़, फ़ेन्च या अमेरिकन, कोई भी चलेगा। जर्मनी का हो तो अच्छा रहेगा। अरब का भूलकर भी न हो। अपने प्रोफ़ाइल में चित्र ऐसा रखें जिसमें वैभव और ग्रेस एकसाथ नज़र आएं। बुढ़ापे में जवानी का फ़ोटो लगाएं। विदेश यात्राओं का ज़िक्र करें, उनके फ़ोटो दिखाएं। जिस विचारधारा के ब्लॉगर ज़्यादा हों, उनसे बनाकर रखें। बनाकर न भी रखें तो बिगाड़ कर कभी न रखें। मर्द हो तो औरत में दिलचस्पी लो और अगर औरत हो तो मर्दों में दिलचस्पी लो और दोनों ही न हों तो दोनों को रिझाओ। अपनी बात अपनी कविता के बहाने कहो। उसमें उभार, गहराई और लंबाई, सबका ज़िक्र करो। ग़द्य में अश्लीलता कहलाने वाले शब्द कविता में सौंदर्य कहलाते हैं ब्लॉग पर। कविता न लिख सको तो भी उसे कविता बताओ। गद्य लिखकर बीच बीच में एन्टर मारते चले जाओ। तब कोई नहीं कहेगा कि यह कविता नहीं है। यहां कविता और साहित्य से किसी का लेना देना कम ही है। सबके मक़सद यहां कुछ और हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की मुख्य धारा यही है। आप भी सत्य के सिवा कुछ और मक़सद निश्चित करो और ब्लॉगिंग शुरू कर दो। बड़ा ब्लॉगर बन जाओगे। जो  आप होना चाहते हो। सोचो कि तुम वह हो चुके हो। इससे तुम्हारे हाव भाव तुरंत बदल जाएंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यही है। जो  आप ख़ुद को महसूस करते हो,  आप वही हो।‘-हमारी तरंगे भी उसे छू रही थी।
‘...और अगर मैं मुख्यधारा के खि़लाफ़ चलूं और सत्य को मक़सद बनाऊं तो...‘-उसने कहा। आखि़रकार विचार तो वह हमारा ही था।
‘तब  आप तन्हा रह जाओगे।‘-हंमने चेतावनी दी।
‘फ़ायदा इसी में है।‘
‘कैसे ?‘
‘जो मैं लिखूंगा, लिखने से पहले वहीं सोचूंगा। जो हम सोचते हैं, हम वही हो जाते हैं। मैं सत्य सोचूंगा तो मैं भी सत्य हो जाऊंगा। यही सबसे बड़ी उपलब्धि है। यही बात सबसे बड़ा ब्लॉगर बनाती है।‘-उसने कहा।
काल्पनिक पात्र आगे बढ़ चुका था लेकिन हमारा अवधान अब भी ठीक उसी जगह केंद्रित था जहां कि वह था। एक शून्य का अनुभव हो रहा था और शून्य की अनुभूति का तरीक़ा भी यही है कि पहले आप सारे विचारों में से किसी एक विचार को चुनें, विचार सुन्दर हो, उसकी सुन्दरता आपके ध्यान को बरबस ही खींच लेगी। आप उसमें रम जाएंगे और आपका ध्यान सबसे हटकर एक पर केंद्रित हो जाएगा। फिर आप उस विचार को भी जाने दें।
अब केवल आप बचेंगे निर्विचार। निर्विचार होना सहज सरल है।

Wednesday, July 25, 2012

बूढ़े शरीर में भी आंख जवान रखता है बड़ा ब्लॉगर

दो साल पहले एक परिचित के निमंत्रण पर हम उसके घर गए और साथ में अपने दोस्त को भी ले गए। हमारे परिचित भी मुसलमान थे और हमारे दोस्त भी और हम ख़ुद भी। हमारे परिचित ने हमें क़ायदे से नाश्ता कराया। नाश्ते का सामान भी वह ख़ुद ही लाए और बाद में किचन तक बर्तन भी ख़ुद ही पहुंचाए। उनके शहर में उनके साथ घूमे। हमारे दोस्त तो वापस चले गए लेकिन उनके साथ हम फिर उनके घर आ गए। इस बीच उनकी बीवी हमारे सामने नहीं आईं और न ही उनकी मां हमारे सामने आईं। हमें अच्छा लगा कि इस घर में पर्दे का रिवाज अभी बाक़ी है।
इस वाक़ये के कुछ माह बाद हमारे उस परिचित को सम्मानित होना पड़ा . एक बूढ़े आदमी को भी उसी समारोह में सम्मानित होना था। वह उनके शहर आया तो उन्होंने उसे अपने घर पर रूकवाया और उसे असली बूढा समझ कर अपनी बीवी को भी उसके सामने कर दिया। उसने परिचय कराया कि ये हमारी शरीके हयात हैं। हमारा परिचित तो उसे बूढ़ा समझकर सम्मान देता रहा लेकिन वह बूढ़ा उसकी बीवी के रूप का जायज़ा लेता रहा। सम्मान समारोह से लौटकर बाद में उसने अपनी मित्र मंडली को बताया कि जब मैं रात को अमुक के घर पहुंचा तो तुरंत ही एक सुंदर स्त्री  नाश्ता-पानी लेकर आ गई।
याद रखिये, जब तक एक आदमी में सुंदरता को महसूस करने की ताक़त बाक़ी है तब तक उसे हरगिज़ हरगिज़ बूढ़ा न समझा जाए और अगर वह आदमी ब्लॉगर भी हो और ब्लॉगर भी बड़ा हो, तब तो बिल्कुल भी उसका ऐतबार न किया जाए और अगर ब्लॉगर होम्योपैथी का जानकार भी हो तो ख़तरा और भी ज़्यादा बढ़ जाता है। डैमियाना, एसिड फॉस और कैलकेरिया फ़्लोरिका खाने वाले पर बुढ़ापा आता ही कब है ?, बस बाल सफ़ेद होते हैं और अगर साइलीशिया खा ली जाए तो सफ़ेद बाल भी काले हो जाएँ। इनके अलावा भी और कई दवाएं हैं जो बदन में  बहने वाला माददा आख़िर उम्र तक बनाती  रहती हैं। वह खुद भी ऐलानिया बताते रहते हैं कि मैं बूढा नहीं हूँ।

बालों में सफ़ेदी देखकर लोग उसका ऐतबार करते हैं। लोग ऐतबार करें तो करें लेकिन आप किसी का ऐतबार उसके बाल या उसकी उम्र देखकर मत करना। आजकल ज़माना बड़ा ख़राब है।
किसी को मेहमान बनाने से नहीं बच सकते तो कम से कम नाश्ता पानी तो ख़ुद परोसा ही जा सकता है। ऐसा किया जाए तो फिर आपकी बीवी की सुंदरता का चर्चा कोई अपने ब्लॉग पर नहीं कर पाएगा।
बड़ा ब्लॉगर सफ़र भी करता है और मेहमान भी बनता है और इस दौरान वह अपनी पोस्ट का सामान भी आपके घर से ही ले जाता है। 
आपकी बीवी की सुंदरता आप तक रहे तो बेहतर है वर्ना कहीं किसी ब्लॉगर की नज़र पड़ गई तो वह उसका चर्चा अपने ब्लॉग पर किए बिना नहीं मानेगा और तब दूसरे ब्लॉगर भी आपके घर का रूख़ करेंगे। वे भी देखना चाहेंगे कि तुम्हारी बीवी कितनी सुंदर है ?
जो इस तरह के लोगों को अपने घर का रास्ता दिखाने से बच जाए, वास्तव में वही है बड़ा ब्लॉगर .

Friday, May 18, 2012

...ताकि बचा रहे ब्लॉग परिवार Blog Parivar

सारी धरती एक परिवार है।
बड़ा ब्लॉगर ऐसा मानता है।
इसीलिए जब भी मौक़ा मिलता है, वह अपने परिवार से मिलने के लिए निकल लेता है। श्रीनगर की डल झील से लेकर थाईलैंड के मसाज पार्लर तक वह घूम चुका है। अब उसकी नज़र इस कॉन्टिनेंट से बाहर जाने की है।
ब्लॉगर ब्लॉगिंग के सहारे घूमता है। जितना वह घूमता है, उससे ज़्यादा उसका दिमाग़ घूमता है।
विदेशी ब्लॉगर के दिल को पहले मोम करो फिर उसमें अपनी छाप छोड़ दो।
हरेक आदमी अपना नाम और सम्मान चाहता है। यह डेल कारनेगी ने भी बताया है और दूसरों ने भी।
जिसे अपना बनाना चाहो, उसके नाम का गुणगान करो, उसे ईनाम दो।
वह दिल से ही कहेगा कि आप भी आना कभी हमारे घर यानि विदेश में।
बस हो गया काम।
विदेश में तो तरसते हैं कि कोई आ जाए अपने देस से।
वहां जितने भी देसी आबाद हैं, अपनी सोच से वे भी विदेशी हो चुके हैं।
अपना टाइम देने से पहले वह 10 बार सोचता है। यहां के लोगों के पास टाइम की भरमार है। जितना चाहे उतना टाइम ले लो।
विदेशी ब्लॉगर को नवाज़ने से विदेशी ब्लॉगर को दोहरा लाभ होता है और ख़ुद नवाज़ने वाले को भी। एक तो विदेश घूमने का मौक़ा मिला और दूसरे, उससे बड़े ख़ुद हो गये क्योंकि ‘देने वाला हाथ बड़ा होता है लेने वाले से‘।
ईनाम देता ही बड़ा है।
विदेशी दौरे से लौटकर फिर वह वहां के फ़ोटो दिखाएगा जैसे कि झारखंड के लोग दिल्ली में आकर रहते हैं और जब अपने गांव लौटते हैं तो अपनी फ़ोटो दिखाते हैं। उसके रिश्तेदारों में उसका रूतबा कितना बढ़ जाता होगा ?
आप सोच सकते हैं।
विदेशी दौरे के बाद हिंदी ब्लॉगर का रूतबा भी बढ़ता है। ज़्यादा लोगों से संपर्क भी रूतबा बढ़ाता है। 20-30 लोग भी साथ हो जाएं तो एक अकादमी बनाई जा सकती है। इसे बेस बनाकर राजनीतिक पहुंच वालों तक भी पहुंचा जा सकता है।
बड़ा ब्लॉगर जानता है ब्लॉगिंग उर्फ़ न्यू मीडिया की ताक़त। सरकारें तक झुक रही हैं इसके सामने।
सरकारों को ऐसे आदमी चाहिएं जो उन्हें ‘न्यू मीडिया‘ के सामने झुकने से बचा सकें।
देश में अख़बार हैं और क्रांति के हालात भी हैं लेकिन क्रांति नहीं है।
इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पब्लिक को इतने सारे मैच और मनोरंजन दिखाता है कि कुछ देर के लिए सारी हताशा हवा हो जाती है। ‘शीला की जवानी‘ देखकर युवा वर्ग की सोच का रूख़ ही बदल जाता है। क्रांतिकारियों को मरता छोड़कर वह शीला की तलाश में चल देता है और जब शीला उसे मिलती है तो फिर सोनू, मोनू और मुन्नी ख़ुद ही उसके आंगन में खेलने लगती हैं।
शादी करते ही उसकी सारी गर्मी हवा हो जाती है।
आज़ादी की लड़ाई में गरम दल में वही थे जो अपने कुंवारेपन को बचा पाए। शादी शुदा लोगों की गर्मी और हेकड़ी निकल चुकी थी। सो वे नरम दल में थे और अवज्ञा आंदोलन तक ‘सविनय‘ चलाया करते थे।
देश में प्योर देसी बहुत थे लेकिन लोगों को नेहरू पसंद आए क्योंकि वह अंग्रेज़ों को पसंद थे और उनकी बीवियों को भी। नेहरू से लेकर राजीव तक सभी अंग्रेज़ों को बहुत पसंद थे। अंग्रेज़ों की पसंद को नकारना आज भी हिंदुस्तानियों के बस का नहीं है। ब्लॉगिंग और फ़ेसबुक की शुरूआत भी अंग्रेज़ों ने ही की है।
विचार की शक्ति हथियार की शक्ति से हमेशा ज़्यादा होती है। सरकारें इस शक्ति से डरी हुई हैं। सरकारों को ऐसे लोगों की तलाश है जो ईनाम ले सकें।
ईनाम लेने के बदले में उन्हें ब्लॉगिंग की दिशा को नियंत्रित रखना होगा।
यह एक बड़ी डील है जो निकट भविष्य में होने जा रही है।
सौदा उसी से होगा जो विदेश रिटर्न होगा और ब्लॉगिंग में कुछ रूतबा रखता होगा।
इधर उधर घूमना फिरना और ईनाम बांटना भविष्य की उसी योजना की तैयारी है।
गणतंत्र बचाने वाली कहानियां लिखना भी उसी योजना का हिस्सा है यानि कि प्लान लंबा है।
जो आज उसकी आलोचना कर रहे हैं, कल वह उन्हें बेच चुका होगा और किसी को पता भी न चलेगा।
ब्लॉग जगत भी एक परिवार है।
जो परिवार को ही बेच दे, वह बड़ा ब्लॉगर नहीं होता।
बड़ा ब्लॉगर वह है जो परिवार को पहले ही ख़बरदार कर दे कि तुम्हें कैसे बेचा जाने वाला है ?

Wednesday, May 16, 2012

बुराई को फैलने से रोकना है तो भलाई को सराहो

‘करे कोई और भरे कोई‘ कहावत का एक उदाहरण
किसी ब्लॉगर महिला ने कहा कि ‘मुहब्बत चूड़ियों की सलामती की मोहताज नहीं होती‘,
यह सुनते ही हमें मुग़ल ए आज़म जलालुददीन मुहम्मद अकबर का डायलॉग याद आया कि हमारा इंसाफ़ आपकी अंधी ममता का मोहताज नहीं है।
यानि कि इंसाफ़ ममता का मोहताज नहीं है और मुहब्बत चूड़ियों की मोहताज नहीं है।
यहां हरेक ख़ुदमुख्तार है और पूरी तरह बाइख्तियार है।
कल कोई कह सकता है कि ‘मुहब्बत गददे तकिए की मोहताज नहीं है‘
वैसे भी मुहब्बत करने वालों को नींद कहां आती है ?
मुहब्बत का नाम ही रोंगटे खड़े कर देता है।
ऐसी रोमांचकारी कविताएं पढ़ पढ़ कर बूढ़े ब्लॉगर्स के हॉर्मोन फिर से रिसने लगे हैं। कविता लिखता है कोई और चूड़ियां और खाट टूटती है किसी और की।
इसे कहते हैं कि ‘करे कोई और भरे कोई‘।



ख़ैर एक पुरूष ब्लॉगर ने मीडिया और कॉरपोरेट जगत की मिलीभगत का भांडाफोड़ करते हुए आमिर के ‘सत्यमेव जयते‘ की क़लई खोल दी। कहने लगे कि यह सब प्रायोजित है।
अरे भाई, टी.वी. के कार्यक्रम प्रायोजित ही होते हैं और बड़े स्टार के कार्यक्रम के प्रायोजक भी बड़े ही होते हैं। इसमें चौंकाने वाली बात तो कुछ भी नहीं है।
चौंकाने वाली बात तो यह है कि अब हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर और ब्लॉगर्स भी इधर उधर से माल पकड़ रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों तक से माल पकड़ रहे हैं।
कौन कहां से माल पकड़ रहा है ?
इसकी क़लई खोलो तो जानें !!!
...लेकिन अपनी क़लई ख़ुद कैसे खोल दें ?

आमिर ख़ान का नाम लेकर मुख़ालिफ़त कर रहे हैं लेकिन किसी ब्लॉगर की मुख़ालिफ़त का नंबर आए तो कन्नी काट जाएंगे।
ब्लॉगर्स की बहादुरी के रंग भी निराले हैं और ईमानदारी के भी।

बात यह है कि आदमी की अंतरात्मा ईमानदार होती है। उल्टे सीधे धंधों से कमाने के बावजूद अपनी अंतरात्मा को संतुष्ट रखना भी ज़रूरी होता है वर्ना आदमी जी नहीं पाएगा। तब आदमी यह करता है वह ऐसे लोगों की पोल खोलने लगता है जो कि उसका कुछ बिगाड़ न पाएं बल्कि उन्हें पता भी न चले कि किसी ने उनकी मुख़ालिफ़त की है।
इससे आदमी भी सेफ़ रहता है और उसकी अंतरात्मा भी संतुष्ट रहती है।
यह आम ब्लॉगर का रास्ता है जबकि बड़ा ब्लॉगर विश्लेषण और आलोचना की शुरूआत अपने आप से करता है।
सूफ़ी संतों का मार्ग भी यही है। यही चीज़ उन्हें ख़ास बनाती है।

उनका तरीक़ा यह भी है कि भलाई के काम को सराहो।
भलाई के काम को सराहना न मिली तो फिर उसे करने वाले बुराई के काम करेंगे।
बुराई को फैलने से रोकना है तो भलाई को सराहो।
बुराई से लड़ने का काम तो सिर्फ़ बड़ा ब्लॉगर ही कर सकता है लेकिन भलाई को सराहने जैसा आसान काम करना भी आजकल हरेक ब्लॉगर के बस का नहीं है।

Wednesday, April 25, 2012

त्रिया चरित्र से धोखा नहीं खाता बड़ा ब्लॉगर Best Hindi Blog


चुनाव नज़्दीक आए तो ब्लॉगर अपनी अपनी पसंद की पार्टी के लिए ज़मीन हमवार करने लगे। किसी ने यह काम इशारे में किया तो किसी ने खुले आम किया। कोई ब्लॉग पर इस विषय में चुप ही रहा। जो चुप रहा उसकी पार्टी उत्तर प्रदेश में जीत गई और जो खुल कर बोला और बोला ही नहीं बल्कि दहाड़ा भी, उसकी पार्टी हार गई।
हार से पार्टी भी बौखला गई और पार्टी के वर्कर ब्लॉगर भी।
बौखलाहट पागलपन में बदली तो उसने संविधान का अपमान कर दिया।
जिसे पार्टी से नहीं बल्कि देश से प्यार है, उसने कह दिया कि ‘मुझे आपत्ति है‘।
औरत को औरत ने पकड़ लिया और नर्म गुफ़्तगू के साथ ऐसा जकड़ लिया कि जान छुड़ानी भारी हो गई। उनकी हिमायत में एक भाई साहब आ गए।
बहन भी गालियां बकती है और भाई भी गालियां बकता है।
गालियां बकने से इन दोनों को वीरता का नक़ली अहसास होता है।
इनमें से एक भाग कर विदेश में बैठा है और दूसरा है ही नहीं।
भाई के नाम से भी फ़र्ज़ी प्रोफ़ाइल ख़ुद बहन जी ने ही बना रखा है और अपनी हिमायत में भाई बनकर ख़ुद ही बोलती रहती हैं।
बड़ा ब्लॉगर अपनी हिमायत का इंतेज़ाम ख़ुद ही लेकर चलता है।
अपने प्रोफ़ाइल से वह ख़ुद को ‘लौह कन्या‘ कहती है तो भाई के प्रोफ़ाइल से अपने दावे की तस्दीक़ कर देती है बल्कि इससे भी आगे बढ़कर ख़ुद को भारत माता का खि़ताब भी दे देती है।
यह वाक़ई अदभुत है।
भारत माता के टाइटिल को पाने की यह नायाब तरकीब पहली बार देखी गई है।
भाई का प्रोफ़ाइल फ़र्ज़ी है, सो वह संविधान का अपमान करता रहा और पीएम तक के अपमान को तत्पर सा होता रहा। उसे पता है कि प्रोफ़ाइल पूरी तरह फ़र्ज़ी है। मेरा कुछ होना नहीं है और जिसका असली है उसने देश को अपनी मर्ज़ी से छोड़ ही रखा है।
दोनों भाई बहन मुतमईन हैं, सो मज़े से संविधान के खि़लाफ़ बोलते रहे।
अपने सम्मान के प्रति संवेदनशील ब्लॉगर ज़्यादातर ऐसे केसेज़ को इग्नोर ही करते हैं।
कुल मिलाकर भाई बहन के फ़िल्मी प्यार का मंज़र देखने वालों को बड़ा इमोशनल कर गया।
इतना प्यार आजकल कहां मिलता है ?
प्यार के नाम पर भी खिलवाड़ करने वाले ही आजकल ज़्यादा हैं और ऐसे भी हैं कि पहले तो इश्क़ लड़ाएं और जब काम निकल जाए तो आशिक़ से कह दें कि अब आप हमारे भाई बन जाओ।
...और कलाकार इतनी कि पति को पता ही न चलने दे कि उसकी पीठ पीछे ब्लॉग जगत में क्या गुल खिलाए जा रहे हैं ?
यह लक्षण तो त्रिया चरित्र से मेल खाते हैं।
भारत माता का टाइटिल ऐसी औरत के लिए तो नहीं है और न ही कोई देगा।
ख़ुद कोई हथियाने लगे तो ब्लॉग जगत को सच्चाई वह बता ही देगा जो कि वास्तव में बड़ा ब्लॉगर है।

Friday, April 20, 2012

फ़र्रूख़ाबादी स्टाइल की कविता भी बना सकती है बड़ा ब्लॉगर Hindi Poetry

जब से कविता जी की कविता हिट हुई है तब से ब्लॉग जगत में अजीब सी गहमा गहमी है। ब्लॉगर्स को कविता जी से बड़ी उम्मीदें हो गई हैं। पहले तो वे जैसे दूसरे ब्लॉग पर जाते थे वैसे ही इस ब्लॉग पर भी ‘गहरे भाव‘, ‘सुंदर अभिव्यक्ति‘ और ‘दिल को छूने वाली रचना‘ कहकर निकल आते थे लेकिन अब वे सचमुच तलाश करते हैं कि कौन सी बात दिल को छू रही है ?
न भी छू रही हो तो पुरानी कविता को ही याद कर लेते हैं।
वाह क्या कविता थी ?
दिल को क्या पूरे के पूरे वुजूद को ही छू कर और हिला कर जो रख दिया था उसने।
आज तक हिल रहे हैं और लुत्फ़ ले रहे हैं।
जवान तो जवान बूढ़े भी कम नहीं हैं।

ज़रा बुड्ढों की दाद देखा कीजिए।
किस किस स्टाइल में दाद देते हैं।
आज का जवान पुराने जवान जैसा नहीं रहा तो आज के बुड्ढों का भी पुराने बुड्ढों की तरह ऐतबार क्या ?
यह तो च्यवनप्राश का देश पहले से ही था और अब तो नई नई तकनीकें और आ गई हैं। कौन जाने किसने क्या खा रखा हो या क्या लगा रखा हो ?
कॉलेज की लड़कियों ने भी एक सर्वे में बताया कि हमें नौजवानों से ज़्यादा डर बुड्ढों से लगता है। ये ‘बेटा बेटा‘ कहकर कहीं भी सहला देते हैं।
जब से कविता हिट हुई है तब से यही डर कविता करने वाली दूसरी ब्लॉगर्स के दिल में भी बैठ गया है कि जाने यह बुड्ढा कहीं उसी कविता की पिनक में तो यहां नहीं आ धमका ?
क्या ज़माना आ गया है कि नारियां कविता करने से पहले और उपमा देने से पहले सत्तर बार सोचती हैं कि इसके भाव ब्लॉगर्स के दिल में कितने गहरे उतरेंगे ?
कहीं ज़्यादा गहरे उतर गए तो जान आफ़त में आ जाएगी।
उपमाएं और अलंकार ही उनकी जान बचा लेते हैं। किसी के पल्ले पड़ती है और किसी के नहीं ?
यह पुराना स्टाइल है कविता का।
नए स्टाइल की कविता में यह सब नहीं चलता। इसमें सब कुछ खुला खेल फ़र्रूख़ाबादी है।
इसमें तो साफ़ बता दिया जाता है कि मेरे महबूब की आंखें हरे कलर की हैं और वह बिन बुलाए चला आता है।
टिप्पणी देने के लिए महबूब स्टाइल में ब्लॉगर्स पहले से ही बिन बुलाए जाने के आदी हैं। सो हरेक को आधे लक्षण तो अपने में ही घटते हुए लगे। बाक़ी रहा आई कलर, सो वह भी बदला जा सकता है। आंख का रंग बदलकर ज़िंदगी रंगीन हो सकती है तो क्या बुरा है ?
जब से नई कविता में महबूब की आंख का रंग पता चला है तो हरेक अपनी आंख का रंग हरा करने पर तुला हुआ है। कोई हरे पत्तों का अर्क़ सुबह शाम डाल रहा है तो किसी ने हरे रंग के लेंस का ही ऑर्डर दे दिया है।
अब सारे टिप्पणीकार जब अगली कविता पढ़ने जाएंगे तो सबकी आंखें हरी हरी होंगी। इतने सारे हरी आंखों वाले देखकर कवयित्री महोदया परेशान हो जाएंगी कि इनमें से मेरा महबूब कौन है ?
और हो सकता है उस दिन असली हरी आंख वाला वहां पहुंचे ही नहीं।
इसी आस में ब्लॉगर्स टिप्पणियां कर रहे हैं वर्ना तो यही ब्लॉगर उससे भी अच्छी कविता पर नहीं पहुंचते।
न इन्हें उसकी कविता से मतलब है और न उसे इनकी टिप्पणी से। हरेक की अपनी अपनी ख्वाहिशें हैं और ख्वाहिशें भी ऐसी कि हरेक ख्वाहिश पर दम निकले।
अंदर से कुछ तो निकले, चाहे दम ही निकले।
टिप्पणीकार यही सोच कर डटे हुए हैं।
बड़ा ब्लॉगर की पोस्ट होती ही ऐसी है।
इनके चक्कर में ईमानदार ब्लॉगर्स पर शक की सुई घूम रही है कि कहीं यह भी तो कोई अरमान पाले हुए नहीं घूम रहा है।
हिंदी ब्लॉगिंग ने किसी को कुछ दिया हो या न दिया हो लेकिन सीनियर सिटीज़न्स को या निठल्लों को समय गुज़ारने का अच्छा टूल दे दिया है।
अगर वृद्धाश्रम के बूढ़ों को ब्लॉगिंग से जोड़ दिया जाए तो उनके मन में भी अरमान अंगड़ाईयां लेने लगेंगे। फिर वे कभी शिकायत न करेंगे कि उनके बेटा बहू उनसे मिलने नहीं आते बल्कि वे ख़ुद चाहेंगे कि उनके बेटा बहू उन्हें डिस्टर्ब करने के लिए कभी न आएं। ब्लॉगिंग दूर के रिश्तों को क़रीब इसी तरह करती है कि वह क़रीब के रिश्तों को दूर कर देती है।
उनके रंगीन अरमान घर पर रहने वाले उनके बूढ़े दोस्तों को पता चल गए तो वे भी ख़ुशी ख़ुशी वृद्धाश्रम में जा पहुंचेंगे।
यह कविता चीज़ ही ऐसी है कि समझ में न भी आए तो भी इसका सेंट्रल आयडिया सबको पहले से ही पता रहता है कि इसमें औरत मर्द के रिश्ते का बयान होगा। दुनिया में इसके सिवा और है ही क्या ?
जिसकी समझ में कविता नहीं आती, यह रिश्ता उसकी भी समझ में आता है।
जिसकी समझ में जो आता है, वह उसी पर वाह वाह करता है।
नए अंदाज़ की कविता की जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बहुत आसान है।
एक बार फ़र्रूख़ाबादी स्टाइल में कविता कर लो, फिर चाहे उसे मिटा भी दो लेकिन उसकी याद किसी के दिल से मिटने वाली नहीं है।
जो ऐसी अमिट याद छोड़ सके, वही है बड़ा ब्लॉगर।

Friday, April 13, 2012

यौन शिक्षा देता है बड़ा ब्लॉगर

आत्मा कहां से आती है कोई नहीं जानता लेकिन जिस मार्ग से मनुष्य शरीर आता है, उसे सब जानते हैं। ज्ञात के सहारे अज्ञात का पता लगाना मनुष्य का स्वभाव है। आत्मा, परमात्मा और परमेश्वर सब कुछ अज्ञात है। अगर हमें कुछ ज्ञात है तो वह मनुष्य शरीर है या फिर वह मार्ग जहां से वह आता है। ‘इश्क़े मजाज़ी‘ का मार्ग यही है और ‘इश्क़े हक़ीक़ी‘ तक भी पहुंचने के लिए ‘इश्क़े मजाज़ी‘ लाज़िम है।
इसी रास्ते की खोज ने आदमी को वैज्ञानिक बना दिया। हज़ारों साल तक मनुष्य ने खोजा तब जाकर उसे पता चला कि मार्ग के ऊपर गर्भाशय है। धीरे धीरे उसने पता लगाया कि शरीर का निर्माण गर्भाशय में होता है। धर्म, विज्ञान, दर्शन, कला, साहित्य और समाज सबका केन्द्र गर्भाशय ही है। गर्भाशय न हो तो इनमें से कुछ भी न हो। जिसने जिस क्षेत्र में भी उन्नति की है, गर्भ से निकल ही उन्नति की है। जिसने भी समाज को जो कुछ दिया है, गर्भ से निकलकर ही दिया है। गर्भ से निकलने के लिए गर्भ में होना ज़रूरी है और गर्भ में होने के लिए नर नारी का मिलन ज़रूरी है।
नर नारी के मिलन को अलंकार से सजा कर कहा जाय तो वह साहित्य कहलाता है और उसे बिना अलंकार के कहा जाए तो विज्ञान। जब से नर नारी का मिलन है तब से धर्म भी है और धर्म है तो मर्यादा भी है।
धर्म सभी मनुष्यों का एक ही है लेकिन उसकी व्याख्या में भेद है। जितने भेद हुए उतने ही मत बने और हरेक मत को लोगों ने धर्म समझ लिया। साहित्य पर धर्म-मत का भी प्रभाव पड़ा और उनके दर्शनों का भी। नर हो या नारी, वे अपने शरीर को भी ढकते हैं और अपने आपसी रिश्तों को भी। कौन अपने शरीर को कितना ढके ?, हरे मत की मान्यता अलग है लेकिन ढकते सब हैं।
शरीर के रिश्तों को जब साहित्य में बयान किया जाए तो भी ढक कर ही बयान किया जाए। इस पर भी सब सहमत हैं।
ब्लॉगर्स भी जब नर नारी के रिश्तों का बयान करते हैं तो ढक कर ही करते हैं लेकिन कौन कितना ढके ?, यह हरेक की अपनी अपनी मर्ज़ी है।
कोई बुर्क़े को पर्दा मानता है तो कोई हिजाब को और कोई बिकनी पहनकर भी संतुष्ट है कि हां, पर्दा हो गया।
यही हाल ब्लॉगर्स की रचनाओं का भी है।
तीन ब्लॉगर एक रचना को अश्लील बताते हैं तो तीस उसे अश्लीलता से मुक्त पाते हैं। इससे पता चला कि अश्लीलता के निर्धारण का कोई एक पैमाना भी यहां मौजूद नहीं है।
दस ब्लॉगर एक रचना की प्रशंसा कर रहे होते हैं तो एक उसकी भर्त्सना कर देता है।
इंसान की उत्सुकता इसी उठा पटख़ के बीच अपने काम की जानकारी छांट लेती है।
ज्ञान ऐसे ही बढ़ता आया है और ब्लॉगिंग भी ऐसे ही बढ़ेगी।

इंसान अपनी उत्पत्ति के प्रति सदा से ही उत्सुक है। बाइबिल की पहली किताब का नाम ही ‘उत्पत्ति‘ है। वेदों ने भी उत्पत्ति के विषय को बड़ी गंभीरता से लिया है और क़ुरआन ने भी। जहां उत्पत्ति है वहां विनाश भी है और विनाश के बाद भी उत्पत्ति है। उत्पत्ति और विनाश के इस चक्र को जो जानता है वह ज्ञानी कहलाता है।
ज्ञान के भी बहुत से स्तर हैं। ज़्यादातर इसके बाह्य और स्थूल पक्ष तक ही सीमित रह जाते हैं। जो सूक्ष्म भाव को ग्रहण कर पाता है, वही अध्यात्म और रूहानियत तक पहुंच पाता है।

इंसान ग़लतियों से भी सीखता है और सीखकर भी ग़लती करता है।
यौन विषय भी एक ऐसा ही विषय है कि इसमें ग़लतियां होने की और पांव फिसलने की संभावना बहुत है यानि कि डगर पनघट की कठिन बहुत है। कठिन होने के बावजूद लोग न सिर्फ़ इस पर चलते हैं बल्कि सरपट दौड़ते हैं।
औरत मर्द के रिश्तों पर ब्लॉगर्स ने बहुत लिखा है। किसी का लिखा तो लोगों ने पढ़ा तक नहीं और किसी का लिखा ऐसा पढ़ा कि लिखने वाले को मिटाना पड़ गया।

व्यवहारिक प्रशिक्षण
पुराने विषय को जब नए अंदाज़ में कहा जाता है तो उसे पाठक अवश्य मिलते हैं। उदाहरण के लिए वंदना गुप्ता जी की कविता ‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘
जहां एक ओर साहित्यकार अपनी रचना में अलंकारों का इतना ढेर लगा देते हैं कि कवि की मंशा समझना ही दुश्वार हो जाता है। वहीं वंदना जी ने अपनी कविता से सारे अलंकार उतार फेंके और उन्होंने अपने भावों को कहने के लिए वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग किया। यह एक अद्भुत और अभिनव प्रयोग था। हिंदी ब्लॉगर्स इसके अभ्यस्त न थे। वे बौखला से गए और कुछ तो बावले और दिवालिए तक हो गए। इनमें से एक हैं जो कि बात ही कविता में करते हैं लेकिन उनके प्रशंसकों को उनकी एक भी कविता याद नहीं है। वह चिढ़ गए और वह कवयित्री को ऊल जलूल कहने लगे। यह विशुद्ध ईर्ष्या भाव था। इसकी कविता मेरी कविता से ज़्यादा मशहूर कैसे ?
दो एक कवि और भी मोर्चा खोलकर बैठ गए कि इस विषय पर हमारा ही एकाधिकार रहना चाहिए। उन्होंने भी वंदना जी को हड़का लिया।
बहरहाल झगड़ा-पंगा, विचार-विमर्श बहुत हुआ और इतना हुआ कि अब वंदना जी की कविता को भुलाना हिंदी ब्लॉगर्स के लिए आसान नहीं है।
वंदना जी अपनी कविता हटा चुकी हैं। अब लोग उस विषय पर ख़ुद भी कविता करेंगे और कुछ तो उस कविता का रीमेक ही बना डालेंगे। इस तरह कुछ समय तक जो भी मनोरंजन होने वाला है, नए ब्लॉगर्स उसे अपने प्रशिक्षण के तौर पर देख सकते हैं।
हमेशा उस विषय पर लिखिए जिसके प्रति पाठकों में उत्सुकता और आकर्षण पाया जाता हो और उसे नए और अनोखे अंदाज़ में बयान कीजिए। आप इसमें जितना ज़्यादा सफल होंगे, उतने ही बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे।
यौन शिक्षा को ब्लॉगिंग का विषय बनाया जाए तो बड़ा ब्लॉगर बनना बिल्कुल आसान है। तब न कोई गद्य देखेगा और न पद्य। पाठक तो यह देखेंगे कि आखि़र लिखने वाले ने लिखा क्या है ?
पढ़कर मज़ा आ जाए तो बस आप बन गए बड़ा ब्लॉगर।
इस समय हिंदी ब्लॉग जगत का ढर्रा यही है।

Thursday, April 5, 2012

गीता पर चलिए और बड़ा ब्लॉगर बनिए Gita as a bloggers' guide

प्यारे छात्रों ! आज के लेक्चर में आपके सामने मानव प्रकृति का एक सनातन रहस्य अनावृत होने जा रहा है। इसे विशुद्ध प्रोफ़ेशनल दृष्टि से समझने और आत्मसात करने की आवश्यकता है।

भारतीय दर्शन 6 हैं जो कि न्याय, सांख्य, वैशेषिक, योग दर्शन, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा दर्शन हैं। उत्तर मीमांसा दर्शन को ही वेदान्त दर्शन कहा जाता है। ये सभी दर्शन क्लिष्ट और गूढ़ हैं। गीता इन सबका सरल और समन्वित रूप है।
गीता को श्री कृष्ण जी का उपदेश कहा जाता है और कहा जाता है कि यह उपदेश उन्होंने अर्जुन को उस समय दिया था जबकि दोनों ओर की सेनाएं युद्ध के लिए मैदान में आ खड़ी हुई थीं और बिल्कुल ऐन वक्त पर अर्जुन ने युद्ध से इन्कार कर दिया था।
अर्जुन ने युद्ध से इसलिए इन्कार कर दिया था क्योंकि वह अपने प्यारे भाईयों, दोस्तों और रिश्तेदारों पर तीर चलाना नहीं चाहते थे।
वजह चाहे जो भी रही हो लेकिन अच्छा ही हुआ कि उन्होंने युद्ध से इन्कार कर दिया।

अर्जुन के इन्कार का लाभ हमें यह मिला कि लड़ाई तो होकर ख़त्म हो गई लेकिन गीता का संदेश आज तक हमारे पास है। अर्जुन के इन्कार के कारण हमें गीता मिल गई। गीता सुनकर अर्जुन अर्जुन बन गए और गीता पढ़कर एक साहब बैरिस्टर से गांधी जी बन गए।
गीता अगर आज अपने मूल रूप में सुरक्षित होती तो और भी ज़्यादा प्रभावी होती। आज वह जिस रूप में है, अगर उसे भी आदमी तत्वबुद्धि के साथ पढ़ ले तो वह भारतीय दर्शन की आत्मा को पकड़ सकता है। अगर एक ब्लॉगर इस आत्मा को पकड़ ले तो वह निश्चय ही बड़ा ब्लॉगर बन जाएगा।
ध्यान देने की बात यह है कि श्री कृष्ण जी ने जीवन भर बहुत से उपदेश दिए और बड़े बड़े ज्ञानियों और ऋषियों के समूहों को उपदेश दिए लेकिन गीता का संदेश ही सबसे ज़्यादा पॉपुलर हुआ जो कि मात्र एक व्यक्ति को दिया गया था ?
इसका क्या कारण रहा ?

इसके बाद आप इस बात पर ध्यान दीजिए कि श्री कृष्ण जी ने जितने भी उपदेश दिए, उनमें सबसे ज़्यादा सुंदर गीता का उपदेश ही है। ऐसा लगता है कि उन्होंने भी अपना सबसे श्रेष्ठ उपदेश सोच समझ कर ही युद्ध के अवसर के लिए बचा रखा था।
ऐसा क्यों ?, ज़रा सोचिए !

श्री कृष्ण जी मानव मन को जानते थे। वह जानते थे कि टकराव इंसान का स्वभाव है। टक्कर खाकर ही आदमी सीखता है। इसलिए जब मानवता को सबसे बड़ी टक्कर लगने वाली थी तो उन्होंने उसे सबसे बड़ी सीख दी। मानव जाति उनकी वह सीख भुला न सकी जबकि वह उनके दूसरे उपदेश याद न रख सकी। जितने भी राजाओं ने बिना लड़े भिड़े राज्य किया, वे सब भुला दिए गए। इतिहास ने केवल उन्हें याद रखा, जिन्होंने युद्ध किया। जिसने जितना बड़ा युद्ध किया, उसे उतना ही ज़्यादा याद रखा गया। वे याद रहे तो उनकी बातें भी याद रहीं।

इससे हमें यह पता चलता है कि जिस बात को आप टकराव की जगह बताएंगे, वह बात लोगों के चेतन और अवचेतन मन में ऐसे उतर जाएगी कि लोग चाहें तो भी उसे भुला न सकेंगे।
इसलिए टकराव की जगह तलाश कीजिए।
किसी को टकराव के लिए इन्वाईट कर लीजिए।
कोई न आए तो आप ख़ुद ही कहीं चले जाईये।
कहीं भी कोई टकराव न हो रहा हो तो टकराव की सिचुएशन क्रिएट कीजिए।
ग़ैर मिले तो सुब्हानल्लाह और कोई ग़ैर न मिले तो किसी अपने से ही टकरा जाईये। जैसे कि कृष्ण जी की बात मानकर अर्जुन टकरा गए अपनों से ही।
...लेकिन यह टकराव जायज़ मक़सद के लिए होना चाहिए, सत्य के लिए होना चाहिए क्योंकि सत्यमेव जयते।
यह एक विशेष तकनीक है जिसका अभ्यास श्री कृष्ण जी के निर्देशन में किया जाए तो ब्लॉग जगत से निराश हो चला ब्लॉगर भी पल भर में ही ब्लॉग जगत के केन्द्र में आ खड़ा होता है।

व्यवहारिक प्रशिक्षण

भाई ख़ुशदीप सहगल जी की ताज़ा पोस्ट पर मचे घमासान के मॉडल पर हम इस तकनीक का अध्ययन बख़ूबी कर सकते हैं।
ब्लॉगिंग में जब तक झगड़े होते रहे लोग टिके रहे और जैसे जैसे झगड़े होने कम होते चले गए ब्लॉगर भी कम होते चले गए अर्थात ब्लॉगर्स की संख्या ब्लॉगिंग में होने वाले विवादों के समानुपाती है।
यह एक रहस्य की बात है। बड़ा ब्लॉगर होने का अभ्यास करने वाले तीरंदाज़ के लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है।
पिछले कुछ अर्से से हिंदी ब्लॉगिंग में कुछ ख़ास नहीं हो रहा था यानि कि लोग लिख रहे थे और पढ़ रहे थे और उकता रहे थे। कहीं कोई विवाद नहीं हो रहा था। हम भी दूसरे कामों में लगे हुए थे वर्ना तो किसी को भी उसकी ग़लती पर टोक दीजिए, बस हो गया विवाद !
ब्लॉग जगत की ख़ुशक़िस्मती देखिए कि कल हमारी नज़र भाई ख़ुशदीप सहगल जी की पोस्ट पर पड़ गई। जिसका शीर्षक है -
‘बोल्डनेस छोड़िए हो जाईये कूल ...ख़ुशदीप‘
इसमें उन्होंने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और हव्वा अलैहिस्सलाम (अर्थात अन पर शांति हो) के बारे में चुटकुले भी लिख रखे हैं और उनका नंगा चित्र भी लगा रखा था।

इस पर टोकते ही दो काम होने लाज़िमी थे।
1- पहला यह कि तुरंत ही एक विवाद शुरू हो जाएगा और इस तरह उपदेश के लिए एक अच्छा अवसर उपस्थित हो जाएगा।
2- दूसरा यह कि हमें सराहने वाला भाई ख़ुशदीप जैसा ब्लॉगर हम सदा के लिए खो देंगे।
याद रखिए कि आप जिसे भी सार्वजनिक रूप से उसकी ग़लती पर टोकते हैं, आप उसे सदा के लिए खो देते हैं। उसके मन में आपके प्रति एक प्रकार की वितृष्णा जन्म लेती है। वह आपके खि़लाफ़ तो कुछ कर नहीं पाता लेकिन मन ही मन आपसे चिढ़ने लगता है और कभी कभी यह चिढ़ उसके मन से जीवन भर नहीं निकल पाती।

अगर हम दूसरी बात का ख़याल रखें तो पहली बात कभी हासिल न हो और पहली बात हासिल न करें तो ब्लॉगिंग में हमारी मौजूदगी व्यर्थ है। रिश्ते नाते और अपनाईयत के ख़याल जब आपको आपके कर्तव्य से रोकने लगें तो गीता काम आती है। गीता हमारे भी काम आई और आपके भी काम आएगी।
पिछले दिनों भाई ख़ुशदीप जी ने या हमने जो भी लिखा है, उनमें सबसे ज़्यादा यही पोस्ट पढ़ी गई है जिस पर कि ब्लॉगर्स को टकराव होता हुआ दिखा।
टकराव सचमुच चाहे न हो लेकिन ब्लॉगर्स को दिखना ज़रूर चाहिए कि हां टकराव हो रहा है। जब तक टकराव चल रहा है तब तक ब्लॉगिंग भी चल रही है।
हिंदी ब्लॉगिंग को ज़िंदा रखना है तो थोड़े थोड़े समय पर टकराव का आयोजन करते रहना पड़ेगा।
पूर्व काल में हमने यह रहस्य हरीश सिंह जी को बताया था और यह रहस्य जानकर वह तुरंत ही बड़ा ब्लॉगर बन गए थे। उनका ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत के बड़े ब्लॉग्स में गिना जाता है। आज भी वह हमें फ़ोन करते हैं तो गुरू जी कहकर ही संबोधित करते हैं।

जल्दी ही आप भी उत्कृष्ट कोटि के विवादों का सृजन कर सकेंगे और आप उनके माध्यम से सत्य का उपदेश देने की कला में भी पारंगत हो जाएंगे। इसका लाभ यह होगा कि आप रिश्ते नातों की मोह माया के बीच निर्लिप्त भाव से अपने कर्तव्य का निर्वाह करना सीख लेंगे। आभासी दुनिया का यह अभ्यास वास्तविक जगत में भी आपके काम आएगा।

युद्ध की भांति ही सेक्स भी मनुष्य को आदिकाल से ही आकर्षित करता रहा है। इसके सटीक इस्तेमाल से भी आप एक बड़ा ब्लॉगर बन सकते हैं। आगामी किसी क्लास में इस विषय पर भी लेक्चर अवश्य दिया जाएगा।
तब तक इंतेज़ार कीजिए और आज बताए गए सूत्र का अभ्यास कीजिए।

Sunday, April 1, 2012

बड़ा ब्लॉगर वह है जो दुनिया जहान का विश्लेषण करता है Real Blogger

आदमी की सहज वृत्ति है कि वह सदा दूसरों का विश्लेषण करता है।
जब वह ब्लॉगिंग में आता है तो अपनी यह आदत भी साथ लेकर आता है।
छोटे मोटे ब्लॉगर एक दो ब्लॉगर का विश्लेषण करके ही रह जाते हैं लेकिन बड़ा ब्लॉगर सारे ब्लॉग जगत का विश्लेषण करने करने का बीड़ा ख़ुद से ही उठा लेता है। जिस काम को दूसरों ने सिर दर्द समझकर छोड़ दिया होता है, उसी काम को यह मज़े से करता है। बड़ा कहलाने का मज़ा ही कुछ ऐसा है। इसी के साथ वह इसमें राजनीतिक पैंतरेबाज़ी भी मज़ा लेता है। जिससे ख़ुश होता है, उसका नाम ऊपर रखता है और जिससे नाराज़ होता है उसका नंबर 100वां रखने के बाद भी अलेक्सा रैंक नदारद कर देता है। गुटबाज़ी को यह न तो भूलता है और न भूलने देता है।
इसे भी मज़ा आता है और इसकी हालत देखकर इसके दुश्मनों को भी मज़ा आता है। दुश्मन देखते हैं कि बेचारा बच्चों की गणित की कॉपी चेक न करके ब्लॉगर्स की अलेक्सा रैंकिंग चेक कर रहा है। बीवी ने नई साड़ी पहनकर उतार भी दी होती है लेकिन यह बेड पर भी लैपटॉप पटपटा रहा होता है। बीवी बच्चों की नज़रों में गिर कर ब्लॉग जगत में ऊंचा उठने की जुगत में बड़ा ब्लॉगर पूरे साल यही करता है और फिर साल दर साल वह यही करता रहता है। वह सबका विश्लेषण ख़ुद करता है और अपने काम के लिए पुरस्कार भी ख़ुद ही लेता है और मज़ेदार बात है कि पुरस्कार देने वाला भी वह ख़ुद ही होता है।
देखते सब हैं, जानते भी सब हैं लेकिन बोले कौन ?
जो भी बोलेगा, अगली बार उसके ब्लॉग का नाम ही विश्लेषण में न चमकेगा।
हानि लाभ का गुणा भाग करने में पुरूष ब्लॉगर बहुत माहिर हैं और महिलाएं तो इस काम में अपना कोई सानी नहीं रखतीं। इसका लाभ भी मिलता है। बड़े ब्लॉगर की सरपरस्ती में ब्लॉगिंग की ट्रेनिंग लेने वाला कोई ब्लॉगर जब ईनाम तक़सीम करता है तो उसके साथ उन्हें भी ईनाम मिलता है।
कहा भी गया है कि ‘संघे शक्ति कलयुगे‘।
वास्तव में बड़ा ब्लॉगर वह जो है कि हानि लाभ और मान अपमान की परवाह न करके सत्य लिखता है। केवल यही ब्लॉगर होता है कि यह उसका भी विश्लेषण कर डालता है जो कि हज़ारों ब्लॉग्स का विश्लेषण करने का आदी हो चुका है।
एकलव्य कितना ही बड़ा धनुर्धर हो लेकिन उसके पक्ष में खड़ा होने की परंपरा यहां है ही नहीं। राजपाट हार जाएं तो ख़ुद पांडवों के साथ भी कोई खड़ा नहीं होता बल्कि वे ख़ुद भी अपनी पत्नी द्रौपदी के पक्ष में खड़े नहीं होते।
खड़े होने से पहले लोग यह देखते हैं कि इसके साथ खड़े होकर हमें क्या ईनाम मिलेगा ?
ईनाम मिलता हो तो विभीषण भी राम के पक्ष मे आ जाता है और घर से तिरस्कार मिला हो तो दुश्मन की तरफ़ से भाईयों पर तीर चलाने के लिए कर्ण भी खड़ा हो जाएगा और एकलव्य भी वहीं आ जाएगा।
ईनाम बहुत बड़ा मोटिवेशन फ़ैक्टर है। ईनाम के लिए इंसान अपना ईमान और अपना ज़मीर सब कुछ भुला देता है।
बड़ा ब्लॉगर वह है जिसकी ब्लॉगिंग का केंद्र ‘सत्य‘ होता है। ईमान और ज़मीर इसी के पास होता है। इसकी ब्लॉगिंग में यही सब भरा होता है।
आप ब्लॉग पढ़कर सहज ही जान सकते हैं कि बड़ा ब्लॉगर कौन है और बड़ा ब्लॉगर कैसे बना जाता है ?