Tuesday, June 14, 2011

बड़ा ब्लॉगर ब्लॉगवन में शेर होता है तो सच की दुनिया में हाथी

'झूठ के नाख़ून अभी इतने लंबे नहीं हुए कि वह सच का चेहरा नोच सके।'
पहले तो आप यह डायलॉग पढ़िए और बताइये कि यह डायलॉग आपको कैसा लगा ?
यह किसी फिल्म का डायलॉग नहीं है । इसे हमने अभी अभी लिखा है ।
अब आपकी आज की क्लास शुरू करते हैं ।
बड़ा ब्लॉगर सच के लिए लड़ता है और वह झूठ के दावेदारों को ढेर कर देता है। बड़े बड़े मुंह की खाकर , मुँह छिपाकर और दुम दबाकर भाग लेते हैं । ये सभी बीच चौराहे पर नंगे हो चुके हैं । इनकी नाक कट चुकी है । अपनी इज़्ज़त गंवाने वाले ये ब्लॉगर दिल में ख़ार खाए बैठे रहते हैं । ऊपरी दिल से ये पोस्ट पर आते भी हैं और सराहते भी हैं लेकिन इनके अहंकार का ज़ख़्मी साँप अंदर ही अंदर फुंकारता रहता है । बड़ा ब्लॉगर भी इनकी टिप्पणियों के बदले में आभार प्रकट करता रहता है लेकिन उसे पता है कि जो शत्रु डर कर, हार कर या असहाय हो कर संधि करता है वह कुछ समय बाद शक्ति अर्जित करके पलट कर हमला ज़रूर करता है ।
वह उस हमले को ठीक उसी दिन जानता है जिस दिन शत्रु उसके सामने संधि का प्रस्ताव रखता है ।
बड़ा ब्लॉगर मनु स्मृति , चाणक्य नीति , विदुर नीति, रामायण, महाभारत , भृतहरि शतकं , पंचतंत्र , हितोपदेश और गीता सब कुछ पढ़े हुए होता है । इन सभी में शत्रु का मनोविज्ञान और उसकी चालबाज़ियों का पूर्ण विवरण मौजूद है । कोई भी शत्रु इनमें वर्णित चालबाज़ियों से हटकर कोई नई चालबाज़ी हरगिज़ नहीं कर सकता। सभी संभावित चालों को बड़ा ब्लॉगर जानता है और अपने दुश्मनों को भी वह पहचानता है । शिखंडी को भी वह चिन्हित कर लेता है।
वह जानता है कि इंजीनियर अब उसके लिए लाक्षागृह नहीं बनाएगा । कोई भी बूढ़ा दुश्मन उस पर सीधे हमला नहीं करेगा और दूर बैठे दो चार अधेड़ नास्तिक भी कुछ करने में समर्थ नहीं हैं ।
बस वे अपनी फ़र्ज़ी आई डी से कुछ कमेंट करके यही जता सकते हैं कि आप जिस शहर में रहते हैं वह बुलंद है और आपके कंधों पर तीन शेर ग़ुर्रा रहे हैं ।
दूर से वे मात्र इतना ही जान पाते हैं और समझते हैं कि इसे तो हम नियमावली दिखा कर ही दबा लेंगे लेकिन अगर वे इंजीनियर से संपर्क करें तो उन्हें पता चल जाएगा कि इस ऊँचे शहर का MLA कौन है और कैसा है ?
कोई शहर ऐसा नहीं है जहाँ उसके आदमी न हों । जिसने उसे न देखा हो वह अमिताभ बच्चन की सरकार देख ले या हॉलीवुड की गॉड फ़ादर।
मालिक का नाम बड़े ब्लॉगर को हरेक से आदर दिलाता है , पुलिस से भी और डॉन से भी । हरेक उससे पूछता है कि कोई काम हो तो बताओ ।
बड़ा ब्लॉगर उन्हें क्या काम बताए ?
कोई झगड़ा रीयल वर्ल्ड में जब है ही नहीं तो उन्हें आख़िर क्या काम बताया जा सकता है ?
बड़ा ब्लॉगर ब्लॉगवन में शेर होता है तो सच की दुनिया में हाथी।
हाथी मेरे साथी ।
वे सभी फ़िल्में अच्छी हैं जो कुछ न कुछ अच्छा दिखाती हैं और अंत में ज़ालिम की ज़िल्लत भरी मौत पर ही ये फ़िल्में ख़त्म होती हैं ।

Sunday, June 12, 2011

डर को जीत कर ही लिखता है 'बड़ा ब्लॉगर'

'How to stop worring and start living ?' में डेल कारनेगी जी ने चिँता और तनाव से मुक्ति पाने के बहुत से तरीक़े बताए हैं । उनमें से एक तरीक़ा यह है कि आदमी जो भी कारोबार , नौकरी या आंदोलन कर रहा है । उसमें बुरे से भी बुरा जो कुछ संभव हो , अपने लिए उसकी कल्पना करे और अपने मन को उस नुक़्सान को सहने के लिए तैयार कर ले । यह आसान नहीं है लेकिन जैसे ही आदमी यह अभ्यास करता है वैसे ही वह डर से आगे निकल कर वहाँ पहुँच जाता है जहाँ जीत है ।
ब्लॉगिंग करने वालों का जीवन पहले से ही कई तरह के तनाव से भरा होता है । उससे मुक्ति पाने के लिए वे ब्लॉगिंग शुरू करते हैं लेकिन यहाँ सुख के साथ कम या ज्यादा कुछ न कुछ दुख और चिंता उन पर और सवार हो जाती है । नज़रिए का अंतर भी यहाँ आम बात है और बदतमीज़ी भी ।
'कौन बनेगा सर्वेसर्वा ?' की कोशिश में यहाँ गुट भी बने हुए हैं और गुट बनते ही गुटबाज़ी के लिए हैं । गुटबाज़ी से टकराव और टकराव से केवल तनाव पैदा होता है । जो बदमाश है वह यहाँ धमकियाँ देता है कि जान से मार दूँगा और जो क़ानून का जानकार है वह क़ानूनी लक्ष्मण रेखा खींचता रहता है कि कौन ब्लॉगर क्या कर सकता है और क्या नहीं ?
ग़ुंडा हो या वकील , काम दोनों डराने का ही करते हैं।
डराता कौन है ?
याद रखिए जो ख़ुद डरा हुआ होता है वही दूसरों को डराता है । अपना डर छिपाने और दूसरों को डराने की कोशिश तनाव को जन्म देती है । ऐसी कोशिशें छोटेपन का लक्षण होती हैं।
बड़ा ब्लॉगर निर्भय होता है। वह मानता है कि उसका परिवार , उसका रोज़गार और उसका जीवन जो कुछ भी उसके पास है वह उनमें से किसी भी चीज़ का मालिक नहीं है । इन सब चीजों का मालिक वास्तव में सच्चा मालिक है और वह स्वयं तो केवल एक अमानतदार है । वह इन चीजों को लेने में भी मजबूर है और इन्हें देने में भी ।
जो चीज़ उसे दी गई है वह उससे एक दिन ले ली जाएगी । मालिक
दुनिया में निमित्त और सबब के तौर पर चाहे किसी दुश्मन को ही इस्तेमाल क्यों न करे लेकिन होता वही है जो मालिक का हुक्म होता है ।
सत्य और असत्य के इस संघर्ष में सब कुछ ईश्वर की योजना के अनुसार ही होता है लेकिन आदमी अपने विवेक का ग़लत इस्तेमाल करके खुद को सच्चे मालिक और मानवता का मुजरिम बना लेता है ।
यह तत्व की बात है और जो तत्व को जानता है उसे कोई चीज़ कभी नहीं डराती।
याद रखिए , चीज़ें ,घटनाएं और आदमी आपको नहीं डरातीं बल्कि आपको डराता है उन्हें देखने का नज़रिया।
ज्ञान आता है तो डर ख़ुद ब ख़ुद चला जाता है और जैसे ही डर से मुक्ति मिलती है आदमी बड़ा ब्लॉगर बन जाता है ।

Friday, June 10, 2011

अंतर्विरोध में नहीं जीता है बड़ा ब्लॉगर

आदमी स्वभाव से महत्वाकांक्षी और जल्दबाज़ होता है । वह समाज में बड़े स्तर पर सकारात्मक बदलाव का इच्छुक होता है। वह सुनहरे भविष्य के सपने अपनी पसंद के रंग की ऐनक से देखता है और जब उसी रंग में रंगा हुआ कोई आदमी या दल उसे रंगीन सपने दिखाता है तो उसे लगता है कि वह अवसर आ चुका है जिसका उसे इंतज़ार था । वह तुरंत ऐलान कर देता है कि 'बस या तो अभी वर्ना कभी नहीं ।'
ऐसा आदमी सच को नहीं जानता और जब उसकी कल्पनाएं हक़ीक़त नहीं बनतीं तो उसका अन्तर्मन हा हा कार कर उठता है । तब भी वह अपनी जल्दबाज़ी को दोष नहीं देता और न ही अपने मार्गदर्शक व्यक्ति और दल की ख़ुदग़र्ज़ी पर ही नज़र डालता है । इसके बजाय कभी तो वह सत्ता पर क़ाबिज़ पार्टी को कोसता है , कभी समाज के बुद्धिजीवियों की समझ पर अफ़सोस जताता है और कभी मीडियाकर्मियों पर बिक जाने या डर जाने का इल्ज़ाम लगाता है । अपनी आशाओं की टूटी किरचियाँ लेकर वह मन ही मन सोचता रहता है कि आख़िर लोग सकारात्मक तब्दीली के लिए अपना जी जान लड़ाने से अपना जी क्यों चुरा रहे हैं ?
क्राँति तो बस दरवाज़े पर ही खड़ी थी लेकिन लोग हैं कि क्राँतिकारी जी महाराज की ही खिल्ली उड़ा रहे हैं ?
लानत है ऐसे लोगों पर ।
मैंने साल भर तक इन्हें इतनी अच्छी अच्छी बातें सुनाईं लेकिन ये फिर भी राह पर न आए , तो आख़िर हमारे नेता और हम लोग किसके लिए लड़ रहे हैं ?

ऐसे विचार आदमी के मन में आते हैं । एक साधारण ब्लॉगर के मन में भी ऐसे विचार आते हैं और तब वह अन्तर्विरोध में जीने लगता है । जिसकी वजह से उसका मन ब्लॉगिंग से विरक्त हो जाता है । एक छोटे ब्लॉगर में ये लक्षण पाया जाना सामान्य बात है ।
बड़ा ब्लॉगर वह है जो बहुत पहले ही इस मंजिल को पार कर चुका होता है। वह जान चुका होता है कि तब्दीलियाँ हमेशा धीरे धीरे आती हैं और वह यह भी जान लेता है कि जैसे उसे एक रंग पसंद है वैसे ही दूसरे लोगों को भी कोई न कोई रंग पसंद है और उनमें से हरेक आदमी एक ही सुनहरे सपने को अपनी पसंद के रंग में ढल कर हक़ीक़त बनते देखना चाहते हैं । सुनहरा सपना लगातार साकार होता जा रहा है बिना किसी नेता के ही लेकिन उन्हें उसकी कोई खूबी नज़र नहीं आती। बड़ा ब्लॉगर जानता है कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन का सीधा संबंध लोगों की सोच से है । लोगों की सोच जैसी और जितनी बदलती जाएगी , समाज में भी वैसी और उतनी ही तब्दीली आती चली जाएगी और जब समाज के ज़्यादातर लोगों में सत्य और न्याय की चेतना का विकास अपने टॉप पर पहुँच जाएगा तो समाज में वह बड़ी तब्दीली आ जाएगी जो कि वाँछित है। यह हज़ार पाँच सौ लोगों के बल पर नहीं आएगी और न ही दो चार साल में आ जाएगी । एक आदमी के बल पर एकाध सत्याग्रह से तो बिल्कुल नहीं आएगी और बुज़दिल नेता और ख़ुदग़र्ज़ साथियों के कारण तो इस तब्दीली की प्रक्रिया ही मंद पड़ जाएगी और वे तो इसे रिवर्स कर देने के 'हिडेन एजेंडे' पर चल रहे हैं।
बड़ा ब्लॉगर इस सच्चाई को जानता है इसीलिए वह अपने कर्म पर ध्यान देता है जिसके ज़रिए से समाज में तब्दीली आनी है।
छोटा ब्लॉगर सोचता है कि ब्लॉगिंग छोड़कर ज़मीनी स्तर पर कुछ काम किया जाए जबकि बड़ा ब्लॉगर ब्लॉगिंग, ज़मीनी और आसमानी सब काम एक साथ करता है । वह अपने मिशन से ब्लॉगर्स को इंट्रोड्यूस कराता है । ब्लॉगिंग का ज्ञान समाज में बाँटकर अपने समर्थन और लोकप्रियता का दायरा बढ़ाता है और इस संपर्क में प्राप्त अनुभवों को वह ब्लॉग और अख़बार , दोनों जगह शेयर करता है । इस तरह वह ज्ञान अर्जन और ज्ञान वितरण की cyclic process के ज़रिए समाज में सकारात्मक तब्दीली लाने में अपने हिस्से का योगदान करता रहता है । इसके नतीजे में उसकी लोकप्रियता बढ़ती चली जाती है । जैसे जैसे उसका कद बढ़ता जाता है वैसे वैसे वह बड़े से और ज्यादा बड़ा ब्लॉगर बनता चला जाता है।
हम अपने आप को अपनी क्षमताओं के आधार पर आँकते हैं जबकि लोग हमें हमारे द्वारा किए गए कामों के आधार पर आँकते हैं ।
अच्छी सोच रखना अच्छी बात है लेकिन उसे पूरा करने के लिए हक़ीक़त जानना बहुत ज़रूरी है और हक़ीक़त यह है कि बड़ी तब्दीलियाँ बड़े धैर्य वाले लोगों की बड़ी मेहनत से आती है । जो खोखले दावे करता है और झूठे नारे लगाता है, उससे कुछ खास हो नहीं पाता सिवाय ऊँची छलाँग लगाने के । समाज के लिए उसका 'योग'-दान बस यही होता है ।

Sunday, June 5, 2011

'मनुष्य के स्वभाव और प्रकृति के धर्म , दोनों का ज्ञान' रखता है बड़ा ब्लॉगर Thought provoking

'बोलने और लिखने का मक़सद होता है सत्य की गवाही देना' या हम कह सकते हैं कि होना चाहिए। ब्लॉग लिखा जाए या कुछ और , जो कुछ भी लिखा जाए इसी मक़सद के तहत लिखा जाए। एक बड़ा ब्लॉगर ऐसा मानता है। सत्य में प्रबल आकर्षण शक्ति होती है और इसे हरेक आत्मा पहचानती है। लिहाज़ा जो सत्य को अपने लेखन की बुनियाद बनाता है। वह अनायास ही लोकप्रियता के सोपान चढ़ता चला जाता है । इतना ही बल्कि वह अपनी विजय का सामान भी जुटा लेता है क्योंकि 'सत्यमेव जयते' कोई कहावत नहीं है बल्कि एक नियम है जिसे कहावत में बयान किया गया है। जीतने वाली चीज़ है सत्य और आपको इस धरती पर सत्य का साक्षी बनाकर पैदा किया गया है अर्थात आपको जीतने के लिए ही पैदा किया गया है । विजय उल्लास , ऐश्वर्य और आनंद सब कुछ साथ लाती है लेकिन इस विजय के लिए इंसान को दूसरों से नहीं बल्कि अपने आप से लड़ना पड़ता है । अपने खिलाफ़ खुद खड़ा होना पड़ता है। जो आदमी खुद अपने खिलाफ खड़ा हो सकता है । वही निष्पक्ष होकर विचार कर सकता है और अपनी गलती के ग़लत और दूसरे के सही को सत्य कह सकता है। अपने मिथ्या अभिमान को जीतने और सत्य को पाने वाला आदमी यही होता है । अब अगर आप सत्य को सामने लाते हैं तो आप अपने जन्म के मक़सद को पूरा करते हैं और अगर आप अपनी रीयल फ़ीलिग्स के ख़िलाफ़ लिखते हैं तो अपनी आत्मा का हनन करते हैं । आप चाहें या न चाहें लेकिन अपने हरेक अमल के ज़रिये या तो आप अपना विकास कर रहे हैं फिर अपनी आत्मा का हनन।
बड़ा ब्लॉगर कहलाने का हक़दार वह है जो अपनी आत्मा का हनन कभी नहीं करता। वह सदा सत्य ही लिखता है।
वह पोस्ट भी लिखता है और टिप्पणी भी, जो भी लिखता है सत्य ही लिखता है। कभी वह टिप्पणी को पोस्ट बना देता है और ऐसा वे भी करते रहते हैं जो कि बड़े ब्लॉगर वास्तव में नहीं होते लेकिन कभी कभी बड़ा ब्लॉगर दूसरों के ब्लॉग पर अपनी टिप्पणी को भी एक पोस्ट का रूप दे देता है और दूसरे ऐसा नहीं कर पाते।
इससे बड़े ब्लॉगर को भी लाभ होता है और उस पोस्ट को भी जिस पर कि वह टिप्पणी करता है। उस पोस्ट पर अब दिल से निकली हूई टिप्पणियाँ आने लगती हैं। उसकी टिप्पणियाँ Thougqt provoking होती हैं। चिंतन की ठप्प पड़ी प्रक्रिया को चालू करना ही उसका मक़सद होता है। इसीलिए उसकी टिप्पणियाँ अद्भुत हुआ करती हैं।
कोई नहीं जानता कि किस पोस्ट या टिप्पणी में किस मुद्दे को उठाकर वह किसे और कब झिंझोड़ डाले ?
इस प्रकार वह एक सस्पेंस बनाए रखता है जिससे उसकी पोस्ट और टिप्पणियों के लिए सभी ब्लॉगर्स की उत्सुकता सदा बनी रहती है चाहे वे उसके समर्थक हों या फिर उसके विरोधी। उसके विरोधी उस पर निगरानी रखने की नीयत से उसकी पोस्ट और टिप्पणियाँ पढ़ते हैं लेकिन वे नहीं जानते कि हल्के हल्के Data उनके mind में ट्रांसफ़र हो रहा है और वे क्रमिक रूप से प्रबुद्ध होते जा रहे हैं और एक समय वह आएगा जब उनकी चेतना का विकास इतना हो जाएगा कि वे भी बड़े ब्लॉगर बन जाएंगे अर्थात वे भी सत्य के साक्षी बन जाएँगे।
अतः हम कह सकते हैं कि बड़ा ब्लॉगर वह है जो सत्य के सांचे में खुद के साथ साथ दूसरों को भी ढालता रहता है , धीरे-धीरे और खेल-खेल में । याद रहे कि खेल इंसान को पसंद है और धीरे-धीरे प्रकृति का स्वभाव और उसका नियम है। बड़ा ब्लॉगर वह है जिसे मनुष्य के स्वभाव और प्रकृति के धर्म , दोनों का ज्ञान होता है। इंसान को बड़ा बनाने वाली चीज़ ज्ञान है। यह बात एक ब्लॉगर पर भी लागू होती है।