बड़ा ब्लॉगर कोई नया काम नहीं करता बल्कि वह हर काम को एक नए अंदाज़ में करता है जैसे कि शौचालय में समय गुज़ारना। शौच का जीवन में बड़ा महत्व है। इंसान की पहचान उसके शौच से ही होती है। इंसान वह नहीं होता जो कि वह बाहर से नज़र आता है बल्कि अस्ल इंसान वह होता है जो कि अंदर होता है। इंसान की हक़ीक़त उसके अंदर ही छिपी हुई होती है बल्कि हक़ीक़त यह है कि हर चीज़ की हक़ीक़त ही अंदर छिपी हुई होती है। सेहत और बीमारी का राज़ भी इंसान के अंदर ही छिपा हुआ होता है। उसके राज़ को भी ठीक से तभी जाना जा सकता है जबकि उसके अंदर से आने वाली चीज़ को देख लिया जाए।
पुराने ज़माने में हकीम-वैद्य मरीज़ की नाड़ी देखने के साथ-साथ उसके अंदर से निकले मल-मूत्र को भी चेक करते थे। नया ज़माना आया तो काढ़ों के बजाय इंजेक्शन और कैप्सूल चल गए लेकिन पैथोलॉजी में आज भी मरीज़ के मल-मूत्र की जांच की जाती है। जो कुछ इंसान के अंदर से निकलता है, वह बता देता है कि इसके अंदर क्या है ?
शरीर से स्थूल मल निकलता है और मन से सूक्ष्म, जो कि मुंह के रास्ते बाहर निकलता है। इंसान के अंदर से निकलने वाले विचार ही वास्तव में उसका सही परिचय होते हैं।
इंसान जो कुछ बोलता है या जो कुछ लिखता है, उन सबमें उसके अंदर से निकलने वाले विचार होते हैं, उन्हें देखकर ही आप समझ सकते हैं कि यह आदमी कितना ठीक है और कितना ग़लत ?
जब आप किसी ब्लॉगर की पोस्ट पढ़ें तो इसी तरह जागरूक होकर पढ़ें। इसका फ़ायदा आपको यह मिलेगा कि अगर उसके विचारों में किसी भी तरह की कोई गंदगी होगी तो आप उसे स्वीकार नहीं करेंगे। कोई कितना ही प्यारा दोस्त क्यों न हो लेकिन उसकी गंदगी को अपने सिर पर उठाकर कोई नहीं घूमता लेकिन ब्लॉग जगत में यह एक आम बात है कि दोस्त ने क्या कहा है ?
और उसमें कितनी गंदगी भरी हुई है ?
यह देखे बिना ही उसके विचार को तुरंत अपने मन में समेट लेते हैं और उसे दस जगह और परोस आते हैं।
जो ऐसा करता है, वह बड़ा ब्लॉगर नहीं होता।
बड़ा ब्लॉगर वही होता है जो कि कुछ भी अपनाने से पहले उसकी गुणवत्ता और उसकी उपयोगिता को आज़माकर देखता है और सच्चा और अच्छा देखने के बाद ही उसे अपनाता है।
वैद्य और हकीम मानते हैं कि ज़्यादातर बीमारियों के पीछे पेट की गड़बड़ी होती है। अगर पेट को सही कर दिया जाए तो मरीज़ बहुत से मर्ज़ों से मुक्ति पा सकता है।
जिन लोगों ने इंसान के मन को अपने अध्ययन का विषय बनाया है, उन्होंने पाया है कि गुस्सा, जलन और लालच जैसे जज़्बात इंसान की सेहत ख़राब करते हैं। यही वजह है कि जो लोग इन बुरे जज़्बात से बचते हैं, उन लोगों की सेहत आम तौर पर अच्छी होती है।
यह बिल्कुल सादा सी बातें हैं। इनमें कोई हंसी-मज़ाक़ और व्यंग्य नहीं है।
बहरहाल आदमी सीखना चाहे तो तन्हाई में भी सीख सकता है और वह न सीखना चाहे तो कॉलिज और यूनिवर्सिटी में भी नहीं सीख सकता। सीखने का जज़्बा भी इंसान के अंदर ही होता है, बाहर की चीज़ें तो उसे सिर्फ़ रास्ता दिखाती हैं।
बड़ा ब्लॉगर वही है जो हर समय कुछ न कुछ नया सीखता रहता है। उसे हर जगह एक पोस्ट का विषय नज़र आता है। जब वह शौचालय में होता है तो भी वह मनन कर रहा होता है कि वह अपने पाठकों को नया क्या दे सकता है ?
और जब वह बाहर निकलता है तब भी वह कुछ नया देने की कोशिश करता है।
सो जब हम अपने शौचालय से बाहर निकले तो ख़याल आया कि क्यों न अपने पाठकों को हम अपना शौचालय दिखा दें ?
हरा-भरा मंज़र देखकर उनकी भी तबियत हरी-भरी हो जाएगी। गर्मी के मौसम में हरियाली देखकर उन्हें सुकून भी मिलेगा।
यह सोचकर ख़ास आपके लिए हमने कुछ फ़ोटो लिए और अब उन्हें आपके सामने पेश किया जाता है। देखकर बताइये कि आपको हमारे शौचालय की लोकेशन कैसी लगी ?
शौचालय, जो कि पिछवाड़े बना हुआ है. |
पपीते का पेड़ |
लौकी या तोरी की बेल |
अमरुद का पेड़ |
हरे टमाटर से भरी हुई शाख़ |
कुछ कुछ सुर्ख हो चले टमाटर |
पेड़ों के पीछे छिपा हुआ हमारा शौचालय |
आपको हम यह भी बताते चलें कि यहां एक ही छत के नीचे तीन शौचालय बने हुए हैं, जिन्हें हम सिर्फ़ दिन में ही इस्तेमाल करते हैं। रात में वे शौचालय काम में आते हैं जो कि घर के अंदर बने हुए हैं।
बहरहाल बड़े ब्लॉगर्स की अदाएं निराली होती हैं।
अगर आप बड़ा ब्लॉगर बनना चाहते हैं तो आपको भी अपने अंदर इतना निरालापन ज़रूर लाना होगा कि अगर आप अपने शौचालय के बारे में भी बताएं तो इतने लोग उसे भी चाव से पढने आयें कि वह हॉट लिस्ट में पहुंच जाए।
और अधिक फ़ोटो आपको यहाँ मिलेंगे
3 comments:
डॉ. अनवर जमाल साहब जी, आपके लेख से पूर्णत: सहमत हूँ. बाकी फोटो देखने में असमर्थ रहा-फाइल ही नहीं खुली, आपकी फोटो बहुत कुछ कहती है.सिर्फ देखने का नजरिया चाहिए. मैं किसी भी लेख को उसके विषय और लेखक के विचारों को धयान में रखकर पढता हूँ. किसी के नाम, जाती और धर्म के आधार बनाकर लेख छोटी मानसिकता वाले पढ़ते हैं और मन में द्वेषभावना, लालच रखते हैं.सच से मुंह छिपाते हैं. एक चेहरे पर दूसरा चेहरा लगा कर रखते हैं यानी मुखौटा.
डॉ. अनवर जमाल साहब जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.
बनना तो सब बड़ा ही चाहते हैं मगर रास्ते घटिया अपनाते हैं। इसलिए,आप जिस सम्यक् बुद्धि की ओर ईशारा कर रहे हैं,वही एकमात्र रास्ता है। केवल उसकी उपलब्धता से,अन्य प्रयास किए बगैर भी बड़प्पन संभव।
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