Friday, May 27, 2011

‘टिप्पणी का सच जानता है बड़ा ब्लॉगर'

टिप्पणियों के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है लेकिन अपने विद्यार्थियों के लिए आज हम एक ऐसा लेख पेश करेंगे जो हिंदी ब्लॉग जगत को आईना भी दिखाता है और सीखने वालों को बहुत कुछ सिखाता भी है। ज़रूरत बस एक नज़र की है। आईना देखने के लिए भी नज़र चाहिए और उसमें मौजूद ‘तत्व‘ को ग्रहण करने के लिए भी नज़र चाहिए।
जनाब सतीश सक्सेना जी का यह लेख मुझे बेहद पसंद है और इतना ज़्यादा पसंद है कि बिना उनसे औपचारिक अनुमति लिए ही उसे हम यहां पेश कर रहे हैं। यह औपचारिकता तब के लिए छोड़ दी है जबकि वह ख़ुद यहां कमेंट करने आएंगे।
...तो साहिबान, क़द्रदान लीजिए आज आपके सामने पेश है ‘टिप्पणी के बारे में सबसे बड़ा सच‘ 

टिप्पणियां देने की विवशता - सतीश सक्सेना
किसी भी लेख की महत्ता बिना टिप्पणियों के बेकार लगती है ,लगता है किसी वीराने में आ गए हैं ! और टिप्पणिया चाहने के लिए टिप्पणिया देनी बहुत जरूरी हैं ! सो हर लेख के तुरंत बाद ५० अथवा उससे अधिक जगह टिप्पणी करनी होती है तब कहीं २५ -३० टिप्पणियों का जुगाड़ होता हैं !  :-((
अब लम्बा लेख कैसे पढ़ें ..समझ ही नहीं आता ! ऐसे लेख पर टिप्पणी करने के लिए अन्य टिप्पणीकर्ता की प्रतिक्रिया देख कर उससे मिलती जुलती टिप्पणी ठोकना लगता होता है ! चाहे उस बेचारे का बेडा गर्क हो जाये :-)
  • अगर किसी बहुत बेहतरीन लेख का कबाड़ा करना हो तो पहली नकारात्मक टिप्पणी कर दीजिये फिर देखिये उस बेचारे की क्या हालत होती है ! बड़े बड़े मशहूर लोग उसकी कापी करते चले जायेंगे ! 
  • किसी अन्य टिप्पणी कर्ता जिसे आप विद्वान् समझते हों की टिप्पणी की कापी करना अच्छा लगेगा और लोग आपकी टिप्पणी को ऐवें ही नहीं लेंगे !
  •  
और हम जैसे मूढ़ लोग अपने आप पर और अपनी संगत पर हँसेंगे  ...दुआ करता हूँ कि कुछ लेख को ध्यान से पढने वाले भी आ जाएँ  तो इतनी मेहनत करना सार्थक हो ! मेरे जैसे मूढमति, टिप्पणी न करें तो ठीक ही होगा सो आज से टिप्पणी कम करने का प्रयत्न करूंगा , जिससे बदले में टिप्पणी न मिलें  और दुआ मानूंगा कि कम लोग पढ़ने आयें मगर वही आयें जो मन से पढ़ें !
:-))))                                                                            
                             ( यह लेख एक व्यंग्य है )
साभार : http://satish-saxena.blogspot.com/2010/11/blog-post_24.html


17 comments:

शिक्षामित्र said...

अच्छा आलेख है। शायद,टिप्पणी के मायाजाल को सब समझते हैं,पर फिर भी...........

डा० अमर कुमार said...


दुनिया सतीश सेक्सेना जी को ऎंवेंई गुरु थोड़े ही मानती है ।
यदि आप गारँटी लें.. तो, आज से हम भी उनके मुरीद हुये ।

दिनेशराय द्विवेदी said...

लेख के पहले इंडिया टीवी टाइप उद्घोषणा और बाद में यह बताना क्यों जरूरी है कि यह व्यंग्य है।

DR. ANWER JAMAL said...

डा. अमर कुमार जी ! हम तो उनकी गारंटी ले लेंगे लेकिन सवाल यह है कि हमारी गारंटी कौन लेगा ?
हा हा हा
जनाब आजकल तो सब काम वारंटी पर चल रहे हैं और आप जिनके मुरीद होना चाहते हैं, उनके लिए तो वारंटी की भी ज़रूरत नहीं है।
आप आलिम आदमी हैं, आप समझ सकते हैं कि सूफ़ियों में शागिर्द दो तरह के होते हैं।
1. मुरीद
2. मुराद
आप बेशक मुरीद हो जाएं लेकिन हैं आप मुराद।
नक्शबंदिया सिलसिले के ख्वाजा बाक़ी बिल्लाह साहब रहमतुल्लाह अलैहि फ़रमाया करते थे-
‘मा फ़ज़लिया नीम, मा मुरादा नीम‘
अर्थात हम उनमें से हैं जिन पर फ़ज़ल किया गया, हम मुरादों में से हैं।‘

टिप्पणी के लिए शुक्रिया !

DR. ANWER JAMAL said...

@ आदरणीय जनाब वकील साहब ! फ़ोटो से ऊपर के जुमले मेरे हैं और मैंने बड़े ब्लॉगर्स को ऐसा करते पाया, सो कर डाला।

फ़ोटो से नीचे जो भी लिखा है, वह क्यों लिखा है ?, इसके बारे में बताएंगे जनाब सतीश सक्सेना साहब, जिन्होंने कि यह लिखा है।
आपकी आमद के लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार हूं।

सतीश सक्सेना said...

डॉ अनवर जमाल,
यह ब्लॉग जगत की हकीकत दिखाती एक रचना है जिसे व्यंग्य के रूप में लिखा गया है ! खुशकिस्मती है कि आप को यह लेख अच्छा लगा !
"बड़े ब्लोगर" शब्द से मुक्त कर देते तो अच्छा लगेगा !
आभार आपका !

DR. ANWER JAMAL said...

@ जनाब सतीश सक्सेना साहब ! आप हिंदी ब्लॉगिंग के दिलीप कुमार घोषित किए जा चुके हैं, लिहाज़ा ‘बड़ा ब्लॉगर‘ की उपाधि से मुक्त किए जाने की बात करना अब दुरूस्त नहीं है।
शुक्र कीजिए कि हमने सबसे बड़ा ब्लॉगर नहीं लिखा। लेख का शब्द, अर्थ और डिज़ायन सब कुछ उम्दा है। हम ही क्या जो भी इसे पढ़ेगा वही वाह-वाह करेगा क्योंकि आपने इसमें बहुत ही कम शब्दों में बता दिया है ‘टिप्पणी का सच‘।

आपका भी आभार कि इतनी प्यारी रचना हमने ले ली और आपने आपत्ति भी नहीं की।

Udan Tashtari said...

व्यंग्य के नाम से यथार्थ दर्शन..... :)


वैसे कहा तो खरा खरा ही है...न कहते व्यंग्य तो कटाक्ष नाम कहलाता...बात तो वो ही है.

शुभकामनाएँ.

Bharat Bhushan said...

इस लेख को यहाँ लाने और पढ़वाने के लिए शुक्रिया. यह सच है कि टिप्पणियों का सच सभी ब्लॉगर जानते हैं. ऐसा कम होता है जब टिप्पणी आलेख में योगदान देती हो. दो-एक बार ऐसा देखा कि टिप्पणी मूल आलेख के मुकाबिले बेहतर बात कह गई.
ब्लॉगिंग में गंभीर विषय अधिकतर नापसंद किए जाते हैं. अधिकतर टिप्पणियाँ हल्की-फुल्की होती हैं.
टिप्पणियाँ आने दें. पसंद आए तो रखें अन्यथा डिलीट करते जाएँ. मूल आलेख पर समीर जी का सुझाव अच्छा लगा कि टिप्पणियाँ ईमेल से भजने का ऑप्शन रखा जाए.

Rajesh Kumari said...

Sateesh ji ne bahut achcha vyangaatmak lekh likha hai.aur post karne vaale ka bahut shukriya.is lekh ko padhkar hum to yahi kahege ki chaahe tippani ek hi aaye par shbdon aur bhaavo ko samajhne vaale ki aaye.sahi kahte hain kavita ki parakh ek kavi hrday hi kar pata hai.

Khushdeep Sehgal said...

अनवर भाई,
देखा सत्संग में रहने का लाभ...आपकी पोस्ट पर ये टिप्पणियां डबल फिगर से ट्रिपल फिगर पर जल्दी ही पहुंचे, इसी कामना के साथ...

जय हिंद...

Anupama Tripathi said...

ये तो बिलकुल सच का सच है ...
टिपण्णी का सच जानते हुए भी हर ब्लोग्गर को टिपण्णी की आस रहती है ....पर यह सच है की कुछ भी लिख कर किसी को भुलावे में नहीं रखना चाहिए ..!!

DR. ANWER JAMAL said...

@ ख़ुशदीप जी ! टिप्पणी का सदुपयोग करने का शुक्रिया ।

KRATI AARAMBH said...

शत - प्रतिशत सत्य वचन | ये यक़ीनन बहुत गलत है |

Sunil Kumar said...

सच कहने की हिम्मत कैसे हुई आपकी माफ़ कीजिये आप तो बहादुर आदमी है | यह व्यंग्य नहीं है !

एस एम् मासूम said...
This comment has been removed by the author.
एस एम् मासूम said...

यह क्या अधिक टिप्पणी पाने वाले ब्लॉगर का राज़ फाश किया है? २५ टिप्पणी कर के बदले मैं टिप्पणी पाई तो क्या कमाल है. ऐसा लिखो को बिना आप के टिप्पणी किए लोग आप को सराहें. बस अच्छे लेखों पे आप भी टिप्पणी करना ना भूलें.