Thursday, September 22, 2011

क्या बड़ा ब्लॉगर टंकी पर ज़रूर चढता है ?

ऐसी मान्यता क्यों बन गई है कि बड़ा ब्लॉगर वही कहला सकता है जो कि टंकी पर चढ  जाए और ज़ोर ज़ोर  से चिल्लाए-'ब्लॉग वालो, तुमसे मेरी ख़ुशी  देखी नहीं जाती, तुम मुझसे जलते हो, मेरी टिप्पणियों से जलते हो, लो मैं चला/चली।'
यह सीन है तो फ़िल्म शोले का लेकिन दोहराया जाता है हिंदी ब्लॉग जगत में भी और यह दोहराया भी शायद इसीलिए जाता है कि यह सीन पसंद बहुत आता है चाहे शोले में किया जाए या शोले से बाहर।
इस सीन को लिखा तो मुसलमानों ने है लेकिन मुसलमानों से ज़्यादा  इसकी डिमांड उनमें है जो कि पैदा होते ही मुसलमानों को एक समस्या के रूप में देखना शुरू कर देते हैं जबकि वास्तव में वे ख़ुद  ही नई नई समस्याएं खड़ी  करते रहते हैं या खड़ी हुई समस्याओं के झाड  में ख़ुद  ही जाकर अपने सींग फंसा लेते हैं और जब उनके सींग फंस जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि उनके सींग लोहे के तो थे ही नहीं जैसा कि दुनिया को बता रखा था।
अब कैसे तो कह दे और कैसे मान ले कि मैं हार गया ?
अब वह कहता है कि ये महिला ब्लागर हैं न, पुरूष समझकर मुझे अपमानित कर रही हैं। ये मुझे ज़ालिम हाकिम के रूप में दिखाकर मुझे बदनाम करना चाहती हैं।
वह अपनी निजी खुन्नस को बड़ी चालाकी से दो वर्गों के टकराव में बदल देता है और तुरंत ही कुछ पुरूष ब्लॉगर महिला ब्लॉगर्स के खि लाफ  लामबंद भी हो जाते हैं लेकिन यह क्या यहां तो कुछ महिला ब्लॉगर्स भी समर्थन में आ जाती हैं ?
यह क्या खिचड़ी है भाई ?
दोनों जेंडर के लोग कैसे मनाने आ सकते हैं ?

डिज़ायनर ब्लॉगिंग इसी का तो नाम है भाई साहब .
दोनों जेंडर के लोग आते हैं और मनाते हैं।
इन दोनों जेंडर के लोगों को उसने कई स्तर पर जोड  रखा होता है।
कुछ से तो याराना होता है विचारधारा का।
तुम भी आग उगलते हो तो देखो हम भी मौक ा देखकर आग ही उगलते हैं।
तुम्हारे सीने में आग है तो हमारे सीने में भी दूध नहीं लावा ही है।
जो तुम, वो हम।
सो हमारे ब्लॉग पर आते रहा करो।
लेकिन कुछ लोग विपरीत विचारधारा के भी होते हैं इन मनाने वालों में।
ये उसके बाप होते हैं।
यानि कि बाप होते नहीं हैं लेकिन वह बना लेता है। बड़ा  ब्लॉगर वह होता है जिसके बाप एक से ज़्यादा हों।
जब बाप कई होंगे तो मांएं भी कई चाहिएं और जब मां-बाप बहुत से हो गए तो भाई-बहन की तो लाइन लग ही जाएगी।
यह है शानदार ब्लॉगिंग के लिए एक लाजवाब डिज़ायन।
इसके बाद सबसे ज़्यादा  आग बरसाऊ लीडर की जम कर तारीफ  करो और उसके तुरंत बाद किसी ऐसे झाड  में जाकर टक्कर मार दो जिसमें आग लगवानी हो।
समर्थक तुरंत आ जाएंगे वहां आग लगाने और बेचारा झाड  यही सोचता रहेगा कि इससे तो निपट लेता लेकिन इस पूरी फ़ौज से कहां तक लडूं ?
इधर झाड  परेशान खड़ा है और उधर हाईलैंड पर बनी टंकी पर पुरूष ब्लॉगर चढ़ा खड़ा है कि बस अब बहुत हो गया, हमें नहीं लिखना ब्लॉग।
उड़न बिस्तरी जी ने कहा कि 'अच्छा ठीक है बाबा, मत लिखो ब्लॉग, जैसा मन चाहे वैसा करो।'
यह क्या कह दिया ?
यह डायलॉग तो शोले में है ही नहीं, इसने कैसे बोल दिया ?
ब्लॉग जगत के भाई लोगों ने हुल्लड़  पेल दिया।
एक साहब बोले कि आप तो चुप रहते हैं ऐसे मामलों में, आप बोले ही क्यों ?
अब बेचारे उड़न बिस्तरी जी क्या बताएं कि भाई हम पक चुके हैं ये सीन देखकर, थोड़ा नयापन लाने के लिए बोले थे। अब यह कहना अच्छा थोड़े ही लगता कि यह सब नौटंकी चल रही है।
लेकिन उन्हें भी सोचना चाहिए कि कोई नौटंकी दिखा रहा है या कुछ और लेकिन दिखा तो फ़्री में रहा है न। आप उकता रहे हैं तो कम से कम उन्हें देखने दीजिए जिन्हें मज़ा आ रहा है।
मनाने वाले लोग जितने ज्य़ादा होते हैं, वह उतना ही बड़ा  हिंदी ब्लॉगर समझा जाता है। अपना भाव पता करने के लिए ज रूरी है कि बीच में कम से कम एकाध बार टंकी आरोहण ज रूर किया जाए।
लेकिन जो सचमुच बड़ा  ब्लॉगर होता है वह गंभीर होता है। हिंदी ब्लॉगिंग में जैसे जैसे गंभीरता और पुखतगी आती जाएगी, इस तरह की नौटंकियां बंद होती चली जाएंगी।
बहरहाल अब भी अच्छा ही दौर चल रहा है। ज्ञान नहीं मिल रहा है न सही, मज़ा तो आ रहा है न ?
मज़े  के लिए तो आदमी जाने कहां कहां जा चढ़ता  है और मज़े  की उम्मीद हो तो चढ़ा भी लेता है।
हिमालय पर भी आदमी चढ़ा  तो मज़े  के लिए चढ़ा , टंकी पर भी चढ़ता है तो आदमी मज़े  के लिए ही चढ़ता  है।
लेकिन ये सब जगहें चढ ने के लिए ठीक नहीं हैं। यहां चढ़ने  से मज़ा  तो कम आता है और आदमी का तमाशा ज़्यादा  बन जाता है।
एक और जगह है जहां चढ कर मज़ा भी ज़्यादा  आता है और पता भी किसी को नहीं चलता।
लेकिन यह उरूज (बुलंदी) हरेक को नसीब नहीं होता। इसे वही पाता है जो वास्तव में बड़ा ब्लॉगर होता है।

15 comments:

ZEAL said...

मस्त लिखा है। ये छुटके ब्लॉगर भी गजब लिखते हैं। बधाई।

DR. ANWER JAMAL said...

हा हा हा ...
हमें आप न पहचानेंगी तो भला और पहचानेगा !
हम बहरहाल आपको बड़ा ब्लॉगर ही मानते हैं जी।

वाणी गीत said...

हम भी बड़े ब्लॉगर बनना चाह्ते हैं , मगर अपनी हकीकत जानते हैं , एक भी ब्लॉगर समर्थन में चिट्ठी नहीं लिखने वाला है ...इसलिए चुपचाप लिखते ही जाते हैं , जैसा भी आता है !

DR. ANWER JAMAL said...

वाणी जी ! बड़ा तो वास्तव में सत्य होता है।
बड़ा ब्लॉगर वह है जो मन वचन और कर्म से सत्य का पालन करता है।
ब्लॉगिंग का मकसद भी सत्य की साक्षी देना ही होना चाहिए।
परमेश्वर साक्षी है, ऐसा मानकर जो ब्लॉगिंग की जाती है, नर-नारी और जग के लिए कल्याण लाती है, ब्लॉगर को सिद्ध बनाती है।
आपने अच्छा किया कि एक ब्लॉग अपने कमेंट्‌स के लिए बना लिया।

टिप्पणी संसार
पोस्ट की तरह कमेंट्‌स में भी हमारे विचार ही होते हैं, इन्हें भी ध्यान से सहेजकर रखने की जरूरत है।
इस काम के लिए हमने भी एक ब्लॉग बना रखा है.

शुभकामनाएं एवं बधाईयाँ .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत रोचक गाथा है इस पोस्ट में तो!

Satish Saxena said...

:-))

Rajesh Kumari said...

कंही पे निगाहें कंही पे निशाना .........छोड़ दो आदत पुरानी पतंगों से पेंच लड़ाने की कट के गर्दन किसी की कहकहे लगाने की !!!!

Bharat Bhushan said...

कोई कुछ भी कहे जमाल जी, दिव्या जी और अन्य अपनी-अपनी बालॉगरधर्मिता को मिल कर निभा रहे हैं. यह बड़ी बात है.

vandana gupta said...

जय हो जय हो जय हो………हम तो छोटे ही भले कौन जंजाल मोल ले…………आपने तो वैसे ही डरा दिया …………एक से तो निपट भी लिया जाये सबसे कैसे निपटा जाये……………ना बाबा ना नही बनना बडा छोटे ही बढिया हैं।

कनिष्क कश्यप said...

कौन है बड़ा ब्लॉगर? .. मेरी नज़र में तो दो तिन ही लोग भारतीय मीडिया में ब्लॉगर कहलाते हैं , अडवाणी जी , अमिताभ बच्चन, अमर सिंह .इत्यादि .. हे हे हे .. बाकि सब मुफ्त के ब्लॉग बना बकैती करने वाले ही हैं.

Mahesh Barmate "Maahi" said...

हा हा हा!

ब्लॉगर न हुआ कोई जी का जंजाल हो गया।
अजी !
हम पहले एक सच्चे इंसान तो बनें फिर एक ब्लॉगर बना जाएगा और फिर अगर कुछ रह गया तो आस पास वाले बड़ा ब्लॉगर भी बना ही देंगे...

वैसे भी बड़ा हुआ सो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर...

आगे की लाइन आपको याद होगी शायद... :P ;)

(अनवर जी यह जो भी लिखा है मैंने, आपको या किसी भी ब्लॉगर को सोच के नहीं लिखा है... बस उसके लिए लिखा है जो ये सीन बार बार दोहराता है...)

girish pankaj said...

sundar.....pyara...mazedaar....badhai...

Udan Tashtari said...

उड़न बिस्तरी की जगह उड़न तश्तरी भी लिखते तो भी चल जाता.... :)

पूनम श्रीवास्तव said...

aadarniy sir
sarvpratham to aapko mera hardik naman jo aap mere blog par aaye .sach! bahut hi achha lagata haijab aap jaise vidhwan log apne blog par dikhte hain.is housala afjai ke liye bahut bahut dhanyvaad.
sabki likhne ki apni apni xhamta hoti hai lekin jo imandaari ke saath apni bhavnao ko sahi dhang se vyakt karta hai sahi mayane me vah blogar banne ka adhikari hota hai.
bada blogar banne ki tamanna nahi hai bas itna chahti hun ki kuchh aur behatar seekh sakun.
abhi to lekhni ki shuruvaat hi manti hun.
aapki post bahut bahut hi achhi lagi.
sadar naman ke saath
poonam

कुमार राधारमण said...

अपना फंडा क्लियर है। ब्लॉगिंग में कब तक और कैसे रहना है,यह सिर्फ़ अपन तय करेंगे,कोई और नहीं।