आदमी स्वभाव से महत्वाकांक्षी और जल्दबाज़ होता है । वह समाज में बड़े स्तर पर सकारात्मक बदलाव का इच्छुक होता है। वह सुनहरे भविष्य के सपने अपनी पसंद के रंग की ऐनक से देखता है और जब उसी रंग में रंगा हुआ कोई आदमी या दल उसे रंगीन सपने दिखाता है तो उसे लगता है कि वह अवसर आ चुका है जिसका उसे इंतज़ार था । वह तुरंत ऐलान कर देता है कि 'बस या तो अभी वर्ना कभी नहीं ।'
ऐसा आदमी सच को नहीं जानता और जब उसकी कल्पनाएं हक़ीक़त नहीं बनतीं तो उसका अन्तर्मन हा हा कार कर उठता है । तब भी वह अपनी जल्दबाज़ी को दोष नहीं देता और न ही अपने मार्गदर्शक व्यक्ति और दल की ख़ुदग़र्ज़ी पर ही नज़र डालता है । इसके बजाय कभी तो वह सत्ता पर क़ाबिज़ पार्टी को कोसता है , कभी समाज के बुद्धिजीवियों की समझ पर अफ़सोस जताता है और कभी मीडियाकर्मियों पर बिक जाने या डर जाने का इल्ज़ाम लगाता है । अपनी आशाओं की टूटी किरचियाँ लेकर वह मन ही मन सोचता रहता है कि आख़िर लोग सकारात्मक तब्दीली के लिए अपना जी जान लड़ाने से अपना जी क्यों चुरा रहे हैं ?
क्राँति तो बस दरवाज़े पर ही खड़ी थी लेकिन लोग हैं कि क्राँतिकारी जी महाराज की ही खिल्ली उड़ा रहे हैं ?
लानत है ऐसे लोगों पर ।
मैंने साल भर तक इन्हें इतनी अच्छी अच्छी बातें सुनाईं लेकिन ये फिर भी राह पर न आए , तो आख़िर हमारे नेता और हम लोग किसके लिए लड़ रहे हैं ?
ऐसे विचार आदमी के मन में आते हैं । एक साधारण ब्लॉगर के मन में भी ऐसे विचार आते हैं और तब वह अन्तर्विरोध में जीने लगता है । जिसकी वजह से उसका मन ब्लॉगिंग से विरक्त हो जाता है । एक छोटे ब्लॉगर में ये लक्षण पाया जाना सामान्य बात है ।
बड़ा ब्लॉगर वह है जो बहुत पहले ही इस मंजिल को पार कर चुका होता है। वह जान चुका होता है कि तब्दीलियाँ हमेशा धीरे धीरे आती हैं और वह यह भी जान लेता है कि जैसे उसे एक रंग पसंद है वैसे ही दूसरे लोगों को भी कोई न कोई रंग पसंद है और उनमें से हरेक आदमी एक ही सुनहरे सपने को अपनी पसंद के रंग में ढल कर हक़ीक़त बनते देखना चाहते हैं । सुनहरा सपना लगातार साकार होता जा रहा है बिना किसी नेता के ही लेकिन उन्हें उसकी कोई खूबी नज़र नहीं आती। बड़ा ब्लॉगर जानता है कि समाज में सकारात्मक परिवर्तन का सीधा संबंध लोगों की सोच से है । लोगों की सोच जैसी और जितनी बदलती जाएगी , समाज में भी वैसी और उतनी ही तब्दीली आती चली जाएगी और जब समाज के ज़्यादातर लोगों में सत्य और न्याय की चेतना का विकास अपने टॉप पर पहुँच जाएगा तो समाज में वह बड़ी तब्दीली आ जाएगी जो कि वाँछित है। यह हज़ार पाँच सौ लोगों के बल पर नहीं आएगी और न ही दो चार साल में आ जाएगी । एक आदमी के बल पर एकाध सत्याग्रह से तो बिल्कुल नहीं आएगी और बुज़दिल नेता और ख़ुदग़र्ज़ साथियों के कारण तो इस तब्दीली की प्रक्रिया ही मंद पड़ जाएगी और वे तो इसे रिवर्स कर देने के 'हिडेन एजेंडे' पर चल रहे हैं।
बड़ा ब्लॉगर इस सच्चाई को जानता है इसीलिए वह अपने कर्म पर ध्यान देता है जिसके ज़रिए से समाज में तब्दीली आनी है।
छोटा ब्लॉगर सोचता है कि ब्लॉगिंग छोड़कर ज़मीनी स्तर पर कुछ काम किया जाए जबकि बड़ा ब्लॉगर ब्लॉगिंग, ज़मीनी और आसमानी सब काम एक साथ करता है । वह अपने मिशन से ब्लॉगर्स को इंट्रोड्यूस कराता है । ब्लॉगिंग का ज्ञान समाज में बाँटकर अपने समर्थन और लोकप्रियता का दायरा बढ़ाता है और इस संपर्क में प्राप्त अनुभवों को वह ब्लॉग और अख़बार , दोनों जगह शेयर करता है । इस तरह वह ज्ञान अर्जन और ज्ञान वितरण की cyclic process के ज़रिए समाज में सकारात्मक तब्दीली लाने में अपने हिस्से का योगदान करता रहता है । इसके नतीजे में उसकी लोकप्रियता बढ़ती चली जाती है । जैसे जैसे उसका कद बढ़ता जाता है वैसे वैसे वह बड़े से और ज्यादा बड़ा ब्लॉगर बनता चला जाता है।
हम अपने आप को अपनी क्षमताओं के आधार पर आँकते हैं जबकि लोग हमें हमारे द्वारा किए गए कामों के आधार पर आँकते हैं ।
अच्छी सोच रखना अच्छी बात है लेकिन उसे पूरा करने के लिए हक़ीक़त जानना बहुत ज़रूरी है और हक़ीक़त यह है कि बड़ी तब्दीलियाँ बड़े धैर्य वाले लोगों की बड़ी मेहनत से आती है । जो खोखले दावे करता है और झूठे नारे लगाता है, उससे कुछ खास हो नहीं पाता सिवाय ऊँची छलाँग लगाने के । समाज के लिए उसका 'योग'-दान बस यही होता है ।
7 comments:
great
बड़ा ब्लागर बनने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है सही कहा आपने, छोटे ब्लागर को अवश्य पढ़नी चाहिए यह पोस्ट
अनवर साहब एक बेहतरीन लेख़ लिखा है. विचार सभी को करना चाहिए
@ सलीम भाई !
@ सुनील साहब !
@ जनाब मासूम साहब !
@ आदरणीय मयंक जी ! आपका शुक्रिया ।
अनवर भाई,
शुक्रिया आपको नहीं, हम सबको आपका करना चाहिए, ऐसा बेहतरीन पढ़ाने के लिए...
सूरज के प्रकाश की बात हर कोई करता है, लेकिन ये कोई नहीं सोचता कि सूरज सबको रौशन करने के लिए खुद को किस तरह जलाता है...हर पल कई हाइड्रोजन बम फूटते रहते हैं वहां...और यही करते करते एक दिन सूरज खुद को खत्म कर लेगा...
जय हिंद...
बहुत सही लिखा है...
हंसी के फव्वारे
बेहतरीन लेख़ लिखा है....अनवर जी
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