Tuesday, April 26, 2011

एक बड़ा ब्लॉगर शौच कैसे करता है ? Charity begins from toilet.


(पिछले सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए , गतांक से आगे )
1- अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging
2- कैसा होता है एक बड़े ब्लॉगर का वैवाहिक जीवन ? Family Life

3- हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि ‘उसका सम्मान उसके गन्ने से है।‘ Ganna
‘मेरा सम्मान मेरे गन्ने से है‘
यह क्यों कहा गया है ?
क्या इसलिए कि गन्ना बड़ा है और कद्दू-केला और बैंगन-खीरा छोटे हैं ?
क्या फ़सलों में भी ब्लॉगर्स की तरह छोटे-बड़े का भेदभाव चलता है ?
हम पर्चा पढ़ते हुए अलग अलग कोण से सोच ही रहे थे कि बात साफ़ हो गई। दरअस्ल शुगर मिल का मक़सद गन्ने की उम्दा नस्ल को ज़्यादा से ज़्यादा पैदा करने के लिए किसानों को प्रेरणा देना था। पर्चा शुगर मिल की तरफ़ से छपा था तो लिख दिया कि किसान का सम्मान उसके गन्ने से है। आलू-टमाटर ख़रीदने वाला लिखवाता कि किसान का सम्मान आलू-टमाटर से है। दूध की डेयरी वाला लिखवाता कि किसान का सम्मान उसके दूध से है और पौल्ट्री फ़ार्म वाला लिखवाता कि आपका सम्मान आपके अंडों से है। गन्ने से लेकर अंडों तक जो भी उत्पादन है वह अपने उत्पादनकर्ता का सम्मान बढ़ाता है। इस पर्चे का सार यही है। एक किसान के लिए जो हैसियत गन्ने की है , एक ब्लॉगर के लिए वही हैसियत उसकी पोस्ट्स की है। किसान बीज बोकर गन्ना उगाता है जबकि ब्लॉगर शब्दों के बीज बोकर पोस्ट की खेती करता है। किसान ओल्ड मॉडल का ब्लॉगर है जबकि ब्लॉगर नये स्टाइल का किसान है। अच्छा गन्ना किसान को सम्मान दिलाता है तो अच्छी पोस्ट ब्लॉगर को सम्मान दिलाती है।
बात अब बिल्कुल आईने की तरह साफ़ हो चुकी थी।
हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि हरेक ब्लॉगर का सम्मान उसके गन्ने अर्थात उसकी पोस्ट्स की गुणवत्ता के समानुपाती होता है। सम्मान पाने का जज़्बा ही उसे अच्छी से अच्छी पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित करता है। ऐसे में अगर कम अच्छी पोस्ट लिखने वाले को सम्मानित कर दिया जाए तो उन ब्लॉगर्स का हौसला पस्त हो जाएगा जो तरह तरह के कष्ट झेलकर हिंदी ब्लॉग जगत को बेहतरीन पोस्ट दे रहे हैं। उन्हें इसलिए नज़रअंदाज़ कर देना ठीक नहीं है कि वे गुटबाज़ नहीं हैं या वे ईनामदान देने वालों को वाहवाही भरी टिप्पणियां नहीं दे पाते। यह कोई जुर्म नहीं है कि इसके लिए उन्हें ईनाम से ही वंचित कर दिया जाए।

चलिए एक पहेली तो हल हुई। दिमाग़ हल्का हुआ तो पेट ने भी हल्का होने की ख्वाहिश ज़ाहिर की। लिहाज़ा हम अपने किचन गार्डन की तरफ़ चल दिए। एक शौचालय यहां भी बना हुआ है। यहां पूरी तरह प्राइवेसी है। दरअस्ल हम बचपन से ही योगी स्वभाव के आदमी हैं।
योग की सबसे अच्छी शिक्षक ‘मां‘ होती है। योग में सबसे पहले शौच और आसन की सिद्धि करनी अनिवार्य है। अगर मनुष्य यम-नियम का पाबंद नहीं है, उसका अंतःकरण पवित्र नहीं है, वह धैर्यपूर्वक एक आसन में स्थिर नहीं हो सकता तो उसे योग की सिद्धि कभी हो ही नहीं सकती। वह मां ही तो है जो बच्चे को सबसे पहले पॉटी करना सिखाती है, उसे पॉटी के लिए बैठना सिखाती है, उसे पवित्र रहना सिखाती है। योग की प्राथमिक शिक्षा यहीं से शुरू हो जाती है। हरेक इंसान का पहला गुरू उसकी मां होती है। इंसान बड़ा होता है तो उसे अपना अभ्यास भी बढ़ा देना चाहिए। अब उसे कोशिश करनी चाहिए कि शरीर की तरह उसके मन में भी गंदे विचार जमा न होने पाएं। लेकिन इंसान अपने मन को निर्मल बनाने पर ध्यान ही नहीं देता। हम जब भी शौच के लिए जाएं तभी हम अपने मन को भी बुरे विचारों से पाक करने की कोशिश करें। इस तरह एक ही समय में हमें दो लाभ हो सकते हैं। इस समय शरीर खुद को साफ़ करने में जितना समय लेता है, उतने समय में हम कोई और काम तो कर ही नहीं सकते। लिहाज़ा उतने समय में हमें अपने मन को ही टटोल लेना चाहिए कि हमारे मन में कोई बुरा विचार तो नहीं आ गया है। हम नाहक़ किसी को सता तो नहीं रहे हैं ?
किसी का कोई हक़ तो हमने नहीं मार लिया है ?    
अगर हम ढंग से शौच करना ही सीख लें तो हमारी मां और बहनों की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी, मां अपने घर में और बहनें अपनी ससुराल में खुश ही रहेंगी। हमें शौच करना भी आज तक ढंग से नहीं आया इसीलिए आज मां अपने घर में ही उपेक्षित है और बहनें अपनी ससुराल में भाई की राह तक रही हैं और कभी वे मायके आ भी जाती हैं तो उन्हें यही अहसास बार बार दिलाया जाता है कि ब्याह के बाद अब तेरा यहां कुछ नहीं है। यह एक बुराई है जो हर घर में आम है। कमज़ोर का हक़ मारकर कोई समाज कभी खुशहाल नहीं हो सकता। लिहाज़ा हम भी आज तक खुशहाल न हो पाए। आज हमारे समाज में कन्या को गर्भ में ही मार दिया जाता है और जिन्हें मार नहीं पाते तो उनकी ज़िंदगी मरने से बदतर कर दी जाती है।
बदन की पाकी के साथ दिल को भी पाक करना चाहिए। जितनी देर में हमने किचन गार्डन पार किया उतनी ही देर में यह सब ख़याल तेज़ी से आकर चले गए। हम शौचालय में दाखि़ल होकर ‘शौचासन‘ में बैठ गए। यह आसन मन को बड़ा प्रफुल्लित करता है। इसे बच्चे से लेकर बूढ़ा तक हरेक कर सकता है, यहां तक कि किसी भी रोग का रोगी और गर्भवती स्त्रियां भी निःशंक होकर इस आसन को कर सकती हैं।
इस आसन के प्रमुख लाभ यह हैं कि इससे शरीर का मल निष्कासित होता है। एकाग्रता सहज उपलब्ध हो जाती है। एकाग्रता की सिद्धि होते ही प्राचीन स्मृतियां प्रकट हो जाती हैं या फिर अगर आप किसी समस्या का समाधान ढूंढ रहे हैं तो आपको उस समस्या का समाधान या तो इसी आसन में मिल जाएगा वर्ना तो इससे फ़ारिग़ होते ही मिल जाएगा।
आर्किमिडीज़ के बारे में मशहूर है कि जैसे ही वह नहाने के लिए टब में बैठा तो उसे ‘उत्प्लावन का सिद्धांत‘ सुझाई दिया। यह भी शौचासन का ही कमाल है क्योंकि वह टब में बैठने से पहले शौच करके ही फ़ारिग़ हुआ था। बहरहाल जो जिस मैदान का माहिर है, उसी मैदान की बातें उस पर खुलती हैं। हम भी इस आसन में बैठे तो हम अचानक ही ‘हो हो‘ करके हंसने लगे और हम जितना हंसते थे, उसकी वजह से हमारे पेट पर उतना ही ज़्यादा दबाव पड़ता था। जिससे समय की बचत हो रही थी और काम फ़ास्ट हो रहा था। हम जानबूझकर नहीं हंस रहे थे बल्कि हंसी हमें खुद ही आकर चिपट गई थी।
एक बड़ा ब्लॉगर हर समय ब्लॉग और ब्लॉगर्स के बारे में ही सोचता रहता है। जाने कैसे हमें डा. डंडा लखनवी का ख़याल आ गया। जब उन्होंने पहली बार मेरे ब्लॉग ‘इस्लाम धर्म‘ पर बेमेल टिप्पणी तो मुझे एक चिढ़ सी पैदा हुई। वह हमारी पोस्ट पर अपनी पोस्ट का बड़ा प्रचार कर गए थे। उनकी यह टिप्पणी बिल्कुल बेजा थी। फिर हमने देखा कि उनका नाम तो और भी ज़्यादा बेमेल है। हम बचपन से ही अपने वालिद साहब और अपने उस्तादों के डंडे खाते आए हैं। अब जाकर उनसे मुक्ति मिली थी कि ये साहब फिर से डंडे की याद दिलाने चले आए।
क्या इन साहब को कोई और नाम नहीं मिला था रखने के लिए ?
बहरहाल हमारे पल्ले नहीं पड़ा कि उन्होंने क्या सोचकर यह नाम रखा ?
बस आज मन में दबे हुए इसी सवाल को हल होना था। अचानक हमारे दिल पर यह इन्कशाफ़ हुआ कि उन्होंने अपना नाम डंडा क्या सोचकर रखा ?
और यह भी संभव है कि उन्हें अपना नाम ‘डंडा‘ रखने का विचार भी शौचालय में ही आया हो।
हम बेफ़िक्री से हंसते रहे, हमें पता था कि अंदर की आवाज़ को सुनने वाला यहां कोई भी नहीं है। आदमी जब तन्हा होता है तो वह खुद से मिलता है। जब वह खुद से मिलता है तभी वह जान पाता है कि वास्तव में वह क्या है ?
शौचालय में शौचासन के ज़रिये आदमी को आत्मसाक्षात्कार होता है लेकिन दुख की बात है कि वह उस समय जागरूक नहीं होता।
जो आदमी जागरूक होकर शौच तक नहीं कर सकते वे ब्लॉग पर भी अपना शौच साथ ही ले आते हैं। यहां वे अपने मन की गंदगी के ढेर लगा देते हैं। जिन्होंने अपनी सगी बहनों को अपने बाप की जायदाद में हिस्सा नहीं दिया, वे पराये पेट से पैदा हिंदी ब्लॉगर्स को उनका जायज़ हक़ भला कैसे दे पाएंगे ?
अपने दिलो-दिमाग़ में जो गंदगी के ढेर उठाए फिर रहे हैं, वे चाहते हैं कि उन्हें सम्मानित हिंदी ब्लॉगर्स अपने सिरों पर उठा लें।
उन्हें उठाएंगे उन्हीं जैसे ब्लॉगर्स, हम भला बेईमानों को अपने सिरों पर क्यों बिठाएंगे।
ज़्यादा हुआ तो हम इन्हें शौचालय में तो बिठा सकते हैं कि पहले ढंग से ‘पॉटी‘ करना सीख लीजिए, ढंग के ब्लॉगर्स से सम्मान पाने की बात बाद में सोचना और तब ही तुम किसी का सम्मान करना सीख पाओगे। फ़िलहाल तो तुम सम्मान के बजाय राजनीति कर रहे हो और राजनीति भी गंदी कर रहे हो।
बहरहाल जब हम फ़ारिग़ होकर बाहर निकले तो एक पोस्ट का मसाला तैयार हो चुका था। हमारी यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स के सामने अब यह हक़ीक़त पूरी तरह आ चुकी है कि एक बड़ा ब्लॉगर शौच कैसे करता है ?
क्या शौच करने का इससे बेहतर कोई और तरीक़ा मुमकिन है ?

13 comments:

रमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीक said...

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डॉ. अनवर जमाल जी, आप अपने कितने ब्लोगों में "सिरफिरा"को टीम सदस्य के रूप में शामिल कर सकते है.लेकिन एक शर्त है रात को रात कहूँगा और दिन को दिन कहूँगा. आपकी तारीफ करने योग्य बात तारीफ भी करूँगा और गलत बातों पर बहस भी करते हुए आलोचनात्मक टिप्पणी भी करूँगा.दोस्तों की सूची में न रख सकों तो पागल "सिरफिरा" को दुश्मन की सूची में ही रख लो.वैसे कहा जाता है कि- मूर्ख दोस्त की वजय समझदार दुश्मन होना ज्यादा अच्छा होता है."सिरफिरा" समझदार तो हैं नहीं,अब मर्जी आपकी है.

Dinesh pareek said...

Ati UTtam apne sahi kaha isi se hi 1 bloger ban sakta hai ati sundar
app se meri 1 sikhayt bhi hai ki app abhi tak mere blog me samlit nahi huwe hai jo mere liye dukh ki bat hai

Dinesh pareek said...

Ati UTtam apne sahi kaha isi se hi 1 bloger ban sakta hai ati sundar
app se meri 1 sikhayt bhi hai ki app abhi tak mere blog me samlit nahi huwe hai jo mere liye dukh ki bat hai

Neelam said...

Anwer ji..koun nahi ban na chaahega bada blogger...Kash main bhi ban paati...magar meri gunvatta main jaanti hoon isliye abhi seekh rahi hoon, waise Anwer ji aapne ganne shabd ka istemaal post [poem] [lekh]ke sath kiya hai..wah kya kahen...lekin sach kaha aapne ,,jaise ganna agar meetha ho to khaane ka maja aata hai..usi tarah agar post achhi ho to padhne ka maja aa jata hai.
ab aate hain aapki dusri baat par...Maa baacche ko potee karna sikhaati hai..sahi hai...lekin wakai apke dimaag ki daad deni hogi...ki potee karte samay hum koi aur kaam to kar nahi sakte to kyun naa apne mann ke burte vicharon ko paak karne ki koshish karen.
me: kanya hatya ,bhrun hatya, ye aise apradh hai jinke liye koi muaafi nahi kisi bhi dharm main, magar fir bhi ye apradh ho rahe hain aur hote rahenge.
हम बेफ़िक्री से हंसते रहे, हमें पता था कि अंदर की आवाज़ को सुनने वाला यहां कोई भी नहीं है। आदमी जब तन्हा होता है तो वह खुद से मिलता है। जब वह खुद से मिलता है तभी वह जान पाता है कि वास्तव में वह क्या है ?
शौचालय में शौचासन के ज़रिये आदमी को आत्मसाक्षात्कार होता है लेकिन दुख की बात है कि वह उस समय जागरूक नहीं होता।
Anwer ji ye ek satya hai... hum iss satya se sakshatkaar to karte hain magar iss satya ko maan nahi paate.

Aapki ye post waakai bahut jankaari dene waala ras liye hue hai..bas jaaruraat hai to iss gaanne ko khaane waale ko meethas aur quality kya hoti hai ..ye maloom hona chaahiye.
[Neelam]

Neelam said...

Hamari Vani ji...
aap kisi ki post ya comment ko delete karke kab tak jhooth sach ke fark se palla jhad sakte hain..aaap sach ko sweekaarne ki himmat dikhayiye..phir dekhiye sach kitna khoobsurat lagega..aapko thodi dikkat to jarur hogi magar result bahut sukhad milega.
[Wid Regards..Neelam]

Mahesh Barmate "Maahi" said...

Sahi kahaa aapne Anwar ji..

Shauchalay... ye wahi jagah hai jahaan mere dimag me naye naye khayal aate hain.. or fir nahane ke baad main un khayalon pr vichar karke kavitaayen likh leta hoon...

or ye bahut dukh ki baat hai ki Hamariwani ne aapki post delete kar di... shayad unme sach sunne ya padhne ki takat na rahi... insan ke bhesh me wo or hi kuch hain jo sach ke samne tikne layak bhi nahi ...

DR. ANWER JAMAL said...

भाई रमेश जैन जी ! मैं आप जैसे लोगों को अपने ब्लॉग्स पर अभी तो केवल 100 की संख्या में ही जोड़ सकता हूँ । जो लोग जुड़ते हैं मेरी तरफ से उन पर कोई पाबंदी नहीं होती। उनकी मर्जी है वे जो चाहें वह लिखें । उनके जी में आए तो मेरे मंच से मेरा ही विरोध करें । मैं अपने साथ जुड़ने वालों की नीयत, चरित्र और उनकी विचारधारा कुछ नहीं देखता । हमारा मानना है कि अगर हम अच्छे होंगे तो जो कोई भी हमारे पास बैठेगा वह भी अच्छा बन जाएगा और अगर वह हमसे ज्यादा अच्छा हुआ तो उसके साथ रहकर हम और ज्यादा अच्छे बन जाएँगे ।
आपका स्वागत है !

DR. ANWER JAMAL said...

@ महेश जी ! आपने अपने बारे में जो बात बताई है उसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि आप भी एक बड़े ब्लॉगर हैं।

DR. ANWER JAMAL said...

@ नीलम जी ! आपने लेख को ध्यान से पढ़ा और सराहा । इसके लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।
आपने हमारी वाणी को सही चेताया ।

@ महेश जी ! बुरे लोगों की बुराई पर हमारी वाणी पर्दा नहीं डाल सकती क्योंकि दूसरे एग्रीगेटर हमारी पोस्ट दिखा रहे हैं ।
शुक्रिया ।

Khalid meer said...

Anwar Sahab.As Salam
Kafi Dino se soch raha tha . Aap ke blogs par kuchh likhoon. Aapki " Maa " Blog to jabardast thi. Kafi kuchh "Shouch" bhi achha hai aapka ishara umda hai zahin logo ko hi samjh aayega.

Ayaz ahmad said...

सुंदर पोस्ट

Unknown said...

abhi poora maamlaa samajh nahin paaya ......

DR. ANWER JAMAL said...

@ अलबेला जी ! पूरा मामला यह है कि दो अदद ब्लॉगर्स ने बिना मिले पहले तो दो किताबें लिख डालीं और फिर मिलकर अपने गुट के ब्लॉगर्स के गले में गमछा लटकाने का प्रोग्राम तय कर लिया। यह पूरी तरह एक गुटीय ब्लॉगर मीट है जिसे इस तरह प्रचारित किया जा रहा है जैसे कि इसका संबंध हिंदी ब्लॉगिंग के व्यापक हितों से हो। जिन लोगों का ब्लागस्पाट पर ब्लॉग नहीं है, उन्हें ये लोग सम्मानित ही नहीं कर रहे हैं।
क्या दूसरी वेबसाइट पर हिंदी ब्लॉगिंग के लिए कुछ भी रचनात्मक नहीं किया जा रहा है ?
इनकी माफ़ियागिरी को बेनक़ाब करने के लिए ही मैं यह सीरीज़ लिख रहा हूं।
आप आए बहार आई।
शुक्रिया ।