(पिछले सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए , गतांक से आगे )
1- अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging
2- कैसा होता है एक बड़े ब्लॉगर का वैवाहिक जीवन ? Family Life
आदमी की हक़ीक़त उसकी औरत ही जानती है और आदमी को भी अपनी हक़ीक़त तभी पता चलती है जबकि वह अपनी औरत का सामना करता है। औरत की ज़बान ही नहीं बल्कि उसकी अक्ल भी तेज़ चलती है। वह बदन से ज़रूर कमज़ोर होती है लेकिन फिर भी अपने मर्द पर वह भारी पड़ती है। बदन से भी उसे कमज़ोर रखा है उस बनाने वाले ने तो यह मर्दों पर उस मालिक का एक बड़ा अहसान है। अगर वह बदन से कमज़ोर न होती तो आज हरेक घर में कुश्ती चल रही होती और मर्द अपने हाथ-पैर और मुंह तुड़ाए बैठा होता। मालिक ने औरत को एक चीज़ में कम रखा तो उसे दूसरी चीज़ में बढ़ा दिया, उसे मां बना दिया, उसके दिल में प्यार का सागर रख दिया और यह सच है कि प्यार की दौलत के सामने बदन की ताक़त का दर्जा कम है। मालिक कम चीज़ लेता है तो ज़्यादा चीज़ देता है, हमेशा उसका उसूल यही है। मर्द इस राज़ को समझता तो अपनी ताक़त से वह औरत को फ़ायदा पहुंचाता और प्यार का जो ख़ज़ाना उसके पास है, उससे वह फ़ायदा उठाता। बहुत सी किताबें पढ़कर और नेक वलियों की सोहबत में बैठकर हमने यही जाना है। आदमी के लिए उसकी शरीके-हयात से अच्छा दोस्त, हमदर्द, मददगार और राज़दार दूसरा कोई होता ही नहीं। जब हम उलझन में होते हैं तो हम अपनी ख़ानम से ही काउंसिलिंग करते हैं और अल्लाह का शुक्र है कि उनकी सलाह सही होती है और काम करती है।
‘हिंदी ब्लॉगर्स सम्मेलन‘ के लिए आए निंमत्रण के बारे में भी उन्होंने जो कुछ कहा, सही कहा। हमने जान लिया कि जो भी हिंदी ब्लॉगर ख़ानदानी शरीफ़ होगा और गुटबाज़ी से दूर होगा वह तो इस सम्मेलन में जाएगा ही नहीं। हां, जिन्हें कुछ बेचना है या जिन्हें कुछ ख़रीदना है या अपने अच्छे ख़ासे-कुंवारेपन में चेंज दरकार है, वे ज़रूर इस हाट में ठाठ-बाट से पहुंचेगे और नहीं भी पहुंच पाएंगे तो इंटरनेट से ही ‘जलवों‘ का नज़ारा कर लेंगे। अभी तो शुरूआत है लेकिन आने वाले ‘सम्मान समारोहों‘ में हिंदी ब्लॉगर्स के लिए ‘चीयर लीडर्स‘ की तर्ज़ पर कुछ ‘चीयर ब्लॉगर्स‘ का भी इंतज़ाम कर लिया जाए तो हिंदी ब्लॉगिंग समय के साथ क़दम मिलाकर चलने लगेगी।
हम यह सब सोच ही रहे थे कि तभी कॉल बेल बजी। किसान और मज़दूर का दरवाज़ा आज भी हातिम ताई के दिल की तरह हमेशा खुला ही रहता है। हमने खुले-खुलाए दरवाज़े के पार ‘शुगर मिल‘ की तरफ़ से गन्ने की पर्ची लाने वाले हरकारे को देखा। पास जाकर उससे पर्ची ली तो उसने एक पम्फ़लैट भी हमारे हाथ में थमा दिया। जिसमें गन्ने की अच्छी नस्लों के बीज के बारे में जानकारी दे रखी थी और सबसे ऊपर मोटे मोटे हरफ़ों में लिखा हुआ था कि
‘मेरा सम्मान मेरे गन्ने से है‘
हम ताज्जुब में पड़ गए कि हमारे खेत में तो केला, लौकी और कद्दू भी होता है, बैंगन और खीरा भी होता है और जब हम इन्हें आढ़त में लेकर जाते हैं तो हरेक आढ़ती हमें सम्मान देता है और जब उससे रक़म लेकर वापस आते हैं तो जो भी मिलता है, वह भी हमें सम्मान देता है। इसके बावजूद आज तक किसी ने न कहा कि मेरा सम्मान मेरे खीरे-बैंगन से है या मेरा सम्मान मेरे केले से है।
हरकारा तो हमारे हाथ में पर्ची और पर्चा थमाकर चला गया और हम अपनी चैखट पर खड़े यही सोचते रहे कि आखि़र यह क्यों कहा गया कि ‘मेरा सम्मान मेरे गन्ने से है।‘
सोचते-सोचते अचानक हम पर राज़ खुला कि ऐसा क्यों कहा गया है ?
हक़ीक़त यह है कि हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि ‘उसका सम्मान उसके गन्ने से है।‘ (...जारी)
1- अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो क्या उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए ? Hindi Blogging
2- कैसा होता है एक बड़े ब्लॉगर का वैवाहिक जीवन ? Family Life
आदमी की हक़ीक़त उसकी औरत ही जानती है और आदमी को भी अपनी हक़ीक़त तभी पता चलती है जबकि वह अपनी औरत का सामना करता है। औरत की ज़बान ही नहीं बल्कि उसकी अक्ल भी तेज़ चलती है। वह बदन से ज़रूर कमज़ोर होती है लेकिन फिर भी अपने मर्द पर वह भारी पड़ती है। बदन से भी उसे कमज़ोर रखा है उस बनाने वाले ने तो यह मर्दों पर उस मालिक का एक बड़ा अहसान है। अगर वह बदन से कमज़ोर न होती तो आज हरेक घर में कुश्ती चल रही होती और मर्द अपने हाथ-पैर और मुंह तुड़ाए बैठा होता। मालिक ने औरत को एक चीज़ में कम रखा तो उसे दूसरी चीज़ में बढ़ा दिया, उसे मां बना दिया, उसके दिल में प्यार का सागर रख दिया और यह सच है कि प्यार की दौलत के सामने बदन की ताक़त का दर्जा कम है। मालिक कम चीज़ लेता है तो ज़्यादा चीज़ देता है, हमेशा उसका उसूल यही है। मर्द इस राज़ को समझता तो अपनी ताक़त से वह औरत को फ़ायदा पहुंचाता और प्यार का जो ख़ज़ाना उसके पास है, उससे वह फ़ायदा उठाता। बहुत सी किताबें पढ़कर और नेक वलियों की सोहबत में बैठकर हमने यही जाना है। आदमी के लिए उसकी शरीके-हयात से अच्छा दोस्त, हमदर्द, मददगार और राज़दार दूसरा कोई होता ही नहीं। जब हम उलझन में होते हैं तो हम अपनी ख़ानम से ही काउंसिलिंग करते हैं और अल्लाह का शुक्र है कि उनकी सलाह सही होती है और काम करती है।
‘हिंदी ब्लॉगर्स सम्मेलन‘ के लिए आए निंमत्रण के बारे में भी उन्होंने जो कुछ कहा, सही कहा। हमने जान लिया कि जो भी हिंदी ब्लॉगर ख़ानदानी शरीफ़ होगा और गुटबाज़ी से दूर होगा वह तो इस सम्मेलन में जाएगा ही नहीं। हां, जिन्हें कुछ बेचना है या जिन्हें कुछ ख़रीदना है या अपने अच्छे ख़ासे-कुंवारेपन में चेंज दरकार है, वे ज़रूर इस हाट में ठाठ-बाट से पहुंचेगे और नहीं भी पहुंच पाएंगे तो इंटरनेट से ही ‘जलवों‘ का नज़ारा कर लेंगे। अभी तो शुरूआत है लेकिन आने वाले ‘सम्मान समारोहों‘ में हिंदी ब्लॉगर्स के लिए ‘चीयर लीडर्स‘ की तर्ज़ पर कुछ ‘चीयर ब्लॉगर्स‘ का भी इंतज़ाम कर लिया जाए तो हिंदी ब्लॉगिंग समय के साथ क़दम मिलाकर चलने लगेगी।
हम यह सब सोच ही रहे थे कि तभी कॉल बेल बजी। किसान और मज़दूर का दरवाज़ा आज भी हातिम ताई के दिल की तरह हमेशा खुला ही रहता है। हमने खुले-खुलाए दरवाज़े के पार ‘शुगर मिल‘ की तरफ़ से गन्ने की पर्ची लाने वाले हरकारे को देखा। पास जाकर उससे पर्ची ली तो उसने एक पम्फ़लैट भी हमारे हाथ में थमा दिया। जिसमें गन्ने की अच्छी नस्लों के बीज के बारे में जानकारी दे रखी थी और सबसे ऊपर मोटे मोटे हरफ़ों में लिखा हुआ था कि
‘मेरा सम्मान मेरे गन्ने से है‘
हम ताज्जुब में पड़ गए कि हमारे खेत में तो केला, लौकी और कद्दू भी होता है, बैंगन और खीरा भी होता है और जब हम इन्हें आढ़त में लेकर जाते हैं तो हरेक आढ़ती हमें सम्मान देता है और जब उससे रक़म लेकर वापस आते हैं तो जो भी मिलता है, वह भी हमें सम्मान देता है। इसके बावजूद आज तक किसी ने न कहा कि मेरा सम्मान मेरे खीरे-बैंगन से है या मेरा सम्मान मेरे केले से है।
हरकारा तो हमारे हाथ में पर्ची और पर्चा थमाकर चला गया और हम अपनी चैखट पर खड़े यही सोचते रहे कि आखि़र यह क्यों कहा गया कि ‘मेरा सम्मान मेरे गन्ने से है।‘
सोचते-सोचते अचानक हम पर राज़ खुला कि ऐसा क्यों कहा गया है ?
हक़ीक़त यह है कि हरेक बड़ा ब्लॉगर जानता है कि ‘उसका सम्मान उसके गन्ने से है।‘ (...जारी)
6 comments:
Anwer ji aapke lekh ek nayi soch ek naya tazurba sabke samne laate hain..ya naya tazurba na bhi ho, magaar use sabke saamne pesh karne ka hunar aap bakhubi jaante hain.
Aurat kamjor to nahi, magar mard se takatvar bhi nahi,
bas aurat ki sabse badi khoobi yahi hai ki wo muaaf karna janti hai, samarpan karna jaanti hai, khud ko bhula kar apno ke liye jeena jaanti hai.Tabhi to wo aurat kehlaati hai .bas use thoda sa samman apne pati se mil jaaye to us se jyaada dhani, uss se jyada khush naseeb aur takatvaar koi nahi,haan kabhi kabhi aurat bhi takatvar ho jaati hai halaat se ab use akele hi do chaaar hona padta hai tab..
Baaki to har purush ki nazar main har auraat ke liye apni hi aalaag aalag paribhashayen hoti hain.
अनवर जी, आपके लेख एक नयी सोच एक नया तजुर्बा सबके सामने लाते हैं..या नया तजुर्बा न भी हो,मग़र उसे सबके सामने पेश करने का हुनर आप बेख़ुबी जानते हैं. औरत कमजोर तो नहीं,मगर मर्द से ताकतवर भी नहीं,बस औरत की सबसे बड़ी खूबी यही है कि-वो माफ़ करना जानती है, समर्पण करना जानती है, खुद को भुलाकर अपनों के लिए जीना जानती है.तभी तो वो औरत कहलाती है.बस उसे थोडा- सा सम्मान अपने पति से मिल जाए तो उससे ज्यादा दानी,उससे ज्यादा खुशनसीब और ताकतवर कोई नहीं,हाँ कभी-कभी औरत भी ताकतवर हो जाती है हालात से अब उसे अकेले ही दो-चार होना पड़ता है तब.....बाकी तो हर पुरुष की नज़र में हर औरत के लिए अपनी ही अलग- अलग परिभाषाएं होती हैं.
माननीय नीलम जी, आपकी टिप्पणी ने अनवर जी के लेख की खूबसूरती को बढ़ा दिया है. आपने सब कुछ लिख दिया है डॉ. अनवर जमाल जी के लिए इसलिए मैंने आपकी खुबसूरत टिप्पणी का हिंदी में अनुवाद कर दिया है. किसी प्रकार की गुस्ताखी के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.
आदरणीय रमेश जैन जी ! आपकी बातों से आपके पांडित्य और नेकनीयती का पता चलता है। इसके बावजूद भी आपने अपना तख़ल्लुस ‘सिरफिरा‘ शायद इस लिए रख लिया होगा कि आजकल दुनिया सच बोलने वालों को सरफिरा ही कहती है। आपकी टिप्पणी से मुझे हौसला मिला और लगा कि मैं दीवारों से ही अपना सिर नहीं टकरा रहा हूं बल्कि मेरी तरह यहां और भी सिरफिरे और दिलजले मौजूद हैं।
मैं जिन लोगों का विरोध करता हूं, उनके मामले में भी मैं चाहूं तो चुप रह सकता हूं और इसके बदले में वे मुझे भी गले लगा लेंगे लेकिन मुझे उनके गले लगकर करना क्या है अगर वे औरत को सम्मान देना सीखने के लिए ही तैयार नहीं हैं ?
अगर मैं भी चुप हो जाऊं तो फिर इनके खि़लाफ़ बोलने वाला तो यहां कोई है ही नहीं। औरत को नंगा करने वालों को और उनके सपोर्टर्स को मैं हिंदी ब्लॉगिंग का मार्गदर्शक स्वीकार नहीं कर सकता। इनकी शराफ़त का नक़ाब तो खींच ही लूंगा, इंशा अल्लाह।
क्योंकि हमारे प्रयास सार्थक और सफल हों, यह भी उस मालिक की कृपा पर ही निर्भर है।
Please see
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/04/blog-fixing_25.html
@ नीलम जी ! आपका शुक्रिया। मर्द को अब समझना होगा कि औरत को मूर्ख या कमअक्ल समझना ठीक नहीं है। यह औरत ही है जो पाल-पोसकर अपनी औलाद को जवान भी करती है और फिर उनका घर भी बसाती है। हक़ीक़त यह है औरत को आम तौर पर उसकी मुहब्बत और कुरबानियों का मुनासिब सिला नहीं मिलता। अपनों से अपनी कुरबानियों की मान्यता के दो बोल सुनने के लिए वह अंत छटपटाती ही रहती है। अगर उसका बाप, उसके भाई-बहन, उसका शौहर और उसकी औलाद दिल से दो लफ़्ज़ शुक्रगुज़ारी के अदा कर दें तो उनसे आखि़र क्या लुट जाएगा ?
हमें औरत के हर रूप से प्यार भी करना चाहिए और उस प्यार का इज़्हार भी समय समय पर करते रहना चाहिए। प्यार में ताक़त है। घर इसी ताक़त के बल पर मज़बूत होता है।
डॉ. अनवर जमाल जी, कुछ लोगों को तो मेरे "सिरफिरा" नाम से भी परेशानी होती हैं. आपने मात्र कुछ टिप्पणियों में "सिरफिरा" नाम का अर्थ(आपकी बातों से आपके पांडित्य और नेकनीयती का पता चलता है। इसके बावजूद भी आपने अपना तख़ल्लुस ‘सिरफिरा‘ शायद इसलिए रख लिया होगा कि आजकल दुनिया सच बोलने वालों को "सिरफिरा' ही कहती है) लगा लिया. लोगों को सच बोलने वाले दुश्मन नज़र आते हैं और उनको जल्दी से जल्दी खत्म करना चाहते हैं. इसके लिए साम, दंड, भेद सब कुछ का प्रयोग करते हैं. मगर हर बार असफल हो जाते हैं.
Ramesh kumar jain ji. main aapki bahut abhaari hoon ..isliye bhi ki aapne hindi main meri tippani ka anuvaad kiya aur isliye bhi ki aapne meri soch ko saraha bhi.aur samjha bhi.
bahut bahut shukriya .
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