हमारी क्लास के प्यारे छात्रों और छत्र-धारिकाओं ! आज हम आपको बताएंगे कि जो लोग यह रोना रोते हैं कि हिंदी ब्लॉगिंग में पैसा नहीं है, वे ग़लत हैं। अगर आदमी अपना ज़मीर बेच डाले तो फिर उसे किसी फ़ील्ड में भी पैसे की तंगी कभी नहीं सताती। आदमी को जो चीज़ दुखी और परेशान करती है, वह उसकी उसूलपसंदी है। संतों ने भी कहा है कि अपने दुख का कारण मनुष्य स्वयं ही है। सभी संत किसी न किसी उसूल के पाबंद थे सो वे सदा दुखी ही रहे।
एक सत्य घटना के माध्यम से आप यह बात अच्छी तरह जान लेंगे। यह घटना एक ऐसी जगह की है, जिसका नाम बताने से कोई नफ़ा नहीं है और यह उस समय घटी जबकि हिंदी-ब्लॉगिंग में खिलाड़ी और अनाड़ी, सभी अपने-अपने खेल खेल रहे थे। ऐसे समय में हमें एक रोज़ ईमेल से एक ‘निमंत्रण पत्र‘ मिला कि देश की राजधानी में 70 ब्लॉगर्स को सम्मानित किया जाएगा।मैं उसे भी पढ़ता रहा और अपने मन में भी सोचता रहा तो तथ्य कुछ इस प्रकार उद्घाटित हुए कि ब्लॉगर्स को सम्मान के नाम पर शॉल और मोमेंटो दिया जाएगा, शॉल पत्नी के उलाहनों से बचने के लिए कि इस मुई ब्लॉगिंग ने तुम्हें दिया ही क्या ?
और मोमेंटो दोस्तों पर रौब ग़ालिब करने के लिए। उनका नाम एक ऐसी किताब में भी छापा जाएगा, जिसे वे अपने नाम की ख़ातिर भारी क़ीमत पर ख़रीदने के लिए मजबूर किए जाएंगे। उनकी तंगहाली का ख़याल रखते हुए उन्हें एक लिफ़ाफ़े में इतनी रक़म भी दी जाएगी जिससे उनके आने-जाने का ख़र्चा उन पर न पड़कर ‘हास्य निवेदन‘ नामक संस्था पर पड़े, जिसकी प्लैटिनम जुबली के अवसर को यादगार बनाने के लिए यह सब गोरखधंधा फैलाया जा रहा है। इस संस्था से पूरी सौदेबाज़ी हमारे दो महान ब्लॉगर्स ने की है। जिनमें से एक हैं ‘सपना समूह‘ वाले कमल ‘सवेरा‘ जी और दूसरे हैं ‘छिनाल छिपकली डॉट कॉम‘ वाले विशाल ‘वनस्पति‘ जी।
ये सभी ब्लॉगर्स ऐसे बुद्धिजीवी हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हज़ारे जी के समर्थन में पोस्टें लिखीं हैं और अब इन्हें उसी नेता बिरादरी का एक आदमी सम्मानित करेगा जिसे ये सभी लोग भ्रष्ट और आतंकवादियों से भी बदतर मानते हैं। नेताओं का आज पब्लिक के दिल में कितना सम्मान है, यह कोई ढकी-छिपी बात नहीं है। जिसका आज खुद कोई सम्मान नहीं है, वह क्या उन्हें सम्मान देगा जो कि पैदाइशी तौर पर ही सम्मानित हैं। एक ऐसा आदमी, जिसकी पूरी बिरादरी के खि़लाफ़ ही अन्ना जैसे हज़ारों सैकड़ों साल से लड़ते आ रहे हैं, वह आदमी वहां आएगा और ब्लॉगर्स को गिफ़्ट आदि देने से पहले एक ऐसी तक़रीर सुनाएगा जिसमें शुरू से आखि़र तक शब्द-छल के सिवा कुछ भी न होगा और तमाम ब्लॉगर्स बिना चूं-चपड़ उसे सुनेंगे केवल एक ईनामदार बन्ने के लालच में . वह कहेगा कि उसकी पार्टी के राज में सब ओर रामराज्य जैसे हालात हैं। जबसे उनकी सरकार बनी है तबसे उनके प्रदेश में तो क्या, उनके आस-पास तक के प्रदेशों से भी बेईमानी और भ्रष्टाचार का जड़ सहित ख़ात्मा हो चुका है। अब कोई ऐसा मुद्दा शेष नहीं है, जिसके लिए देश की जनता को परेशान होना पड़े। सभी बड़े ठेके इस तरह दिये जा रहे हैं कि किसी को भी कोई ‘शिकायत‘ न हो। पत्रकारों का भी ‘ध्यान‘ रखा जा रहा है और अब पता चला है ‘ब्लॉगर्स‘ नाम की भी एक पूरी जमात वुजूद में आ गई है, सो लिहाज़ा अब इसका भी ‘ध्यान‘ रखा जाएगा। अभी यह पता चलाया जा रहा है कि आप लोगों का ध्यान ‘किन लोगों‘ के माध्यम से रखा जाए ?
और कैसे रखा जाए ?
मैं आभारी हूं ‘हास्य निवेदन‘ के स्वामी का, कि उन्होंने अपने ब्याज की राशि में से एक अंश आपको बुलाने और खिलाने-पिलाने पर ख़र्च करना गवारा किया। इसके एवज़ में मैं ये दो भारी-भरकम किताबें सरकारी लायब्रेरियों की अलमारी में सड़ने के लिए सैंक्शन कर दूंगा क्योंकि इन्हें जब मैं ही नहीं पढ़ूंगा तो फिर कोई और ही क्यों पढ़ेगा ?
छात्रों और छात्राओं को तो आपस में मोबाईल पर बात करने से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती। वे अपना कोर्स तक तो पढ़ते नहीं ‘हिंदी-ब्लॉगिंग का आगा-पीछा‘ क्या पढ़ेंगे ?
और न ही लेखक यह किताब आम लोगों को पढ़वाना चाहते हैं। अगर वे इसे सभी को पढ़वाना चाहते तो वे इसे कम पृष्ठों में छापते, चाहे धारावाहिक के रूप में छापते। 20-30 रूपये की किताब हरेक ब्लॉगर ख़रीद भी लेता और अपना ‘आगा-पीछा‘ भी जान लेता। लेकिन उन्होंने यह किताब जनता के लिए थोड़े ही लिखी है, उन्होंने तो यह किताब अपना नाम ऊंचा करने के लिए और रिकॉर्ड के लिए लिखी है। या कहें कि हमारे साथ सरकारी माल पर हाथ साफ़ करने के लिए लिखी है। बहरहाल जैसी भी लिखी है, बड़ी अच्छी लिखी है। मैं इनका विमोचन करता हूं। सभी फ़ोटोग्राफ़र्स अच्छे एंगल से फ़ोटो बनाएं और खूब सजाकर अपने अख़बारों में लगाएं और ऐसे शीर्षक लगाएं जैसे कि आज हिंदी-ब्लॉगिंग को कोई बहुत बड़ा उद्धार हो रहा हो।
इसी तरह की ऐसी बहुत सी बातें, जो कि ‘लोकपाल बिल‘ से डरा हुआ नेता कभी नहीं कहेगा, मैं अपने दिल में सोचता रहा। ‘हास्य निवेदन‘ के मोटे पूंजीपति को फांसने में जिन दो लोगों ने सफलता पाई है, वे दोनों ही राजधानी में रहते हैं। एक देश की और दूसरा प्रदेश की। एक हैं कमल ‘सवेरा‘ जी और दूसरे हैं विशाल ‘वनस्पति‘ जी।
दोनों शाकाहारी हैं लेकिन मोटी आसामी हलाल करने में इन दोनों ने सारे मांसाहारियों को ही पीछे छोड़ दिया। आदमी अगर मिल-जुलकर काम करे और युक्ति से काम ले तो वह सूखे तिलों में से भी तेल निकाल सकता है। हम तो दोनों के कौशल के क़ायल होकर रह गए।
हमारा नाम ईनामख़ोरों की लिस्ट में नहीं था। उसके बावजूद एक तसल्ली थी कि इस महंगाई के ज़माने में ‘हास्य निवेदन‘ वाला सभी आगंतुकों को खाना खिलाने के लिए तैयार था ताकि एक तो वे खाने के शौक़ में अंत तक जमे रहें और दूसरे ज़ोर-ज़ोर से तालियां बजाने का उत्साह भी उनमें बना रहे, और तीसरे उन्हें अपने अपमान का अहसास कुछ कम हो जाए कि उन्हें सम्मानित क्यों नहीं किया गया ?
हमने हर चीज़ को बेक़ायदा तरीक़े से सोचा और गांधी जी को याद किया कि गांधी जी को लोग गालियों के ख़त लिखते थे तो गांधी जी ख़त को रद्दी में फेंकने से पहले टटोल लिया करते थे और अगर उसमें कोई आलपिन होती थी तो वे उसे निकाल लिया करते थे।
मुझे इस पूरे आयोजन में काम की चीज़ सिर्फ़ ‘रोटी-पानी‘ नज़र आ रही थी। इसके लिए तो बाज़ दफ़ा औरत को अपनी आबरू तक बेचनी पड़ जाती है, जबकि मुझे तो केवल अपने ज़मीर का ही सौदा करना था। लिहाज़ा मैं मन ही मन तैयार हो गया कि चलो इस आयोजन में ज़रूर चलेंगे जो कि हिंदी-ब्लॉगिंग में इन्कम के द्वार खोलने के लिए आयोजित किया जा रहा है। बुलाने वाला खाने के लिए और ताली बजाने के लिए परिजनों तक को साथ बुला रहा है।
कितनी अच्छी आसामी है ?
चलो इससे मुलाक़ात ही हो जाएगी और हो सकता है कि किसी समय यह अपना भी कबाड़ छाप डाले। हमारे पास भी सवेरा जी जैसी कई ऐसी पोस्ट हैं जिन पर ब्लॉग-जगत ने कभी दो टिप्पणी तक करना गवारा न किया। जब सवेरा जी अपनी ऐसी पोस्ट बेच भागे तो हो सकता है कि हमारे भी नसीब जाग जाएं। जिन फिल्मों को दर्शक नहीं मिलते, पता चलता है कि वे कला फ़िल्म मान ली गईं और कई अवॉर्ड ले भागी। हो सकता है कि कल ‘हास्य निवेदन‘ वाला अपनी ऊंची पहुंच के बल पर इस ‘आगा-पीछा‘ को भी कोई बड़ा पुरस्कार दिलवा डाले। क्रिकेट की तरह आज सभी कामों में फ़िक्सिंग चल रही है। ब्लॉगिंग अभी तक फ़िक्सिंग से दूर थी लेकिन भाई लोगों ने इसमें भी फ़िक्सिंग शुरू कर दी। जिससे खुश हो गए, उसे ईनामदार बना दिया और जिससे नाराज़ हो गए, उसका नाम सार्वजनिक घोषणा के बावजूद निकाल दिया। इस अन्याय और चौपट नीति के खि़लाफ़ जो भी मुंह खोलेगा, उसका भी ईनाम कैंसिल कर दिया जाएगा। ईनाम का लालच ब्लॉगर्स के ज़मीर को मारे डाल रहा है। यह भी आत्मा का हनन है और आत्महत्या का एक भयानक प्रकार है, जिसे केवल ज्ञानचक्षु संपन्न व्यक्ति ही देख सकता है।
ख़ैर हमें क्या हमें तो अपने लिए ‘रोटी-पानी‘ का जुगाड़ करना है। बच्चे भी बहुत दिनों से कहीं बाहर नहीं गए हैं, सो इस बहाने वे भी घूम आएंगे और बड़ा जामवड़ा देखकर सोचेंगे कि हमारे पापा ज़रूर बहुत बड़ा काम कर रहे होंगे। बड़े काम का पता बड़े जमावड़े से ही तो चलता है, चाहे उनमें से ज़्यादातर के ज़मीर मुर्दा ही क्यों न हों।
दृढ़ निश्चय करके अपनी आवाज़ को खुशगवार सा बनाकर हमने अपनी पत्नी को आवाज़ आवाज़ दी-‘ अजी, सुनती हो ?, कहां हो ?‘
उधर से बिना देर किए तुरंत ही आवाज़ आई-‘क्या आप मेरी कभी सुनते हो इस ब्लॉगिंग के चक्कर में ? और मैं होऊंगी कहां ? तुमने कौन सी हवेली बनाकर दे रखी है मुझे ? यहीं रसोई में अपने दीदे फोड़ रही हूं और अपनी तक़दीर को रो रही हूं।‘
उनके इस अचानक हमले से मैं अचकचाकर रह गया और उसके बाद जो वार्तालाप हुआ उसने तो वाक़ई मेरी तीसरी आंख भी खोल दी और मुझे यक़ीन हो गया कि अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए, क्योंकि औरतों की छठी इंद्रिय बहुत तेज़ होती है। (...जारी)
9 comments:
हरेक ब्लॉगर स्वतः सम्मानित है
ये चन्द अल्पना या फुक्कड़ वाले कोई ठेका नहीं ले रखे हैं. इनकी माफियागिरी के जनक भी लखनऊ के ही हैं भैया ! वक़्त कभी रहा तो सबकी बखिया की वात लगाऊंगा !
सम्मान दिलाना है तो किसी को मेरी तरह इज्ज़त दो मैंने इन सबको दी!!!
वाक़ई मेरी तीसरी आंख भी खोल दी और मुझे यक़ीन हो गया कि अगर किसी को बड़ा ब्लॉगर बनना है तो उसे औरत की अक्ल से सोचना चाहिए,
dekhte hai farmulla kitna kaam karta hai
@ भाई सलीम खान साहब ! आप तो पैदाइशी तौर पर ही सम्मानित हैं और इतने ज्यादा सम्मानित हैं कि आप अरसा ए दराज़ से सभी को सम्मान देते आ रहे हैं और फिर भी आपके पास सम्मान कम नहीं हो रहा है लेकिन आजकल बिना प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह के सम्मान की विश्वसनीयता संदिग्ध सी रहती है लिहाज़ा आपको इन दोनों चीज़ों का जुगाड़ ज़रूर करना चाहिए.
@ जनाब सुनील कुमार जी ! आपने हमारी पोस्ट पर कमेन्ट कर दिया . अब हम इसे किसी को भी नहीं बेच पाएंगे . इसकी सारी कलात्मकता इसके टिप्पणी रहित होने में निहित थी . टिप्पणी रहित पोस्ट्स को आजकल पब्लिशर मोटा माल देकर छाप रहे हैं.
श्रीमान DR. ANWER JAMAL जी आपके उपरोक्त लेख की विचारधारा से पूर्णत: सहमत हूँ. मगर जहाँ-जहाँ पर आपने ब्लागरों और ब्लोगों के नाम का जिक्र किया है. उनकी विचारधारा के बारे में जानकारी नहीं है. जब तक उनका अवलोकन नहीं कर लूँगा. तब तक उनके बारें में कुछ भी कहना मेरे लिए उचित नहीं होगा. आपकी जब भी उपरोक्त लेख की अगली किस्त जारी हो तो कृपया मेरी ईमेल पर सूचना प्रेषित करें. आज कुछ ही समय मिला है. बहुत जल्द ही आपके उपरोक्त ब्लॉग की सभी पोस्टों का अवलोकन करूँगा. अगर आपको समय मिले तब हमारे ब्लोगों का पोस्टमाडम जरुर करके अच्छी और बुरी टिप्पणियाँ करके मार्गदर्शन करें.
बहुत सही सुझाव दिया है आपने!
अजी क्या सोचना कहीं.....में भी अक्ल होती है!!!!!!
बिल्कुल सही कहा अनवर जी आपने...
आखिर इन लोगों को bloggers association बनाने का ठेका किसने दिया ?
चलो इन्होने अपने मन की बातों को ध्यान में रख के ऐसा किया, पर इस बात की अनुमति किसने दी, कि किसी नए ब्लोगर के जज्बातों के साथ खेला जाए ?
इनाम समारोह आयोजित करना गलत नहीं, पर पैसों कि आड़ में इनाम खरीद लेना और और भ्रष्ट नेताओं से सम्मान पाना सरासर गलत है.
ऐसे में ये लेखक लोग क्या अपने देश को बचायेंगे, जो खुद ही भ्रष्ट हैं वो ब्लॉग जगत को और भी गन्दा करते जायेंगे.
विषय पर तो आपकी बात खत्म होने पर ही टिप्पणी करूंगी...
डा. श्याम गुप्त जी अगर औरतों में अक्ल नहीं होती तो अनपढ़ गंवार मां अपने बच्चे को कुछ न बना पाती। औरत पढ़ी-लिखी न भी हो तो भी घर-परिवार चलाती है अक्ल की बदौलत...इस मुद्दे को इसी मुद्दे तक रहने दीजिए...औरतों का मजाक मत बनाइए..
मैंने तो मुडकर भी नहीं देखा आज न जाने कैसे यह पृष्ठ खुल गया....
--वीणा जी ...विना पढ़ा लिखा अनपढ़ गंवार मर्द भी मजदूरी करके घर चला लेता है..अपने बच्चों को बना लेता है...अक्ल की बदौलत ...अतः यह कोई मुद्दा है ही नहीं ..
--वास्तव में यह पोस्ट ही मूर्खतापूर्ण है...स्त्री-पुरुष के मस्तिष्क में विभेद करना एक मूर्खतापूर्ण कार्य है....जो इस प्रकार की व्यर्थ की पोस्टें कर रही हैं और लोग पक्ष में टिप्पणी भी कर रहे हैं बिना गूढ़ अर्थ को जाने हुए....
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