Wednesday, April 27, 2011

‘शौचासन‘ के लाभ कैसे उठायें बड़े ब्लॉगर्स ? Self realization in the toilet

अगर हम ढंग से शौच करना ही सीख लें तो हमारी मां और बहनों की आर्थिक स्थिति ठीक हो जाएगी, मां अपने घर में और बहनें अपनी ससुराल में खुश ही रहेंगी। हमें शौच करना भी आज तक ढंग से नहीं आया इसीलिए आज मां अपने घर में ही उपेक्षित है और बहनें अपनी ससुराल में भाई की राह तक रही हैं और कभी वे मायके आ भी जाती हैं तो उन्हें यही अहसास बार बार दिलाया जाता है कि ब्याह के बाद अब तेरा यहां कुछ नहीं है। यह एक बुराई है जो हर घर में आम है। कमज़ोर का हक़ मारकर कोई समाज कभी खुशहाल नहीं हो सकता। लिहाज़ा हम भी आज तक खुशहाल न हो पाए। आज हमारे समाज में कन्या को गर्भ में ही मार दिया जाता है और जिन्हें मार नहीं पाते तो उनकी ज़िंदगी मरने से बदतर कर दी जाती है।
बदन की पाकी के साथ दिल को भी पाक करना चाहिए। जितनी देर में हमने किचन गार्डन पार किया उतनी ही देर में यह सब ख़याल तेज़ी से आकर चले गए। हम शौचालय में दाखि़ल होकर ‘शौचासन‘ में बैठ गए। यह आसन मन को बड़ा प्रफुल्लित करता है। इसे बच्चे से लेकर बूढ़ा तक हरेक कर सकता है, यहां तक कि किसी भी रोग का रोगी और गर्भवती स्त्रियां भी निःशंक होकर इस आसन को कर सकती हैं।
इस आसन के प्रमुख लाभ यह हैं कि इससे शरीर का मल निष्कासित होता है। एकाग्रता सहज उपलब्ध हो जाती है। एकाग्रता की सिद्धि होते ही प्राचीन स्मृतियां प्रकट हो जाती हैं या फिर अगर आप किसी समस्या का समाधान ढूंढ रहे हैं तो आपको उस समस्या का समाधान या तो इसी आसन में मिल जाएगा वर्ना तो इससे फ़ारिग़ होते ही मिल जाएगा।
आर्किमिडीज़ के बारे में मशहूर है कि जैसे ही वह नहाने के लिए टब में बैठा तो उसे ‘उत्प्लावन का सिद्धांत‘ सुझाई दिया। यह भी शौचासन का ही कमाल है क्योंकि वह टब में बैठने से पहले शौच करके ही फ़ारिग़ हुआ था। बहरहाल जो जिस मैदान का माहिर है, उसी मैदान की बातें उस पर खुलती हैं। हम भी इस आसन में बैठे तो हम अचानक ही ‘हो हो‘ करके हंसने लगे और हम जितना हंसते थे, उसकी वजह से हमारे पेट पर उतना ही ज़्यादा दबाव पड़ता था। जिससे समय की बचत हो रही थी और काम फ़ास्ट हो रहा था। हम जानबूझकर नहीं हंस रहे थे बल्कि हंसी हमें खुद ही आकर चिपट गई थी।
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4 comments:

Ayaz ahmad said...

अच्छी पोस्ट

Unknown said...

भाई डॉ अनवर जमाल जी !
मैंने आपके तमाम आलेख पढ़े और पढ़ कर यह समझ पाया हूँ कि खुद्दारी अभी पूरी तरह ख़त्म नहीं हुई है दुनिया में...........

आज मैं आपको वही इज़्ज़त और एहतराम देना चाहता हूँ जो अपने ज़माने में ग़ालिब ने मीर को देते हुए संकोच नहीं किया था .

ये किताब लिखना, ये मीटिंग करना और ये सम्मान करना वगैरह बहुत छोटी और नगण्य चीजें हैं . आपके पास बड़ा हुनर है, बड़े हुनर को बड़ी प्राप्ति के लिए लगाओ तो आपका समय सार्थक होगा .

अभी चूँकि चिकन गुनिया की चपेट में हूँ इसलिए ज़्यादा लिख नहीं सकता लेकिन मेरे भाई..........थोड़ा ठीक हो जाऊं तो लिखूंगा ज़रूर .

वैसे मेरा मानना है कि पुरस्कार जब तक एक को मिले तो पुरस्कार, दो - चार को मिले तो उपहार और बाद में तो बस ..समझ जाइए....

DR. ANWER JAMAL said...

आपने हमारे बारे में जो नेक ख़यालात ज़ाहिर किये , उसके लिए हम आपके शुक्रगुजार हैं
और आपको 'महामित्र' का लक़ब अता करते हैं. यह लक़ब ज़ाहिर करता है कि आपको हम किस नज़र से देखते हैं ?
आपने कहा कि
'ये किताब लिखना, ये मीटिंग करना और ये सम्मान करना वगैरह बहुत छोटी और नगण्य चीजें हैं . आपके पास बड़ा हुनर है, बड़े हुनर को बड़ी प्राप्ति के लिए लगाओ तो आपका समय सार्थक होगा .'
आपने जो कहा बिलकुल सही कहा . आपको हक है यह कहने का . आप एक सम्मानित ब्लॉगर ही नहीं हैं बल्कि आप सम्मान के Habitual हैं. चचा नवाज़ देवबंदी की तरह सम्मानित होना आपके लिए तो रूटीन का काम है . आपके पास जितने मोमेंटो होंगे उनके लिए न तो आपके ड्राइंग रूम की दीवारों पर जगह बची होगी और न ही आपके दिल में ऐसा करने की कोई इच्छा ही बाकी होगी . घर के बक्सों में भाभी रखने न देती होंगी लिहाज़ा उनसे घर में बच्चे ही खेलते होंगे.
आपका हर लफ्ज़ सदाक़त से भरपूर है और ख़ुलूस ओ मुहब्बत से भी . मुहब्बत अपना असीर बना ही लेती है .
भाई इज्ज़त तो हम आपकी अपने गुरूजी की वजह से सदा से करते ही थे लेकिन आज अपना दिल भी हार गए हैं आप पर.
हम कुछ और भी कहते लेकिन अभी अभी हमारी ३ साल की बेटी अपनी आँख की भौंह पर चोट खाकर बैठी है तो दिल ज़रा उस तरफ भी है, हालाँकि चोट मामूली है लेकिन मेरे लिए फिर भी बड़ी है.
आप खुद भी चिकन गुनिया की चपेट में हैं लिहाज़ा अपने साथ हम आपके लिए भी मालिक से बेहतरी की दुआ करते हैं .
आपकी नसीहत पर हम अपनी हद भर चलने की कोशिश करेंगे, इंशा अल्लाह.
आपके अल्फ़ाज़ हमारे दिल पर नक्श हो गए हैं और इनका हक भी यही है. आपका यह एक कमेन्ट मेरे लिए एक तोहफा भी है और एक ऐसा प्रमाणपत्र भी जिसकी विश्वसनीयता असंदिग्ध है.
शुक्रिया !

http://albelakhari.blogspot.com/2011/04/blog-post_30.html

DR. ANWER JAMAL said...

@ महामित्र अलबेला जी ! दोस्ती के इस ख़ास मौक़े पर हम आपको उपहार में एक ऐसा लिंक ईमेल से भेज रहे हैं जिसे इस ब्लॉग जगत में हमने आज तक किसी को भी नहीं दिखाया है , यहाँ तक कि फुर्सत की कमी की वजह से अपने गुरु जी को भी नहीं दिखा पाए और दीगर अफ़राद को हमने दिखाना नहीं चाहा . आज उस लिंक को आपको और गुरु जी को एक साथ भेज रहा हूँ . इसमें हैं तो मात्र कुछ झलकियाँ ही लेकिन इनसे आपको कुछ अंदाजा ज़रूर हो जायेगा कि एक लेखक और एक एक्टर के तौर पर हम फिल्म के विषय के साथ कितना न्याय कर पाए ?

यह फिल्म निठारी काण्ड पर आधारित है.

इस लिंक पर जाकर आप हमारी एक्टिंग का लुत्फ़ ले सकेंगे . आपको यह जानकर अच्छा लगेगा कि इसके राइटर और प्रोड्यूसर भी हम ही हैं और इसके डायरेक्टर वह साहब हैं जिनके मक़ाम पर आप इसका लुत्फ़ उठाएंगे .

शुक्रिया .